कर्नाटक के गुलबर्गा जिले स्थित सुरपुर तालुका के किराडल्ली टाण्डा गाँव में पेयजल के स्रोतों के पानी के चार नमूनों में से तीन नमूनों में आर्सेनिक की मात्रा मानक स्तर से काफ़ी ज्यादा पाई गई है। यह मानक भारतीय पेयजल मानकों के तय बिन्दुओं IS 10500 के अनुसार जाँचे गये। भूगर्भ और खान विभाग की मुख्य केमिस्ट शशि रेखा द्वारा अधिकारी द्वारा जिला परिवार कल्याण अधिकारी नलिनी नामोशी को सौंपी गई रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि टांडा के इन पेयजल नमूनों में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 mg/l पाई गई है जो कि तय मानक से अधिक है।
कर्नाटक के गुलबर्गा जिले स्थित सुरपुर तालुका के किराडल्ली टाण्डा गाँव में पेयजल के स्रोतों के पानी के चार नमूनों में से तीन नमूनों में आर्सेनिक की मात्रा मानक स्तर से काफ़ी ज्यादा पाई गई है। यह मानक भारतीय पेयजल मानकों के तय बिन्दुओं IS 10500 के अनुसार जाँचे गये। भूगर्भ और खान विभाग की मुख्य केमिस्ट शशि रेखा द्वारा अधिकारी द्वारा जिला परिवार कल्याण अधिकारी नलिनी नामोशी को सौंपी गई रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि टांडा के इन पेयजल नमूनों में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 mg/l पाई गई है जो कि तय मानक से अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार टाण्डा में सप्लाई किये जा रहे पानी में आर्सेनिक का स्तर तो 0.01 मिलि ग्राम प्रति लीटर है लेकिन नाईट्रेट का स्तर भी स्वीकार्य मानक से कहीं अधिक है। सरकार के मानकों के मुताबिक नाईट्रेट का स्तर 47 mg/l से अधिक नहीं होना चाहिये, लेकिन टाण्डा के पेयजल में नाईट्रेट 51 mg/l पाया गया है, जो कि पेयजल के लिहाज से ठीक नहीं है। इसी रिपोर्ट में टाण्डा के एक कुँए में आर्सेनिक का स्तर 0.27 mg/l पाया गया है, जो कि मानक स्तर 0.01 mg/l से बहुत ही ज्यादा है। इसी प्रकार इलाके के एक बोरवेल में आर्सेनिक का स्तर 0.39 mg/l पाया गया जो कि बहुत खतरनाक है, एवं पास ही स्थित एक और बोरवेल में यह स्तर 0.06 mg/l पाया गया, हालांकि यह भी खतरनाक ही माना जाना चाहिये।
इन पेयजल स्रोतों के पानी के नमूनों की जाँच से पता चला है कि पानी में मौजूद अन्य धातुओं जैसे क्लोराइड, फ़्लोराइड, सल्फ़ेट, आयरन, pH, लेड, अलुमिनियम, ज़िंक, कॉपर, मैंगनीज़ तथा कैल्शियम, का स्तर तय मानकों के मुताबिक ही है। इसी प्रकार सभी नमूनों में Total Dissolved Solids तथा Total Hardness का स्तर भी तय मानकों के भीतर ही पाया गया। समाचार पत्र 'द हिन्दू' को खान और भूगर्भ विभाग के सूत्रों से पता चला है कि टाण्डा में दिया जाने वाला पेयजल स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक है और यह पानी खाना बनाने, पीने और अन्य घरेलू उपयोगों के लिये उचित नहीं है। टाण्डा के निवासियों को तत्काल साफ़ पेयजल उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है। उनके अनुसार टाण्डा के निवासी इस दूषित पेयजल को बिना किसी अतिरिक्त सुरक्षा के उपभोग किये जा रहे हैं, जबकि इस पानी के दुष्प्रभाव को सामने आने में 5 वर्ष लगेंगे।
सूत्रों के अनुसार इस पानी में आर्सेनिक की इस उच्च मात्रा का एक कारण इसका सोने से निकटता भी हो सकता है, उल्लेखनीय है कि किराडल्ली क्षेत्र के पास ही हट्टी नामक सोने की खदान है और इसी इलाके में यूरेनियम, जो कि एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है, की उपलब्धता भी देखी गई है। खदान एवं भूविज्ञान के विशेषज्ञों का एक दल जल्दी ही किरादल्ली और आसपास के गाँवों में पानी की विस्तृत जाँच और अध्ययन के लिये जाने वाला है। किरादल्ली के टाण्डा गाँव के चार व्यक्ति एक प्रकार के दुर्लभ त्वचा कैंसर से पीड़ित हैं, जबकि दो अन्य व्यक्तियों की कैंसर से मृत्यु हो चुकी है। उच्च आर्सेनिक स्तर के पानी के लम्बे समय तक उपभोग करने से, त्वचा से सम्बन्धित बेसल सैल कैंसर तथा स्क्वेमस सेल कैंसर होने की सम्भावना काफ़ी बढ़ जाती है। अन्य चार व्यक्तियों का कैंसर का इलाज चल रहा है जिसमें से दो व्यक्तियों के पैर कैंसर को आगे बढ़ने से रोकने के लिये, काटने पड़े हैं। इलाके के चिकित्सकों ने आशंका व्यक्त की है कि 43 अन्य मरीज जिनमें कैंसर के प्राथमिक लक्षण पाये गये हैं, यदि वे इसी पानी का उपभोग करते रहे और तत्काल उन्हें कोई उचित इलाज न मिला तो उनका कैंसर भी भयानक रूप ले सकता है।
