सुंदरवन में जलवायु परिवर्तन का असर - भाग 4
मौसनी व घोड़ामारा आइलैंड (सुंदरवन): सुंदरवन के जिन टापुओं पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है, वहां दक्षिण भारत का बेहद छोटा सूबा लोगों की जुबान पर चढ़ा रहता है। संयोग से यह सूबा भी सुंदरवन के टापुओं की तरह समुद्र से सटा हुआ है और इस सूबे का आधा हिस्सा समुद्र की तरफ खुलता है। इस सूबे को खुदा का अपना मुल्क भी कहा जाता है। ये सूबा है 3886 वर्ग किलोमीटर में फैला केरल। सुंदरवन से केरल की दूरी करीब 1846 किलोमीटर है, जहां पहुंचने के लिए तीन रातें और तीन दिन सफर में गुजारना पड़ता है। मगर फिर भी केरल, सुंदरवन के लोगों के दिल के करीब है। दरअसल, बेहतर कमाई के लिए केरल से भारी संख्या में लोग खाड़ी देशों में जाते हैं, जिस कारण केरल में घरेलू कामकाज से लेकर अन्य कामों के लिए कामगारों की जरूरत पड़ती है और इस जरूरत को पूरा करते हैं सुंदरवन के उन टापुओं के लोग, जिनका रोजी-रोजगार और खेत जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ गये हैं। मैंने सुंदरवन में जलवायु परिवर्तन के असर को जानने के लिए कुछ द्वीपों का दौरा किया, तो कमोबेश सभी द्वीपों के लोगों ने बताया कि उनके यहां सबसे ज्यादा लोग केरल में काम करते हैं। इसके पीछे मुख्य वजह ये होती है कि वहां आसानी से काम मिल जाता है और दूसरा ये कि दैनिक मजदूरी की रकम अन्य राज्यों के बनिस्बत ज्यादा है।
इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेश की किताब इंटरनेशनल माइग्रेशन में सेंटर ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज द्वारा केरला माइग्रेशन सर्वे नाम से किये गये सर्वेक्षण के हवाले से बताया गया है कि 1998 में केरल से 14 लाख लोग विदेशों में गये थे। वर्ष 2013 में उनकी तादाद बढ़कर 24 लाख हो गई। हाल के वर्षों में हालांकि केरल से खाड़ी देशों में जाने का क्रेज बढ़ा है। केरल के लोग अब संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कतर, बहरीन, ओमान और कुवैत जाना पसंद करते हैं। केरल सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल विदेशों में केरल की जितनी आबादी रहती है, उसका 89.2 प्रतिशत हिस्सा केवल खाड़ी देशों में है। अकेले संयुक्त अरब अमीरात में 39.1 प्रतिशत लोग, सऊदी अरब में 23 प्रतिशत लोग रहते हैं।
तेजी से पानी में समा रहे घोड़ामारा आइलैंड की आबादी करीब 4800 है। इनमें से कम से कम 500 लोग केरल में रहते हैं। घोड़ामारा में खेती लायक जमीनें नदी के कटाव के चलते खत्म हो गई हैं। चूंकि ये पानी के बीच स्थित है और ज्वार-भाटा के कारण द्वीप से मेनलैंड और मेनलैंड से द्वीप पर जाने के लिए दिनभर में तीन-चार मौके ही आते हैं, इसलिए वे आसपास कोई नौकरी भी नहीं कर सकते और कुछ काम मिल भी जाए, तो उसके एवज में मेहनताना कम मिलता है। इन्हीं कारणों से लोग केरल का रुख करते हैं। घोड़ामारा आइलैंड के रहनेवाले 45 वर्षीय शमशुल साहा पांच महीने केरल में रहकर लौटे हैं। वह कहते हैं, ‘यहां के कम से कम 500 लोग केरल में नौकरी करने जाते हैं। वहां अच्छी मजदूरी मिल जाती है। वहां कंस्ट्रक्शन का काम ज्यादा होता है और समय से पैसा भी मिल जाता है। यहां मेरे पास जो खेत था, वो पानी में चला गया और यहां रोजगार का कोई साधन भी नहीं है।’ शमशुल साहा के पास अपनी जमीन नहीं है। घर लायक जमीन थी, जिस पर घर भी थे, लेकिन नदी की गोद में समा जाने के बाद वे बेघर हो गए, तो सरकार ने घर बनाने के लायक जमीन दे दी। फिलहाल वह घोड़ामारा के बाजार के करीब रहते हैं। घर तो ईंट-बालू से ही बना हुआ है, लेकिन उसका रंगरोगन नहीं हुआ है। घर के सामने ही कई जाल सूखने के लिए धूप में डाले गए थे। वह आगे कहते हैं, ‘यहां घोड़ामारा में अगर खेत में काम करेंगे, तो 200 से 250 रुपए दिहाड़ी मिलेगा और काम भी 10-15 दिनों का ही होगा, इसलिए हमलोग केरल जाना पसंद करते हैं।’ शमशुल साहा बारिश के सीजन में यहां रह कर मछलियां पकड़ेंगे और कुछ महीने बाद फिर केरल चले जाएंगे।
