कोई तो सुने गंगा की पुकार

इलाहाबाद में पावन ‘संगम’ पर गंगा को साफ करने के अभियान का नेतृत्व कभी तत्कालीन जिलाधिकारी (डीएम) राजीव अग्रवाल ने किया था। अब इलाहाबाद के वर्तमान डीएम आलोक कुमार ने एक नया अभियान ‘एक दिन गंगा के नाम’ शुरू किया है और नदी को साफ करने के लिए प्रत्येक स्थानीय एनजीओ को एक दिन आवंटित किया है।

गंगा नदी भारतीयों की आस्था का केंद्र है और अपने प्रवाह क्षेत्र में निवास करने वाले 40 करोड़ लोगों के जीवन का आधार भी लेकिन लोगों की नासमझी और केंद्र व राज्य सरकारों की हृदयहीनता के कारण इस पवित्र नदी का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। गंगा इतनी मैली हो गई है कि अगर अब नहीं चेते तो ये नदी इतिहास बन जाएगी। हाल के दिनों में गंगा से जुड़ी दो घटनाओं ने लोगों को दहशतजदा कर दिया। 36 वर्षीय साधू स्वामी निगमानंद ने गंगा के लिए अपनी बलि चढ़ा दी और उससे एक सप्ताह पूर्व गंगा नदी ने शिवनगरी काशी के घाटों का साथ छोड़ दिया। कहते हैं कि गंगा ने भगवान शिव से वादा किया था कि वह कभी भी वाराणसी के घाटों का साथ नहीं छोड़ेगी। हो सकता है, अपने ही बेरहम भक्तों की दिमाग की सड़न और नदी के पवित्र व शुद्ध जल में हर क्षण घुलते जहर ने इस ‘मातृ नदी’ को अपना इरादा बदलने पर मजबूर कर दिया हो। इसी कारण दिसंबर 2008 में केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय नदी’ का दर्जा देकर इसे बचाने के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं कीं और कहा कि मानव जाति को बचाने के लिए नदी को नेशनल हेरिटेज की तरह बचाना होगा। देश के सातों आईआईटी ने गंगा नदी के बेसिन के प्रबंधन और विकास की जिम्मेदारी ली और तीन सप्ताह पहले वर्ल्ड बैंक ने गंगा नदी को बचाने के लिए एक बिलियन डॉलर (करीब 4500 करोड़ रुपए) के कर्ज की घोषणा की। मगर सरकार उस साधू को नहीं बचा सकी, जिसने गंगा को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। दूसरी ओर नेशनल रिवर (राष्ट्रीय नदी) बनाने के मकसद को प्राप्त कर इस प्राचीन नदी को प्रदूषण और अपकर्ष (डिग्रेडेशन) से बचाने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में उच्चाधिकार प्राप्त प्राधिकरण बनाया है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के (जहां से होकर गंगा नदी 2525 किलोमीटर का अपना सफर तय करती है) मुख्यमंत्री इस प्राधिकरण के सदस्य हैं।

पर्वतीय क्षेत्रों में 280 किलोमीटर का सफर करने के बाद गंगा हरिद्वार में मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है और बंगाली की खाड़ी स्थित गंगासागर में मिलने से पहले उत्तर प्रदेश में 1170 किमी, बिहार में 445 किमी और पश्चिम बंगाल में 520 किमी की यात्रा तय करती है। गंगा नदी का 110 किलोमीटर का विस्तार बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा के रूप में कार्य करता है। इलाहाबाद में गंगा का संगम यमुना और अदृश्य सरस्वती के साथ होता है, जो पवित्र ‘त्रिवेणी’ के रूप में सुविख्यात है।

यूनाइटेड किंगडम के ओवरसीज डेवलेपमेंट एडमिनिस्ट्रेशन (ओडीए) और भारत के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से अनुदान प्राप्त ‘गंगा एक्शन प्लान’ के प्रभावों पर हुए एक अध्ययन के मुताबिक गंगा नदी गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी तक के अपने प्रवाह क्षेत्र में 29 प्रथम श्रेणी, 23 द्वितीय श्रेणी के शहरों और 48 नगरों के अलावा हजारों गांवों को पोषित करती है। इस आबादी का रोजाना का 1.3 अरब लीटर (1.3 बिलियन लीटर) सीवेज सीधा गंगा नदी में उत्सर्जित होता है। इसके अलावा 26 करोड़ लीटर औद्योगिक कचरा, 60 लाख टन उर्वरक और 9000 टन कीटनाशक दवाओं से निकला अपशिष्ट पदार्थ, हजारों पशुओं और मनुष्यों के शव भी गंगा की दशा को दयनीय बना रहे हैं। गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री भी इसके अस्तित्व के लिए गंभीर संकट का सबब बन रहा है। न केवल यहां प्रदूषण फैलना शुरू हो गया है, बल्कि वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से यह ग्लेशियर (गंगोत्री) 2030 तक समाप्त हो जाएगा, जिससे गंगा नदी को मानसून के रहमोकरम पर निर्भर रहना पड़ेगा। यह ग्लेशियर 850 मीटर तक खिसक गया है और इसके हिम क्षेत्र तेजी से सिकुड़ रहे हैं। इन स्थितियों के मद्देनजर स्पष्ट है कि नदी का प्रवाह दो-तिहाई तक सिमट जाएगा। टिहरी के निकट गंगा की प्रमुख सहायक नदी भागीरथी पर बन रहे 261 मीटर ऊंचे विवादास्पद टिहरी हाइड्रो प्रोजेक्ट से गंगा का संकट और गहरा रहा है। सेंट्रल हिमालय की भूकंप पट्टी, जो एक बड़ा भू-गर्भीय फॉल्ट जोन है, में स्थित इस बांध के कारण नदी में जल की आपूर्ति कम होनी शुरू हो गई है। भागीरथी की जल आपूर्ति में कमी आने का मतलब है कि इस स्थान से 80 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद इसका पानी बमुश्किल ही गंगा तक पहुंच पाएगा। ऐसी आशंका जाहिर की गई है कि 20 सालों के बाद महान गंगा एक पतली धारा के रूप में परिणत हो जाएगी। वाराणसी में गंगा के घाटों से दूर जाने से यह बात साबित होती है।

