कोचाबांबा (बोलीविया) : जलयुद्ध के बाद सार्वजनिक-सामूहिक भागीदारी

और पानी की लड़ाई के बाद....क्या?


लाख टके का यह सवाल विला सेबेस्टियन पैगाडोर की एक दीवार पर रंग से लिखा है। विला सेबेस्टियन पैगाडोर कोचाबांबा के दक्षिणी क्षेत्र का एक गरीब पड़ोसी है। यह सवाल उस चिंता की अनुगूंज है जो उन तमाम लोगों के मन में है जिन्हें आशा है कि अमेरिकी बहुराष्ट्रीय जल कंपनी बेक्टेल पर हुई विजय को सेमापा (एस.ई.एम.ए.पी.ए.) की दीर्घकालीन सफलता में रूपांतरित किया जा सकता है। सेमापा कोचाबांबा (बोलीविया) में जल और सीवर की सार्वजनिक सेवा है।

वहां ऐसी मजबूत ताकतें हैं जो सेमापा को असफल होते देखना चाहती हैं क्योंकि सेमापा वहां इस बात के प्रमाण के रूप में सामने खड़ी है कि जनसंघर्ष निजीकरण के व्यावहारिक विकल्पों का मार्ग खोल सकता है। जल निजीकरण की हार एक पारदर्शी, कार्यकुशल, भागीदारी पर आधरित तथा सामाजिक न्याय का निर्माण करने वाली सार्वजनिक सेवा का सृजन करने के सेमापा के लगातार जारी प्रयास का पहला कदम था। ये ‘जनता की सेमापा’ के चार स्तंभ, कोआर्डिनाडोरा देल अगुआ य दे ला वीदा (जल और जीवन के लिए गठबंधन) के घोषित लक्ष्य थे।

लेकिन सार्वजनिक प्रबंधन और भागीदारी के एक नये माडल की रचना बहुत जटिल और समस्या से भरी सिद्ध हुई है। वित्त का अभाव, राज्य की संस्थाओं का हस्तक्षेप, दलीय राजनीति, भ्रष्टाचार तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा थोपी गई शर्तें उन तमाम बाधाओं में से कुछ हैं जिनका सेमापा सामना करती है। परिणामस्वरूप जल और सफाई की बेहतर उपलब्धता की दिशा में प्रगति बहुत धीमी रही है। सेमापा के सामने अब मुख्य चुनौती यह है कि उसे अब सार्वजनिक लोक सहभागिता को मजबूत करना है और जनता की इच्छा व जरूरत के अनुरूप सुधार करना है।

पानी की लड़ाई


कोचाबांबा की नगर जल और स्वच्छता सेवाओं (एस.ई.एम.ए.पी.ए.) का सितंबर 1999 में निजीकरण हो गया था और उन्हें विश्व बैंक के दबाव में और एक दुर्बोध टेंडर प्रक्रिया के तहत अगुअस देल तुनारी के हाथ बेच दिया गया था। 1999 के अंत में कोचाबांबा की जनता अमेरिकी निगम बेक्टेल (अगुअस देल तुनारी जिसके नियंत्रण में थी) के विनाशकारी रिकार्ड की प्रतिक्रिया में गोलबंद हुई। निजीकरण के परिणामस्वरूप जल शुल्क नाटकीय ढंग से बढ़ गया था और सामुदायिक जल प्रणालियों का स्वामित्व छीन लिया गया था। बेक्टेल ने गुप्त निजीकरण अनुबंध में जबरदस्त मुनाफा कमाया था- 15 प्रतिशत वास्तविक लाभ। गुप्त निजीकरण अनुबंध उस समय गैरकानूनी था हालांकि बाद में उसे निजीकरण समर्थक एक कानून (कानून 2029) द्वारा कानूनी बना दिया गया था। इस कानून का प्रारूप जर्मन विकास एजेंसी (जी.टी.जेड.) द्वारा तैयार किया गया था। इसके जवाब में नागरिक समाज समूहों, मजदूर यूनियनों, सिंचाई किसानों और जल समितियों ने कोआर्दिनादोरा देल अगुआ य दे ला वीदा (जल और जीवन के लिए गठबंधन) का गठन किया।

