राजस्थान में ऐसे कई बागवान किसान हैं जिन्होंने फलदार पौधों की खेती में नए-नए मुकाम हासिल किए हैं। यह कहानी भी ऐसे ही एक सफल बागवान किसान की है। सिरोही जिले के शिवगंज तहसील के गांव जोयला के प्रगतिशील बागवान हैं — सोहनसिंह। सोहनसिंह ने फलदार पौधों की स्थापना का मानस तो बना लिया लेकिन उन्हें इस राह में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। इन समस्याओं के बावजूद भी सोहनसिंह ने हिम्मत नहीं हारी और वो लगे रहे सफल बागवानी करने में।परंपरागत खेती केवल अधिक पानी में ही संभव है। यदि पिछले पांच वर्षों से बरसात का औसत देखा जाए तो वह गिरता ही गया है। ऐसे में कम पानी वाली खेती ही लाभकारी सिद्ध होती है। कम पानी की खेती यानी बागवानी। अब तो कम पानी की खेती और बागवानी का एक ही अर्थ देखा जाता है। राजस्थान में ऐसे कई बागवान किसान है जिन्होंने फलदार पौधों की खेती में नए-नए मुकाम हासिल किए हैं। यह कहानी भी ऐसे ही एक सफल बागवान किसान सोहनसिंह की है।
सोहनसिंह ने अपने खेत पर डेढ़ हेक्टेयर भूमि पर नींबू के कागजी किस्म के करीब एक हजार पौधे लगाए। नींबू का यह बगीचा लगाने में काफी मेहनत हुई लेकिन इसमें रोग व कीड़े लगने से मेहनत पर पानी फिर गया। मेहनत के बावजूद भी सोहनसिंह का बगीचा रोग व कीटों से घिर गया। सोहनसिंह ने नींबू के बगीचे को रोगमुक्त करने के लिए काफी मशक्कत की और लाखों रुपये खर्च किए। रोगों से बचाव के लिए उन्होंने कई दवाओं का प्रयोग किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। नींबू के लगभग सभी पौधों पर सफेद मक्खी, एफिड और कई प्रकार के चूसक कीटों का प्रकोप फैला हुआ था। सभी पौधे डाईबैक और त्रिसतेजा विषाणु के आक्रमण से ग्रसित थे। पौधों की टहनियां जमीन छूने लग गई थी। पौधों को दी जाने वाली सिंचाई व्यवस्था भी ठीक नहीं थी। इन सारी परेशानियों से सोहनसिंह परेशान हो गया। इन विषम परिस्थितियों के सामने लाचार सोहनसिंह ने बगीचे को काटने की बात सोच डाली।
इसके बाद उन्होंने सूझबूझ से निर्णय लेते हुए कृषि विज्ञान केंद्र सिरोही के पादप सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. चतुर्भुज मीना और मुख्य वैज्ञानिक डॉ. एसएन ओझा से संपर्क किया। कृषि विज्ञान केंद्र की टीम अगले ही दिन सोहनसिंह के खेत पर पहुंच गई। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने हालात देखकर सोहनसिंह को समझाया कि बगीचा फिर से सुधारा जा सकता है। वैज्ञानिकों के बताए रास्ते पर चलकर सोहनसिंह फिर से गया बगीचे को संवारने में। इन योजना के अंतर्गत बगीचे की कायापलट करने में सोहनसिंह ने ये प्रमुख कार्य किए—
1. फेर-बदल कर रोगोर दो मिली लीटर पानी तथा दो मिली लीटर एंडोसल्फॉन और 0.3 मिली लीटर एमिडाक्लोप्रीड का प्रति 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव किया।
2. पेड़ के तने पर बोरडेक्स पेस्ट लगाया।
3. सूखी हुई और जमीन के संपर्क में आई टहनियों को काटना शुरू कर दिया।
4. गोबर की खाद 10 से 12 किलो प्रति पौधे में डाली।
5. पौधों के तनों पर मिट्टी चढ़ा दी गई।
6. सिंचाई के लिए सही तरह से थाले बनाकर बगीचे को पानी दिया।
