केरल देश का तीसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या घनत्व (859 प्रतिवर्ग किलोमीटर) वाला राज्य है। बाढ़ से यहाँ की 57 लाख से ज्यादा की आबादी प्रभावित हुई है। ऐसे में महामारी के खतरों से लोगों को बचाना और जन-जीवन को फिर से पटरी पर लाना राज्य सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती है।
इतना ही नहीं, राज्य को इस आपदा से भारी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा है। पर्यटन, रबर, चाय, मसालों की खेती, आदि जो आय के मुख्य साधन हैं पूरी तरह तबाह हो चुके हैं। इन्हें भी सुव्यवस्थित करना सरकार के लिये एक बड़ा टास्क है। पेश है बाढ़ से उत्पन्न हुए खतरों और चुनौतियों का विस्तृत विवरण।
मलेरिया और डायरिया का प्रकोप बन सकता है सिरदर्द
हालांकि, बाढ़ के कारण बीमारियों की फैलाव का पता कुछ दिनों बाद चलेगा लेकिन केरल की स्वास्थ्य मंत्री के के शैलजा का कहना है कि सरकार स्वास्थ्य सम्बन्धी हर खतरे से निपटने में पूरी तरह सक्षम है।
मलेरिया और डायरिया का प्रकोप सरकार के लिये एक बड़ा सिरदर्द बन सकता है। इसकी वजह है, ये बीमारियाँ प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था से लगभग अलग हो गई हैं। केरल को मलेरिया से मुक्त घोषित किया जा चुका है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अफसरों का कहना है कि प्रदूषित पानी का सेवन और जल जमाव से पनपे मच्छर इन बीमारियों के फैलने का कारण बन सकते हैं।
इनका भी है खतरा
स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के अनुसार बाढ़ के बाद अमूमन प्रदूषित पानी और मच्छर से पनपने वाले रोगों के अतिरिक्त रोगाणुजनित रोग (Vector Borne Diseases), हवा के माध्यम से पनपने वाले रोग (Air Borne Diseases) से भी लोगों के प्रभावित होने का खतरा रहता है। इनके अलावा साँपों का काटना (Snake Bite), बिजली के झटके (Electrocution), शरीर के किसी हिस्से के चोटिल होने से पैदा हुए जख्म से सम्बन्धित मामले भी बड़ी संख्या में आते हैं। लेप्टोस्पायरोसिस (Leptospirosis) नामक बीमारी के फैलने का भी खतरा बढ़ गया है। यह बीमारी पशुओं के पेशाब से पैदा हुए बैक्टीरिया, लेप्टोस्पिरा (Leptospira) के सम्पर्क में आने से होती है। इस बीमारी से प्रभावित व्यक्ति को तेज बुखार, खून की उल्टी, जोड़ों में दर्द, शरीर का पीला होना आदि की समस्या होती है। बीमारी के ज्यादा बढ़ जाने से किडनी फेल होने तक की भी सम्भावना रहती है।
क्या है तैयारी
स्वास्थ्य विभाग के पास पर्याप्त मात्रा में दवाओं का स्टॉक है। सभी प्रकार की बीमारियों से निपटने के लिये कुल 90 प्रकार की दवाओं का तीन महीने का स्टॉक विभाग के पास उपलब्ध है। सभी रिलीफ कैम्प में मेडिकल चेकअप कैम्प चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा इमरजेंसी से निपटने के लिये मेडिकल वैन की पर्याप्त संख्या में व्यवस्था की गई है।
डॉक्टर्स को बाढ़ से प्रभावित बच्चों और महिलाओं को पहुँचे मानसिक आघात से भी निपटने के निर्देश जारी किये गए हैं। इसके अतिरिक्त हर व्यक्ति को क्लोरीन की 20 गोलियों के अतिरिक्त आधा किलोग्राम ब्लीचिंग पाउडर उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था की जा रही है। लोगों को बिना उबाले पानी नहीं पीने की सलाह भी दी जा रही है। राज्य के कर्मचारियों को इतनी बड़ी आपदा से निपटने का कोई अनुभव नहीं होने के कारण 2013 में उत्तराखण्ड में आई आपदा के दौरान अपनाए गए तरीकों से भी सीख ली जा रही है। इसके लिये राज्य सरकार ने सभी विभागों के ऑफिसर्स को विशेष प्रशिक्षण भी दिलवाया है।
साफ-सफाई है बड़ी जिम्मेवारी
