कहीं गंगा एक्शन प्लान न बन जाय नमामि गंगे

त्रिवेणी में प्रदूषित गंगा नदी
त्रिवेणी में प्रदूषित गंगा नदी


दिल्ली, हरिद्वार, ऋषिकेश, वृन्दावन, वाराणसी और इलाहाबाद जैसे धार्मिक नगरों में पूर्ण रूप से सीवेज प्रबन्धन किया जाएगा। यह तब होने जा रहा है जब ‘नमामि गंगे’ परियोजना आरम्भ हो चुकी है। हालांकि यह बात आज भी सच नहीं लग रही है। क्योंकि इससे पूर्व भी ‘गंगा एक्शन प्लान’ का हश्र लोग देख चुके हैं। जिसमें हजारों करोड़ रुपए गंगा में बहकर चल दिये।

अब यदि ‘नमामि गंगे’ परियोजना परवान चढ़ती है तो गंगा का यह आबाद क्षेत्र दुनिया के मानचित्र में ‘धार्मिक पर्यटन’ के रूप में उभरकर सामने आएगा। इससे न सिर्फ गंगाजल की पवित्रता पूर्व की भाँति बनी रहेगी बल्कि गंगा के आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाली बसासतें स्वरोजगार से भी जुड़ेंगे। ऐसी कल्पना ‘नमामि गंगे’ परियोजना में दिखाई दे रही है।

इधर यह सोचा गया कि गंगा कहाँ से मैली हो रही है, गंगा की धारा अविरल कैसे बहेगी, गंगा का पानी हर वक्त लोगों को आचमन के लिये उपलब्ध हो सके आदि। ऋषिकेश से ऊपर की तरफ गंगा का जल गन्दला होने के कगार पर है मगर अधिकांश जगह पर गंगा पवित्र और अठखेलिया करती हुई मैदान की तरफ ऊतरती हुई दिखाई दे रही है।

गंगा जब उत्तराखण्ड हिमालय से ऋषिकेश की तरफ उतरती है तो उसके बाद भी गंगा के पानी का एक-एक बूँद लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। भावना ऐसी कि एक तरफ गंगा के पानी से लोगों की आजीविका सुरक्षित है, दूसरी तरफ गंगा के पानी की पवित्रता। परन्तु पिछले 20 वर्षों से गंगा पर विभिन्न परियोजनाएँ जो बनाई जा रही हैं, गंगा किनारे जितने भी उद्योग हैं वे सीवेज प्रबन्धन तो करते नहीं उद्योगों का कचरा व गन्दगी गंगा में उड़ेल देते हैं। इससे गंगा गन्दली हो रही है, गंगा सूख रही है, गंगा अपना रास्ता बदल रही है जैसे आपदा के संकट बढ़ते ही जा रहे हैं।

अब सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि एक तरफ गंगा को अविरल बहने की बात हमारी जल संसाधन मंत्री बार-बार कह रही हैं। दूसरी तरफ राज्य और केन्द्र सरकारें गंगा पर जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिये आतुर है। यदि गंगा पर जल विद्युत परियोजनाएँ बनती हैं तो गंगा की धारा अविरल बहने की बात मात्र एक कल्पना साबित होगी। उदाहरण के तौर पर उत्तरकाशी में मनेरीभाली द्वितीय चरण की जलविद्युत परियोजना जब से सम्पन्न हुई तब से उत्तरकाशी से धरासू तक 28 किमी के क्षेत्र में गंगा की धारा एकदम लुप्त हो गई है।

इस बीच गंगा की धारा ही लुप्त नहीं हुई, जबकि इस अन्तराल में 50 से अधिक गाँवों के प्राकृतिक जलस्रोत सूख गए हैं। इसके अलावा महर गाँव के नीचे से मनेरीभाली द्वितीय चरण की इस परियोजना की सुरंग गुजरती है, सुरंग के ऊपर लगभग 100 से अधिक परिवार वाला महर गाँव है, जिनकी तब से रात की नींद और चैन उड़ चुकी है।