देखते ही देखते सोहनसिंह के बगीचे में रौनक आ गई। सोहनसिंह की मेहनत और वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन का नतीजा यह हुआ कि मृतप्रायः बगीचा फिर से जीवित हो उठा। बगीचे की हालत सुधर गई। स्वयं विशेषज्ञ भी यह अद्भुत सफलता देखकर हतप्रभ हो गए। हरे-भरे और खिले हुए बगीचे को देखकर सोहनसिंह की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। नए सिरे के विकसित हुए नींबू के बगीचे से सोहनसिंह अब तक एक लाख रुपये की आमदनी प्राप्त कर रहे हैं।
कृषि वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन इसीलिए जरूरी है। आगे आने वाला समय बागवानी का है। यह बात समझने और अपनाने की है। बागवानी से भी लाभ की खेती संभव है। इस प्रकार की बागवानी में ही हमारी खुशहाल खेती की तस्वीर देखी जा सकती है।
तो देखा आपने प्रतिकूल परिस्थितियां देखकर सोहनसिंह तो एकाएक निराश हो गया था, लेकिन उसने हिम्मत और धैर्य का दामन नहीं छोड़ा। सूझबूझ से काम करते हुए कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क करना इनके लिए कितना सार्थक और लाभप्रद रहा, ये हमने जान ही लिया।
बागवानी से ही लाभ की खेती की अवधारणा को साकार रूप दिया जा सकता है। फलदार पौधों और बगीचों की स्थापना में एक बार तो परेशानी आती है। लेकिन उनका सामना सूझबूझ से किया जाए तो सफलता निश्चित ही मिलती है और ये कारनामा कर दिखाया सोहनसिंह ने। इन्होंने कृषि वैज्ञानिकों की सलाह और मार्गदर्शन से मृतप्रायः हो गए नींबू के बगीचे को एक बार फिर से जीवित कर दिया।
सोहनसिंह के बगीचे के नींबू उच्च क्वालिटी के हैं। इनका बगीचा दूसरे किसान भाइयों के लिए भी प्रेरणा बन गया है। इनके बगीचे के नींबू आसपास की सब्जी मंडियों में बिकने आते हैं। अब आलम यह है कि सोहनसिंह को एक मिनट की भी फुर्सत नहीं क्योंकि वो पूरे दिन लगा रहता है बगीचे की रौनक बढ़ाने में। बगीचे की कायापलट होती देखकर सोहनसिंह बेहद खुश और संतुष्ट हैं। देखते ही देखते सोहनसिंह की आमदनी में बढ़ोतरी हो गई, जिससे वो लाभ की खेती करने में कामयाब हो सका।
(लेखक दूरदर्शन कृषि कार्यक्रम में प्रोडक्शन सहायक हैं)
ई-मेल : virandrapariharddk@rediffmail
सोहनसिंह ने अपने खेत पर डेढ़ हेक्टेयर भूमि पर नींबू के कागजी किस्म के करीब एक हजार पौधे लगाए। नींबू का यह बगीचा लगाने में काफी मेहनत हुई लेकिन इसमें रोग व कीड़े लगने से मेहनत पर पानी फिर गया। मेहनत के बावजूद भी सोहनसिंह का बगीचा रोग व कीटों से घिर गया। सोहनसिंह ने नींबू के बगीचे को रोगमुक्त करने के लिए काफी मशक्कत की और लाखों रुपये खर्च किए। रोगों से बचाव के लिए उन्होंने कई दवाओं का प्रयोग किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। नींबू के लगभग सभी पौधों पर सफेद मक्खी, एफिड और कई प्रकार के चूसक कीटों का प्रकोप फैला हुआ था। सभी पौधे डाईबैक और त्रिसतेजा विषाणु के आक्रमण से ग्रसित थे। पौधों की टहनियां जमीन छूने लग गई थी। पौधों को दी जाने वाली सिंचाई व्यवस्था भी ठीक नहीं थी। इन सारी परेशानियों से सोहनसिंह परेशान हो गया। इन विषम परिस्थितियों के सामने लाचार सोहनसिंह ने बगीचे को काटने की बात सोच डाली।
