कुछ लोगों की निगाह में नई चीजों का आविष्कार सिर्फ पढ़े-लिखे लोग ही कर सकते हैं, लेकिन इसी देश में कई ऐसे लोग हैं जो पढ़े-लिखे नहीं हैं, लेकिन रिसर्च के नाम पर एक बड़ी उपलब्धि है उनके खाते में। ऐसे ही एक कारीगर हैं मदनलाल कुमावत। वे बहुफसली थ्रेशर बनाकर आज भारत ही नहीं दुनियाभर में छाए हुए हैं। उन्हें फोब्स ने प्रमुख शक्तिशाली ग्रामीण भारतीय उद्यमी माना है। राजस्थान के सीकर जिले के छोटे से गांव दांता निवासी मदनलाल को कभी यह अंदाजा ही नहीं था कि वह जो कुछ भी कर रहे हैं वह एक दिन उन्हें विश्व-स्तर पर ख्याति दिलाएगा। बहुफसली थ्रेशर की वजह से उन्हें ब्लॉक से लेकर जिला स्तर तक के कई पुरस्कार दिए जा चुके हैं। 10 नवंबर, 2010 को कृषि भवन में आयोजित कार्यक्रम में कृषि मंत्री ने भी उनका सम्मान किया। आइए, जानते हैं कि मदनलाल कुमावत ने किस तरह से यह उपलब्धि हासिल की। जानते हैं उन्हीं की जुबानी
मदनलाल कुमावत जी आज आपका काम और नाम दुनियाभर में छाया हुआ है। कैसा महसूस कर रहे हैं?
कहते हैं कि मेहनत से किया गया काम कभी बेकार नहीं जाता है। मैंने मेहनत की। मेरा काम लोगों को पंसद आया और आज जो कुछ भी हूं आप लोगों के सामने हूं। पहले गांव में नाम हुआ, फिर ब्लॉक से जिले में। राज्य में पहचान बनी और फिर देशभर में। अब तो दुनियाभर में मेरा नाम पहुंच गया है। सच कहूं, जब भी मेरे काम की तारीफ होती है मैं गौरवान्वित महसूस करता हूं। इसके लिए पहले भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं। जब पता चला कि दुनिया के प्रसिद्ध लोगों के बीच हमारा नाम पहुंच गया है तो निश्चित रूप से बहुत प्रसन्नता हो रही है। मुझे इतनी खुशी है कि उसे बयां नहीं कर सकता।
आप अपने बारे में कुछ बताएं। आपकी शिक्षा कहां तक हुई और किस तरह से आपका यह सफर शुरू हुआ?
मेरा बचपन बड़ा ही संघर्षमय रहा। जैसा कि आप जानते हैं कि पहले स्कूल इतने नजदीक नहीं होते थे। पढ़ने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। मेरा बचपन बगरू में बीता। मैं काफी बड़ा हो गया तब स्कूल जाना शुरू किया। मेरी उम्र एवं मेरे ज्ञान को देखते हुए स्कूल के अध्यापक ने कुछ दिन कक्षा दो में बैठाया और फिर तीन में बैठा दिया। दो साल के दौरान मैं कक्षा चार का छात्र हो गया। इसी दौरान एक दिन मुझे करंट लग गया और शरीर का काफी हिस्सा झुलस गया। कुछ दिन तक अस्पताल में रहा। ठीक होने में काफी दिन लगे और स्कूल जाना छूट गया। जो एक बार स्कूल जाना बंद हुआ तो फिर स्कूली शिक्षा नसीब ही नहीं हुई।
पढ़ाई छोड़ने के बाद आपने क्या किया?
पढ़ाई छूट गई, लेकिन मन में यह हसरत थी कि कुछ ऐसा काम करें जिससे लोग याद करें। मैं कुछ दिन तक खेतीबाड़ी करता रहा। फिर खेतीबाड़ी के साथ ही दर्जी का भी काम किया। करीब तीन साल तक दर्जी का काम किया, लेकिन इस काम में भी मन नहीं लगा। मन में तरह-तरह के विचार आते। मैं सोचता कि आखिर मैं ऐसा कोई काम क्यों नहीं करता, जिसे लोग याद रखे। फिर हमने दर्जी का काम भी छोड़ दिया।
दर्जी का काम छोड़ने के बाद काफी आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ा होगा। फिर जीविका चलाने के लिए क्या किया?
