कलकत्ता हाईकोर्ट ने 6 मई 2016 को एक अहम फैसला सुनाते हुए पश्चिम बंगाल के हुगली जिले की हिन्दमोटर फैक्टरी के कम्पाउंड में स्थित लगभग 100 एकड़ क्षेत्रफल में फैले जलाशय को हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिये पाटने पर स्थगनादेश लगा दिया।
जस्टिस मंजुला चेल्लूर ने अपने आदेश में कहा, अदालत अगर कम्पनी को हाउसिंग प्रोजेक्ट का काम शुरू करने की अनुमति देती है तो जलाशय को भरने की अनुमति भी देनी होगी। अदालत फिलहाल इसको लेकर कोई आदेश नहीं दे सकती है। मामले की अगली सुनवाई जून में मुकर्रर की गई है।
दरअसल, वर्ष 2006-2007 में हिन्दमोटर प्रबन्धन ने एक रीयल एस्टेट कम्पनी को 314 एकड़ जमीन बेच दी थी। इस भूखण्ड में 100 एकड़ में फैला जलाशय भी शामिल है। रीयल एस्टेट कम्पनी वहाँ उत्तरपाड़ा टाउनशिप बनाएगी, इसके लिये वह 100 एकड़ में फैले जलाशय को पाटना चाहती है। वर्ष 2009 में उक्त रीयल एस्टेट कम्पनी ने वहाँ निर्माण कार्य शुरू किया था लेकिन पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की आपत्ति के कारण निर्माण कार्य रोक देना पड़ा था।
वर्ष 2011 में इसको लेकर दो स्वयंसेवी संस्थाअों दिशा और परिवेश अकादमी ने कलकत्ता हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी और कहा था कि कम्पनी हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिये 100 एकड़ का जलाशय भर रही है। वर्ष 2012 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक कमेटी बनाने का आदेश दिया था। कमेटी का उद्देश्य था जलाशय के पर्यावरणीय व अन्य पहलुअों को देखना।
कमेटी ने अपनी जाँच में पाया था कि 100 एकड़ में से 20 से 25 एकड़ जलाशय को भरा जा चुका है। कमेटी की सिफारिश पर वहाँ निर्माण कार्य काफी दिनों तक रुका रहा लेकिन बाद में कम्पनी ने येन-केन-प्रकारेण पश्चिम बंगाल की राज्यस्तरीय एनवायरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी से कंस्ट्रक्शन की मंजूरी ले ली और कमेटी को ठेंगा दिखाते हुए पिछले वर्ष मार्च महीने से निर्माण कार्य दुबारा शुरू कर दिया था।
एनवायरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी की मंजूरी को दोनों स्वयंसेवी संस्थाअों ने 28 अप्रैल को कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसी चुनौती की रोशनी में कलकत्ता हाईकोर्ट का यह ताजा फैसला आया है।
हिन्दमोटर का यह वृहत्तर जलाशय आज का नहीं है। कहा जाता है कि हिन्दमोटर फैक्टरी की स्थापना से पहले से यह अस्तित्व में है। इस जलाशय से सैकड़ों मछुअारों की रोजीरोटी चलती है। यही नहीं, रिसड़ा नगरपालिका, उत्तरपाड़ा नगरपालिका और श्रीरामपुर नगरपालिका क्षेत्र से निकलने वाला गन्दा पानी और बारिश का पानी भी इसी जलाशय में गिरता है। इसके अलावा इस जलाशय के कारण यहाँ जैव विविधता भी बनी हुई है। इससे समझा जा सकता है कि यह जलाशय कितना जरूरी है लेकिन क्रंकीट के जंगल बोने वालों को इससे कोई सरोकार नहीं। स्वयंसेवी संगठन दिशा के अध्यक्ष शांतनु चक्रवर्ती के मुताबिक रीयल एस्टेट कम्पनी अब तक हिन्दमोटर के जलाशय के 20-25 फीसदी हिस्से को भर चुकी है।
हिन्दमोटर का जलाशय तो एक बानगी भर है। महानगर कोलकाता और इसके आसपास के क्षेत्रों में गगनचुम्बी इमारत बनाने के लिये इसी तरह तालाबों व जलाशयों की बलि दी जा रही है। कई जलाशयों का अस्तित्व खत्म हो चुका है और कइयों पर रीयल एस्टेट वालों की गिद्ध दृष्टि बनी हुई है।