शुल्क कम करने की कोआर्दिनादोरा की प्रारंभिक छोटी-छोटी मांगें भी अगुअस दल तुनारी या नगर प्रशासन ने नहीं मानीं बल्कि उनका जवाब उन्होंने पुलिस और सेना द्वारा बैर और दमन से दिया। जनता का दबाव बढ़ा और गठनबंधन द्वारा आयोजित एक जनमत संग्रह में 50 हजार लोगों ने निजीकरण के खात्मे की मांग की। अप्रैल 2000 में पानी की लड़ाई एक सप्ताह भर लंबी आम हड़ताल में बदल गयी। इस हड़ताल के कारण कोचाबांबा में सब कामकाज ठप हो गया और भारी सरकारी दमन शुरू हुआ। सैकड़ों लोग घायल हुए और सत्रह साल का एक किशोर मारा गया। इसका परिणाम यह हुआ कि लोग और दृढ़ संकल्प के साथ बाहर निकल आये। अंततः, 11 अप्रैल 2000 के दिन सरकार ने हार स्वीकार की और अगुअस देल तुनारी को भागना पड़ा।

अपने नियंत्रण में


कोआर्दिनादोरा की मांगे मान ली गयी थीं अगुअस देल तुनारी को जाना पड़ा, कानून 2029 वापस लिया गया और बाद में फिर से लिखा गया (कानून 2066) तथा सेमापा को नगरपालिका पर अपना पुराना नियंत्रण वापस मिल गया। कोआर्दिनादोरा मजदूर यूनियन और स्थानीय सरकार के साथ एक अंतरिम निदेशालय में शामिल हो गया और इस प्रकार उसने सेवाओं के भविष्य पर फैसला करने का आंशिक नियंत्रण हासिल कर लिया। सार्वजनिक कंपनी को ढह जाने से बचा लिया गया और कोआर्दिनादोरा के कर्मचारियों में से चुने गये नये प्रबंधक ने एक अधिक लोकतांत्रिक सार्वजनिक सेवा का निर्माण करना प्रारंभ कर दिया। पानी की लड़ाई की जीत ने एक अधिक जनतांत्रिक प्रबंधन को संभव बनाया जिस पर काफी हद तक नागरिक संगठनों का नियंत्रण था। लेकिन, चूंकि स्थानीय सरकार व्यापक रूप से विघटनकारी थी इसलिए मजदूरों और मजदूर यूनियनों के साथ सहयोग महत्वपूर्ण था हालांकि यह काम इतना कठिन था कि वास्तव में इससे प्रक्रिया में मदद मिलने के बजाय उसमें बाधा ही आई।

सेमापा में सुधार


एक भागीदारी प्रक्रिया के आधार पर नागरिक समाज संगठनों तथा अन्य समूहों ने नगरीय, निगमीकृत सार्वजनिक जल कंपनी सेमापा की संविधियों के सुधार के लिए प्रस्ताव बनाये। कोआर्दिनादोरा निर्वाचित नागरिकों के जरिये जन सहभागिता और नियंत्रण स्थापित करना चाहता था क्योंकि निदेशक मंडल में इन निर्वाचित नागरिकों का बहुमत था। इस प्रस्ताव को मजदूर यूनियनों और स्थानीय सरकार ने आगे बढ़ने नहीं दिया। स्थानीय सरकार ने बोर्ड पर न्यू रिपब्लिकन फोर्स का नियंत्रण हो जाने दिया था। स्थानीय सरकार इसी दल के नियंत्रण में थी। सेमापा की राजनीति में यह मुद्दा अप्रिय विवाद का विषय था। काम करने की अधिक आजादी पा सकने के लिए कोआर्दिनादोरा सेमापा को नगरपालिका के स्वामित्व तथा राज्य अधिकरणों के विनियमों से बाहर ला पाने में भी सफल नहीं हुआ। इन अड़चनों के बावजूद अक्टूबर 2001 में अंतरिम बोर्ड ने नयी, उग्र सुधारवादी संविधियां पारित कीं तथा अप्रैल 2002 में बोर्ड के लिए पहली बार गुप्त और स्वतंत्र चुनाव हुए। बोर्ड के सात में से तीन सदस्य नगर के दक्षिणी, मध्य (केंद्रीय) तथा उत्तरी क्षेत्रों के नागरिकों द्वारा चुने गये और पहली बार सेमापा की मजदूर यूनियन को बोर्ड में एक स्थायी सीट मिली।

