(1992 का अधिनियम संख्यांक 40)
{26 दिसम्बर, 1992}
पूर्वोत्तर क्षेत्र में कृषि के विकास के लिये एक विश्वविद्यालय की स्थापना और उसके निगमन का तथा उस क्षेत्र में कृषि और सहबद्ध विज्ञान सम्बन्धी विद्या की अभिवृद्धि को अग्रसर करने और अनुसन्धान कार्य करने का उपबन्ध करने के लिये अधिनियम
भारत गणराज्य के तैंतालीसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-
1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ
(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 1992 है।
(2) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।
2. परिभाषाएँ
इस अधिनियम में और इसके अधीन बनाए गए सभी परिनियमों में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) “विद्या परिषद” से विश्वविद्यालय की विद्या परिषद अभिप्रेत है;
(ख) “शैक्षिणक कर्मचारीवृंद” से ऐसे प्रवर्ग के कर्मचारीवृंद अभिप्रेत हैं, जो अध्यादेशों द्वारा शैक्षिणक कर्मचारीवृंद अभिहित किये जाएँ;
(ग) “कृषि” से अभिप्रेत है मृदा और जल प्रबन्ध सम्बन्धी बुनियादी और अनुपर्युक्त विज्ञान, फसल उत्पादन, जिसके अन्तर्गत सभी उद्यान फसलों का उत्पादन, पौधों, नाशकजीवों और रोगों का नियंत्रण है, उद्यान-कृषि, जिसके अन्तर्गत पुष्प विज्ञान भी है, पशुपालन, जिसके अन्तर्गत पशु चिकित्सा और दुग्ध विज्ञान है, मत्स्य विज्ञान, वन विज्ञान, जिसके अन्तर्गत फार्म वन विज्ञान है, गृह विज्ञान, कृषि इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी, कृषि तथा पशुपालन उत्पादों का विपणन और प्रसंस्करण, भू-उपयोग और प्रबन्ध;
(घ) “बोर्ड से विश्वविद्यालय का प्रबन्ध बोर्ड अभिप्रेत है;
(ङ) “अध्ययन बोर्ड से विश्वविद्यालय का अध्ययन बोर्ड अभिप्रेत है;
(च) “कुलाधिपति” से विश्वविद्यालय का कुलाधिपति अभिप्रेत है;
(छ) “महाविद्यालय” से विश्वविद्यालय का घटक महाविद्यालय अभिप्रेत है चाहे वह मुख्यालय, कैम्पस में या अन्यत्र अवस्थित हो;
(ज) “विभाग” से विश्वविद्यालय का अध्ययन विभाग अभिप्रेत है;
(झ) “कर्मचारी” से विश्वविद्यालय द्वारा नियुक्त कोई व्यक्ति अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत विश्वविद्यालय के शिक्षक और अन्य कर्मचारीवृंद हैं;
(ञ) “विस्तार शिक्षा” से कृषि, उद्यान-कृषि, मत्स्य उद्योग और उससे सम्बन्धित समुन्नत पद्धतियों तथा कृषि और कृषि उत्पादन से, जिसके अन्तर्गत फसलोत्तर प्रौद्योगिकी और विपणन हैं, सम्बन्धित वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्रमों में लगे फलोद्यानियों, कृषकों और अन्य समूहों के प्रशिक्षण से सम्बन्धित शैक्षिणक क्रियाकलाप अभिप्रेत हैं;
(ट) “संकाय” से विश्वविद्यालय का संकाय अभिप्रेत है;
(ठ) “पूर्वोत्तर क्षेत्र” से भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र जिसमें अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम और त्रिपुरा राज्य समाविष्ट हैं, अभिप्रेत है;
(ड) “अध्यादेश” से विश्वविद्यालय का अध्यादेश अभिप्रेत है;
(ढ) “विनियम” से विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण द्वारा बनाए गए विनियम अभिप्रेत हैं;
(ण) “अनुसन्धान सलाहकार समिति” से विश्वविद्यालय की अनुसन्धान सलाहकार समिति अभिप्रेत है;
(त) “परिनियम” से विश्वविद्यालय के परिनियम अभिप्रेत हैं;
(थ) “छात्र” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे विश्वविद्यालय में कोई उपाधि, डिप्लोमा या सम्यक रूप से संस्थित अन्य विद्या सम्बन्धी विशिष्ट उपाधि अभिप्राप्त करने के लिये पाठ्यक्रमानुसार अध्ययन करने के लिये प्रविष्ट किया गया है;
(द) “शिक्षक” से आचार्य, सह-आचार्य, सहायक आचार्य, अध्यापन संकाय के सदस्य और उनके समतुल्य सदस्य अभिप्रेत हैं जो विश्वविद्यालय, महाविद्यालय या विश्वविद्यालय द्वारा चलाई जा रही किसी संस्था में शिक्षण देने या अनुसन्धान या विस्तारी शिक्षा कार्यक्रम या इनके समुच्चय का संचालन करने के लिये नियुक्त किये गए हैं और जिन्हें अध्यादेशों द्वारा शिक्षक के रूप में अभिहित किया गया है;
(ध) “विश्वविद्यालय” से इस अधिनियम के अधीन स्थापित केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय अभिप्रेत है;
(न) “कुलपति” से विश्वविद्यालय का कुलपति अभिप्रेत है;
(प) “कुलाध्यक्ष” से विश्वविद्यालय का कुलाध्यक्ष अभिप्रेत है।
3. विश्वविद्यालय
(1) “केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय” के नाम से एक विश्वविद्यालय स्थापित किया जाएगा।
(2) विश्वविद्यालय का मुख्यालय मणिपुर राज्य में इम्फाल में होगा और वह अपनी अधिकारिता के भीतर ऐसे अन्य स्थानों पर भी, जो वह ठीक समझे, कैम्पस स्थापित कर सकेगा।
