कमाई बढ़ाने का मूल मंत्र है सफाई

सेनिटेशन
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विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ के ज्वाइंट मॉनिटरिंग प्रोग्राम ‘प्रोग्रेस अॉन ड्रिंकिंग वॉटर, सैनिटेशन एंड हाइजीन 2017’ के मुताबिक दुनिया भर में तकरीबन 2.3 अरब लोगों को साफ-सफाई की मूलभूत सुविधाएँ मुहैया नहीं हो पातीं।

इन 2.3 अरब लोगों में से 89.2 करोड़ लोग या तो खुले में शौच करते हैं या बिना प्लेटफार्म वाले गड्ढों, ऊँचे मचान पर बनाए शौचलायों और बाल्टियों जैसे कामचलाऊ तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि शौच के इन तरीकों का साफ-सफाई के साथ कैसे प्रबन्धन किया जाता होगा। इसका जवाब यह है कि तकरीबन 38 फीसद आबादी शौच की बेहतर प्रणालियों का इस्तेमाल करती है, जैसे कि सेप्टिक टैंक या बेहतर शौचालय हालांकि इसके लिये समय-समय पर सेप्टिक टैंक को खाली करते रहना जरूरी है।

भारत में 93 फीसद सेप्टिक टैंक को कभी खाली नहीं किया गया। हम सेनिटेशन सेवाओं को सुरक्षित प्रबन्धन में सेनेगल, बांग्लादेश, सोमालिया और इक्वाडोर जैसे देशों से पीछे हैं। जलीय स्रोतों के दूषित होने और खाद्य पदार्थों में रोगाणुओं के शामिल होने से लोग घातक रोगों के शिकार हो जाते हैं। इन रोगों की वजह से अधिकतर नवजात शिशुओं की मृत्यु हो जाती है और जो बच जाते हैं वे कुपोषित रह जाते हैं।

देश के 112 जिलों में हुए सर्वे के मुताबिक खुले में शौच में 10 फीसद वृद्धि होने से बच्चों का विकास 0.7 फीसद अधिक अवरुद्ध होता है। 2011 में वाटर एड की रिपोर्ट में बताया गया था कि साफ-सफाई की व्यवस्था मुहैया होने से बच्चों में डायरिया के मामले 7-17 फीसद तक कम हुए, पाँच वर्ष तक के बच्चों की मृत्यु दर में 5-20 फीसद तक कमी देखी गई।

अपनी नदियों और अन्य जलस्रोतों को प्रदूषित होने से बचाने के लिये हमें न सिर्फ साफ-सुथरे शौचालयों की जरूरत है बल्कि गन्दगी का सही, निस्तारण भी किया जाना अनिवार्य है। स्वच्छ और सुरक्षित शौचालयों की सुविधा महिलाओं और बच्चियों के स्वास्थ्य के लिये लाभकारी होगी। बच्चियाँ बिना किसी चिन्ता के स्कूल जा सकेंगी और दिव्यांग लोग अपनी गरिमा की रक्षा कर सकेंगे।

लिक्जिल ग्रुप कॉरपोरेशन, वाटर एड और अॉक्सफोर्ड इकोनोमिक्स की साझा रिपोर्ट ‘टू कॉस्ट अॉफ सेनिटेशन’ के मुताबिक देश के कई क्षेत्रों में साफ-सफाई की कमी के चलते 2015 में देश की जीडीपी में 106.7 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। यह आँकड़ा कुल वैश्विक नुकसानों का आधा और देश की कुल जीडीपी का 5.2 फीसद था।

हम किसे बेवकूफ बना रहे हैं। समय सीमा खत्म होने के दबाव के चलते इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने से समस्याएँ दूर नहीं होगी। जरूरत है ऐसे शौचालय बनाने की जिन्हें लोग इस्तेमाल कर सकें और सबसे अहम बात यह है कि इन शौचालयों को कचरा निस्तारण और शोधन प्रणालियों से जोड़ा जाना जरूरी है।


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