केन किनारे

केन किनारे की चट्टानें, बहती धारा,
दोनों का स्वभाव मुझको समान लगता है-
सरस, कठोर भाव लेकर जीवन जगता है
बाँदा के नागरिक हृदय में, मैंने प्यारा
उसे हर तरह से पाया है। उसे सहारा
अगर चाहिए तो अपनों का, कब डगता है
अपने अशिधाराव्रत से, अंतर पगता है
अपनेपन से जिस पर उसने तन-मन वारा।

अस्ताचलगामी किरणें, केन की लहरियाँ,
मिलजुलकर नव गान गा रही थीं कल स्वन से
भावों में तल्लीन,उसे सुनने को जैसे
शांत समीर हो गया था, अदृश्य अप्सरियाँ
नृत्यशील थीं नीलांबर में अपने मन से,
नीलांचल ही दिखता था हम भूले ऐसे।

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