मेरे दादाजी बढ़ई का काम करते थे। मैं भी उनके साथ सहयोग करने लगा। कई बार लकड़ी के काम को ऐतिहासिक बनाने का प्रयास किया। लकड़ी पर कई तरह की नक्काशी तैयार की। सोचा, हो सकता है कि बढ़ईगिरी के काम में कुछ ऐसा कर दिखाऊ जिससे नाम हो, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। आखिरकार मैंने बढ़ईगिरी का काम भी छोड़ दिया।
बढ़ईगिरी का काम छोड़ने के बाद आपने क्या किया?
बढ़ईगिरी का काम छोड़ने के बाद मैं अपने भाई शंकरलाल जो एक कारखाने में काम करते थे के साथ काम करने लगा। इस कारखाने में काम करते हुए हमने तमाम चीजों के बारे में सीखा। इस कारखाने में कृषि यंत्र बनते थे। यहां तमाम किसानों का भी आना-जाना रहता था। मैं किसानों से बातचीत कर पूछता रहता था कि उन्हें किस तरह का थ्रेशर मिले तो ज्यादा फायदा होगा। किसानों की डिमांड के अनुरूप ही मैंने थ्रेशर बनाया। यह थ्रेशर लोगों को बहुत पसंद आया।
इस थ्रेशर की खासियत क्या थी, जिसकी वजह से किसान पसंद करने लगे?
हमारे यहां पहले दाना और भूसा को अलग करने वाले थ्रेशर नहीं थे, लेकिन इस थ्रेशर को हमने ऐसा बनाया कि इसमें दाना-भूसा तो अलग होता ही था साथ ही दाने के आकार के अनुसार अपने आप अलग हो जाते थे। इस थ्रेशर की खासियत का कारण उसमें लगने वाले ब्लेड (झन्ने) थे। दाने टूटते नहीं थे। एक ही थ्रेशर से अलग-अलग फसलों की मड़ाई भी संभव थी। अलग-अलग के ब्लेड लगने के कारण यह किसानों के लिए काफी मुफीदा हो गया।
आपने यह काम बगरू में शुरू किया फिर दांता में कैसे पहुंच गए?
यह सच है कि बगरू में काम करते हुए ही मुझे पहचान मिली। लोगों ने जाना कि मैं एक अच्छा कारीगर हूं। इसके बाद सोचा कि जब हाथ में शऊर है तो क्यों न खुद का कारोबार शुरू किया जाए। यही सपना लिए मैं 1997 में बगरू से सीकर जिले के दांता कस्बे में आ गया और जैसा कि आप देख रहे हैं कि यही शिवशंकर लाल मदनलाल कृषि यंत्र उद्योग के नाम से अपना कारोबार चल रहा है।
यहां आने के बाद आपने क्या-क्या नया किया? आपके काम को काश्तकार क्यों पसंद करने लगे। आपने किसानों की मनपसंद थ्रेशर बनाने में कौन-सी तकनीक अपनाई?
जैसा कि मैं पहले बता चुका हूं कि मेरी हमेशा कोशिश रही कि कुछ नया अलग किया जाए। इसलिए मैं यहां आने के बाद किसानों के और नजदीक गया। लगातार किसानों से बातचीत करता और जानने की कोशिश करता कि किस तरह उनके लिए और उपयोगी थ्रेशर बनाया जा सकता है। जिस तरह किसान डिमांड करते, अपने मॉडल में लगातार सुधार करता रहा। एक के बाद एक प्रयोग के बाद तैयार हुआ बहुफसली थ्रेशर। इसे बहुत पसंद किया गया। इस थ्रेशर की खासियत है कि यह अन्य थ्रेशरों की अपेक्षा ज्यादा अच्छी तरह से खाद्यान्न देता था, जिसकी वजह से काश्तकारों ने इसे बहुत पंसद किया।
बहुफसली थ्रेशर की और क्या खासियत है? इससे किसानों को किस तरह फायदा मिल रहा है?