नयी संविधियां पहले के नगरपालिका स्वामित्व और नागरिकों के नियंत्रण का मिला-जुला रूप थीं और अपने समय की सशक्त प्रवृत्ति को प्रतिबिंबित करती थीं। निश्चय ही कोआर्दिनादोरा ने अधिक व्यापक और प्रभावशाली परिवर्तनों की आशा की थी लेकिन पानी की लड़ाई के बाद अपने समर्थकों को गोलबंद करना अधिकाधिक कठिन हो गया था क्योंकि अब इन समर्थकों का ध्यान बोलीविया में उठ रहे अन्य सामाजिक मुद्दों की ओर चला गया था। इसके बावजूद कोआर्दिनादोरा ने आश्वासन दिया कि जन सहभागिता केवल सरकारी ओ.टी.बी. संरचनाओं (स्थानीय सहभागिता वाले लोकतंत्र का राज्य द्वारा प्रेरित स्तर, यह लोकतंत्र अधिकतर राजनीतिक दलों के हाथ में था) तक ही सीमित नहीं है बल्कि वह सीधे और गुप्त चुनावों पर आधरित होगी तथा वह जल समितियों जैसे अनौपचारिक संगठनों के प्रति अपने दरवाजे खुले रखेगी। नई संविधियों के अनुच्छेद 15 में जन सहभागिता और नियंत्रण की बात शामिल थी। यह एक ऐसा अधिकार है जिसे भविष्य में पूरी तरह इस्तेमाल किया जाना शेष है।

परिवर्तन केवल अपने वास्तविक परिणामों की दृष्टि से ही नहीं बल्कि उस तरीके की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण थे जिनसे सामाजिक आंदोलनों और नागरिक समाज संगठनों (सी. एस.ओ.) के गठबंधन द्वारा ये परिवर्तन लाये गये थे। लेकिन एक मुख्य बिंदु यह है कि प्रबंधन में जनतांत्रिक सुधारों को प्रभावशाली बनाने के लिए उन्हें काफी हद तक औपचारिक रूप देने की जरूरत है तथा सेवा के और उसके कमचारियों के भीतर ही उन्हें और स्पष्ट किया जाना होगा। वास्तव में सार्वजनिक सहभागिता पानी की लड़ाई के बाद से अपने न्यूनतम स्तर पर थी और राजनीतिक हस्तक्षेप, विशेषकर न्यू रिपब्लिकन फोर्स (एन.एफ.आर.) तथा कोचाबांबा मेयर की ओर से, बहुत अधिक हो रहा था।

सेमापा के जनतांत्रिक प्रबंधन को अब निदेशालय के प्रतिनिधियों ने आश्वस्त कर दिया है और 2002 से 2004 तक इसके प्रमुख कर्ताधर्ता दक्षिणी क्षेत्र की जल समितियां रही हैं। शासन और प्रबंधन में हासिल किये गये सहभागिता के अधिकारों का विस्तार कैसे किया जाये और अधिक कार्यकुशल तथा बढ़िया सेवा दे सकने के लिए प्रभावी सार्वजनिक नियंत्रण कैसे लागू किया जाये, कार्यक्रम में फिलहाल इन्हीं मुद्दों पर विचार हो रहा है।

