कचरे से तैयार करें उत्तम खाद

जानवरों के मल-मूत्र, बिछावन और वनस्पति कचरों का संग्रह तब तक इन छोटे-छोटे गड्ढों में करना चाहिए जब तक कि दिए गए गड्ढों के आकार के अनुसार पूर्ति न हो जाए। गड्ढे भरने के पूर्व इन पदार्थों में प्रति क्विंटल कचरे की दर से एक किलोग्राम रॉक फास्फेट का प्रयोग करना चाहिए, जो कि सस्ता और आसानी से उपलब्ध हो जाता है।

भारतीय कृषि क्षेत्र में पिछले चार दशकों से फसल उत्पादन में जो वृद्धि आई है, इसका मुख्य कारण उन्नत तकनीकों को अपनाया जाना और अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग है। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए इन कृत्रिम पदार्थों का भारी मात्रा में प्रयोग किया जा रहा है। मिट्टी की स्थिति की अनदेखी की जा रही है। इसके कई दुष्परिणाम हमारे समक्ष धीरे-धीरे प्रकट हो रहे हैं। मिट्टी के प्राकृतिक गुण धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। इसके अलावा प्राकृतिक गुण के अभाव में उत्पादन लागत में वृद्धि हो रही है। मिट्टी में जीवांश या कार्बनिक पदार्थों की कमी के कारण गर्मियों में भूमि के ऊपरी भाग का तापमान 60 डिग्री सेल्सियस से ऊपर हो जाता है। मिट्टी की नमी ज्यादा देर तक नहीं रहती है। इससे खेतों में दरारें पड़ने लगती हैं। निम्न जल धारण क्षमता के कारण सिंचाई जल की आवश्यकता बहुत अधिक बढ़ जाती है और संसाधनों का दुरूपयोग होता है। कृषकों को यह बात जानना अति आवश्यक है कि मिट्टी एक भौतिक माध्यम ही नहीं, अपितु जीवित माध्यम भी है, जिसमें असंख्य लाभकारी सूक्ष्म जीव निवास करते हैं, जो विभिन्न तरीकों से पौधों का पोषण करते हैं। अत: मिट्टी में इनकी संख्या सुनिश्चित करना अति आवश्यक है, जो जीवांश या कार्बनिक पदार्थों द्वारा ही संभव है। इसके लिए प्रत्येक कृषक को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे उनके फार्म पर या घर में उपलब्ध कूड़ा-कचरा, जानवरों के मल-मूत्र, पौधों के अवशेष आदि का उपयोग एक उत्कृष्ट प्रकार के कंपोस्ट बनाने में कर सकते हैं।

अधिकांश किसानों के बाड़ी या प्रक्षेत्र में स्वनिर्मित खाद के गड्ढे होते हैं। कृषक इस गड्ढे का उपयोग खाद बनाने में करते हैं। यहां घर के अपशिष्ट और फार्म के कचरे का इस्तेमाल खाद बनाने में करते हैं। ठीक प्रकार से न सड़ने के कारण उसमें खरपतवार के बीज और निमेटोड पाए जाते हैं, जो फसलों के लिए नुकसानदेह हैं। खाद बनाते समय इसे खुला छोड़ दिया जाता है और अत्यधिक गर्मी और बारिश से बचाव की सुविधा नहीं होती है। इन कचरों का उपयोग व्यवस्थित और वैज्ञानिक रीति से न होने के कारण खाद की गुणवत्ता निम्न स्तर की होती है, जिसमें जीवांश और पोषक तत्वों की मात्रा कम होती है। किसान बहुत कम खर्चे में स्वयं जैविक खादों का निर्माण कर सकते हैं। इनके पास उपलब्ध खाद गड्ढा अच्छी गुणवत्ता वाली खाद प्राप्त करने का अच्छा माध्यम हो सकता है, जिसे कंपोस्टिंग (सड़न) की अत्यंत सरल प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
 

खाद बनाने हेतु प्रयुक्त सामग्री :


पौधों की पत्तियों, टहनियों, डंठल, भूसा, पैरा कुट्टी, घर से प्राप्त सब्जियों के टुकड़े आदि को छोटे-छोटे काटकर बांट देना चाहिए। घर और खेत पर उपलब्ध जानवरों के गोबर को उनके मूत्र के साथ एकत्रित करना चाहिए। जानवरों के बिछावन को इकट्ठा करने के लिए पशुशाला में भूसा, लकड़ी बुरादा या रेत का बिछावन बिछाना चाहिए और इसे 10-15 दिनों में हटाते रहना चाहिए। जानवरों के मूत्र को एक सामान्य कांक्रीट टैंक में इकट्ठा करते रहना चाहिए।

 

 

गोबर और कचरा संग्रह करने का तरीका :