कोलकाता के तालाबों और जलाशयों का इतिहास कोलकाता से भी पुराना है। यहाँ जलाशयों की संख्या लगभग 5000 है। इनमें से कई जलाशय 150 से 300 वर्ष पुराने हैं। इन्हीं तारीखी जलाशयों में एक है लाल दिघी (दिघी का मतलब तलैया होता है)। यह जलाशय डलहौजी इलाके में ऐतिहासिक राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग्स और जीपीओ (जनरल पोस्ट अॉफिस) के करीब स्थित है।
लाल दिघी के बारे में कहा जाता है कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारी और प्रशासक जॉब चार्नक ईस्ट इण्डिया कम्पनी का विस्तार करने 24 अगस्त 1690 को इस क्षेत्र में आये थे और उन्होंने इसका नाम कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) दिया था, तब लाल दिघी मौजूद था। यानी कह सकते हैं कि इस तालाब का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कोलकाता का। बांग्ला के कई नामचीन साहित्यकारों मसलन सुनील गंगोपाध्याय ने अपनी रचनाअों में जलाशयों का जिक्र किया है अतएव यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि तालाब व जलाशय बांग्ला साहित्य, बंगाल के इतिहास और बंगाल की संस्कृति के अभिन्न अंग हैं।
प्रख्यात इतिहासकार व राजनीतिज्ञ स्वर्गीय ईवन कॉटन की किताब 'कलकत्ता ओल्ड एंड न्यू' (पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 1909 में हुअा था) में भी लाल दिघी का जिक्र है। किताब के पृष्ठ नं. 23 में कॉटन लिखते हैं, मध्य में लाल दिघी या वृहत टैंक था जिसके बारे में कहा जाता है कि जॉब चार्नक के आने से पहले से यह जलाशय मौजूद था। यह जलाशय पूर्व जमींदार की कचहरी के अहाते में पड़ता था। ईवन कॉटन आगे लिखते हैं, वर्ष 1709 में इस जलाशय को गहरा किया गया और इसका क्षेत्रफल भी बढ़ाया गया। उस वक्त इस जलाशय का पानी गन्दा था और इसमें जहरीले रसायन थे जिसे शुद्ध किया गया और पानी को पीने योग्य बनाया गया। यह उस वक्त की जरूरत थी।
कोलकाता के तालाब और जलाशयों को लेकर प्रख्यात पर्यावरणविद मोहित राय एक दर्जन किताब लिख चुके हैं। मोहित राय कहते हैं, ढाई से तीन दशक पहले कोलकाता में 8 हजार से अधिक जलाशय थे लेकिन आज इनकी संख्या घटकर 5000 पर आ गई है। मुझे नहीं जान पड़ता है कि भारत में दूसरा कोई और शहर है जहाँ इतने जलाशय होंगे।
यहाँ के जलाशय इतने पुराने हैं कि कम-से-कम 30 सड़कों का नाम जलाशयों के नाम पर रखा गया लेकिन अधिकांश जलाशयों का चेहरा बिगड़ा हुअा है जो गम्भीर चिन्ता का विषय है। उन्होंने अपनी किताब 'ओल्ड मिरर्सः ट्रेडिशनल पांड्स अॉफ कोलकाता' में 49 तारीखी जलाशयों के बारे में विस्तार से बताया है जिनमें सेन दिघी तालाब भी शामिल है। दक्षिण कोलकाता के बोराल में स्थित सेन दिघी सम्भवतः सबसे पुराना तालाब है। सेन वंश के दूसरे शासक बल्लाल सेन 12वीं शताब्दी में इस तालाब को खुदवाया था। उस वक्त यह सैकड़ों बीघे में फैला था लेकिन अतिक्रमण और शहरीकरण की मार ने इसको संकुचित कर दिया है।
कोलकाता और मुफस्सिल इलाकों में तालाब और जलाशय बनाने के बारे में इतिहासकारों का मत है कि यहाँ रहने वाले राजा-महाराजाअों और उनके बाद ब्रिटिश हुक्मरानों ने लोगों की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिये भारी संख्या में तालाब व जलाशय बना दिये गए।
एक अनुमान के मुताबिक कोलकाता में सम्प्रति रोज कम-से-कम 10 लाख लोग विभिन्न प्रयोजनों के लिये जलाशयों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर यहाँ के जलाशय पाट दिये जाएँ तो पानी की घोर किल्लत होगी। इसके अलावा जलाशयों से और भी कई तरह के फायदे हैं लेकिन विकास की अंधी दौर में इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। बकौल मोहित राय गाँवों की ओर जलाशय सुरक्षित हैं लेकिन ज्यादा खतरा शहर के जलाशयों को है। गाँवों में जलाशयों में मछली पालन होता है और रोज की जरूरतें पूरी की जाती हैं। साथ ही गाँवों में कंक्रीट के जंगल बोने के लिये उतावलापन नहीं है इसलिये जलाशयों को खतरा नहीं है लेकिन शहर के जलाशयों की बात अलग है।