(3) प्रथम कुलाधिपति और प्रथम कुलपति तथा बोर्ड और विद्या परिषद के प्रथम सदस्य तथा वे सभी व्यक्ति जो आगे चलकर ऐसे अधिकारी या सदस्य बने, जब तक वे ऐसे पद पर बने रहते हैं या उनकी सदस्यता बनी रहती है इसके द्वारा केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के नाम से निगमित निकाय के रूप में गठित किये जाते हैं।
(4) विश्वविद्यालय का शाश्वत उत्तराधिकार होगा और उसकी सामान्य मुद्रा होगी तथा उक्त नाम से वह वाद लाएगा और उस पर वाद लाया जाएगा।
4. विश्वविद्यालय के उद्देश्य
विश्वविद्यालय के निम्नलिखित उद्देश्य होंगे, अर्थात: -
(क) कृषि और सहबद्ध विज्ञान सम्बन्धी विभिन्न शाखाओं में ऐसी शिक्षा देना जो वह ठीक समझे;
(ख) कृषि और सहबद्ध विज्ञान में विद्या की अभिवृद्धि करना और अनुसन्धान को अग्रसर करना;
(ग) अपनी अधिकारिता के अधीन राज्यों में विस्तार शिक्षा के कार्यक्रम चलाना; और
(घ) ऐसे अन्य क्रियाकलाप करना जो वह समय-समय पर अवधारित करे।
5. विश्वविद्यालय की शक्तियाँ
विश्वविद्यालय की निम्नलिखित शक्तियाँ होंगी, अर्थात-
(i) कृषि और सहबद्ध विज्ञानों में शिक्षण के लिये व्यवस्था करना;
(ii) कृषि और विद्या की सहबद्ध शाखाओं में अनुसन्धान करने के लिये व्यवस्था करना;
(iii) विस्तार कार्यक्रमों के माध्यम से अनुसन्धान और तकनीकी जानकारी सम्बन्धी निष्कर्षों के प्रसार के लिये व्यवस्था करना;
(iv) ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो वह अवधारित करे, व्यक्तियों को डिप्लोमा या प्रमाणपत्र प्रदान करना और परीक्षा, मूल्यांकन या परीक्षण की किसी अन्य रीति के आधार पर उन्हें उपाधियाँ या अन्य विद्या सम्बन्धी विशिष्ट उपाधियाँ प्रदान करना और उचित तथा पर्याप्त कारण होने पर किसी ऐसे डिप्लोमा, प्रमाणपत्र, उपाधियों या अन्य विद्या सम्बन्धी विशिष्ट उपाधियों को वापस लेना;
(v) परिनियमों द्वारा विहित रीति में मानद उपाधियाँ या अन्य विशिष्ट उपाधियाँ प्रदान करना;
(vi) फील्ड कार्यकर्ताओं, ग्राम नेताओं और ऐसे अन्य व्यक्तियों के लिये, जिन्हें विश्वविद्यालय के नियिमत छात्र के रूप में प्रविष्ट नहीं किया गया है व्याख्यान और शिक्षण की व्यवस्था करना तथा उन्हें ऐसे प्रमाणपत्र प्रदान करना जो परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँ;
(vii) किसी अन्य विश्वविद्यालय या प्राधिकरण या उच्चतर विद्या की संस्था के साथ ऐसी रीति से और ऐसे प्रयोजनों के लिये जो विश्वविद्यालय अवधारित करे, सहकार करना या सहयोग देना या सहयुक्त होना;
(viii) कृषि, मत्स्य-विज्ञान, दुग्ध विज्ञान, पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान, गृह विज्ञान, कृषि इंजीनियरी, वन विज्ञान और सहबद्ध विज्ञान से सम्बन्धित महाविद्यालयों की स्थापना करना और उन्हें चलाना;
(ix) ऐसे कैम्पस, विशेष केन्द्र, विशेषित प्रयोगशाला, पुस्तकालय, संग्रहालय या अनुसन्धान और शिक्षण के लिये ऐसी अन्य इकाइयाँ स्थापित करना और उन्हें चलाना, जो उसकी राय में, उसके उद्देश्यों को अग्रसर करने के लिये आवश्यक है;
(x) अध्यापन, अनुसन्धान और विस्तार शिक्षा के पदों का सृजन करना और उन पर नियुक्तियाँ करना;
(xi) प्रशासनिक, अनुसचिवीय और अन्य पदों का सृजन करना और उन पर नियुक्तियाँ करना;
(xii) अध्येतावृत्ति, छात्रवृत्ति, अध्ययनवृत्ति, पदक और पुरस्कार संस्थित करना और प्रदान करना;
(xiii) विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिये स्तर मान अवधारित करना, जिनके अन्तर्गत परीक्षा, मूल्यांकन या परीक्षण की कोई अन्य रीति है;
(xiv) छात्रों और कर्मचारियों के लिये निवास-स्थान की व्यवस्था करना और उनका रख-रखाव करना;
(xv) विश्वविद्यालय के छात्रों के आवासों का पर्यवेक्षण करना और उनके स्वास्थ्य और सामान्य कल्याण की अभिवृद्धि के लिये प्रबन्ध करना;
(xvi) सभी प्रवर्गों के कर्मचारियों की सेवा की शर्तें, जिनके अन्तर्गत उनकी आचार संहिता है, अधिकथित करना;
(xvii) छात्रों और कर्मचारियों में अनुशासन का विनियमन करना और उसे प्रवृत्त करना तथा इस सम्बन्ध में ऐसे अनुशासन सम्बन्धी उपाय करना जो वह आवश्यक समझे;
(xviii) ऐसी फीसों और अन्य प्रभारों को जो परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँ, नियत करना, उनकी माँग करना और उन्हें प्राप्त करना;
(xix) केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से, विश्वविद्यालय की सम्पत्ति की प्रतिभूति पर विश्वविद्यालय के प्रयोजनों के लिये धन उधार लेना;
(xx) अपने प्रयोजनों के लिये उपकृति, सन्दान और दान प्राप्त करना और किसी स्थावर या जंगम सम्पत्ति को, जिसके अन्तर्गत न्यास और विन्यास सम्पत्ति है, अर्जित करना, धारण करना, उसका प्रबन्ध और व्ययन करना;
(xxi) ऐसे अन्य सभी कार्य और बातें करना जो उसके सभी या किन्हीं उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये आवश्यक, आनुषंगिक या साधक हों।
6. अधिकारिता