खाद के गड्ढे को भरने से पूर्व उसे घर या प्रक्षेत्र पर पहले अलग-अलग एकत्रित करना चाहिए। इसके लिए दो छोटे और गहरे गड्ढे बनाए जाते हैं। इन गड्ढों में मल-मूत्र और इनका बिछावन और वानस्पतिक कचरे को अलग-अलग गड्ढों में इकट्ठा किया जाता है। पौध अवशेष, पत्ती, टहनी, डंठल, घर से प्राप्त सब्जी के टुकड़े को बारीक कर गड्ढे में नियमित रूप से गोबर के घोल से तर करके मिलाते रहना चाहिए। इन पदार्थों से पत्थर के टुकड़े, प्लास्टिक इत्यादि को अलग कर देना चाहिए। खाद गड्ढे का आकार 6 मीटर लंबा, डेढ़ मीटर चौड़ा और एक मीटर गहरा होना चाहिए। हालांकि पशुधन की संख्या और आवश्यकतानुसार आकार को छोटा-बड़ा कर सकते हैं। गड्ढे का आकार यदि बड़ा हो तो उसे 2 या 3 बराबर भागों में बांट लेना चाहिए। खाद भरते समय जब पहला भाग भूतल से 45 सेमी. ऊंचा हो जाए तो उसे ढेर के रूप में बनाकर गोबर के घोल व मिट्टी से ढक देना चाहिए। फिर गड्ढे के शेष भाग में इसी तरह खाद भरना चाहिए। इससे वर्ष भर खेतों को उच्च गुणवत्ता वाली कंपोस्ट खाद की पूर्ति होती है। गड्ढों का चुनाव छायादार स्थान पर करना चाहिए और खाद बनाते समय नमी की पर्याप्त मात्रा होना आवश्यक है। गड्ढे के विभिन्न भागों के उपयोग के लिए समय नियोजित करना आवश्यक है, ताकि हर फसल के लिए खाद उपलब्ध हो सके।

 

 

 

 

खाद बनाने की वैज्ञानिक विधि :


जानवरों के मल-मूत्र, बिछावन और वनस्पति कचरों का संग्रह तब तक इन छोटे-छोटे गड्ढों में करना चाहिए जब तक कि दिए गए गड्ढों के आकार के अनुसार पूर्ति न हो जाए। गड्ढे भरने के पूर्व इन पदार्थों में प्रति क्विंटल कचरे की दर से एक किलोग्राम रॉक फास्फेट का प्रयोग करना चाहिए, जो कि सस्ता और आसानी से उपलब्ध हो जाता है। संग्रहित कचरों का उपयोग गड्ढा के पहले भाग में भराई हेतु विभिन्न परतों में डालना चाहिए। सर्वप्रथम गड्ढों की साफ-सफाई कर उसकी सतह को मिट्टी या बालू से दबाकर ठोस बनाएं, फिर उसे गोबर के घोल से तर करें। इसके बाद पहली परत के रूप में वानस्पतिक कचरे का तीन से चार इंच परत में एक समान बिछाएं, जिसे गोबर के घोल से तर करें। इसी क्रम में गड्ढा भराई को पूर्ण करें। भराई का कार्य भूतल सतह से 45 सेमी. ऊंचा करें। फिर उसे ढेरी बनाकर मिट्टी और गोबर के घोल से लिप दें। बिल्कुल यही प्रक्रिया गड्ढे के शेष भाग में दोहरानी चाहिए, जिसके बनाने का क्रम निश्चित करें। अपघटन प्रक्रिया के लिए सत्तर फीसदी नमी होनी चाहिए, जिसकी पूर्ति के लिए नियमित जल दें।

20 से 25 दिनों बाद जब गलन प्रक्रिया से उत्पन्न गर्मी कम हो जाए, तब खाद के विभिन्न परतों में सूक्ष्म जीव ट्राइकोडर्मा विरडी का छिड़काव करें। यह बाजार में आसानी से उपलब्ध है। इससे खाद की गलन क्रिया और गुणवत्ता में वृद्धि होती है। 6 से 8 दिनों बाद खाद पलटने का कार्य करें। इसमें प्रत्येक परत का पलटा जाना आवश्यक है। खाद पलटने की प्रक्रिया तीन बार हर पंद्रह दिनों में करें। यह क्रिया ढाई माह तक करते रहें। अंतिम बार पलटने के समय जैव उर्वरक जैसे राइजोबियम (दलहन फसलों के लिए), पीएसबी, एजोटोबैक्टर एजोस्पाइरिलम आदि खाद में मिश्रित करें। इससे खाद में लाभकारी जीवाणु की संख्या बढ़ती है और खाद की गुणवत्ता अधिक बढ़ जाती है। इसके एक माह बाद खाद का प्रयोग खेतों में करें। इसे खेतों में समान रूप से फैलाना चाहिए। कंपोस्टिंग या सड़न की आसान प्रक्रिया को जानकर किसान स्वयं अपने परंपरागत गड्ढे से कम समय में उत्तम गुणों वाली खाद बना सकता है, जिसमें जीवांश और पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं।

 

 

 

 

Path Alias

/articles/kacarae-sae-taaiyaara-karaen-utatama-khaada

Post By: Hindi
×