कचरे के कहर से दम तोड़ रही हिंडन

आज हिंडन नदी कई समस्याओं से जूझ रही है। नदी का पानी सूख गया है। नदी में जो थोड़ा-बहुत पानी देखने को मिलता है, वह सिर्फ कारखानों से निकलने वाला प्रदूषित पानी ही नजर आता है। गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर में तो नदी के किनारे से आवासीय सेक्टर बना दिए गए हैं। नदी और नहर विभाग के अफसर ही मोटी रकम लेकर नदी में कई-कई मंजिल के मकानों का निर्माण कराने में लगे हैं। प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार भी इस मामले पर चुप्पी साधे है। हिंडन नदी और इसकी सहयोगी नदियों के किनारे करीब चार सौ से ज्यादा गांव बसे हैं।

नोएडा, 03 जुलाई 2014 (जनसत्ता)। पुरका टांडा कालू वाला के पहाड़ों से निकलने वाली हिंडन नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। यह नदी अब नाले में तब्दील होती जा रही है। अब तो हिंडन नदी अपनी पहचान गंवाने के कगार पर है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों और डिस्टीलरियों समेत नदी किनारे बने मकान समेत बूचड़खाने का सारा कचरा हिंडन में ही गिरता है।

इस कारण आसपास के गांवों और शहरों का जलस्तर भी काफी नीचे गिर गया है। हिंडन नदी के गुम होने के पीछे खास तौर पर उत्तर प्रदेश का सिंचाई विभाग है। सिंचाई विभाग नदी को खत्म करने पर तुला है।

हिंडन नदी सहारनपुर की उत्तर की पहाड़ियों में पुरका टांडा कालू वाला स्थान से निकलकर अन्य नदियों कृष्णा, काली, चेचही, नागदेवी, पांधाई और धमौला को अलग-अलग स्थानों पर अपने में समाहित कर मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर के अंत में तिलवाड़ा व मोमनाथन गांव पहुंच कर यमुना नदी में समाहित हो जाती है।

दो सौ साठ किमी लंबी इस नदी में 1980 तक लोगों के लिए स्नान करने का जल बहता था। 12 अगस्त 1978 को हिंडन के पानी ने गाजियाबाद और नोएडा, ग्रेटर नोएडा समेत यमुना के क्षेत्र में तबाही मचा दी थी। कैला भट्टा के पास तेज बहाव से रेलवे लाइन के साढ़े सात सौ स्लीपर बह गए थे। यही नहीं हिंडन नदी का पानी दादरी रेलवे लाइन से जा लगा था। यमुना और हिंडन एक हो गई थीं। इसमें काफी पानी आया था।

उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों ने गन्ने की खेती को बढ़ावा दिया है। खेती ने जहां जल की खपत को बढ़ाया है। साथ ही चीनी मिलों और डिस्टीलरियों के गंदे पानी ने इस नदी को प्रदूषित किया है।

दो दशक के दौरान लगे उद्योगों और दूसरे कारखानों के कारण शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में जल दोहन कर इसका अस्तित्व खतरे में डाल दिया है। घरों पर जेटपंप और नलकूप लगते गए। इस कारण से भूजल स्तर 150 से दो सौ फुट नीचे चला गया। इसके कारण ही रिसाव की प्रक्रिया से भूमिगत जल हासिल नहीं हो रहा है। हिंडन अब बारिश के पानी पर ही निर्भर होकर रह गई है। आज हिंडन नदी कई समस्याओं से जूझ रही है। नदी का पानी सूख गया है। नदी में जो थोड़ा-बहुत पानी देखने को मिलता है, वह सिर्फ कारखानों से निकलने वाला प्रदूषित पानी ही नजर आता है। गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर में तो नदी के किनारे से आवासीय सेक्टर बना दिए गए हैं।

नदी और नहर विभाग के अफसर ही मोटी रकम लेकर नदी में कई-कई मंजिल के मकानों का निर्माण कराने में लगे हैं। प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार भी इस मामले पर चुप्पी साधे है। हिंडन नदी और इसकी सहयोगी नदियों के किनारे करीब चार सौ से ज्यादा गांव बसे हैं। इनमें लाखों की आबादी है।

हजारों पशु भी नदी किनारे चरते हैं। इनका जीवन और संस्कृति हिंडन नदी पर निर्भर है। चीनी मिलों, कारखानों का गंदा पानी, कचरा, नगरीय सीवर का गंदा पानी और रसायन इस नदी का दम घोंट रहे हैं। रही-सही कसर नहर और सिंचाई विभाग के अफसरों ने निकाल दी है। नदी के अंदर तक आवासीय मकानों का निर्माण हो गया है।

हिंडन नदी के डूब क्षेत्र में अवैध निर्माणसहारनपुर के पेपर मिल, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ के चीनी मिल और डिस्टीलरियों का गंदा पानी, चांदी नगर की चमड़ा फैक्ट्री के रासायनिक पानी ने हिंडन के पानी को विषैला कर दिया है। सहारनपुर से यमुना तक इसमें 27 नालों और सीवर का पानी डाला जा रहा है।

प्रचुर मात्रा में आर्सेनिक फ्लोराइड, मैग्निशियम, क्रोमियम, नाईट्रेड, लैड समेत घातक तत्व की मात्रा लगातार बढ़ने से हिंडन का पानी जहरीला हो गया है। इस वजह से जलीय जीव-जंतु खत्म हो गए हैं।