सेमापा के भीतर जन सहभागिता की इकाई रखने का प्रस्ताव


सेमापा के भीतर ही ‘सतर्कता और सामाजिक नियंत्रण’ के लिए एक इकाई का गठन किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम है। इसे स्वतंत्र होना चाहिए। इसका गठन नागरिक समाज तथा स्वयं सेमापा को मिला जुलाकर किया जाना चाहिए और इसे भ्रष्टाचार अथवा अक्षमताओं व गड़बड़ियों की घटनाओं की जांच करने के अधिकार से लैस होना चाहिए। इसके पीछे विचार यह है कि नागरिक समाज द्वारा नियंत्रण का एक ऐसा तरीका निकाला जाये जिससे जनता की निगरानी के जरिये सेमापा ‘जनता की कंपनी’ के रूप में अधिक पूर्णता के साथ विकसित हो सके। यह इकाई निदेशक मंडल के प्रतिनिधियों की पूरक होगी और आंशिक रूप से प्रबंधन में सहभागिता की धरणा को तथा संविधियों के अनुच्छेद 15 में अभिव्यक्त सामाजिक नियंत्रण के उद्देश्य को भी पूरा करेगी।

अभी सेमापा को एक लंबा सफर तय करना है, इस बात का एक संकेत तो यह तथ्य ही है कि इस इकाई को बोर्ड अब तक अस्वीकार करता रहा है। इसका एक और संकेत है भाई-भतीजावाद की प्रबलता। एक आतंरिक समीक्षा में ऐसे 52 मामले मिले जहां निदेशकों से लेकर सड़क पर काम करने वाले कर्मचारियों तक सभी स्तरों पर परिवार के सदस्यों को नौकरी दी गयी थी। यह तथ्य कि इस मामले से निपटा जा रहा है सुधार का संकेत है लेकिन सेमापा के भीतर ही सार्वजनिक सेवा की संस्कृति का रूप बदलने में प्रयास और समय लगेगा।

निवेश और जल संसाधन


पिछले स्वामियों से विरासत में मिले बड़े कर्जे शहरी गरीबों तक सेवाओं के विस्तार और जल संसाधनों में वृद्धि (अर्थात रिसाव को कम करने) के काम को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से मिलने वाले ऋणों पर निर्भर बना देते हैं। सेमापा के सामने मुख्य समस्या यह है कि अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं कोचाबांबा में निवेश नहीं करना चाहतीं क्योंकि वे ऐसी कंपनी के विचार से ही असहमत हैं जो जनता की हो, जनता के हाथों में हो। वे वहाँ हुए निजीकरण विरोधी संघर्षों से भी असहमत हैं। वित्तीय संस्थाएं कोचाबांबा में कठोर शर्तों के साथ ही निवेश करेंगी जैसे एक अर्ध-निजी कंपनी का गठन जो पानी की लड़ाई की उपलब्धियों को उलट देगी।