(1) कृषि के क्षेत्र में विश्वविद्यालय स्तर पर अध्यापन, अनुसन्धान और विस्तार शिक्षा के कार्यक्रमों की बाबत विश्वविद्यालय की अधिकारिता और उत्तरदायित्व का विस्तार अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम और त्रिपुरा राज्यों पर होगा।
(2) विश्वविद्यालय की अधिकारिता और प्राधिकार के अधीन आने वाले सभी महाविद्यालय, अनुसन्धान और प्रयोग केन्द्र या अन्य संस्थाएँ, उसके अधिकारियों और प्राधिकरणों के पूर्ण प्रबन्ध और नियंत्रण के अधीन उसकी घटक इकाइयाँ होंगी तथा ऐसी कोई भी इकाई सम्बद्ध इकाइयों के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं होगी।
(3) विश्वविद्यालय, फील्ड विस्तार कार्यकर्ताओं और अन्य व्यक्तियों के प्रशिक्षण के लिये उत्तरदायित्व ग्रहण कर सकेगा और ऐसे प्रशिक्षण केन्द्रों का विकास कर सकेगा जो उसकी अधिकारिता के अधीन राज्यों के विभिन्न भागों में अपेक्षित हों।
7. विश्वविद्यालय का सभी वर्गों, जातियों और पंथों के लिये खुला होना
विश्वविद्यालय सभी स्त्रियों और पुरुषों के लिये चाहे वे किसी भी जाति, पंथ, मूलवंश या वर्ग के हों, खुला होगा और विश्वविद्यालय के लिये यह विधिपूर्ण नहीं होगा कि वह किसी व्यक्ति को विश्वविद्यालय के शिक्षक के रूप में नियुक्त किये जाने या उसमें कोई अन्य पद धारण करने या विश्वविद्यालय में छात्र के रूप में प्रवेश पाने या उसमें स्नातक की उपाधि प्राप्त करने या उसके किसी विशेषाधिकार का उपयोग या प्रयोग करने का हकदार बनाने के लिये किसी धार्मिक विश्वास या मान्यता सम्बन्धी कोई मानदण्ड अपनाए या उस पर अधिरोपित करे:
परन्तु इस धारा की कोई बात विश्वविद्यालय को महिलाओं, असुविधाग्रस्तों या समाज के दुर्बल वर्गों और विशिष्टतया अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के नियोजन या प्रवेश के लिये विशेष उपबन्ध करने से निवारित करने वाली नहीं समझी जाएगी।
8. कुलाध्यक्ष
(1) भारत का राष्ट्रपति विश्वविद्यालय का कुलाध्यक्ष होगा।
(2) उपधारा (3) और उपधारा (4) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, कुलाध्यक्ष को ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा, जिन्हें वह निदेश दे, विश्वविद्यालय, उसके भवनों, प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों, संग्रहालयों, कार्यशालाओं और उपस्करों का और किसी संस्था या महाविद्यालय का और विश्वविद्यालय द्वारा संचालित या ली गई परीक्षा, दिये गए शिक्षण और अन्य कार्य का भी निरीक्षण कराने का और विश्वविद्यालय के प्रशासन और वित्त से सम्बन्धित किसी मामले की बाबत उसी रीति से जाँच कराने का अधिकार होगा।
(3) कुलाध्यक्ष, प्रत्येक मामले में निरीक्षण या जाँच कराने के अपने आशय की सूचना विश्वविद्यालय को देगा और विश्वविद्यालय को, ऐसी सूचना की प्राप्ति पर, सूचना की प्राप्ति की तारीख से तीस दिन या ऐसी अन्य अवधि के भीतर जो कुलाध्यक्ष अवधारित करे, उसको ऐसे अभ्यावेदन करने का अधिकार होगा, जो वह आवश्यक समझे।
(4) विश्वविद्यालय द्वारा किये गए अभ्यावेदनों पर, यदि कोई हों, विचार करने के पश्चात, कुलाध्यक्ष ऐसा निरीक्षण या जाँच करा सकेगा, जैसा उपधारा (2) में निर्दिष्ट है।
(5) जहाँ कुलाध्यक्ष द्वारा कोई निरीक्षण या जाँच कराई जाती है वहाँ, विश्वविद्यालय एक ऐसा प्रतिनिधि नियुक्त करने का हकदार होगा जिसे ऐसे निरीक्षण या जाँच में स्वयं हाजिर होने और सुने जाने का अधिकार होगा।
(6) कुलाध्यक्ष, ऐसे निरीक्षण या जाँच के परिणाम के सन्दर्भ में कुलपति को सम्बोधित कर सकेगा और उस पर कार्रवाई करने के सम्बन्ध में ऐसे विचार और ऐसी सलाह दे सकेगा जो कुलाध्यक्ष देना चाहे और कुलाध्यक्ष से सम्बोधन की प्राप्ति पर कुलपति, बोर्ड को निरीक्षण या जाँच के परिणाम और कुलाध्यक्ष के विचार तथा उस पर की जाने वाली कार्रवाई के सम्बन्ध में उसके द्वारा दी गई सलाह तुरन्त सूचित करेगा।
(7) बोर्ड, कुलपति के माध्यम से कुलाध्यक्ष को वह कार्रवाई, यदि कोई हो, संसूचित करेगा जो वह ऐसे निरीक्षण या जाँच के परिणामस्वरूप करने की प्रस्थापना करता है या उसके द्वारा की गई है।
(8) जहाँ बोर्ड, कुलाध्यक्ष के समाधानप्रद रूप में कोई कार्रवाई उचित समय के भीतर नहीं करता है वहाँ कुलाध्यक्ष, बोर्ड द्वारा किये गए स्पष्टीकरण या किये गए अभ्यावेदन पर विचार करने के पश्चात, ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ठीक समझे और बोर्ड ऐसे निर्देशों का पालन करने के लिये आबद्ध होगा।
(9) इस धारा के पूर्वगामी उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, कुलाध्यक्ष, विश्वविद्यालय की किसी ऐसी कार्यवाही को, जो इस अधिनियम, परिनियमों या अध्यादेशों के अनुरूप नहीं हैं, लिखित आदेश द्वारा, निष्प्रभाव कर सकेगा:
परन्तु ऐसा कोई आदेश करने के लिये पहले वह विश्वविद्यालय से इस बात का कारण बताने की अपेक्षा करेगा कि ऐसा आदेश क्यों न किया जाये और यदि उचित समय से भीतर कोई कारण बताया जाता है, तो वह उस पर विचार करेगा।