हिंडन नदी को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं। राष्ट्रीय जल बिरादरी ने भी हिंडन नदी प्रदूषण मुक्ति अभियान चला रखा है। राष्ट्रीय जल बिरादरी के अध्यक्ष पानी कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह हैं।

इस संस्था के सहारनपुर से यमुना तक इसका सर्वेक्षण किया है। इसके अलावा भी दूसरी संस्थाएं इसका सर्वेक्षण कर रही हैं। लेकिन इन संस्थाओं के चिंतकों का कहना है कि हिंडन नदी को प्रदेश सरकार के अफसर ही नाला बनाने में लगे हैं। फिर इसे कैसे प्रदूषण रहित बनाया जाए। यह चिंता का विषय है।

जहां बहती थी नदी वहां बस रहा मुहल्ला


हिंडन नदी की लोग पूजा करते हैं। लेकिन नदी की पूजा करने वालों ने ही इसके जल को इतना विषैला बना दिया है कि इसके पीने से पशुओं की मौत हो रही है।

हिंडन का पानी जब विषैला नहीं हुआ था तो इसमें जलमुर्गी, साइबेरियन समेत दूसरे देशों के प्रवासी पक्षी भी प्रवास करते थे। उस समय बड़ी संख्या में पक्षी नदी के जल में क्रीड़ा करते देखे जाते थे। लेकिन आज के दौर में पक्षी हिंडन नदी के पास नहीं फटकते हैं। हिंडन के बहते पानी से बदबू आती है।

सरकार भी इसकी सुध लेने को तैयार नहीं है। नदी क्षेत्र में निर्माणाधीन आवासों से यह नदी कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रही है।आज के दौर में हिंडन में बसने वाले जीव-जंतु तक खत्म हो गए हैं। इस नदी में सोल, सिंघाड़ा मछली समेत मछलियों की कई किस्में पाई जाती थीं। लोग बड़ी संख्या में यहां पर मछली पकड़ने का काम करते थे। अब उनका रोजगार भी छिन गया है।

हिंडन से मछलियां गायब हैं। अगर कोई पशु इसका जल पी लेता है तो वह दो-तीन दिन में दम तोड़ देता है। पक्षी तो पहले ही इस नदी के जल से किनारा कर गए हैं। इलाकाे के लोग कहते हैं कि हिंडन नदी में अब तेजाब बह रहा है। इस नदी का पानी सिंचाई योग्य भी नहीं रहा है।

अगर फसल में पानी लगा दिया जाता है तो सारी फसल सूख जाती है। राष्ट्रीय जल बिरादरी से जुड़े और हिंडन प्रदूषण मुक्ति अभियान के कार्यकर्ता वकील विक्रांत शर्मा ने हिंडन नदी के उद्गम स्थल से लेकर इसके यमुना मिलान तक पदयात्रा की है। यमुना के किनारे बसे चार सौ गांवों के लोगों को जागरूक किया है।

हिंडन का वाटर सर्फेस खत्म हो गया है। खतौली और जानी-विलानी बैराज से इसमें गंगा का पानी छोड़ा जाता है। नदी बरसात के पानी पर ही निर्भर है। उनका कहना है कि मोदी सरकार ने गंगा बचाओ अभियान शुरू किया है।

अगर गंगा को बचाना है तो हिंडन को साफ-सुथरा किए बिना गंगा को स्वच्छ नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज गाजियाबाद के सात नालों का पानी हिंडन में डाला जा रहा है। उन्होंने कई सरकारी विभागों में आरटीआई डालकर मालूम किया है कि नदियों में गंदा पानी डालने का कोई सरकारी नियम, प्रावधान या फिर सुप्रीम कोर्ट का क्या कोई आदेश है। सभी विभागों ने नहीं में जवाब दिया है।

प्रदूषित हिंडन नदीजब तक सरकार, प्रशासन और निकाय सहयोग नहीं करेंगे नदियों का जीवन नहीं बचेगा। यह पूरी मानव सभ्यता के लिए घातक होगा।

गैर सरकारी संस्था अरण्य के संस्थापक संजय कश्यप का कहना है कि प्रशासन को नदियों के साथ खिलवाड़ नहीं करने देना चाहिए। करहैड़ा पुल के निर्माण के दौरान नदी को 200 मीटर खिसका दिया गया है। इसका नतीजा यह रहा कि करहैड़ा, हिंडन एअरफोर्स समेत कई गांवों में पानी घुसने का रास्ता हो गया है।

हिंडन को स्वच्छ नहीं किया गया तो हालात बेकाबू हो जाएंगे। और शहरों में बीमारी का प्रकोप फैलने लगेगा। पर्यावरणविद् विजय बघेल का मानना है कि वर्तमान में हिंडन नदी लुप्त होने के कगार पर है। नदी की जमीन पर कालोनी बसा दी गई है।

हिंडन नदी समेत अन्य नदियों में प्रदूषित पानी डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। तभी नदियों के अस्तित्व को बचाया जा सकता है। ज्यादातर पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर गंगा को बचाना है तो गंगा से जुड़ी नदियों को भी बचाना होगा। नहीं तो गंगा को कभी स्वच्छ नहीं किया जा सकता है।

हिंडन नदी को खत्म करने का सबसे बड़ा कारण सरकारों की अनदेखी और इस विभाग के अफसरों की भूमाफिया से धन वसूली कर इसकी जमीन पर कंक्रीट का जंगल बसाना है। ऐसे अफसरों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए।

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