बहुफसली थ्रेशर में डीजल और बिजली की खपत कम होती है। पहले थ्रेशर का उपयोग सिर्फ गेहूं में होता था, लेकिन इस थ्रेशर का उपयोग सभी फसलों में किया जाने लगा यह एकमात्र ऐसा थ्रेशर है जो मूंगफली सहित सभी प्रकार की फसलों के लिए प्रयोग में लिया जा सकता है। इसमें एक फसल से दूसरी फसल की थ्रेशिंग किए जाने में कम समय और मानव शक्ति का प्रयोग होता है। इस थ्रेशर में दलहनी, तिलहनी और अन्य अनाज की एक साथ मड़ाई की जा सकती है। यह एक घंटे में 30 से 40 क्वींटल बीज निकाल सकता है।
बहुफसली थ्रेशर के कितने मॉडल आपने तैयार किए हैं और इनका मूल्य क्या है?
बहुफसली थ्रेशर के सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले तीन मॉडल हैं। ये तीनों काम एक ही करते हैं बस साइज का फर्क है। इसमें एक मॉडल की कीमत एक लाख 70 हजार, दूसरे की एक लाख 80 हजार और तीसरे की दो लाख 10 हजार रुपये है।
एक थ्रेशर को तैयार करने में कितना समय लगता है और हर साल कितने थ्रेशर बनाते हैं?
थ्रेशर तैयार करने में समय का कोई निर्धारण नहीं है। जितनी अधिक मेहनत होती है उतना कम समय लगता है। जहां तक बहुफसली थ्रेशर की बात है तो इसे तैयार करने में पखवाड़े भर से ज्यादा समय तो लग ही जाता है। हर साल करीब 10 से 15 थ्रेशर तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा पुराने थ्रेसरों की भी मरम्मत का काम चलता रहता है। छोटे किसानों के लिए साधारण थ्रेशर का भी काम चलता रहता है। इसलिए काम की कभी कमी नहीं रहती है।
अपने काम को एक उद्योग के रूप में आपने कैसे शुरू किया। इस दौरान किस तरह की समस्या का सामना करना पड़ा?
शुरुआत में जब हमने दांता में यह काम शुरू किया तो सबसे ज्यादा समस्या पैसे की थी। बैंक से लोन लिया। काम शुरू हुआ। इस दौरान हमारा संपर्क कई ऐसे संगठनों से हुआ, जो ग्रामीण इलाके में काम करने वाले लोगों को प्रोत्साहित कर रहे थे। फिर हमारे काम की जानकारी कृषि विश्वविद्यालय को हुई। विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने थ्रेशर का परीक्षण किया और अपनी तरफ से हरी झंडी दे दी। इस कार्य का पेटेंट भी हमें मिल गया। अब धीरे-धीरे लोन को भी चुकता कर दिया है। इसके साथ ही व्यवसाय के विकास के लिए जमीन भी खरीद ली है। सब कुछ ठीक चल रहा है। अब हमारे काम को और अधिक पहचान मिली है। उम्मीद है कि हमारी आर्थिक स्थिति और मजबूत होगी।
आगे की क्या योजना है? अपने काम को किस तरह विस्तारित करना चाहते हैं?
हां, मेरे काम के बारे में लोगों को जानकारी मिली है। दूसरे राज्यों से भी बहुफसली थ्रेशर के बारे में फोन आ रहे हैं। जल्द ही हम विभिन्न राज्यों का दौरा कर वहां चल रहे कृषि यंत्र कारखानों से संपर्क करेंगे और अपने बहुफसली थ्रेशर के बारे में भी जानकारी देंगे क्योंकि राजस्थान में खेती अन्य राज्यों की अपेक्षा कम होती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में खेती ज्यादा होती है। इन राज्यों के किसानों को बहुफसली थ्रेशर के बारे में विस्तार से जानकारी दूंगा।
आपकी अभिलाषा क्या है? भविष्य में क्या करना चाहते हैं? इन दिनों क्या खास कर रहे हैं?