इसके बावजूद इंटर-अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक (आई.ए.डी.बी.) ऋण देने पर सहमत हो ही गया। यद्यपि यह एक प्रमुख उपलब्धि थी लेकिन शर्तें प्रतिबंधात्मक हैं और प्रगति की राह में रोड़े डालती हैं। ऋण का पहला चरण तीन करोड़ 80 लाख अमेरिकी डालर का है। यह क्षमता निर्माण, रिसाव कम करने और प्रबंधन सुधार के लिए है। प्रबंधन सुधार के लिए ऋण का 40 प्रतिशत आई.ए.डी.बी. द्वारा चयनित पराराष्ट्रीय सलाहकार कंपनी ग्रेनटेक द्वारा बाहरी क्षमता निर्माण पर खर्च किया जाना है। बाहरी सलाहकारों के कारण यह शर्त ऋण का बोझ बढ़ा देती है जबकि यह काम घरेलू स्तर पर किया जा सकता था या इसके बारे में बैंक के बजाय खुद सार्वजनिक-जनता शासन फैसला कर सकता था। इसके अतिरिक्त, अक्टूबर 2004 में यानी अनुबंध् पर हस्ताक्षर होने के एक साल बाद भी गेरेंटेक ने सेमापा के लिए अब तक कोई ठोस काम नहीं किया है। इससे ऋण प्रक्रिया में और इस प्रकार सेमापा के सुधारों में देर हो रही है। दूसरे चरण में, बैंक दक्षिणी क्षेत्र में पाइप से आने वाले पानी के क्षेत्र विस्तार तथा अन्य सुधारों के लिए एक करोड़ तीस लाख अमेरिकी डालर का निवेश करेगा लेकिन यह निवेश लटक गये पहले चरण के पूरा होने के बाद ही होगा।

आई.ए.डी.बी. ऋण के दूसरे चरण का पैसा भी तभी अवमुक्त किया जायेगा जब पर्याप्त रूप से अधिक जल संसाधन सुरक्षित कर लिये गये होंगे। सेमापा समझौते में अपनी तरफ का काम करने में जुटी है। पानी का रिसाव कम हुआ है और कानूनी कनेक्शनों की संख्या बढ़ी है। जहां पहले किसी का नाम दर्ज न होने के मामले 60 प्रतिशत थे वहीं अब यह 18 से 20 प्रतिशत के बीच हैं। (पानी की कमी और बढ़ती मांग लंबे समय से कोचाबांबा में संघर्ष का कारण रहे हैं उदाहरण के लिए 1990 के दशक में हुई तथाकथित ‘कुंओं की लड़ाई’। शहरों और गांवों की प्रतिद्वंद्वी मांगों का समाधन नही हो पाया है और कुल मिलाकर मोटे तौर पर संसाधन प्रबंधन अस्थिर प्रकृति के ही रहे हैं)। निर्माणाधीन मिसीकूनी बांध् परियोजना से भी कोचाबांबा के जल संसाधनों में वृद्धि होगी।

सार्वजनिक-सामूहिक भागीदारी : दक्षिणी क्षेत्र में सहप्रबंधन तथा सेवाओं का विस्तार
दक्षिणी क्षेत्र कोचाबांबा का एक निर्धन और हाशिये पर छूटा हुआ हिस्सा है। वहां पानी की अधिकतर आपूर्ति की व्यवस्था 120 जल समितियों द्वारा की जाती है लेकिन इस क्षेत्र का भूजल पीने की दृष्टि से बहुत खारा है और अधिकतर घर पानी के लिए अब भी निजी फेरीवालों पर निर्भर हैं जो महंगे दामों पर पानी बेचते हैं और उनका पानी प्रायः गंदा भी होता है। ये क्षेत्र सेमापा की सीवर व्यवस्था से जुड़े नहीं हैं और इस समय वे पिट शौचालयों तथा सेप्टिक टैंकों पर निर्भर हैं।

सेमापा में प्रगतिशील सुधारों की शुरुआत के बाद जल समितियों ने सीवर व्यवस्था की सेवाओं से सामूहिक रूप से जुड़ने के लिए आसिका-सुर नामक संस्था बनायी है। उन्होंने अधिकारियों के साथ मिलकर परस्पर संवाद स्थापित किया और एक सहमति बनानी शुरू की ताकि बुनियादी सेवाओं के सहप्रबंधन का एक माडल सुनिश्चित किया जा सके जहां हर कोई अपनी भूमिका और काम तय कर सके। जलापूर्ति प्रभार के अपने संक्षिप्त कार्यकाल में बेक्टेल ने केवल उन कुओं और पाइपों पर अपना अधिकार जमाया जो जलसमितियों द्वारा बनवाये गये थे। कंपनी ने शुल्क में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी के बदले में दक्षिणी क्षेत्र में केवल पाइप व्यवस्था का विस्तार किया। इसलिए केंद्रीय सीवर सेवा व्यवस्था और अनौपचारिक जलसमितियों के बीच एक सार्वजनिक-सामूहिक भागीदारी के रूप में आज का रचनात्मक सहयोग एक प्रभावशाली सुधार है।