(10) कुलाध्यक्ष को ऐसी अन्य शक्तियाँ होंगी जो परिनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएँ।
9. विश्वविद्यालय के अधिकारी
विश्वविद्यालय के निम्नलिखित अधिकारी होंगे, अर्थात-
(1) कुलाधिपति;
(2) कुलपति;
(3) संकायाध्यक्ष;
(4) निदेशक;
(5) कुलसचिव;
(6) नियंत्रक; और
(7) ऐसे अन्य अधिकारी, जो परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँ।
10. कुलाधिपति
(1) कुलाधिपति की नियुक्ति कुलाध्यक्ष द्वारा ऐसी रीति से की जाएगी, जो परिनियमों द्वारा विहित की जाये।
(2) कुलाधिपति अपने पद के आधार पर विश्वविद्यालय का प्रधान होगा।
(3) कुलाधिपति, यदि उपस्थित हो तो वह उपाधियाँ प्रदान करने के लिये आयोजित किये जाने वाले विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोहों की अध्यक्षता करेगा।
11. कुलपति
(1) कुलपति की नियुक्ति कुलाध्यक्ष द्वारा ऐसी रीति से की जाएगी, जो परिनियमों द्वारा विहित की जाये।
(2) कुलपति, विश्वविद्यालय का प्रधान कार्यपालक और शैक्षणिक अधिकारी होगा और विश्वविद्यालय के कार्यकलापों पर साधारण पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण रखेगा और विश्वविद्यालय के सभी प्राधिकारियों के विनिश्चयों को कार्यान्वित करेगा।
(3) यदि कुलपति की यह राय है कि किसी मामले में तुरन्त कार्रवाई करना आवश्यक है तो वह किसी ऐसी शक्ति का प्रयोग कर सकेगा जो विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण को इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन प्रदत्त है और अपने द्वारा ऐसे मामले में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट उस प्राधिकरण को देगा:
परन्तु यदि सम्बन्धित प्राधिकरण की यह राय है कि ऐसी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए थी तो वह ऐसा मामला कुलाध्यक्ष को निर्देशित कर सकेगा जिस पर उसका विनिश्चय अन्तिम होगा -
परन्तु यह और कि विश्वविद्यालय की सेवा में किसी ऐसे व्यक्ति को, जो कुलपति द्वारा इस उपधारा के अधीन की गई कार्रवाई से व्यथित है, यह अधिकार होगा कि जिस तारीख को ऐसी कार्रवाई का विनिश्चय उसे संसूचित किया जाता है, उससे तीन मास के भीतर वह उस कार्रवाई के विरुद्ध अपील, बोर्ड से करे और तब बोर्ड, कुलपति द्वारा की गई कार्रवाई को पुष्ट कर सकेगा, उपान्तरित कर सकेगा, या उसे उलट सकेगा।
(4) यदि कुलपति की यह राय है कि विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण का कोई विनिश्चय इस अधिनियम, परिनियमों या अध्यादेशों के उपबन्धों द्वारा प्रदत्त प्राधिकरण की शक्तियों के बाहर है या किया गया विनिश्चय विश्वविद्यालय के हित में नहीं है, तो वह सम्बन्धित प्राधिकरण से अपने विनिश्चय का ऐसे विनिश्चय के साठ दिन के भीतर पुनर्विलोकन करने के लिये कह सकेगा और यदि वह प्राधिकरण उस विनिश्चय का पूर्णतः या भागतः पुनर्विलोकन करने से इनकार करता है या उसके द्वारा साठ दिन की उक्त अवधि के भीतर कोई विनिश्चय नहीं किया गया है, तो वह मामला कुलाध्यक्ष को निर्देशित किया जाएगा, जिसका विनिश्चय अन्तिम होगा।
(5) कुलपति ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग और ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करेगा जो परिनियमों या अध्यादेशों द्वारा विहित किये जाएँ।
12. संकायाध्यक्ष और निदेशक
प्रत्येक संकायाध्यक्ष और प्रत्येक निदेशक की नियुक्ति ऐसी रीति से की जाएगी और वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा, जो परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँ।
13. कुलसचिव
(1) कुलसचिव की नियुक्ति ऐसी रीति से की जाएगी जो परिनियमों द्वारा विहित की जाएँ।
(2) कुलसचिव को विश्वविद्यालय की ओर से करार करने, दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने और अभिलेखों को अधिप्रमाणित करने की शक्ति होगी और वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँ।
14. नियंत्रक
नियंत्रक की नियुक्ति ऐसी रीति से की जाएगी और वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँ।
15. अन्य अधिकारी
विश्वविद्यालय के अन्य अधिकारियों की नियुक्ति की रीति तथा उनकी शक्तियाँ और कर्तव्य परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँगे।
16. विश्वविद्यालय के प्राधिकरण
विश्वविद्यालय के निम्नलिखित प्राधिकरण होंगे-
(1) बोर्ड;
(2) विद्या-परिषद;
(3) वित्त समिति;
(4) अनुसन्धान कार्यक्रम समिति;
(5) विस्तार शिक्षा सलाहकार समिति;
(6) अध्ययन बोर्ड; और
(7) ऐसे अन्य प्राधिकरण, जो परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँ।
17. बोर्ड
(1) बोर्ड, विश्वविद्यालय का प्रधान कार्यपालक निकाय होगा।