मैं चाहता हूं कि किसानों की हर समस्या का समाधान हो जाए। किसान कभी अपने को अकेला न महसूस करें। बड़े किसानों के साथ ही उन किसानों के लिए भी कृषि यंत्र विकसित किए जाएं, जो अधिक लागत नहीं लगा सकते। मैं इस दिशा में भी काम कर रहा हूं। इन दिनों मैं स्प्रे मशीन को लेकर एक नए प्रयोग करने में लगा हूं। उम्मीद है कि इसमें भी सफलता मिलेगी। हालांकि अभी यह प्रयोग प्रथम स्तर पर है। इसे कई स्तर पर प्रयोग करुंगा। क्योंकि दवा छिड़काव के समय किसान को कीटनाशक की चपेट में आने का भय रहता है। यदि कम खर्च में ऐसी मशीन विकसित की जाए, जो कम समय में अधिक काम करे और किसान को किसी तरह का नुकसान भी न हो तो यह एक बड़ा काम होगा।
आज आप जिस मुकाम पर पहुंचे हैं, उसे प्राप्त करने में कितना समय लगा? नई पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेंगे।
जैसा कि मैं पहले ही बात चुका हूं कि मैंने 1997 में दांता से अपना काम शुरू किया। करीब सात साल की मेहनत के बाद 2004 में मेरे काम को ज्यादा तवज्जो मिलने लगा। इस तरह करीब सात साल की मेहनत के बाद सब कुछ पटरी पर आया। जहां तक नई पीढ़ी की बात है तो मैं सभी से यही कहना चाहूंगा कि अपनी मेहनत पर भरोसा रखें। ईमानदारी से काम करें। मेहनत से किया गया काम कभी बेकार नहीं जाता है। हां, इतना जरूर है कि समस्या आ सकती है। कुछ लोग शार्टकट तरीके से आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन मेहनत से किया गया काम टिकाऊ होता है। इसे कभी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
खेती को बढ़ावा देने के मामले में सरकार की योजनाओं से कितना संतुष्ट हैं आप? किस तरह की योजनाएं चलाई जाएं तो किसानों को ज्यादा फायदा होगा?
सरकार किसी-न-किसी रूप में हर व्यक्ति की मदद कर रही है। जो लोग खुद का कारोबार शुरू करना चाहते हैं उन्हें बैंक से लोन मिल जाता है। खेती करने, रोजगार करने, कृषि यंत्र खरीदने हर काम के लिए सरकार किसानों के साथ खड़ी है। जहां तक कमी की बात है तो मुझे लगता है कि सिंचाई सुवधिाएं और विकसित हो तो किसान ज्यादा सहज महसूस करेंगे। जब पानी की समस्या नहीं होगी तो ज्यादा-से-ज्यादा खेत में फसल उगाई जाएगी। इससे कई तरह के फायदे होंगे। अभी पानी के अभाव में कई हेक्टेयर खेत खाली पड़े रहते हैं। इसके अलावा किसानों को खेती सुधार और कृषि यंत्रों की खरीद पर अधिक-से-अधिक छूट प्रदान की जाए। सरकार ऐसी कोई योजना बनाए जिससे किसानों को बिना ब्याज लोन मिल सके।
एक कारोबारी की दृष्टि से अपना कारोबार बढ़ाने में आपने किन बातों पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया। एक नए करोबारी को क्या संदेश देना चाहेंगे?
मैंने हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि जिनके लिए मैं काम कर रहा हूं, उन्हें पसंद आ रहा है या नहीं। जब भी मैं किसानों से बात करता, मेरा दिमाग इसी बात पर केंद्रित रहता कि किसान चाहता क्या है? उसकी जरूरत क्या है? कोई भी कारोबार शुरू करते वक्त हर व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसके लिए और क्या काम कर रहा है। मेरी निगाह में जब तक ग्राहकों को काम पसंद नहीं आता, तब तक कोई भी काम करोबारी दृष्टि से उचित नहीं हो सकता है।
सराकर और समाज से क्या उम्मीद करते हैं? कौन-सी ऐसी बात है जो आपको अक्सर सालती रहती है?
