बुन्देलखण्ड के किसान इन दिनों आवारा पशुओं की समस्या से बेहद परेशान हैं। पहली बार फसलों को बचाने के लिये किसानों को खेतों के चारों तरफ कंटीले तार लगाने पड़ रहे हैं। खेतों की रखवाली में जरा सी चूक का मतलब है, साल भर की मेहनत पर पानी फिर जाना। सूखे का दंश झेल रहे इस क्षेत्र में आवारा पशुओं की समस्या क्यों विकराल हो रही है, यह जानने के लिये भागीरथ ने स्थानीय प्रतिनिधियों से बात की।
“जब से प्रदेश सरकार ने मांस के व्यापार पर सख्ती की है, तब से यह समस्या बढ़ी है। बांदा जिले में पिछले साल सरकार ने मांस की दुकानें बन्द करवा दी थीं। इसका असर यह पड़ा कि जानवरों का कोई खरीददार नहीं रहा। उनकी आबादी इतनी बढ़ गई कि सड़कों पर उनका जमघट लगा रहता है।” -रामनरेश ग्राम प्रधान कतरावल गाँव, बांदा, उत्तर प्रदेश
मैंने अपने खेतों में धान की रोपाई की है। खेतों के चारो तरफ कंटीले तार लगाए हैं फिर भी आवारा पशु खेतों में घुसकर फसल को नुकसान पहुँचा रहें हैं। हम लोग रातभर जागकर खेतों की रखवाली कर रहें हैं, तब जाकर कुछ हद तक फसल बच रही है। जिनके खेतों में बाड़बंदी नहीं हुई है, उनकी फसलों को तो बहुत नुकसान हो रहा है।
पिछले दो तीन-साल से यह समस्या है जो धीरे-धीरे गम्भीर होती जा रही है। इस समस्या के निदान के लिए सबसे जरूरी है कि जानवरों का बंध्याकरण किया जाये। इसके लिये पोलियो जैसा अभियान चलाने की जरूरत है। पहले के समय में जानवरों से खेती होती थी और अनुपयोगी होने पर उन्हें खुला नहीं छोड़ा जाता था। अब वक्त बदल चुका है। लोग अपने माँ-बाप को ही नहीं खिला पाते तो जानवरों को क्या खिलाएँगे। इसलिए उन्हें खुला छोड़ देते हैं।
उत्तर प्रदेश में बूचड़खानों को बन्द करने से भी कुछ हद तक समस्या बढ़ी है। बांदा जिले में पिछले साल सरकार ने मांस की दुकानें बन्द करवा दी थी। इसका असर यह पड़ा कि जानवरों का कोई खरीदार नहीं रहा। उनकी आबादी इतनी बढ़ गई कि सड़कों पर उनका जमघट लगा रहता है। रात में भी वाहन को 20-30 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलाना पड़ता है। कई बार तो वाहन से उतरकर जानवरों को हटाना पड़ता है ताकि वाहन निकल सके। 15-20 मिनट इसी काम में लग जाते हैं। बांदा में पहले इक्का-दुक्का किसान ही खेतों के चारों तरफ कंटीले तार लगाते थे लेकिन इस समस्या के मद्देनजर तार लगाने वाले किसानों की संख्या बहुत बढ़ गई है। मेरे गाँव और पूरे क्षेत्र में आवारा पशुओं की समस्या इतनी गम्भीर हो गई है कि अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह किसानों को खा जा जाएगी। सूखे की मार झेल रहा यह क्षेत्र भुखमरी की कगार पर पहुँच जाएगा।
“बुन्देलखण्ड में किसानों ने कभी भी पशुओं को कटने के लिये कसाइयों को नहीं बेचा। दरअसल बुन्देलखण्ड में सार्वजनिक चारागाह कम हो गए हैं। सूखे के कारण चारा नहीं मिलता। खेती में हल का इस्तेमाल कम हुआ है और बैलों की उपयोगिता धीरे-धीरे खत्म हो रही है, इसलिये समस्या बढ़ रही है।” -भैरों प्रसाद मिश्र, सांसद, बांदा
देश के अन्य क्षेत्रों में भी आवारा पशुओं की समस्या है लेकिन बुन्देलखण्ड में यह इसलिये गम्भीर हो जाती है क्योंकि यहाँ खेती पर निर्भरता अधिक है। सिंचाई की व्यवस्था न होने के कारण ज्यादातर हिस्सों में एक ही फसल उगाई जाती है। मैं नहीं मानता कि बूचड़खानों या मांस पर सख्ती से आवारा पशुओं की समस्या बढ़ी है। बुन्देलखण्ड में किसानों ने कभी भी पशुओं को कटने के लिये कसाइयों को नहीं बेचा। दरअसल इस समस्या के लिये कुछ अन्य कारण जिम्मेदार है। जैसे बुन्देलखण्ड में सार्वजनिक चारागाह कम हो गए हैं। कोई एक हजार रुपए में भी गाय नहीं खरीदता।
सूखे के कारण पशुओं को भूसा या चारा नहीं मिलता। इसके अलावा खेती में हल का इस्तेमाल कम हुआ है और बैलों की उपयोगिता धीरे-धीरे खत्म हो रही है। सूखे के कारण लोग उन्हें खिला पाने में सक्षम नहीं हैं, इसलिये वे पशुओं को खुला छोड़ देते हैं। इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि पशुओं के कारण खेती को बहुत नुकसान पहुँच रहा है। लोग रातभर जागकर खेती की रखवाली कर रहे हैं। फसलों को बचाने के लिये खेतों के चारों तरफ कंटीले तार लगाए जा रहे हैं।
पहले सुअरों और रोझ (नीलगायों) से खेती को खतरा था लेकिन अब आवारा गोवंश की संख्या बढ़ने से समस्या विकराल हो गई है। सरकार इस समस्या से निपटने के लिये गम्भीर प्रयास कर रही है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरुआत हो चुकी है। 1.42 करोड़ रुपए हर जिले को दिए जा रहे हैं। हर जिले में गो अभयारण्य बनाने का प्रयास किया जा रहा है ताकि उनमें 5,000 गायें रखी जा सकें। सरकारी प्रयासों का असर आने वाले दिनों में दिखेगा। लोगों को भी जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे वे अपने पशुओं को खुला न छोड़ें।
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