(2) बोर्ड का गठन, उसके सदस्यों की पदावधि और उसकी शक्तियाँ तथा उसके कृत्य वे होंगे जो परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँगे।
18. विद्या परिषद
(1) विद्या परिषद, विश्वविद्यालय का प्रधान विद्या निकाय होगी और वह उस अधिनियम, परिनियमों और अध्यादेशों के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, विश्वविद्यालय के भीतर विद्या, शिक्षा, शिक्षण, मूल्यांकन और परीक्षा के नियंत्रण और साधारण विनियमन तथा उनके स्तरों को बनाए रखने के लिये उत्तरदायी होगी और वह ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करेगी, जो उसे परिनियमों द्वारा प्रदत्त किये जाएँ या उस पर अधिरोपित किये जाएँ।
(2) विद्या परिषद का गठन और उसके सदस्यों की पदावधि वह होगी, जो परिनियमों द्वारा विहित की जाएँ।
19. वित्त समिति
वित्त समिति का गठन, उसकी शक्तियाँ और उसके कृत्य परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँगे।
20. अनुसन्धान कार्यक्रम समिति
अनुसन्धान कार्यक्रम समिति का गठन, उसकी शक्तियाँ और उसके कृत्य परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँगे।
21. विस्तार शिक्षा सलाहकार समिति
विस्तार शिक्षा सलाहकार समिति का गठन, उसकी शक्तियाँ और उसके कृत्य परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँगे।
22. अध्ययन बोर्ड
अध्ययन बोर्ड का गठन, उसकी शक्तियाँ और उसके कृत्य परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँगे।
23. संकाय
विश्वविद्यालय के ऐसे संकाय होंगे, जो परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँ।
24. अन्य प्राधिकरण
धारा 16 के खण्ड (7) में निर्दिष्ट विश्वविद्यालय के अन्य प्राधिकरणों का गठन, उनकी शक्तियाँ और उसके कृत्य वे होंगे, जो परिनियमों द्वारा विहित किये जाएँ।
25. परिनियम बनाने की शक्ति
इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, परिनियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिये उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात-
(क) विश्वविद्यालय के प्राधिकरणों का, जो समय-समय पर गठित किये जाएँ, गठन, शक्तियाँ और कृत्य;
(ख) उक्त प्राधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति और उनका पदों पर बने रहना, सदस्यों के पदों की रिक्तियों का भरा जाना तथा उन प्राधिकरणों से सम्बन्धित अन्य सभी विषय जिनके लिये उपबन्ध करना आवश्यक या वांछनीय हो;
(ग) विश्वविद्यालय के अधिकारियों की नियुक्ति, उनकी शक्तियाँ तथा कर्तव्य और उनकी उपलब्धियाँ;
(घ) विश्वविद्यालय के शिक्षकों, शैक्षिणक कर्मचारीवृंद और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति और उनकी उपलब्धियाँ;
(ङ) किसी संयुक्त परियोजना को कार्यान्वित करने के लिये किसी अन्य विश्वविद्यालय या संगठन में काम करने वाले शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मचारीवृंद की विनिर्दिष्ट अवधि के लिये नियुक्ति;
(च) कर्मचारियों की सेवा की शर्तें, जिनके अन्तर्गत पेंशन, बीमा और भविष्य निधि का उपबन्ध, सेवा-समाप्ति और अनुशासनिक कार्रवाई की रीति है;
(छ) विश्वविद्यालय के कर्मचारियों की सेवा में ज्येष्ठता को शासित करने वाले सिद्धान्त;
(ज) कर्मचारियों या छात्रों और विश्वविद्यालय के बीच विवाद के मामलों में माध्यस्थम की प्रक्रिया;
(झ) विश्वविद्यालय के किसी अधिकारी या प्राधिकरण की कार्रवाई के विरुद्ध किसी कर्मचारी या छात्र द्वारा बोर्ड को अपील करने की प्रक्रिया;
(ञ) विभागों, केन्द्रों, महाविद्यालयों और संस्थाओं की स्थापना और समाप्ति;
(ट) मानद उपाधियों का प्रदान किया जाना;
(ठ) उपाधियों, डिप्लोमाओं, प्रमाणपत्रों और अन्य विद्या सम्बन्धी विशिष्ट उपाधियों का वापस लिया जाना;
(ड) अध्येतावृत्तियों, छात्रवृत्तियों, अध्ययनवृत्तियों, पदकों और पुरस्कारों का संस्थित किया जाना;
(ढ) विश्वविद्यालय के प्राधिकरणों या अधिकारियों में निहित शक्तियों का प्रत्यायोजन;
(ण) कर्मचारियों और छात्रों में अनुशासन बनाए रखना;
(त) ऐसे सभी अन्य विषय जो इस अधिनियम के अनुसार परिनियमों द्वारा विहित किये जाने हैं या किये जाएँ।
26. परिनियम किस प्रकार बनाए जाएँगे
(1) प्रथम परिनियम वे हैं जो अनुसूची में उपवर्णित हैं।
(2) बोर्ड, समय-समय पर, परिनियम बना सकेगा या उपधारा (1) में निर्दिष्ट परिनियमों का संशोधन या निरसन कर सकेगा:
परन्तु बोर्ड, विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण की प्रास्थिति, शक्तियों या उसके गठन पर प्रभाव डालने वाले कोई परिनियम तब तक नहीं बनाएगा, उनका संशोधन नहीं करेगा और उसका निरसन नहीं करेगा जब तक उस प्राधिकरण को प्रस्थापित परिवर्तनों पर अपनी राय लिखित रूप में अभिव्यक्त करने का अवसर नहीं दे दिया गया है और इस प्रकार अभिव्यक्त किसी राय पर बोर्ड विचार करेगा।