हालात इस कदर है कि सुरंग में बहता पानी इतना खतरनाक आवाज करता है कि मानो गाँव की तलहटी भयंकर फ्लड में बह रही हो। रात को इस पानी की और भी डरावनी आवाज सुनाई देती है। वे ग्रामीण अपनी इस विपदा को किसी और से नहीं बता सकते, क्योंकि मनेरीभाली जलविद्युत परियोजना से बिजली राष्ट्र के नाम पर बनाई जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि गंगा की धारा अविरल नहीं बहेगी तो नमामि गंगे की कोई आवश्यकता नहीं है। हाँ बजट को ठिकाने लगाने के लिये सरकार में बैठे नुमाईंदों के लिये ‘सोने की अण्डे देने वाली मुर्गी’ नमामि गंगे परियोजना सबित हो सकती है। जैसे की गंगा एक्शन प्लान में हो चुका है।

दूसरा यह भी प्रश्न खड़ा हो रहा है कि गंगा की स्वच्छता के लिये नमामि गंगे परियोजना के तहत केन्द्र सरकार ने 1900 करोड़ रुपए का बजट मंजूर कर दिया है। जिसे दिल्ली, हरिद्वार, ऋषिकेश, वृन्दावन, वाराणसी और इलाहबाद के सीवेज को दुरस्त करने के लिये खर्च किया जाएगा। इस परियोजना के तहत दिल्ली में सात और पटना में तीन सीवेज प्रबन्धन क्षमता के नए संयंत्र लगेंगे।

परियोजना के तहत इलाहाबाद के नैनी, फाफामऊ और झूंसी सीवेज क्षेत्र में सीवेज रोकने, दिशा मोड़ने और सीवेज प्रबन्धन का काम लगभग 767.59 करोड़ रुपए की लागत से किये जाएँगे। इसके अलावा इलाहाबाद में 18 नालों को गंगा और यमुना में गिरने से रोका जाएगा। ताकि 2019 में होने जा रहे अर्द्धकुम्भ के दौरान संगम पर श्रद्धालुओं के लिये स्नान करने बावत प्रदूषणमुक्त जल उपलब्ध हो सके। जबकि दिल्ली में ‘मैली से निर्मल यमुना’ के अर्न्तगत लगभग 344.81 करोड़ रुपए की लागत से नजफगढ़ क्षेत्र में सात सीवेज प्रबन्धन संयंत्रों को मंजूरी मिल चुकी है। जो संयंत्र क्रमशः ताजपुर खुर्द, जफरपुर कलां, खेरा डाबर, हसनपुर, ककरौला, कैर और टीकरी कलां में लगेंगे। बता दें कि शहर के कुल 70 फीसदी गन्दे नाले का पानी यमुना में यहीं डाला जाता है।

उल्लेखनीय यह है कि ‘नमामि गंगे’ परियोजना के काम उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड व पश्चिम बंगाल में क्रियान्वित होंगे। इस परियोजना के अर्न्तगत सर्वाधिक क्षेत्र उत्तराखण्ड का आ रहा है जो 23,372 वर्ग किमी में क्रियान्वित होगा, जो कि प्रदेश का कुल 43.7 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र को विकसित करेगा। इस योजना के अर्न्तगत उत्तराखण्ड राज्य में 21 वन प्रभागों में कार्रवाई की जा रही है। जिसमें तीन संरक्षित क्षेत्रों को सम्मिलित करने की कवायद आरम्भ की जा चुकी है।

सरकारी सूचनाओं के तहत नमामि गंगे परियोजना के अर्न्तगत 20 परियोजनाएँ हैं जो लगभग 14 अरब रुपए की लागत से बनेगी। इनमें भी 13 परियोजनाएँ अकेले उत्तराखण्ड राज्य में बनने जा रही हैं। गौरतलब यह है कि नमामि गंगे परियोजना का भी अधिकांश हिस्सा उत्तराखण्ड में खर्च होगा। परन्तु राज्य में अब तक कोई व्यवस्थित रोडमैप तैयार नहीं किया गया है।

यहाँ इस बात की तस्दीक दी जा रही है कि गंगा पर जल विद्युत परियोजनाएँ भी बनेंगी, गंगा सुरंगो में कैद होंगी, गंगा के ही किनारे सीवेज प्रबन्धन संयंत्र लगेंगे, गंगा के किनारे शहर भी विकसित होंगे और बड़े-छोटे होटल बनेंगे वगैरह काम भी होंगे और साथ-साथ गंगा को निर्मल स्वच्छ भी रखना होगा। क्या इस तरह से राष्ट्रीय गंगा स्वच्छ मिशन पूरा होगा जो मौजूदा समय में कौतुहल का विषय बना हुआ है।
 

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