प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में स्थित इलाकों में पशुओं, मछलियों आदि के अवशेष के अतिरिक्त घरों में जमे गाद और मिट्टी को साफ करने में काफी दिक्कत आ रही है। लोगों के अपने घरों में न लौटने के कारण सफाई कार्य में लगी सरकारी एजेंसियाँ पशुओं आदि के अवशेष को नदियों में बहा रही हैं। ऐसा करने की सबसे बड़ी वजह है कि उन क्षेत्रों में किसी डम्पिंग यार्ड की व्यवस्था का न होना। वायनाड में यह समस्या काफी बड़े स्तर पर देखने को मिल रही है। परावूर, एर्नाकुलम के लोग भी इस समस्या से परेशान हैं।
हालांकि सरकारी कर्मचारियों के अलावा काफी बड़े स्तर पर स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़े लोग इस कार्य में लगे हैं। सफाई के कार्य में जुड़े लोगों के लिये कचरा प्रबन्धन के लिये डम्पिंग यार्ड की व्यवस्था करना भी एक बड़ी चुनौती है। ई-कचरे का प्रबन्धन भी एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। उत्तर परावूर, अलुवा, रन्नी आदि शहरों में हजारों टन ई-कचरा सड़कों पर बिखरा पड़ा है।
पर्यटन को भारी क्षति
केरल अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिये विख्यात है। पर्यटन से जुड़े व्यवसाय यहाँ के लोगों की आय का एक मुख्य स्रोत हैं। राज्य के कुल जीडीपी का 11 प्रतिशत भाग पर्यटन से आता है। लेकिन, पहले निपह (Nipah) और अब बाढ़ की मार से राज्य के पर्यटन उद्योग को भारी नुकसान पहुँचा है। निपह के कारण पर्यटन उद्योग में 17 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई थी।
एर्नाकुलम और कोच्चि, बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में से हैं। ये दोनों जिले यहाँ आने वाले पर्यटकों के 52 प्रतिशत हिस्से को आकर्षित करते हैं। इडुक्की जिले में स्थित मन्नार शहर के आस-पास के इलाकों में उगने वाला नीलकुरिंजी (Neelakurinji) फूल पर्यटकों के लिये आकर्षण का केन्द्र होता है। इस फूल की विशेषता है कि यह बारह साल के अन्तराल पर अगस्त से अक्टूबर के महीने में खिलता है। इस साल नीलकुरिंजी के खिलने का समय था।
प्रदेश की सरकार भी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये नीलकुरिंजी के खिलने को खूब प्रचारित कर रही थी। इन फूलों से सजे पर्वतीय क्षेत्र को देखने के लिये अगस्त से अक्टूबर तक मन्नार में करीब आठ लाख पर्यटक आने वाले थे। इसके लिये पर्यटन विभाग ने पूरी तैयारी भी कर ली थी लेकिन बाढ़ ने सब खत्म कर दिया। पर्यटन विभाग के अनुसार राज्य में अक्टूबर तक के सारे बुकिंग पर्यटकों ने रद्द करा दिये हैं। विभाग के अफसरों की मानें तो पर्यटन उद्योग को इस आपदा से उबरने में छह माह तक का समय लग सकता है।
आर्थिक क्षति की भरपाई है मुश्किल
राज्य के वित्तमंत्री थॉमस इसाक के अनुसार बाढ़ से 30,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ है। मीडिया से बात करते हुए उन्होंने यह बताया कि यह महज एक प्रारम्भिक अनुमान है कुल नुकसान का पता लगाने में अभी वक्त लगेगा जो इससे ज्यादा भी हो सकता है। पर्यटन के अलावा राज्य की आय के मुख्य स्रोत रबर, मसालों और चाय के बागानों को भी बड़ा नुकसान पहुँचा है।
रबर और मसालों के उत्पादन में केरल देश में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। राज्य की आधारभूत संरचना को भी काफी क्षति पहुँची है। दस हजार किलोमीटर से ज्यादा रोड जिसमें नेशनल हाईवे भी शामिल हैं बाढ़ में बह गए हैं। प्रारम्भिक अनुमान के मुताबिक लगभग 10,0000 घर जमींदोज हो गए हैं। उन्हें फिर से बनाने की जरूरत पड़ेगी। राज्य के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने बाढ़ प्रभावित लोगों को 10,000-10,000 रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान करने की घोषणा की है।
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