(3) प्रत्येक परिनियम या उसके किसी संशोधन या निरसन के लिये कुलाध्यक्ष की अनुमित अपेक्षित होगी जो उस पर अनुमित दे सकेगा या अनुमित विधारित कर सकेगा या उसे बोर्ड को उसके विचारार्थ वापस भेज सकेगा।
(4) कोई परिनियम या विद्यमान परिनियम का संशोधन या निरसन करने वाला कोई परिनियम तब तक विधिमान्य नहीं होगा जब तक कुलाध्यक्ष द्वारा उसकी अनुमित नहीं दे दी गई हो।
(5) पूर्वगामी उपधाराओं में किसी बात के होते हुए भी, कुलाध्यक्ष इस अधिनियम के प्रारम्भ से ठीक बाद की तीन वर्ष की अवधि के दौरान उपधारा (1) में निर्दिष्ट परिनियमों का संशोधन या निरसन कर सकेगा।
(6) पूर्वगामी उपधाराओं में किसी बात के होते हुए भी, कुलाध्यक्ष अपने द्वारा विनिर्दिष्ट किसी विषय के सम्बन्ध में परिनियमों में उपबन्ध करने के लिये विश्वविद्यालय को निदेश दे सकेगा और यदि बोर्ड, ऐसे निदेश को उसकी प्राप्ति के साठ दिन के भीतर कार्यान्वित करने में असमर्थ रहता है तो कुलाध्यक्ष, बोर्ड द्वारा ऐसे निदेश का अनुपालन करने में उसकी असमर्थता के लिये समुचित कारणों पर, यदि कोई हों, विचार करने के पश्चात, यथोचित रूप से परिनियमों को बना या संशोधित कर सकेगा।
27. अध्यादेश बनाने की शक्ति
(1) इस अधिनियम और परिनियमों के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, अध्यादेशों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिये उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात -
(क) विश्वविद्यालय में छात्रों का प्रवेश और उस रूप में उनका नाम दर्ज किया जाना;
(ख) विश्वविद्यालय की सभी उपाधियों, डिप्लोमाओं और प्रमाणपत्रों के लिये अधिकथित किये जाने वाले पाठ्यक्रम;
(ग) शिक्षण और परीक्षा का माध्यम;
(घ) उपाधियों, डिप्लोमाओं, प्रमाणपत्र और अन्य विद्या सम्बन्धी विशिष्ट उपाधियों का प्रदान किया जाना, उनके लिये अर्हताएँ, और उन्हें प्रदान करने और प्राप्त करने के बारे में किये जाने वाले उपाय;
(ङ) विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों के लिये और विश्वविद्यालय की परीक्षाओं, उपाधियों, डिप्लोमाओं और प्रमाणपत्रों में प्रवेश के लिये प्रभारित की जाने वाली फीस;
(च) अध्येतावृत्तियाँ, छात्रवृत्तियाँ, अध्ययनवृत्तियाँ, पदक और पुरस्कार प्रदान किये जाने की शर्तें;
(छ) परीक्षाओं का संचालन, जिसके अन्तर्गत परीक्षा निकायों, परीक्षकों और अनुसीमकों की पदावधि और नियुक्ति की रीति और उनके कर्तव्य हैं;
(ज) छात्रों के निवास की शर्तें;
(झ) छात्राओं के निवास, अनुशासन और अध्यापन के लिये किये जाने वाले विशेष प्रबन्ध, यदि कोई हों, और उनके लिये विशेष पाठ्यक्रम को विहित करना;
(ञ) जिन कर्मचारियों के लिये परिनियमों में उपबन्ध किया गया है उनसे भिन्न कर्मचारियों की नियुक्ति और उपलब्धियाँ;
(ट) विशेष केन्द्र, विशेषित प्रयोगशालाओं और अन्य समितियों की स्थापना;
(ठ) अन्य विश्वविद्यालयों और प्राधिकरणों के साथ, जिनके अन्तर्गत विद्वत निकाय या संगम हैं, सहकार और सहयोग करने की रीति;
(ड) किसी अन्य ऐसे निकाय का, जो विश्वविद्यालय के शैक्षिणक जीवन में सुधार के लिये आवश्यक समझा जाये, सृजन, उसकी संरचना और उसके कृत्य;
(ढ) शिक्षकों और अन्य शैक्षणिक कर्मचारीवृंद की सेवा के ऐसे अन्य निबन्धन और शर्तें जो परिनियमों द्वारा विहित नहीं हैं;
(ण) विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित महाविद्यालयों और संस्थाओं का प्रबन्ध;
(त) कर्मचारियों की शिकायतों को दूर करने के लिये किसी तंत्र की स्थापना; और
(थ) ऐसे सभी अन्य विषय जो इस अधिनियम या परिनियमों के अनुसार अध्यादेशों द्वारा उपबन्धित किये जाएँ।
(2) प्रथम अध्यादेश, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, कुलपति द्वारा बनाए जाएँगे और इस प्रकार बनाए गए अध्यादेश, परिनियमों द्वारा विहित रीति से बोर्ड द्वारा किसी भी समय संशोधित या निरसित किये जा सकेंगे।
28. विनियम
विश्वविद्यालय के प्राधिकरण, स्वयं अपने और अपने द्वारा स्थापित की गई समितियों के कार्य संचालन के लिये, जिसका इस अधिनियम, परिनियमों या अध्यादेशों द्वारा उपबन्ध नहीं किया गया है, परिनियमों द्वारा विहित रीति से ऐसे विनियम बना सकेंगे, जो इस अधिनियम, परिनियमों और अध्यादेशों से संगत हैं।
29. वार्षिक रिपोर्ट
(1) विश्वविद्यालय की वार्षिक रिपोर्ट बोर्ड के निदेश के अधीन तैयार की जाएगी, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ, विश्वविद्यालय द्वारा अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये किये गए उपाय होंगे और वह बोर्ड को उस तारीख को या उसके पश्चात भेजी जाएगी जो परिनियमों द्वारा विहित की जाये और बोर्ड अपने वार्षिक अधिवेशन में उस रिपोर्ट पर विचार करेगा।
(2) बोर्ड, वार्षिक रिपोर्ट अपनी टीका-टिप्पणी सहित, यदि कोई हो, कुलाध्यक्ष को भेजेगा।