इसके बाद उन्होंने सूझबूझ से निर्णय लेते हुए कृषि विज्ञान केंद्र सिरोही के पादप सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. चतुर्भुज मीना और मुख्य वैज्ञानिक डॉ. एसएन ओझा से संपर्क किया। कृषि विज्ञान केंद्र की टीम अगले ही दिन सोहनसिंह के खेत पर पहुंच गई। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने हालात देखकर सोहनसिंह को समझाया कि बगीचा फिर से सुधारा जा सकता है। वैज्ञानिकों के बताए रास्ते पर चलकर सोहनसिंह फिर से गया बगीचे को संवारने में। इन योजना के अंतर्गत बगीचे की कायापलट करने में सोहनसिंह ने ये प्रमुख कार्य किए—
1. फेर-बदल कर रोगोर दो मिली लीटर पानी तथा दो मिली लीटर एंडोसल्फॉन और 0.3 मिली लीटर एमिडाक्लोप्रीड का प्रति 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव किया।
2. पेड़ के तने पर बोरडेक्स पेस्ट लगाया।
3. सूखी हुई और जमीन के संपर्क में आई टहनियों को काटना शुरू कर दिया।
4. गोबर की खाद 10 से 12 किलो प्रति पौधे में डाली।
5. पौधों के तनों पर मिट्टी चढ़ा दी गई।
6. सिंचाई के लिए सही तरह से थाले बनाकर बगीचे को पानी दिया।
देखते ही देखते सोहनसिंह के बगीचे में रौनक आ गई। सोहनसिंह की मेहनत और वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन का नतीजा यह हुआ कि मृतप्रायः बगीचा फिर से जीवित हो उठा। बगीचे की हालत सुधर गई। स्वयं विशेषज्ञ भी यह अद्भुत सफलता देखकर हतप्रभ हो गए। हरे-भरे और खिले हुए बगीचे को देखकर सोहनसिंह की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। नए सिरे के विकसित हुए नींबू के बगीचे से सोहनसिंह अब तक एक लाख रुपये की आमदनी प्राप्त कर रहे हैं।
कृषि वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन इसीलिए जरूरी है। आगे आने वाला समय बागवानी का है। यह बात समझने और अपनाने की है। बागवानी से भी लाभ की खेती संभव है। इस प्रकार की बागवानी में ही हमारी खुशहाल खेती की तस्वीर देखी जा सकती है।
तो देखा आपने प्रतिकूल परिस्थितियां देखकर सोहनसिंह तो एकाएक निराश हो गया था, लेकिन उसने हिम्मत और धैर्य का दामन नहीं छोड़ा। सूझबूझ से काम करते हुए कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क करना इनके लिए कितना सार्थक और लाभप्रद रहा, ये हमने जान ही लिया।
बागवानी से ही लाभ की खेती की अवधारणा को साकार रूप दिया जा सकता है। फलदार पौधों और बगीचों की स्थापना में एक बार तो परेशानी आती है। लेकिन उनका सामना सूझबूझ से किया जाए तो सफलता निश्चित ही मिलती है और ये कारनामा कर दिखाया सोहनसिंह ने। इन्होंने कृषि वैज्ञानिकों की सलाह और मार्गदर्शन से मृतप्रायः हो गए नींबू के बगीचे को एक बार फिर से जीवित कर दिया।
सोहनसिंह के बगीचे के नींबू उच्च क्वालिटी के हैं। इनका बगीचा दूसरे किसान भाइयों के लिए भी प्रेरणा बन गया है। इनके बगीचे के नींबू आसपास की सब्जी मंडियों में बिकने आते हैं। अब आलम यह है कि सोहनसिंह को एक मिनट की भी फुर्सत नहीं क्योंकि वो पूरे दिन लगा रहता है बगीचे की रौनक बढ़ाने में। बगीचे की कायापलट होती देखकर सोहनसिंह बेहद खुश और संतुष्ट हैं। देखते ही देखते सोहनसिंह की आमदनी में बढ़ोतरी हो गई, जिससे वो लाभ की खेती करने में कामयाब हो सका।
(लेखक दूरदर्शन कृषि कार्यक्रम में प्रोडक्शन सहायक हैं)
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Post By: birendrakrgupta