गंगा नदी वाराणसी के घाटों को छोड़ रही हैगंगा नदी वाराणसी के घाटों को छोड़ रही हैऐसी स्थितियों से निपटने के लिए 1985 में महत्त्वाकांक्षी ‘गंगा एक्शन प्लान’ (जीएपी) को लॉन्च करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी कई बड़ी घोषणाएं की थीं लेकिन उसके बाद सारे फंड का उपयोग कर लेने के बावजूद ‘जीएपी’ गंगा को प्रदूषण और जहरीले तत्त्वों से मुक्त कराने में नाकाम रहा। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के ‘सेंटर फॉर एन्वायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ के को-ऑर्डिनेटर डॉ. बी.डी. त्रिपाठी (जिन्होंने 1981 में संसद में हाइलाइट कर प्रदूषण के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में लाने का काम किया था) उनका कहना है, ‘हर साल 33,000 जले या अधजले शव गंगा नदी में फेंक दिए जाते हैं। इन शवों को जलाने के लिए 16,000 टन लकड़ी की आवश्यकता होती है और उससे 600 टन से ज्यादा राख बनती है। साथ ही 300 टन अधजला मांस, 6000 पशु शव नदी में तैरते और सड़ते रहते हैं।’कानपुर में स्थिति और भी भयावह है। कभी ‘पूर्व का मैनचेस्टर’ कहे जाने वाले इस शहर में चर्म शोधन कारखानों का 1.3 करोड़ लीटर प्रदूषित जल गंगा में प्रवाहित होता है। इसके जहरीले जल के कारण कई गांव गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं, जहां के निवासी गंभीर चर्म रोगों से ग्रस्त हो रहे हैं और फसलें बर्बाद हो रही हैं।

गंगा रक्षा मंच के नेता रामजी त्रिपाठी 2003 से ही खतरों के बारे में अधिकारियों को सचेत और लोगों को जागरूक करने में जुटे हुए हैं। त्रिपाठी का कहना है कि गंगा को दोहरे संकट का सामना करना पड़ रहा है। जहां इसमें सीवेज का उत्सर्जन बढ़ गया है, वहीं बंद ‘अपस्ट्रीम’ के कारण नदी का प्रवाह घट गया है। कम पानी की वजह से प्रदूषण और जहरीलापन बढ़ गया है। अब उन्होंने गंगा में चर्मशोधन कारखानों के जहरीले पानी के उत्सर्जन, शवों को प्रवाहित करने और प्रतिमाओं के विसर्जन को पूरी तरह प्रतिबंधित किए जाने के लिए धर्मयुद्ध छेड़ दिया है। इलाहाबाद में पावन ‘संगम’ पर गंगा को साफ करने के अभियान का नेतृत्व कभी तत्कालीन जिलाधिकारी (डीएम) राजीव अग्रवाल ने किया था। अब इलाहाबाद के वर्तमान डीएम आलोक कुमार ने एक नया अभियान ‘एक दिन गंगा के नाम’ शुरू किया है और नदी को साफ करने के लिए प्रत्येक स्थानीय एनजीओ को एक दिन आवंटित किया है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के डॉ. एस. एस. ओझा गंगा में गाद भरने (सिल्टेशन) की वजह से इसके भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने फाफामऊ से लेकर रामचौरा (जहां भगवान राम ने नदी को पार किया था) के 26 किलोमीटर के विस्तार में एक अध्ययन किया था और पाया कि भारी मात्रा में बालू, निर्माण सामग्री और पूजा सामग्री जमा होने की वजह से ‘रिवर बेड’ हर साल 2 मिलीमीटर ऊपर उठ रहा है। ओझा कहते हैं, ‘जिस तरह से रिवर बेड ऊपर उठ रहा है, उससे नदी का प्रवाह बाधित होगा और पूरी नदी एक बदबूदार नाले में परिणत हो जाएगी।’ हालांकि हिंदुओं की आस्था है कि पवित्र गंगा नदी अमर है और इसका पानी अमृत है, लेकिन यह साफ है कि सरकार की उदासीनता (स्वामी निगमानंद की त्रासद मृत्यु जिसका ज्वलंत उदाहरण है) जिसकी वजह से यह पवित्र नदी खतरे में है।
 

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