आई.ए.डी.बी. ऋण की सीमाओं तथा अन्य कारणों से विस्तार परियोजनाओं की शुरुआत करने में काफी देर हुई है। सरकारी एजेंसियों (जैसे रेगुलेटर जो विस्तार परियोजना के लिए दी जाने वाली रियायत तय करता है) की स्वीकृति भी समस्यामूलक है क्योंकि यह उस सरकारी व्यवस्था को वैधता प्रदान करती है जिसका कोआर्दिनादोरा विरोध् करता है, उसने सेमापा का स्वामित्व का दर्जा बदलकर इससे बचने की कोशिश की थी उदाहरण के लिए वह इसे नगरपालिका के नियंत्रण से बाहर ले आया। यह बोलीविया राज्य के कानूनी प्रतिबंधों के कारण संभव नहीं था और इसके परिणामस्वरूप सेमापा स्थानीय सरकार पर निर्भर हो गया। यह तथ्य सेमापा पर नगर परिषद में सत्ताधारी दल एन.एफ.आर. के प्रभाव का ही एक उदाहरण है कि महंगे और पर्यावरण की दृष्टि से विवादास्पद मिसिकुनी बांध के विकल्पों पर कभी चर्चा ही नहीं की गयी।

सेमापा की वितरण प्रणाली के कोचाबांबा की सरहदों तक विस्तार की परियोजना आई.डी.बी.ए. ऋण द्वारा लटकाये गये चरण का हिस्सा है। इसमें प्रति सेकंड 200 लीटर वितरण शामिल था फिर एक दूसरे चरण में 400 लीटर/सेकंड की योजना है। यह मिसिकुनी की प्रगति पर निर्भर है। अब तक निर्माणकार्य बहुत धीमा रहा है। दक्षिणी क्षेत्र के सामाजिक संगठन सेमापा पर दबाव बढ़ाना चाहते हैं और कंपनी के साथ सहयोग करना चाहते हैं।

एक और मुद्दा यह है कि शहरी सीमाओं पर और उपनगरीय इलाकों में ऐसे हिस्से है जो सह-प्रबंधन के पैकेज में शामिल नहीं है। वहां अब भी बुनियादी ढांचे के विकास की जरूरत है। पड़ोस के जो इलाके पानी के पाइप से नहीं जुड़े हैं वहां पानी पहुंचाने की व्यवस्था का विस्तार सुनिश्चित करने के साथ-साथ नये प्रबंधन, और अधिक जल संसाधनों की भी जरूरत है ताकि अधिक लोगों तक पानी पहुंचाया जा सके तथा अंतरालों पर पानी की आपूर्ति की व्यवस्था में सुधार लाया जा सके। दुर्भाग्यवश, मिसिकुनी का विकास सेमापा के नहीं बल्कि निजी उद्यमियों के नियंत्रण में है यद्यपि अगुअस देल तुनारी को इसका नियंत्रण दिया गया है।