(3) उपधारा (1) के अधीन तैयार की गई वार्षिक रिपोर्ट की प्रति, केन्द्रीय सरकार को भी प्रस्तुत की जाएगी, जो उसे यथाशीघ्र संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाएगी।
30. वार्षिक लेखे
(1) विश्वविद्यालय के वार्षिक लेखे बोर्ड के निदेशों के अधीन तैयार किये जाएँगे और भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा या ऐसे व्यक्तियों द्वारा जिन्हें वह इस निमित्त प्राधिकृत करें, प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक बार और पन्द्रह मास से अनधिक के अन्तराल पर उनकी सम्परीक्षा की जाएगी।
(2) वार्षिक लेखाओं की प्रति, उन पर सम्परीक्षा रिपोर्ट बोर्ड को और बोर्ड के सम्प्रेक्षणों के साथ, कुलाध्यक्ष को, प्रस्तुत की जाएगी।
(3) वार्षिक लेखाओं पर कुलाध्यक्ष द्वारा किये गए सम्प्रेक्षण बोर्ड के ध्यान में लाए जाएँगे और बोर्ड के सम्प्रेक्षणों को, यदि कोई हों, कुलाध्यक्ष को प्रस्तुत किये जाएँगे।
(4) कुलाध्यक्ष को प्रस्तुत की गई सम्परीक्षा रिपोर्ट के साथ वार्षिक लेखाओं की एक प्रति केन्द्रीय सरकार को भी प्रस्तुत की जाएगी, जो उसे यथाशीघ्र, संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाएगी।
(5) सम्परीक्षित वार्षिक लेखे संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखे जाने के पश्चात राजपत्र में प्रकाशित किये जाएँगे।
31. कर्मचारियों की सेवा की शर्तें
(1) विश्वविद्यालय का प्रत्येक कर्मचारी लिखित संविदा के अधीन नियुक्त किया जाएगा जो विश्वविद्यालय के पास रखी जाएगी और उसकी एक प्रति सम्बन्धित कर्मचारी को दी जाएगी।
(2) विश्वविद्यालय और उसके किसी कर्मचारी के बीच संविदा से उत्पन्न होने वाला कोई विवाद, कर्मचारी के अनुरोध पर, माध्यस्थम अधिकरण को निर्देशित किया जाएगा, जिसमें बोर्ड द्वारा नियुक्त एक सदस्य, सम्बन्धित कर्मचारी द्वारा नाम-निर्देशित एक सदस्य और कुलाध्यक्ष द्वारा नियुक्त एक अधिनर्णायक होगा।
(3) अधिकरण का विनिश्चय अन्तिम होगा और अधिकरण द्वारा विनिश्चत मामलों के सम्बन्ध में किसी सिविल न्यायालय में कोई वाद नहीं होगा।
(4) उपधारा (2) के अधीन कर्मचारी द्वारा किया गया प्रत्येक ऐसा अनुरोध माध्यस्थम अधिनियम, 1940 (1940 का 10) के अर्थ में इस धारा के निबन्धनों पर माध्यस्थम के लिये निवेदन समझा जाएगा।
(5) अधिकरण के कार्य को विनियमित करने की प्रक्रिया परिनियमों द्वारा विहित की जाएगी।
32. छात्र के विरुद्ध अनुशासनिक मामलों में अपील और माध्यस्थम की प्रक्रिया
(1) कोई छात्र या परीक्षार्थी, जिसका नाम विश्वविद्यालय की नामावली से, यथास्थिति, कुलपति, अनुशासन समिति या परीक्षा समिति के आदेशों या संकल्प द्वारा हटाया गया है और जिसे विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में बैठने से एक वर्ष से अधिक के लिये विवर्जित किया गया है, उसके द्वारा ऐसे आदेशों की या उसके द्वारा ऐसे संकल्प की प्रति की प्राप्ति की तारीख से दस दिन के भीतर बोर्ड को अपील कर सकेगा और बोर्ड, यथास्थिति, कुलपति या समिति के विनिश्चय को पुष्ट या उपान्तरित कर सकेगा या उलट सकेगा।
(2) विश्वविद्यालय द्वारा किसी छात्र के विरुद्ध की गई अनुशासनिक कार्रवाई से उत्पन्न होने वाला कोई विवाद, उस छात्र के अनुरोध पर, माध्यस्थम अधिकरण को निर्देशित किया जाएगा और धारा 31 की उपधारा (2), उपधारा (3), उपधारा (4) और उपधारा (5) के उपबन्ध, इस उपधारा के अधीन किये गए निर्देश को, यथाशक्य, लागू होंगे।
33. अपील करने का अधिकार
इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, विश्वविद्यालय या विश्वविद्यालय द्वारा चलाए जा रहे महाविद्यालय या संस्था के प्रत्येक कर्मचारी या छात्र को, यथास्थिति, विश्वविद्यालय के किसी अधिकारी या प्राधिकरण अथवा किसी महाविद्यालय या संस्था के विनिश्चय के विरुद्ध ऐसे समय के भीतर, जो परिनियमों द्वारा विहित किया जाये, बोर्ड को अपील करने का अधिकार होगा और तब बोर्ड, उस विनिश्चय को, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, पुष्ट या उपान्तरित कर सकेगा या उलट सकेगा।
34. भविष्य-निधि और पेंशन निधि
(1) विश्वविद्यालय अपने कर्मचारियों के फायदे के लिये ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो परिनियमों द्वारा विहित की जाएँ, ऐसी भविष्य-निधि और पेंशन निधि का गठन करेगा या ऐसी बीमा स्कीमों की व्यवस्था करेगा जो वह ठीक समझे।
(2) जहाँ ऐसी भविष्य-निधि या पेंशन निधि का इस प्रकार गठन किया गया है वहाँ केन्द्रीय सरकार यह घोषित कर सकेगी कि भविष्य-निधि अधिनियम, 1925 (1925 का 19) के उपबन्ध ऐसी निधि को इस प्रकार लागू होंगे मानो वह सरकारी भविष्य-निधि हो।
35. विश्वविद्यालय के प्राधिकरणों के गठन के बारे में विवाद
यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई व्यक्ति विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण के सदस्य के रूप में सम्यक रूप से नियुक्त किया गया है या उसका सदस्य होने का हकदार है या नहीं तो वह मामला कुलाध्यक्ष को निर्देशित किया जाएगा, जिसका विनिश्चय अन्तिम होगा।
36. समितियों का गठन
जहाँ विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण को इस अधिनियम या परिनियमों द्वारा समितियाँ स्थापित करने की शक्ति दी गई है वहाँ जैसा अन्यथा उपबन्धित है उसके सिवाय, ऐसी समितियों में, सम्बन्धित प्राधिकरण के ऐसे सदस्य और ऐसे अन्य व्यक्ति, यदि कोई हों, होंगे, जिन्हें प्राधिकरण प्रत्येक मामले में ठीक समझे।
37. आकिस्मक रिक्तियों का भरा जाना
विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण या अन्य निकाय के (पदेन सदस्यों से भिन्न) सदस्यों में सभी आकस्मिक रिक्तियाँ, यथाशीघ्र ऐसे व्यक्ति या निकाय द्वारा भरी जाएँगी जो उस सदस्य को, जिसका स्थान रिक्त हुआ है, नियुक्त, निर्वाचित या सहयोजित करती है और आकस्मिक रिक्ति में नियुक्त, निर्वाचित या सहयोजित व्यक्ति, ऐसे प्राधिकारी या निकाय का सदस्य उस शेष अवधि के लिये होगा, जिस तक वह व्यक्ति, जिसका स्थान वह भरता है, सदस्य रहता।
38. विश्वविद्यालय के प्राधिकरणों की कार्यवाहियों का रिक्तियों के कारण अविधिमान्य न होना
विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं होगी कि उसके सदस्यों में कोई रिक्ति या रिक्तियाँ हैं।
39. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिये संरक्षण
इस अधिनियम, परिनियमों या अध्यादेशों के उपबन्धों में से किसी उपबन्ध के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात के लिये कोई वाद या अन्य विधिक कार्यवाहियाँ विश्वविद्यालय के किसी अधिकारी या अन्य कर्मचारी के विरुद्ध नहीं होगी।
40. विश्वविद्यालय के अभिलेखों को साबित करने का ढंग
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण या अन्य निकाय की किसी रसीद, आवेदन, सूचना, आदेश, कार्यवाही, संकल्प या अन्य दस्तावेज की, जो विश्वविद्यालय के कब्जे में है, या विश्वविद्यालय द्वारा सम्यक रूप से रखे गए किसी रजिस्टर की किसी प्रविष्टि की प्रतिलिपि, कुलसचिव द्वारा प्रमाणित कर दिये जाने पर, उस दशा में, जिसमें उसकी मूल प्रति पेश की जाने पर साक्ष्य में ग्राह्य होती, उस रसीद, आवेदन, सूचना, आदेश, कार्यवाही, संकल्प या दस्तावेज के या रजिस्टर की प्रविष्टि के अस्तित्व के प्रथम दृष्टया साक्ष्य के रूप में ली जाएगी और उससे सम्बन्धित मामलों और संव्यवहारों के साक्ष्य के रूप में ग्रहण की जाएगी।
41. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति
(1) यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबन्ध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत न हों, और जो उस कठिनाई को दूर करने के लिये उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों -
परन्तु इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारम्भ से तीन वर्ष के अवसान के पश्चात नहीं किया जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश किये जाने के पश्चात यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।
42. संक्रमणकालीन उपबन्ध
इस अधिनियम और परिनियमों में किसी बात के होते हुए भी,-
(क) प्रथम कुलाधिपति और प्रथम कुलपति, कुलाध्यक्ष द्वारा नियुक्त किये जाएँगे और पाँच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेंगे।
(ख) प्रथम कुलसचिव और प्रथम नियंत्रक, कुलाध्यक्ष द्वारा नियुक्त किये जाएँगे और उक्त प्रत्येक अधिकारी तीन वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा;
(ग) बोर्ड के प्रथम सदस्य, कुलाध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित किये जाएँगे और तीन वर्ष की अवधि तक पद धारण करेंगे;
(घ) विद्या परिषद के प्रथम सदस्य, कुलाध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित किये जाएँगे और तीन वर्ष की अवधि तक पद धारण करेंगे:
परन्तु यदि उपरोक्त पदों या प्राधिकरणों में कोई रिक्ति होती है तो वह कुलाध्यक्ष द्वारा, यथास्थिति, नियुक्ति या नाम-निर्देशन द्वारा भरी जाएँगी और इस प्रकार नियुक्त या नाम-निर्दिष्ट व्यक्ति तब तक पद धारण करेगा जब तक वह अधिकारी या सदस्य, जिसके स्थान पर उसकी नियुक्ति या नाम-निर्देशन किया गया है, पद धारण करता यदि ऐसी रिक्ति नहीं हुई होती।
43. परिनियमों, अध्यादेशों और विनियमों का राजपत्र में प्रकाशित किया जाना और संसद के समक्ष रखा जाना
(1) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक परिनियम, अध्यादेश या विनियम राजपत्र में प्रकाशित किया जाएगा।
(2) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक परिनियम, अध्यादेश या विनियम, बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के स
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