मेरी सरकार और समाज से गुजारिश है कि देश के हर बच्चे को उच्च शिक्षा दिलाएं। उनके हुनर के मुताबिक काम मुहैया कराए। कोई भी बच्चा संसाधनों के अभाव में शिक्षा से वंचित न रहने पाए। इसके लिए समाज को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और सरकार को भी। क्योंकि आज हालात बदल गए हैं। हर गांव में स्कूल खुले हैं। फिर भी तमाम बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। इसके पीछे अलग-अलग कारण हैं। जब तक हर बच्चा शिक्षित नहीं होगा तब तक देश एवं समाज का भला नहीं हो सकता है। मेरे काम की वजह से मुझे देश ही नहीं दुनिया भर में पहचान मिली है, फिर भी इस बात का कष्ट है कि मैं उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाया। पढ़ाई न कर पाने की टीस मन में सालती रहती है। यही वजह है कि मैं अपने बच्चों को उच्च से उच्च शिक्षा दिलाना चाहता हूं क्योंकि पढ़ाई कभी बेकार नहीं जाती। यह भी नहीं मानना चाहिए कि पढ़ाई सिर्फ नौकरी के लिए की जाती है। नौकरी मिले या न मिले, लेकिन पढ़ाई जरूर करनी चाहिए। शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)
ई-मेल : kusumlata.kathar@gmail.com
मदनलाल कुमावत जी आज आपका काम और नाम दुनियाभर में छाया हुआ है। कैसा महसूस कर रहे हैं?
कहते हैं कि मेहनत से किया गया काम कभी बेकार नहीं जाता है। मैंने मेहनत की। मेरा काम लोगों को पंसद आया और आज जो कुछ भी हूं आप लोगों के सामने हूं। पहले गांव में नाम हुआ, फिर ब्लॉक से जिले में। राज्य में पहचान बनी और फिर देशभर में। अब तो दुनियाभर में मेरा नाम पहुंच गया है। सच कहूं, जब भी मेरे काम की तारीफ होती है मैं गौरवान्वित महसूस करता हूं। इसके लिए पहले भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं। जब पता चला कि दुनिया के प्रसिद्ध लोगों के बीच हमारा नाम पहुंच गया है तो निश्चित रूप से बहुत प्रसन्नता हो रही है। मुझे इतनी खुशी है कि उसे बयां नहीं कर सकता।
आप अपने बारे में कुछ बताएं। आपकी शिक्षा कहां तक हुई और किस तरह से आपका यह सफर शुरू हुआ?
मेरा बचपन बड़ा ही संघर्षमय रहा। जैसा कि आप जानते हैं कि पहले स्कूल इतने नजदीक नहीं होते थे। पढ़ने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। मेरा बचपन बगरू में बीता। मैं काफी बड़ा हो गया तब स्कूल जाना शुरू किया। मेरी उम्र एवं मेरे ज्ञान को देखते हुए स्कूल के अध्यापक ने कुछ दिन कक्षा दो में बैठाया और फिर तीन में बैठा दिया। दो साल के दौरान मैं कक्षा चार का छात्र हो गया। इसी दौरान एक दिन मुझे करंट लग गया और शरीर का काफी हिस्सा झुलस गया। कुछ दिन तक अस्पताल में रहा। ठीक होने में काफी दिन लगे और स्कूल जाना छूट गया। जो एक बार स्कूल जाना बंद हुआ तो फिर स्कूली शिक्षा नसीब ही नहीं हुई।
पढ़ाई छोड़ने के बाद आपने क्या किया?
पढ़ाई छूट गई, लेकिन मन में यह हसरत थी कि कुछ ऐसा काम करें जिससे लोग याद करें। मैं कुछ दिन तक खेतीबाड़ी करता रहा। फिर खेतीबाड़ी के साथ ही दर्जी का भी काम किया। करीब तीन साल तक दर्जी का काम किया, लेकिन इस काम में भी मन नहीं लगा। मन में तरह-तरह के विचार आते। मैं सोचता कि आखिर मैं ऐसा कोई काम क्यों नहीं करता, जिसे लोग याद रखे। फिर हमने दर्जी का काम भी छोड़ दिया।
दर्जी का काम छोड़ने के बाद काफी आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ा होगा। फिर जीविका चलाने के लिए क्या किया?
मेरे दादाजी बढ़ई का काम करते थे। मैं भी उनके साथ सहयोग करने लगा। कई बार लकड़ी के काम को ऐतिहासिक बनाने का प्रयास किया। लकड़ी पर कई तरह की नक्काशी तैयार की। सोचा, हो सकता है कि बढ़ईगिरी के काम में कुछ ऐसा कर दिखाऊ जिससे नाम हो, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। आखिरकार मैंने बढ़ईगिरी का काम भी छोड़ दिया।
बढ़ईगिरी का काम छोड़ने के बाद आपने क्या किया?
