कीटनाशकों की वजह से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुप्रभावों के संबंध में ठोस वैज्ञानिक साक्ष्यों ने पंजाब सरकार को कैंसर के मामलों के पंजीकरण हेतु मजबूर कर दिया है। इस संबंध में पूर्व में जारी अनेक रिपोर्टों के अलावा दो ताजा रपटों ने भी राज्य में इससे मानव स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति को उजागर किया है। पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला द्वारा कराए गए एक अध्ययन में कीटनाशकों की वजह से किसानों के डी.एन.ए. पर हो रहे दुष्प्रभावों का खुलासा हुआ है। एक शासकीय अध्ययन में भी पीने के पानी में ऐसे कीटनाशक एवं धातुकण खतरनाक स्तर पर पाए गए जो कैंसर और जीन परिवर्तन के खतरे बढ़ाता है!
पंजाब के विभिन्न जिलों में किसानों/कामगारों पर कीटनाशक दुष्प्रभाव से होने वाले जेनेटिक क्षय का मूल्यांकन विषय पर अध्ययन के अंतर्गत खून की जांच करने पर 36 प्रतिशत किसानों के डी.एन.ए. पर दुष्प्रभाव पाया गया। यह दुष्प्रभाव कपास, धान एवं गेहूँ उगाने वाले में सर्वाधिक था।उनका यह भी कहना था कि कीटनाशक डी.एन.ए. के विखण्डन (फ्रेगमेन्टेशन) पर भी दुष्प्रभाव डालता है। इसकी वजह से कैंसर और क्रोमोजोम में परिवर्तन के खतरे बढ़ते हैं। 2003 और 2006 के बीच वर्ष में दो बार कृषकों के खून में नमूने इकट्ठे कर उनकी जांच की गईं इसके पहले 210 नमूने कीटनाशक छिड़काव के ठीक अगले दिन इकट्ठे किए गए। दूसरी बार जांच पहले समूह के ही 60 कृषकों पर छह माह बाद की गई ताकि डी.एन.ए. में परिवर्तन की आतृत्ति का आकलन हो पाए। प्रथम नमूनों में जहां 36 प्रतिशत में डी.एन.ए. परिवर्तन पाया गया वहीं इन चुने गए में से 15 प्रतिशत मामलों में पुनर्आकलन में विखण्डन पाया गया। इस अध्ययन में धूम्रपान, नशाखोरी और उम्र को डी.एन.ए. में क्षति के वर्तमान स्तर के लिए जिम्मेदार नहीं माना गया।
कपास उत्पादक किसान इससे सर्वाधिक प्रभावित पाए गए क्योंकि कपास के खेतों में ही सबसे ज्यादा मात्रा में कीटनाशकों का छिड़काव होता है। सतबीर कौन का कहना है कि हमारे यहां तो निषिध्द कीटनाशक भी प्रयोग में लिए जा रहे हैं। सरकार को किसानों के रसायनों से संपर्क का भी आंकलन करवाना चाहिए। शोधकर्ताओं ने इस दुष्प्रभाव के लिए जिम्मेदार किसी विशेष रसायन का नाम नहीं लिया। क्योंकि सर्वाधिक दुष्प्रभाव वाले किसी एक कीटनाशक को खोजना इसलिए बहुत मुश्किल है क्योंकि आमर्तार पर किसान कई तरह के कीटनाशकों का एक साथ प्रयोग करते हैं। फिर भी हर्बिसाइड्स और ऑर्गेनोफॉस्फेट्स उपयोग करने वालों पर सर्वाधिक दुष्प्रभाव पड़ा है।
वहीं दूसरी ओर कीटनाशक उद्योग ऑर्गेनोफॉस्फेट्स की नई पीढ़ी का सुरक्षित कीटनाशक बताता है। इस मामले में भी कीटनाशक उद्योग ने जिम्मेदारी दूसरों पर लादने का परम्परागत तरीका अपना लिया है। उनका कहना है कि कृषकों को जानकारी देने की अपनी जिम्मेदारी में सरकारी एजेन्सियां और खुदरा वितरक असफल साबित हुए हैं। पंजाब योजना आयोग के उपाध्यक्ष जे.एस. बजाज की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा सम्पन्न एक अन्य अध्ययन में उन इलाकों की पड़ताल की गई थी जहां कीटनाशकों का ज्यादा उपयोग होता है। यहां पाया गया कि इन स्थानों में कैंसर और अन्य बीमारियों के मामलें में तुलनात्मक रूप में अधिक बढ़ोत्तरी हो ही रही हे। कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग ने यहां के पेयजल को भी दूषित कर दिया है। उसमें कीटनाशक और धातुकणों की मात्रा बहुत अधिक मात्रा में पाई गई है।
रपट ने यह भी रेखांकित किया है कि पंजाब में अकाल मृत्यु की एक बड़ी वजह पेयजल है। अध्ययन में यह भी स्पष्ट हुआ कि दूषित पेयजल की वजह से कैंसर, अस्थमा, जोड़ों का दर्द, असमय बाल सफेद होना, चर्मरोग और एक हद तक मानसिक विकलांगता जैसी बीमारियों में भी बढ़ोत्तरी हुई है।
इस अध्ययन में दक्षिण पश्चिमी पंजाब के भटिंडा, फरीदकोट, मन्सा और मुक्तसर जिलों के 17 गांवों को शामिल किया गया था। यह पंजाब का मालवा क्षेत्र है जहां कपास की फसल बहुतायत में होती है जिसके फलस्वरूप कीटनाशकों का उपयोग भी अत्यधिक होता है। अध्ययन में पाया गया कि कीटनाशक भू-जल में प्रविष्ठ कर गए हैं और निवासियों ने वही पानी हैंडपम्प और नहरों के माध्ययम से पेयजल के रूप में उपयोग में लिया। इसका सबसे ज्यादा असर भटिंडा और मुक्तसर जिलो में हुआ है। पिछले दस सालों में भटिंडा के शेखपुरा, जज्जल, गियाना, मलकाना, महिनंगल गांवों में 91 लोगों की कैंसर से मृत्यु हुई है और इस साल 10 और नए कैंसर के मामले प्रकाश में आए हैं। विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र (सीएसई) द्वारा 2005 में कराए गए अध्ययन में किसानों के खून के नमूनों में कीटनाशक की अधिक मात्रा पाई गई थी। भटिंडा के झंडूके और बाल्टन गांवों में पिछले वर्ष ही कैंसर की वजह से 17 मौतें होने की पुष्टि हुई है।
कीटनाशक उद्योग अलबत्ता कीटनाशकों और बीमारियों के बीच किसी भी संबंध को खारिज करते हुए कहता है कि अध्ययन से यह कहीं भी साबित नहीं होता कि कीटनाशकों की वजह से कैंसर होता है। इन रपटों व पूर्व अध्ययनों के अनुभव से सबक लेकर राज्य सरकार ने इण्डियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ मिलकर कैंसर पंजीकरण कार्यक्रम प्रारंभ करने का निश्चिय किया है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के मुताबिक इस कार्यक्रम पोस्टग्रेजुएट इंस्टिटयूट ऑफ मेडिकल स्टडीज एण्ड रिसर्च, चंडीगढ़ को नोडल एजेंसी बनाया गया है। कार्यक्रम की शुरुआत इसी जुलाई से मुक्तसर जिले से होगी जहां कैंसर के मामले बहुतायत में सामने आए हैं। (सप्रेस/ डाऊनटूअर्थ)
लेखिका डाऊनटूअर्थ से जुड़ी हुई हैं।
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