प्रदूषण का नाम लेते ही हम वाहनों या कारखनों से निकलने वाले काले धुएँ की बात करने लगते हैं लेकिन सावधान होना जरूरी है कि घर के भीतर का प्रदूषण यानी इनडोर पॉल्यूशन बाहरी की तुलना में और भी घातक है। दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता और बंगलुरु जैसे शहरों में तो इसकी स्थिति और खराब है। यहाँ जनसंख्या घनत्व ज्यादा है, आवास बेहद सटे हुए हैं, हरियाली कम है। खासतौर पर बच्चों के मामले में तो यह और खतरनाक होता जा रहा है। ‘वह अभी बमुश्किल एक महीने का था, घर से बाहर जाने का सवाल नहीं उठता, घर भी एक पॉश कॉलोनी में है। फिर भी उसे निमोनिया हो गया।’ पढ़े-लिखे माता-पिता पहले तो डॉक्टरों की क्षमता पर ही प्रश्न चिन्ह खड़े करते रहे कि हम तो बच्चे को बहुत सहेज कर रखते हैं, हमारा घर सभी सुख-सुविधाओं से सम्पन्न है, उसे निमोनिया कैसे हो सकता है?
बड़े-बड़े नामी-गिरामी डॉक्टरों की पूरी फौज लगी बच्चे को बचाने में लेकिन माँ का मन फँसा था कि आखिर यह हुआ कैसे? घर में कोई बीड़ी-सिगरेट पीता नहीं है कि छोटे कण बच्चे की साँस तक पहुँचे। उन लोगों ने अपने यहाँ मच्छरमार कॉयल लगना कभी का बन्द कर रखा था।
कई सम्भावनाओं और सवालों के बाद पता चला कि उनके घर के पिछले हिस्से में निर्माण कार्य चल रहा था। जिस तरफ रेत-सीमेंट का काम था, वहीं उस कमरे का एयरकंडीशनर लगा था और उसका एयर फिल्टर साफ नहीं था। यह तो महज बानगी है कि हम घर से बाहर जिस तरह प्रदूषण से जूझ रहे हैं, घर के भीतर भी जाने-अनजाने में हम ऐसी जीवनशैली अपनाएँ हुए हैं जोकि ना केवल हमारे लिये, बल्कि समूचे वातावरण में प्रदूषण का कारक बने हुए हैं।
प्रदूषण का नाम लेते ही हम वाहनों या कारखनों से निकलने वाले काले धुएँ की बात करने लगते हैं लेकिन सावधान होना जरूरी है कि घर के भीतर का प्रदूषण यानी इनडोर पॉल्यूशन बाहरी की तुलना में और भी घातक है। दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता और बंगलुरु जैसे शहरों में तो इसकी स्थिति और खराब है। यहाँ जनसंख्या घनत्व ज्यादा है, आवास बेहद सटे हुए हैं, हरियाली कम है।
खासतौर पर बच्चों के मामले में तो यह और खतरनाक होता जा रहा है। पिछले साल पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट के डिपार्टमेंट ऑफ रेस्पेरेटरी मेडिसिन के डॉक्टर राजकुमार द्वारा किये गए एक शोध में दावा किया गया है कि घर के अन्दर बढ़ते प्रदूषण के कारण लगातार अस्थमा के मरीज बढ़ रहे हैं। सबसे ज्यादा बच्चे दमे की चपेट में आ रहे हैं।
घर के भीतर के प्रदूषण में राजधानी दिल्ली के हालात बहुत ही गम्भीर पाये गए। कुछ जगह तो घर के अन्दर का प्रदूषण इस खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है कि वहाँ के 14 प्रतिशत से भी अधिक बच्चे अस्थमा के रोगी बन चुके हैं। शोध के अनुसार सबसे खतरनाक स्थिति शाहदरा की पाई गई। यहाँ 394 बच्चों में से 14.2 प्रतिशत अस्थमा के शिकार पाये गए।
खराब स्थिति के मामले में दूसरे नम्बर पर शहजादाबाग रहा। यहाँ 437 में से 9.6 प्रतिशत बच्चों को अस्थमा का रोगी पाया गया। वहीं, अशोक विहार में कुल 441 बच्चे हैं, जिनमें से 7.5 प्रतिशत अस्थमा के रोगी हो गए हैं। जनकपुरी में कुल 400 बच्चे हैं, जिनमें से 8.3 प्रतिशत अस्थमा के रोगी हो गए हैं।
निजामुद्दीन में कुल 350 बच्चे हैं, जिनमें से 8.3 प्रतिशत अस्थमा के रोगी हो गए हैं। इसी तरह सीरी फोर्ट में 387 बच्चों में से 6.2 प्रतिशत अस्थमा के रोगी हो गए हैं। लेकिन जैसे- जैसे गाँव की ओर बढ़े तो, मामले घटते गए। दौलतपुरा में 325 बच्चों में से 4.6 प्रतिशत तो जगतपुरी में 370 बच्चों में से मात्र 3.2 को अस्थमा की शिकायत पाई गई।