बढ़ईगिरी का काम छोड़ने के बाद मैं अपने भाई शंकरलाल जो एक कारखाने में काम करते थे के साथ काम करने लगा। इस कारखाने में काम करते हुए हमने तमाम चीजों के बारे में सीखा। इस कारखाने में कृषि यंत्र बनते थे। यहां तमाम किसानों का भी आना-जाना रहता था। मैं किसानों से बातचीत कर पूछता रहता था कि उन्हें किस तरह का थ्रेशर मिले तो ज्यादा फायदा होगा। किसानों की डिमांड के अनुरूप ही मैंने थ्रेशर बनाया। यह थ्रेशर लोगों को बहुत पसंद आया।
इस थ्रेशर की खासियत क्या थी, जिसकी वजह से किसान पसंद करने लगे?
हमारे यहां पहले दाना और भूसा को अलग करने वाले थ्रेशर नहीं थे, लेकिन इस थ्रेशर को हमने ऐसा बनाया कि इसमें दाना-भूसा तो अलग होता ही था साथ ही दाने के आकार के अनुसार अपने आप अलग हो जाते थे। इस थ्रेशर की खासियत का कारण उसमें लगने वाले ब्लेड (झन्ने) थे। दाने टूटते नहीं थे। एक ही थ्रेशर से अलग-अलग फसलों की मड़ाई भी संभव थी। अलग-अलग के ब्लेड लगने के कारण यह किसानों के लिए काफी मुफीदा हो गया।
आपने यह काम बगरू में शुरू किया फिर दांता में कैसे पहुंच गए?
यह सच है कि बगरू में काम करते हुए ही मुझे पहचान मिली। लोगों ने जाना कि मैं एक अच्छा कारीगर हूं। इसके बाद सोचा कि जब हाथ में शऊर है तो क्यों न खुद का कारोबार शुरू किया जाए। यही सपना लिए मैं 1997 में बगरू से सीकर जिले के दांता कस्बे में आ गया और जैसा कि आप देख रहे हैं कि यही शिवशंकर लाल मदनलाल कृषि यंत्र उद्योग के नाम से अपना कारोबार चल रहा है।
यहां आने के बाद आपने क्या-क्या नया किया? आपके काम को काश्तकार क्यों पसंद करने लगे। आपने किसानों की मनपसंद थ्रेशर बनाने में कौन-सी तकनीक अपनाई?
जैसा कि मैं पहले बता चुका हूं कि मेरी हमेशा कोशिश रही कि कुछ नया अलग किया जाए। इसलिए मैं यहां आने के बाद किसानों के और नजदीक गया। लगातार किसानों से बातचीत करता और जानने की कोशिश करता कि किस तरह उनके लिए और उपयोगी थ्रेशर बनाया जा सकता है। जिस तरह किसान डिमांड करते, अपने मॉडल में लगातार सुधार करता रहा। एक के बाद एक प्रयोग के बाद तैयार हुआ बहुफसली थ्रेशर। इसे बहुत पसंद किया गया। इस थ्रेशर की खासियत है कि यह अन्य थ्रेशरों की अपेक्षा ज्यादा अच्छी तरह से खाद्यान्न देता था, जिसकी वजह से काश्तकारों ने इसे बहुत पंसद किया।
बहुफसली थ्रेशर की और क्या खासियत है? इससे किसानों को किस तरह फायदा मिल रहा है?
बहुफसली थ्रेशर में डीजल और बिजली की खपत कम होती है। पहले थ्रेशर का उपयोग सिर्फ गेहूं में होता था, लेकिन इस थ्रेशर का उपयोग सभी फसलों में किया जाने लगा यह एकमात्र ऐसा थ्रेशर है जो मूंगफली सहित सभी प्रकार की फसलों के लिए प्रयोग में लिया जा सकता है। इसमें एक फसल से दूसरी फसल की थ्रेशिंग किए जाने में कम समय और मानव शक्ति का प्रयोग होता है। इस थ्रेशर में दलहनी, तिलहनी और अन्य अनाज की एक साथ मड़ाई की जा सकती है। यह एक घंटे में 30 से 40 क्वींटल बीज निकाल सकता है।
बहुफसली थ्रेशर के कितने मॉडल आपने तैयार किए हैं और इनका मूल्य क्या है?
