मराठवाड़ा में सूखे की वजह से अब तक 454 किसानों ने की आत्महत्या
औरंगाबाद (वार्ता)। महाराष्ट्र मराठवाड़ा क्षेत्रों में किसानों की आत्महत्या और सूखे जैसी स्थिति का मुद्दा राज्य के विधानपरिषद में विपक्ष ने उठाया। इस मुद्दे पर मंगलवार को विधानमंडल के दोनों सदनों को विपक्ष के हंगामें के बाद द्वारा कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। इसी मुद्दे को लेकर राज्य विधान परिषद को बुधवार को भी दो बार स्थगित करना पड़ा। मराठवाड़ा इलाके में जनवरी से आज तक अकाल और कर्ज से परेशान 454 किसानों ने आत्महत्या की है। गौरतलब है कि पिछले तीन वर्ष से मराठवाड़ा क्षेत्र में सूखे और बेमौसम ओले पड़ने से किसान परेशान हैं।
मराठवाड़ा के आठ जिलों में फसल और कर्ज से परेशान किसानों की आत्महत्या प्रवृत्ति समाप्त नहीं हो रही है। जनवरी 2014 से 8 नवंबर तक 454 किसानों के आत्महत्या का मामला दर्ज किया गया। केवल नवंबर के महीने में मराठवाड़ा के अलग-अलग क्षेत्रों में 100 किसानों ने आत्महत्या की। इसमें से अधिकतर किसानों ने फसल के बर्बाद होने और कर्ज से परेशान हो कर जहर खा लिया या फिर फांसी पर लटका कर आत्महत्या की। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के आश्वासन के बावजूद किसानों की आत्महत्या का मामला रुक नहीं रहा है। बीड में 123, नांदेड में 103, उस्मानाबाद में 52, परभणी में 49, औरंगाबाद में 42 लातूर में 34, हिंगोली में 29 और जालना में 22 किसानों ने आत्महत्या की है। आत्महत्या करने वाले 454 किसानों में से 276 किसानों को सरकार के मानक के अनुरुप से क्षतिपूर्ति का हकदार पाया गया जबकि 260 किसानों के परिजनों को आर्थिक मदद दी गई। राजस्व विभाग ने 135 दावों को खारिज कर दिया 34 नये दावों पर जांच चल रही है।
शिवसेना ने किसानों की समस्या पर विपक्ष के प्रदर्शन को ‘स्टंट’ बताया
शिवसेना ने किसानों की आत्महत्या और सूखे के मुद्दे पर महाराष्ट्र विधानसभा में कांग्रेस और राकांपा के हंगामे को ‘स्टंट’ बताते हुए कहा कि विडंबना है कि दोनों दलों को सत्ता गंवाने के बाद किसानों की हालत की याद आई है। नागपुर में चल रहे शीत सत्र के दौरान मंगलवार को हंगामे के बाद विधानमंडल के दोनों सदनों की कार्यवाही रद्द करनी पड़ी। पूर्व सहयोगियों कांग्रेस और राकांपा ने साथ मिलकर विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों में किसानों की आत्महत्या और सूखे जैसी स्थिति का मुद्दा उठाया। इस मुद्दे पर विपक्ष द्वारा कार्यवाही बाधित करने के बाद राज्य विधान परिषद को बुधवार को भी दो बार स्थगित करना पड़ा। शिवसेना के मुखपत्र सामना के एक संपादकीय में कहा गया है कि 15 साल सत्ता में रहने के बाद अब उन्हें (कांग्रेस और राकांपा) सूखे की मार झेल रहे किसानों के आंसू नजर आने लगे हैं। किसानों की आत्महत्या और उनकी समस्याओं से अब वे असहज हो रहे हैं। जिसके लिए वे राज्य सरकार के खिलाफ भड़क रहे हैं। यह दिखावे के सिवा कुछ नहीं है। शिवसेना ने कहा कि किसानों की हालत के प्रति अपनी चिंता दिखाते हुए विपक्षी दलों का प्रदर्शन और कुछ नहीं बल्कि एक दिखावा है क्योंकि इसमें किसानों की भागीदारी नहीं थी। 50,000 किसानों के आने का उनका दावा झूठा रहा। ये वही सब हैं जो अपने 15 साल के शासन में किसानों की पुकार पर बहरे बने रहे।
अजीत पवार ने सूखे को लेकर राज्य सरकार से 10,000 करोड़ रुपए का पैकेज मांगा
महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री एवं राकांपा नेता अजित पवार ने मांग की कि राज्य में सूखे जैसे हालात से निपटने के लिए नई सरकार 10,000 करोड़ रुपए का पैकेज मुहैया करे। सूखे जैसे हालात पर चर्चा बुधवार उस समय शुरू हुई जब विपक्षी सदस्य नरम पड़ गए और सत्तारुढ़ गठबंधन इस मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार हो गया। मंगलवार को विधानमंडल के दोनों सदनों में इस मामले पर हंगामा हुआ था। सदन की बैठक बुधवार को शुरू होने पर कांग्रेस के विधायक दल के उप नेता (डिप्टी ग्रुप लीडर) विजय वडेत्तीवर ने स्पीकर हरिभाउ बागड़े से धारा 57 के तहत नोटिस स्वीकार करने और सूखा एवं किसानों की आत्महत्या पर चर्चा कराने की मांग की। यह धारा अनिवार्य प्रश्नकाल को निलंबित करने से संबद्ध है।
राजस्व मंत्री एकनाथ खड्से ने सदन को बताया कि सरकार चर्चा फौरन शुरू कराने को इच्छुक है जिसके बाद स्पीकर ने इसकी इजाजत दे दी। पवार ने राज्य में सूखा जैसे हालात की तस्वीर पेश करते हुए कहा कि समूचा मराठवाड़ा क्षेत्र और विदर्भ का हिस्सा सूखे की चपेट में है तथा किसानों को फौरन राहत मुहैया कराने की जरूरत है। खासतौर पर दुग्ध उत्पादकों के अलावा सोया और धान उत्पादकों को। सत्तारुढ़ गठजोड़ तीन लाख करोड़ रुपए से अधिक के कर्ज के बारे में हाय तौबा मचा रहा है, जबकि अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र भी कर्ज के भंवर जाल में फंसे हुए हैं। डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार ने कर्ज सीमा के सिर्फ 18 प्रतिशत का उपयोग किया जबकि शेष सात प्रतिशत का उपयोग अभी भी मौजूदा सरकार कर सकती है। प्रति व्यक्ति आय पर 25 प्रतिशत कर्ज की सीमा है। जिन किसानों ने आत्महत्या कर ली, उनकी पत्नियों को पेंशन दी जानी चाहिए क्योंकि मृतक किसानों के परिवार को सरकार द्वारा मुहैया की गई एक लाख रुपए की राशि अपर्याप्त है।
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