कीमती जमीनों पर बैठे हुए लोग

गरीबों का उजड़ता आशियानामध्य प्रदेश में एक बार फिर से झुग्गियों को हटाने का काम चल पड़ा है इनमें से ज्यादातर झुग्गी बस्तियां नालों के किनारे बसी हुई हैं जिनके लिए कहा जा रहा है कि इस तरह की सारी बस्तियां अवैध हैं और इनमें रहने वाले सारे लोग अतिक्रमणकारी।

हालांकि नगर निगम के पास इन्हें स्थिापित करने का कोई प्लान नहीं है इसलिए वह जितनी दफा अतिक्रमण हटाने जाता है उसे हर कहीं वे ही लोग सरकार और मुख्यमंत्री की पहचान वाला पट्टा लिए मिल जाते हैं जिन्हें पिछली दफा कहीं और से हटाया गया था। इससे अधिकारी कर्मचारी छिटपुट कार्यवाही कर लौट आते हैं कि अब दो-चार घरों को हटाकर रखेंगे भी कहां?

सरकार का अपना आंकड़ा कहता है कि भोपाल में 386 झुग्गी बस्तियां हैं जबकि ऑक्सफेम के सर्वे 2006 अनुसार यह संख्या 600 तक जाती है। पिछले कुछ सालों में खुद प्रशासन के बेतरतीब विस्थापन से भी कई नई झुग्गी बस्तियों का जन्म हुआ है, इसके साथ ही पुराने बस्तियों में भी परिवारों की संख्या बढ़ी है।

अगर झुग्गी बस्तियों का अलग से सेंसेक्स हो तो यहां आकर बसने वालों की रफ्तार आंकी जा सकती है। सरकार और कुछ लोगों की चिंता तो यह है कि समूचे भोपाल की प्रमुख जमीनों पर इन्हीं झुग्गी वालों का कब्जा है इसलिए शहर का विकास करना है तो इन्हें कहीं तो पहुंचाना ही होगा। यह भी एक दिक्कत ही है कि ये सब लोग कहां रखे जाएं यह भी तो तय नहीं है तो अभी किसी जगह पर और कल किसी और जगह।

शहर के प्रमुख स्थल से हटाई गई संजय नगर बस्ती और सुभाष फाटक से हटाए गए जाटखेड़ी के लोग बताते हैं कि सात-सात बार के विस्थापन से हम टूट चुके हैं आखिर सरकार कहीं एक जगह हमें बसा क्यों नहीं देती? मुसीबत तो यह कि एक जगह से दूसरी जगह पर जाते ही फिर वही बच्चों का स्कूल,राशनकार्ड और गैस के लिए स्थानीय पहचान पत्र तथा रोजगार की मुसीबत उठानी पड़ती है।

ऐसा नहीं कि सरकार ये सारा कुछ जानती समझती नहीं है उसे यह भी पता है कि इन झुग्गी वालों के बिना ये शहर चलेंगे नहीं फिर ये मतदाता भी तो हैं। म.प्र. में जेएनएनयूआरएम के तहत शहर सौंदर्यीकरण, सड़क चौड़ीकरण और लाल दौड़ती बसों के अलावा मद्रासी कॉलोनी, श्यामनगर, अर्जुन नगर जैसी बस्तियों के लोगों को घर देने की कोशिशें भी हुई हैं।

अब ऐसे ही आवासीय कॉलोनी बनाकर लोगों को बसाने का काम तेजी से जारी है। लेकिन यहां देखने लायक है कि 2-4 साल पहले ही जिन लोगों को ये घर दिए गए थे उनके घरों की हालत कैसी है? जाम नालियां, सीवेज की समस्या और कचरे के बीच किस्त भरने की एक और दिक्कत।

गरीबों का उजड़ता आशियानाभोपाल में इस तरह के मकानों को लेकर केन्द्र सरकार द्वारा कराए गए सोशल ऑडिट में ढेरों कमियां पाई गई थीं जिन पर आज तक क्या कार्यवाही हुई किसी को नहीं मालूम। ऐसे में जब इंदिरानगर बस्ती तथा मीरा नगर, सरस्वती नगर के कुछ परिवार सरकार से यह कहना चाहते हैं कि जब इन मकानों की गुणवत्ता इतनी खराब है कि ये कुछ धक्के में ही गिर सकते हैं, जहां प्लास्टर अभी से झड़ने लगे हैं। जो कि नियम के अनुसार बनाए ही नहीं गए और बेसमेंट,पार्किंग जैसे जरूरी स्पेस भी नहीं छोड़े गए जहां कि एक परिवार जिसमें छोटे बड़े सभी एक साथ रह रहे हैं वे एक कमरे में रहेंगे भी तो कैसे?

एक आरटीआई में पता चला कि 12 नंबर पर बने मकान किसी और बस्ती के लिए हैं तो लोगों ने घटिया मकानों में जाने से मना कर दिया। तब मुख्यमंत्री महोदय को भी आश्वासन देना पड़ा कि जो जहां है उसे वहीं बेहतर मकान बनाकर दिए जाएंगे। लेकिन इन सब बातों को दरकिनार कर फिर तेजी से जेएनएनयूआरएम के उन्हीं आवासों को लेकर सर्वे सूची जारी कर दी गई है तो लोगों को तय करना है कि उन्हें इन मकानों में जाना है या नहीं।

इस बार सर्वे सूची इंटरनेट पर भी नहीं डाली गई और ना ही किसी को यह बताया गया कि किसे किस ब्लाक में मकान मिलेंगे, इसके लिए कितने रुपए भरने होंगे और कोई नहीं जाना चाहे तो उसका क्या....?

सरकार द्वारा झुग्गी वालों को घर देने की इस प्रक्रिया में जहां सूचनाएं तो ढेरों तरह की है लेकिन उसमें से सही क्या है यह जानना आसान नहीं। इधर एक भ्रम यह भी है कि यदि यहां मकान न लिए तो उन्हें कहीं दूर भेज दिया तो क्या करेंगे? हालाकि अब झुग्गी वाले भी जानने कहने लगे हैं कि सरकार और कुछ लोगों की चिंता हमें बेहतर आवास देने की नहीं है बल्कि उनकी चिंता है कि हम जैसे लोग जो कि सोने की ढेर जैसी बेशकीमती जमीनों पर बैठे हुए हैं उनसे जमीनें कैसे ली जाएं।

रामकुमार विद्यार्थी
ई-8/15 भरत नगर भोपाल
मो. 9009399861
ईमेल : ramkumarvidyarthi@gmail.com

नोट- लेखक निवसीड-बचपन संस्था से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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