बहुफसली थ्रेशर के सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले तीन मॉडल हैं। ये तीनों काम एक ही करते हैं बस साइज का फर्क है। इसमें एक मॉडल की कीमत एक लाख 70 हजार, दूसरे की एक लाख 80 हजार और तीसरे की दो लाख 10 हजार रुपये है।
एक थ्रेशर को तैयार करने में कितना समय लगता है और हर साल कितने थ्रेशर बनाते हैं?
थ्रेशर तैयार करने में समय का कोई निर्धारण नहीं है। जितनी अधिक मेहनत होती है उतना कम समय लगता है। जहां तक बहुफसली थ्रेशर की बात है तो इसे तैयार करने में पखवाड़े भर से ज्यादा समय तो लग ही जाता है। हर साल करीब 10 से 15 थ्रेशर तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा पुराने थ्रेसरों की भी मरम्मत का काम चलता रहता है। छोटे किसानों के लिए साधारण थ्रेशर का भी काम चलता रहता है। इसलिए काम की कभी कमी नहीं रहती है।
अपने काम को एक उद्योग के रूप में आपने कैसे शुरू किया। इस दौरान किस तरह की समस्या का सामना करना पड़ा?
शुरुआत में जब हमने दांता में यह काम शुरू किया तो सबसे ज्यादा समस्या पैसे की थी। बैंक से लोन लिया। काम शुरू हुआ। इस दौरान हमारा संपर्क कई ऐसे संगठनों से हुआ, जो ग्रामीण इलाके में काम करने वाले लोगों को प्रोत्साहित कर रहे थे। फिर हमारे काम की जानकारी कृषि विश्वविद्यालय को हुई। विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने थ्रेशर का परीक्षण किया और अपनी तरफ से हरी झंडी दे दी। इस कार्य का पेटेंट भी हमें मिल गया। अब धीरे-धीरे लोन को भी चुकता कर दिया है। इसके साथ ही व्यवसाय के विकास के लिए जमीन भी खरीद ली है। सब कुछ ठीक चल रहा है। अब हमारे काम को और अधिक पहचान मिली है। उम्मीद है कि हमारी आर्थिक स्थिति और मजबूत होगी।
आगे की क्या योजना है? अपने काम को किस तरह विस्तारित करना चाहते हैं?
हां, मेरे काम के बारे में लोगों को जानकारी मिली है। दूसरे राज्यों से भी बहुफसली थ्रेशर के बारे में फोन आ रहे हैं। जल्द ही हम विभिन्न राज्यों का दौरा कर वहां चल रहे कृषि यंत्र कारखानों से संपर्क करेंगे और अपने बहुफसली थ्रेशर के बारे में भी जानकारी देंगे क्योंकि राजस्थान में खेती अन्य राज्यों की अपेक्षा कम होती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में खेती ज्यादा होती है। इन राज्यों के किसानों को बहुफसली थ्रेशर के बारे में विस्तार से जानकारी दूंगा।
आपकी अभिलाषा क्या है? भविष्य में क्या करना चाहते हैं? इन दिनों क्या खास कर रहे हैं?
मैं चाहता हूं कि किसानों की हर समस्या का समाधान हो जाए। किसान कभी अपने को अकेला न महसूस करें। बड़े किसानों के साथ ही उन किसानों के लिए भी कृषि यंत्र विकसित किए जाएं, जो अधिक लागत नहीं लगा सकते। मैं इस दिशा में भी काम कर रहा हूं। इन दिनों मैं स्प्रे मशीन को लेकर एक नए प्रयोग करने में लगा हूं। उम्मीद है कि इसमें भी सफलता मिलेगी। हालांकि अभी यह प्रयोग प्रथम स्तर पर है। इसे कई स्तर पर प्रयोग करुंगा। क्योंकि दवा छिड़काव के समय किसान को कीटनाशक की चपेट में आने का भय रहता है। यदि कम खर्च में ऐसी मशीन विकसित की जाए, जो कम समय में अधिक काम करे और किसान को किसी तरह का नुकसान भी न हो तो यह एक बड़ा काम होगा।
आज आप जिस मुकाम पर पहुंचे हैं, उसे प्राप्त करने में कितना समय लगा? नई पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेंगे।
जैसा कि मैं पहले ही बात चुका हूं कि मैंने 1997 में दांता से अपना काम शुरू किया। करीब सात साल की मेहनत के बाद 2004 में मेरे काम को ज्यादा तवज्जो मिलने लगा। इस तरह करीब सात साल की मेहनत के बाद सब कुछ पटरी पर आया। जहां तक नई पीढ़ी की बात है तो मैं सभी से यही कहना चाहूंगा कि अपनी मेहनत पर भरोसा रखें। ईमानदारी से काम करें। मेहनत से किया गया काम कभी बेकार नहीं जाता है। हां, इतना जरूर है कि समस्या आ सकती है। कुछ लोग शार्टकट तरीके से आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन मेहनत से किया गया काम टिकाऊ होता है। इसे कभी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
खेती को बढ़ावा देने के मामले में सरकार की योजनाओं से कितना संतुष्ट हैं आप? किस तरह की योजनाएं चलाई जाएं तो किसानों को ज्यादा फायदा होगा?