पलायन की समस्या के समाधान के लिए घोड़ामारा में मनरेगा के तहत काम कराया जा रहा है, लेकिन वो 100 दिनों का ही होता है और पैसे का भुगतान भी समय से नहीं किया जाता है। घोड़ामारा में 946 लोगों को जॉब कार्ड मिला हुआ है। घोड़ामारा के प्रधान संजीव सागर यह स्वीकार करते हैं कि लोगों को मनरेगा का पैसा देर से मिलता है, लेकिन वे इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेवार मानते हैं। उन्होंने कहा, केंद्र सरकार फंड ही देर से रिलीज करती है, इसलिए लोगों को देर से पैसा मिलता है। गौरतलब है कि केरल से पश्चिमी व खाड़ी देशों में पलायन का इतिहास बहुत पुराना है। बताया जाता है कि 30 के दशक में आई भीषण आर्थिक मंदी के बाद केरल से विदेशों में पलायन का सिलसिला शुरू हुआ था। वर्ष 2009 तक केरल भारत का इकलौता राज्य था जहां से सबसे ज्यादा पलायन होता था। शुरुआती दशकों में केरल के लोग मलेशिया, सिंगापुर जैसे देशों में जाते थे। इसके बाद वे अफ्रीकी देशों की तरफ और फिर अमरीकी और यूरोपीय मुल्क उनकी पसंदीदा जगह बन गई।
इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेश की किताब इंटरनेशनल माइग्रेशन में सेंटर ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज द्वारा केरला माइग्रेशन सर्वे नाम से किये गये सर्वेक्षण के हवाले से बताया गया है कि 1998 में केरल से 14 लाख लोग विदेशों में गये थे। वर्ष 2013 में उनकी तादाद बढ़कर 24 लाख हो गई। हाल के वर्षों में हालांकि केरल से खाड़ी देशों में जाने का क्रेज बढ़ा है। केरल के लोग अब संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कतर, बहरीन, ओमान और कुवैत जाना पसंद करते हैं। केरल सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल विदेशों में केरल की जितनी आबादी रहती है, उसका 89.2 प्रतिशत हिस्सा केवल खाड़ी देशों में है। अकेले संयुक्त अरब अमीरात में 39.1 प्रतिशत लोग, सऊदी अरब में 23 प्रतिशत लोग रहते हैं। जानकार बताते हैं कि केरल का जो वर्क फोर्स है, वो खाडी देशों में चला गया है, इससे वहां रोजगार के अवसर बढ़े हैं और चूंकि सुंदरवन के लोग पहले से यहां रह रहे हैं, इसलिए उनके साथ दूसरे लोग भी वहां जा रहे हैं। दिलचस्प ये भी है कि सुंदरवन के कई लोग केरल में लेबर कॉन्ट्रैक्टर हैं, जो सुंदरवन से युवकों को रोजगार दिलाने के लिए ले जाते हैं। बलियारा आइलैंड के एक लेबर कॉन्ट्रैक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि केरल में अनस्किल्ड लेबरों की डिमांड ज्यादा है। सुंदरवन में युवकों की पढ़ाई-लिखाई ज्यादा नहीं होती है और उनके पास कोई हुनर भी नहीं होता है, इसलिए उन्हें कंस्ट्रक्शन साइट्स से लेकर घरेलू कामों में खपा दिया जाता है। उन्होंने आगे बताया कि उन्हें नौकरी दिलवाने के एवज में कुछ रकम वह ले लेते हैं। उक्त लेबर कॉन्ट्रैक्टर ने बताया कि सुंदरवन में कई लेबर कॉन्ट्रैक्टर सक्रिय हैं।
बलियारा गांव के बुजुर्ग जलालुद्दीन शाह कहते हैं, ‘पश्चिम की तरफ जहां नदी का कटाव ज्यादा है। उस तरफ 90 फीसदी घरों के युवक केरल में नौकरी कर रहे हैं। केरल उन्हें इसलिए भी पसंद है क्योंकि वहां से इनके खाड़ी देश जाने की भी संभावना बढ़ जाती है। बलियारा के कुछ लोग तो केरल के रास्ते खाड़ी देश चले भी गए हैं।’ इस संबंध में जब सुंदरवन विकास विभाग के मंत्री मंटूराम पाखिरा से बात की गई, तो उन्होंने आइलैंड्स में रहनेवाले लोगों की मुश्किलों को स्वीकार करते हुए कहा, ‘मेरे विभाग की तरफ से युवकों को विभिन्न प्रकार का प्रशिक्षण देकर उन्हें यंत्र-औजार भी मुहैया कराया जा रहा है, ताकि वे स्वरोजगार कर सकें। इसके अलावा कई कंपनियों के साथ हमने अनुबंध कर युवकों को ट्रेनिंग दी है, जो अभी अच्छी जगहों पर नौकरी कर रहे हैं।’ हालांकि उनका दावा आधा सच ही है। इन दोनों आइलैंड्स के ज्यादातर युवकों का कहना है कि ऐसी किसी ट्रेनिंग की जानकारी उन्हें नहीं है। सुंदरवन में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर लंबे समय तक शोध करनेवाले अनुराग डांडा भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि सुंदरवन के लोगों में केरल जाने में ज्यादा दिलचस्पी है। वह शोध को लेकर सुंदरवन के कई आइलैंड में घूम चुके हैं। अनुराग डांडा कहते हैं, ‘हमने भी देखा कि विभिन्न आइलैंड्स के ज्यादातर लोग केरल में रहते हैं। इसकी मुख्य रूप से दो वजहें हैं। एक तो वहां अनस्किल्ड लेबरों की कमी है और दूसरा वहां दिहाड़ी ज्यादा मिलती है। सुंदरवन इलाके में रोजगार का कोई साधन नहीं है और यहां के लोगों के पास कोई स्किल भी नहीं है, इसलिए केरल ही इनके लिए मुफीद जगह होती है।’ अजब विडम्बना है कि एक सूबे से लोग बेहतरी के लिए पलायन कर रहे हैं और यही पलायन सैकड़ों किलोमीटर दूर न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्षरत लोगों के लिए रोजगार का अवसर बन रहा है।
(लेखक नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया के फेलो हैं और ये स्टोरी एनएफआई फेलोशिप के तहत प्रकाशित की गई है)
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