शोध में यह चेतावनी भी सामने आई कि औद्योगिक क्षेत्र वाले घरों में तो 11.8 प्रतिशत बच्चे अस्थमा का शिकार हो चुके हैं। वहीं आवासीय क्षेत्रों के 7.5 प्रतिशत बच्चे अस्थमा के मरीज मिले। इस मामले में गाँवों की स्थिति बेहतर है। ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 3.9 प्रतिशत बच्चे इस रोग से पीड़ित मिले। सनद रहे कि छोटे बच्चे, महिलाएँ और बुजुर्ग अधिकांश समय घर पर ही बिताते हैं, अतः घर के भीतर का प्रदूषण उनके लिये ज्यादा जानलेवा है।
डॉक्टर राजकुमार ने शोध में 3104 बच्चों को शामिल किया जिनमें 60.3 प्रतिशत लड़के थे और 39.7 प्रतिशत लड़कियाँ थीं। बच्चों को अस्थमा की शिकायत तो नहीं, यह जाँचने के लिये विशेष तौर पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, अमेरिकन थोरासिक काउंसिल और द इंटरनेशनल स्टडी ऑफ अस्थमा एंड एलर्जी इन चाइल्डहुड द्वारा तैयार किये सवाल पूछे गए।
असल में हमने भौतिक सुखों के लिये जो कुछ भी सामान जोड़ा है उसमें से बहुत सा समूचे परिवेश के लिये खतरा बना है। किसी ऐसे बुजुर्ग से मिले जिनकी आयु साठ साल के आसपास हो और उनसे जानें कि उनके जवानी के दिनों में हर दिन घर से कितना कूड़ा निकलता था।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जितना कूड़ा हम एक दिन में आज घर से बाहर फेंक रहे हैं उतना वे दस दिन में भी नहीं करते थे। आज पैकिंग सामग्री, पेन से लेकर रेजर तक सब कुछ डिस्पोजबल है और जाने-अनजाने में हम इनका इस्तेमाल कर कूड़े को बढ़ाते हैं।
माईक्रोवेव जैसे बिजली उपकरण अधिक इस्तेमाल करने पर बहुत गम्भीर बीमारियों का कारक बनते हैं, वहीं नए किस्म के कारपेट, फर्नीचर, परदे सभी कुछ बारिक धूल कणों का संग्रह स्थल बन रहे हैं और यही कण इंसान की साँस की गति में व्यवधान पैदा करते हैं। सफाई, सुगंध, कीटनाशकों के इस्तेमाल भले ही तात्कालिक आनन्द देते हों, लेकिन इनका फेफड़ों पर बहुत गम्भीर असर होता है।
अपने घर को पर्यावरण मित्र बनाने के लिये कुछ सुझाव
1. आमतौर पर घरों में कई तरह के डिटर्जेंट या साबुन आ रहे हैं- मुँह धोने का, शरीर का, शैम्पू व कंडीशनर, बर्तन माँजने, कपड़े धोने, फर्श चमकाने, टायलेट साफ करने का आदि आदि। कम-से-कम 12 तरीके के ऐसे रसायन हम हर दिन घर में इस्तेमाल कर रहे हैं जो कि पानी की खपत बढ़ा रहे हैं, साथ ही निस्तार के जरिए नालों व नदियों तक जा रहे जल को दूषित कर रहे हैं। जरा प्रयास करें कि क्या हम हर दिन साबुन या सफाई वाले रसायनों में कुछ कम कर सकते हैं या उनकी मात्रा कम कर सकते हैं। एक लाख आबादी वाला कोई शहर यदि अपने डिटर्जेंट व रसायनों की मात्रा आधी कर दे तो उनके करीबी नदी व तालाब की प्रदूषण एक चौथाई रह जाएगा, साथ ही उनकी पानी की खपत तीन चौथाई हो जाएगी।
2. घर में यदि आरओ लगा है तो उसके व्यर्थ निकले पानी को नाली में ना बहने दें, उसे किसी जगह एकत्र करें व टॉयलेट या बगीचे में इस्तेमाल करें।
3. अपने घर के बाहर कच्ची जमीन पर सीमेंट पोतने से बचें। कच्ची जमीन बारिश के जल को सहेजती है, इससे आपके इलाके का भूजल स्तर स्वतः ही अच्छा बना रहेगा।
4. घर में कम-से-कम कीटनाशक का इस्तेमाल करें- ना तो पौधों में ना हीक मरों में। असल में ये कीटनाशक हानिकारक कीड़ों की क्षमता बढ़ा देते हैं, वहीं इनकी फिराक में कई ऐसे सूक्ष्म जीवाणु मर जाते हैं जो कि प्रकृति के संरक्षक होते हैं।
5. घर में पौधे जरूर लगाएँ लेकिन उनको घर के भीतर लगाने से परहेज करें। क्योंकि रात में जब घर बन्द होता है तो इन पौधों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस सेहत के लिये नुकसानदेह साबित होगा।
6. घर के भीतर की धूल साफ करने का काम नियमित रूप से करना चाहिए। यदि घर में पालतू जानवर है तो उसकी सफाई का भी ध्यान रखें। घर में मच्छर-कॉकरोच मारने के लिये जहरीले केमिकल न छिड़कें। घर के अन्दर धूम्रपान न करें।
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Post By: RuralWater