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार शहर के जलाशयों के बहुआयामी फायदे हैं और इन्हें संरक्षित कर नहीं रखा गया तो यह आने वाली पीढ़ी के लिये हम समस्याअों का पहाड़ खड़ा कर जाएँगे।
पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विधि विभाग पूर्व प्रमुख व परिवेश अकामदी से जुड़े विश्वजीत मुखर्जी कहते हैं, ‘जलाशयों के कई फायदे हैं। जलाशय बारिश के पानी को संरक्षित कर रखते हैं और इससे भूजल स्तर बना रहता है। यही नहीं, यह जैव विविधता को भी बनाए रखता है।’
इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल 'करंट वर्ल्ड एनवायरमेंट' में छपे एक शोध में तालाब व जलाशयों के फायदों पर विस्तार से लिखा गया है। शोध पत्र में कहा गया है, तालाब व जलाशय जल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये जीवमण्डल की वैश्विक प्रक्रिया और जैव विविधता को संरक्षित रखने में बड़ा योगदान देते हैं।
जलीय जैव विविधता को बनाए रखने में झील व नदियों का जितना योगदान है उतना ही योगदान तालाबों व जलाशयों का भी है। शोध में कहा गया है कि तालाब व जलाशय कार्बन को सन्तुलित रखते हैं और जलवायु परिवर्तन में सुधार लाने का काम भी करते हैं।
शोध की मानें तो छोटे जलाशय में भी कार्बन नियंत्रित करने की अकूत क्षमता होती है और 500 वर्ग मीटर का तालाब एक साल में 1000 किलोग्राम कार्बन सोख सकता है। जलाशय सतही पानी से नाइट्रोजन जैसी गन्दगी निकालने में भी मददगार हैं और तापमान व आर्द्रता को भी नियंत्रण में रखते हैं। अतएव कहा जा सकता है कि आज अगर हम तालाबों व जलाशयों को संरक्षित कर रखते हैं तो न केवल आने वाली पीढ़ी इससे लाभान्वित होगी बल्कि इससे हमारे आसपास का वायुमण्डल भी साफ-स्वच्छ रहेगा।
आश्चर्य की बात है कि कोलकाता की देखरेख करने वाले कोलकाता म्यूनिसिपल कारपोरेशन (केएमसी) में जलाशयों के लिये अलग से कोई विभाग तक नहीं है अतः सहज ही समझा जा सकता है कि सरकार जलाशयों को लेकर कितनी गम्भीर है। अलबत्ता कुछ ऐतिहासिक जलाशयों का सुन्दरीकरण किया गया है जिनमें लाल दिघी, खिदिरपुर के भूकैलाश गढ़ का तालाब आदि शामिल हैं लेकिन युद्धस्तर पर प्रयास अब तक शुरू नहीं हुअा है।
उधर, पश्चिम बंगाल सरकार ने बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिये 'जल धरो जल भरो' परियोजना शुरू की थी। पश्चिम बंगाल सरकार का दावा है कि पिछले 5 वर्षों में इस परियोजना के अन्तर्गत 1 लाख 40 हजार जलाशय तैयार किये गए लेकिन मौजूदा जलाशयों को संरक्षित रखने के लिये ठोस पहल नहीं हुई है। कोलकाता के तालतल्ला में स्थित हाजी मोहम्मद मोहसिन स्क्वायर के तालाब उन तालाबों में है जो सरकारी उदासीनता का शिकार है। मोहसिन स्क्वायर के तालाब के कछार में गन्दगी का अम्बार लगा हुअा है। लोग दैनंदिन इस तालाब का इस्तेमाल करते हैं लेकिन इसकी साफ-सफाई पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
मोहित राय कहते हैं, ‘कुछ जलाशयों को संरक्षित किया गया है जो प्रशंसनीय है लेकिन संगठित तौर पर कोई कोशिश नहीं हो रही है। रे ने सुझाव दिया है कि इसके लिये पृथक विभाग बनाया जाना चाहिए और गहन शोध कर जलाशयों के संरक्षण की दीर्घमियादी योजनाएँ शुरू करनी चाहिए ताकि भावी पीढ़ी को सुनहरा कल दिया जा सके।’
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