धीरे-धीरे ही सही सरकार जैविक खेती की ओर कदम बढ़ा रही है। ऐसी खेती जिसमें लागत कम हो और पर्यावरण के अनुकूल भी। उत्पादों के जैविक होने के नाते अच्छे दाम मिलने से किसानों की आय भी बढ़ेगी जल, जमीन और लोगों की सेहत अलग से सलामत रहेगी। खामोशी से होने वाली इस जैविक क्रान्ति का जरिया बनेगा ‘केंचुआ’।
इसके लिये सरकार सभी 97814 राजस्व गाँवों में वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) की एक इकाई खोलेगी। अगले पाँच साल तक हर साल यह क्रम दोहराया जायेगा। इस तरह पाँच साल में वर्मी कम्पोस्ट की करीब पाँच लाख इकाइयाँ खुलेंगी। एक इकाई की अनुमानित लागत 8000 रुपये पर सरकार 6000 अनुदान देगी। अधिक उपज के लिये रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का बिना सोचे-समझे बेतहाशा प्रयोग किया गया है। इनके जहर का असर जल, जमीन और भोजन पर भी पड़ा है। जल, जमीन और भोजन की शुद्धता और लोगों के स्वास्थ्य के लिये जैविक खेती और जैविक उत्पाद समय की माँग है। केन्द्र के साथ प्रदेश सरकार का भी इस पर खासा जोर है। हर गाँव में वर्मी कम्पोस्ट इकाई की स्थापना का लक्ष्य इसका सुबूत है।
संयुक्त कृषि निदेशक डॉ. आनन्द त्रिपाठी के मुताबिक फसलों के विकास के लिये 17 पोषक तत्वों की जरूरत होती है। पौधों को इनकी उपलब्धता भूमि में मौजूद कार्बनिक तत्वों पर निर्भर करती है। वर्मी कम्पोस्ट में प्रचुर मात्रा में कार्बनिक तत्व मिलते हैं। इसमें अन्य जैविक खादों की तुलना में पाँच गुना नाइट्रोजन, आठ गुना फास्फोरस, 11 गुना पोटाश, तीन गुना कैल्शियम और दोगुना मैग्नीशियम होता है। इसके अलावा इसमें कॉपर, लोहा, जिंक और सल्फर भी मिलता है। लगातार प्रयोग से भूमि की भौतिक एवं रासायनिक संरचना सुधरने से खेत में डाले जाने वाले उर्वरक और पोषक तत्व पौधों को आसानी से प्राप्त होने से उपज बढ़ जाती है।
कुटीर उद्योग के रूप में भारी सम्भावना
जैविक उत्पादों की बढ़ती माँग के नाते लोगों की जैविक खेती की ओर रुझान और जैविक खाद की माँग बढ़ी है। इसके मद्देनजर वर्मीकम्पोस्ट की कुटीर उद्योग के रूप में भारी सम्भावना है। गड्ढे में गोबर की भराई, तापमान और नमी के नियंत्रण के लिये नियमित अन्तराल पर पानी के छिड़काव, तैयार खाद को छानने, पैकिंग और परिवहन के लिये लोगों की जरूरत होती है। इससे गाँव के स्तर पर रोजगार बढ़ेगा। गोबर और अन्य अपशिष्ट पदार्थों का खाद बनाने में प्रयोग होने से पर्यावरण भी शुद्ध होगा।
बेमिसाल होती है केंचुए की उत्पादन क्षमता
केंचुए की उत्पादन क्षमता भी बेजोड़ होती है। वह जो खाता है उसका पाँच से 10 फीसद छोड़कर बाकी कास्ट (मल) के रूप में निकाल देता है। यही कास्ट वर्मीकम्पोस्ट होता है। इसे बनाने की प्रक्रिया भी बेहद आसान है। इसे छप्पर टिन या एस्बेस्टस के शेड में भी बनाया जा सकता है। अब तो ‘इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के वैज्ञानिकों ने अधिक तापमान सहन करने वाली ‘जयगोपाल’ नामक ऐसी देशज प्रजातियाँ विकसित की हैं जिनसे वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिये पेड़ों की छाँव ही काफी होती है।
वर्मी कम्पोस्ट में प्राप्त पोषक तत्व फीसद में | |
जैविक कार्बन | 9.15-17.78 |
नाइट्रोजन | 2-2.8 |
फास्फोरस | 1.2-2.5 |
पोटैशियम | 0.15-0.60 |
सोडियम | 0.6-0.30 |
कैल्शियम | 22.67-70 |
मैग्नीशियम | 22.67-70 |
Path Alias
/articles/kaencaue-sae-aegai-jaaivaika-khaetai-maen-karaanatai
Post By: Hindi