निष्कर्ष


सार्वजनिक-सामूहिक सेमापा का बुनियादी सिद्धांत यह है कि कार्यकुशलता के लिए सामाजिक नियंत्रण और भागीदारी आवश्यक है और इन दोनों को साथ-साथ ही हासिल किया जा सकता है। सफल जलयुद्ध और सेमापा को अपने नियंत्रण में ले पाना-यद्यपि यह अधिकार राज्य के कानून और लंबे समय तक जमीनी स्तर का दबाव बनाये रखने में कठिनाइयों द्वारा सीमित था तथापि इसने यह तो दिखा ही दिया कि सामाजिक संघर्ष और सक्रिय विनियोजन के माध्यम से होने वाली भागीदारी से स्थितियों में बुनियादी बदलाव लाये जा सकते हैं। हालांकि माहौल अनुकूल न होने पर अर्थात यदि वित्त उपलब्ध न हो तो इन बदलावों में देर हो सकती है या ये नहीं भी हो सकते हैं। लंबी अवधि में सफलता की कुंजी होगी अप्रैल 2000 की सामाजिक गति की को सामाजिक भागीदारी की ऐसी टिकाऊ और प्रभावी व्यवस्था में रूपांतरित करना जो कोचाबांबा की जनता का दीर्घकालीन समर्थन पा सके। यह समर्थन ऐसी चीज है जो यदि प्रतीक्षित निवेश उन तक न पहुंचा तो नहीं भी मिल सकता है। शासन में भागीदारी को प्रबंधन भागीदारी और सामाजिक नियंत्रण से पूरा किया जाना चाहिए, उदाहरण के लिए निगरानी और सामाजिक नियंत्रण की इकाई तथा दक्षिणी क्षेत्र में सहप्रबंधन के जरिये। सेवाओं में ठोस सुधार ही निर्णायक कारक होगा जिसके बिना जनता की इसमें या तो रुचि नहीं रह जायेगी अथवा वह अपना विश्वास खो देगी।

कोआर्दिनादोरा के काम के साथ कंपनी में यह क्षमता है कि वह धीरे-धीरे एक बढ़ी हुई भागीदारी और नागरिक-उपभोक्ताओं द्वारा स्वामित्व के भाव के साथ एक पारदर्शी सार्वजनिक सेवा के रूप में विकसित हो जाये। विकसित होने के लिए उसे बाहरी समर्थन की और ज्यादा जरूरत होगी। यह सहायता बिना शर्त वित्तीय और तकनीकी सहायता और सबसे महत्वपूर्ण, बेकटेल के बेतुके मुकदमे के खात्मे के रूप में होगी। फिलहाल विश्व बैंक का पंचाट पैनल इस मुकदमे से निपट रहा है। उनके डेढ़ करोड़ अमेरिकी डालर के मुआवजे के दावे में सेमापा का भविष्य तबाह कर देने की क्षमता है।

सेमापा बोलीविया की उथल-पुथल भरी राजनीतिक स्थिति में काम करता है जो बहुत लाभदायक अथवा हानिकारक सिद्ध हो सकती है। यह इस पर निर्भर है कि कोचाबांबा और बोलीविया में वहां के नव उदारवादी अभिजन का पलड़ा भारी रहता है या वहां की जनता का। कोचाबांबा का जलवितरण अब भी एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। बेकटेल के विरुद्ध जलयुद्ध की सफलता और सार्वजनिक-सामूहिक प्रबंधन ने ला पाज में राष्ट्रीय सरकार की नवउदारवादी नीतियों से संघर्षरत बोलीविया के सामाजिक आंदोलनों का मनोबल बहुत बढ़ाया है। लापरवाही और भ्रष्टाचार की लंबे समय से चली आती संस्कृति को प्रभावशीलता, भागीदारी और सामाजिक न्याय पर आधारित सक्रिय सार्वजनिक-लोकप्रिय विकल्प के रूप में बदलना एक ऐसा काम है जिसमें काफी समय लगेगा और अनेक बाधाओं को पार करना होगा।

लुइस सांशेज गोमेज 2002 से 2004 तक दक्षिणी क्षेत्र के निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में सेमापा के बोर्ड में थे। फिलिप टेरहोर्स्ट डब्ल्यू.ई.डी.सी. में अपनी पी.एच.डी. के लिए शोध (प्रगतिशील सार्वजनिक शहरी जल सेवाओं पर केंद्रित) कर रहे है। उन्होंने 2003 में कोआर्दिनादोरा के साथ काम किया है।

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