कर्नाटक के गुलबर्गा जिले स्थित सुरपुर तालुका के किराडल्ली टाण्डा गाँव में पेयजल के स्रोतों के पानी के चार नमूनों में से तीन नमूनों में आर्सेनिक की मात्रा मानक स्तर से काफ़ी ज्यादा पाई गई है। यह मानक भारतीय पेयजल मानकों के तय बिन्दुओं IS 10500 के अनुसार जाँचे गये। भूगर्भ और खान विभाग की मुख्य केमिस्ट शशि रेखा द्वारा अधिकारी द्वारा जिला परिवार कल्याण अधिकारी नलिनी नामोशी को सौंपी गई रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि टांडा के इन पेयजल नमूनों में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 mg/l पाई गई है जो कि तय मानक से अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार टाण्डा में सप्लाई किये जा रहे पानी में आर्सेनिक का स्तर तो 0.01 मिलि ग्राम प्रति लीटर है लेकिन नाईट्रेट का स्तर भी स्वीकार्य मानक से कहीं अधिक है। सरकार के मानकों के मुताबिक नाईट्रेट का स्तर 47 mg/l से अधिक नहीं होना चाहिये, लेकिन टाण्डा के पेयजल में नाईट्रेट 51 mg/l पाया गया है, जो कि पेयजल के लिहाज से ठीक नहीं है। इसी रिपोर्ट में टाण्डा के एक कुँए में आर्सेनिक का स्तर 0.27 mg/l पाया गया है, जो कि मानक स्तर 0.01 mg/l से बहुत ही ज्यादा है। इसी प्रकार इलाके के एक बोरवेल में आर्सेनिक का स्तर 0.39 mg/l पाया गया जो कि बहुत खतरनाक है, एवं पास ही स्थित एक और बोरवेल में यह स्तर 0.06 mg/l पाया गया, हालांकि यह भी खतरनाक ही माना जाना चाहिये।
इन पेयजल स्रोतों के पानी के नमूनों की जाँच से पता चला है कि पानी में मौजूद अन्य धातुओं जैसे क्लोराइड, फ़्लोराइड, सल्फ़ेट, आयरन, pH, लेड, अलुमिनियम, ज़िंक, कॉपर, मैंगनीज़ तथा कैल्शियम, का स्तर तय मानकों के मुताबिक ही है। इसी प्रकार सभी नमूनों में Total Dissolved Solids तथा Total Hardness का स्तर भी तय मानकों के भीतर ही पाया गया। समाचार पत्र 'द हिन्दू' को खान और भूगर्भ विभाग के सूत्रों से पता चला है कि टाण्डा में दिया जाने वाला पेयजल स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक है और यह पानी खाना बनाने, पीने और अन्य घरेलू उपयोगों के लिये उचित नहीं है। टाण्डा के निवासियों को तत्काल साफ़ पेयजल उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है। उनके अनुसार टाण्डा के निवासी इस दूषित पेयजल को बिना किसी अतिरिक्त सुरक्षा के उपभोग किये जा रहे हैं, जबकि इस पानी के दुष्प्रभाव को सामने आने में 5 वर्ष लगेंगे।
सूत्रों के अनुसार इस पानी में आर्सेनिक की इस उच्च मात्रा का एक कारण इसका सोने से निकटता भी हो सकता है, उल्लेखनीय है कि किराडल्ली क्षेत्र के पास ही हट्टी नामक सोने की खदान है और इसी इलाके में यूरेनियम, जो कि एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है, की उपलब्धता भी देखी गई है। खदान एवं भूविज्ञान के विशेषज्ञों का एक दल जल्दी ही किरादल्ली और आसपास के गाँवों में पानी की विस्तृत जाँच और अध्ययन के लिये जाने वाला है। किरादल्ली के टाण्डा गाँव के चार व्यक्ति एक प्रकार के दुर्लभ त्वचा कैंसर से पीड़ित हैं, जबकि दो अन्य व्यक्तियों की कैंसर से मृत्यु हो चुकी है। उच्च आर्सेनिक स्तर के पानी के लम्बे समय तक उपभोग करने से, त्वचा से सम्बन्धित बेसल सैल कैंसर तथा स्क्वेमस सेल कैंसर होने की सम्भावना काफ़ी बढ़ जाती है। अन्य चार व्यक्तियों का कैंसर का इलाज चल रहा है जिसमें से दो व्यक्तियों के पैर कैंसर को आगे बढ़ने से रोकने के लिये, काटने पड़े हैं। इलाके के चिकित्सकों ने आशंका व्यक्त की है कि 43 अन्य मरीज जिनमें कैंसर के प्राथमिक लक्षण पाये गये हैं, यदि वे इसी पानी का उपभोग करते रहे और तत्काल उन्हें कोई उचित इलाज न मिला तो उनका कैंसर भी भयानक रूप ले सकता है।
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