सरकार किसी-न-किसी रूप में हर व्यक्ति की मदद कर रही है। जो लोग खुद का कारोबार शुरू करना चाहते हैं उन्हें बैंक से लोन मिल जाता है। खेती करने, रोजगार करने, कृषि यंत्र खरीदने हर काम के लिए सरकार किसानों के साथ खड़ी है। जहां तक कमी की बात है तो मुझे लगता है कि सिंचाई सुवधिाएं और विकसित हो तो किसान ज्यादा सहज महसूस करेंगे। जब पानी की समस्या नहीं होगी तो ज्यादा-से-ज्यादा खेत में फसल उगाई जाएगी। इससे कई तरह के फायदे होंगे। अभी पानी के अभाव में कई हेक्टेयर खेत खाली पड़े रहते हैं। इसके अलावा किसानों को खेती सुधार और कृषि यंत्रों की खरीद पर अधिक-से-अधिक छूट प्रदान की जाए। सरकार ऐसी कोई योजना बनाए जिससे किसानों को बिना ब्याज लोन मिल सके।
एक कारोबारी की दृष्टि से अपना कारोबार बढ़ाने में आपने किन बातों पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया। एक नए करोबारी को क्या संदेश देना चाहेंगे?
मैंने हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि जिनके लिए मैं काम कर रहा हूं, उन्हें पसंद आ रहा है या नहीं। जब भी मैं किसानों से बात करता, मेरा दिमाग इसी बात पर केंद्रित रहता कि किसान चाहता क्या है? उसकी जरूरत क्या है? कोई भी कारोबार शुरू करते वक्त हर व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसके लिए और क्या काम कर रहा है। मेरी निगाह में जब तक ग्राहकों को काम पसंद नहीं आता, तब तक कोई भी काम करोबारी दृष्टि से उचित नहीं हो सकता है।
सराकर और समाज से क्या उम्मीद करते हैं? कौन-सी ऐसी बात है जो आपको अक्सर सालती रहती है?
मेरी सरकार और समाज से गुजारिश है कि देश के हर बच्चे को उच्च शिक्षा दिलाएं। उनके हुनर के मुताबिक काम मुहैया कराए। कोई भी बच्चा संसाधनों के अभाव में शिक्षा से वंचित न रहने पाए। इसके लिए समाज को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और सरकार को भी। क्योंकि आज हालात बदल गए हैं। हर गांव में स्कूल खुले हैं। फिर भी तमाम बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। इसके पीछे अलग-अलग कारण हैं। जब तक हर बच्चा शिक्षित नहीं होगा तब तक देश एवं समाज का भला नहीं हो सकता है। मेरे काम की वजह से मुझे देश ही नहीं दुनिया भर में पहचान मिली है, फिर भी इस बात का कष्ट है कि मैं उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाया। पढ़ाई न कर पाने की टीस मन में सालती रहती है। यही वजह है कि मैं अपने बच्चों को उच्च से उच्च शिक्षा दिलाना चाहता हूं क्योंकि पढ़ाई कभी बेकार नहीं जाती। यह भी नहीं मानना चाहिए कि पढ़ाई सिर्फ नौकरी के लिए की जाती है। नौकरी मिले या न मिले, लेकिन पढ़ाई जरूर करनी चाहिए। शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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