कचरे का पूर्ण प्रबंधन ही पर्यावरण को बेहतर ढंग से सुरक्षित रखता है

एमयूटीबीटी ने कुछ समय पहले एक राष्ट्रीय स्तर का बिजनेस प्लान कंपीटिशन आयोजित किया था। इसमें पेपरट्री को तीसरा स्थान मिला। इनाम के तौर पर दो लाख रुपए नकद दिए गए। एक अन्य राष्ट्रीय स्तर के ही ग्रीन बिजनेस प्लान कंपीटिशन में कंपनी को पहला स्थान मिला। यह कंपनी दुनिया की उन 50 कंपनियों में भी शुमार हो चुकी है, जिन्हें शुरुआत में ही बड़े-बड़े इनाम मिल गए। पेपरट्री के बारे में सबसे खास बात ये है कि वे कचरे से क्रिएशन कर रहे हैं। जिस चीज को ज्यादातर लोग बेकार समझकर फेंक देते हैं, कंपनी उसे फिर काम का बना रही है। हम भारतीय अब भी कागज़ की रद्दी के बारे में पूरी तरह सचेत नहीं हैं। हालांकि हम सब जानते हैं कि कागज़ पेड़ों को काटने के बाद बनाया जाता है। इसके बावजूद हम कागज़ की बर्बादी रोकने के लिए ज्यादा जागरूक नहीं हैं और अगर बात किसी शैक्षणिक संस्थान की हो तो वहां कुछ ज्यादा ही कागज़ बर्बाद होता है। न सिर्फ स्टूडेंट बल्कि टीचर भी इसमें शामिल होते हैं। चूंकि कागज़ पढ़ने-पढ़ाने के काम की मूलभूत आवश्यकता है इसलिए कोई इसकी बर्बादी को लेकर चिंता नहीं करता।

कर्नाटक के मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के तीन स्टूडेंट-शशांक तुलस्यान, सिद्धार्थ भसीन और सुमन गर्ग भी इससे परिचित हैं। शशांक और सिद्धार्थ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन इंजीनियरिंग में और सुमन मैकेनिकल इंजीनियरिंग में चौथे साल के स्टूडेंट हैं। ये तीनों सिर्फ समस्या से परिचित हैं, ऐसा नहीं है। इन्होंने इसका हल निकालने की कोशिश भी की है। इन तीनों ने रद्दी कागज़ से पेपर, पेन, पेंसिल बनाना शुरू किया है। शशांक टीम के मुखिया हैं। समस्या से निपटने के लिए इन्होंने सबसे पहले अपने कॉलेज कैंपस से ही रद्दी कागज़ इकट्ठा करना शुरू किया। शुरू-शुरू में इससे पेपर बैग और पेन स्टैंड्स वगैरह बनाए।

इस शुरुआती प्रक्रिया में उन्हें लगा कि किसी खास कौशल की जरूरत नहीं है। लिहाजा, शशांक और उनकी टीम बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं थी। निजी तौर पर शशांक तो निराश ही हो गए थे। वे कुछ नया करना चाहते थे। ऐसा जो लोगों को ज्यादा अपील करे। इस तरह की कोई चीज बनाना चाहते थे जिसे लोग वैसे ही इस्तेमाल करें जैसे कि मूल उत्पाद यानी कागज़ को करते हैं। लिहाजा उन्होंने रद्दी कागज़ के पूरे प्रबंधन के बारे में योजना बना डाली और इस योजना से निकली पेपरट्री क्रिएशंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड। इस साल अप्रैल में कंपनी रजिस्टर्ड हुई। शशांक इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और डायरेक्टर हैं। जबकि सिद्धार्थ और सुमन डायरेक्टर। कंपनी को मणिपाल यूनिवर्सिटी टेक्नोलॉजी इंक्यूबेटर (एमयूटीबीटी) का संरक्षण मिला हुआ है। इसमें 21 कर्मचारी काम कर रहे हैं।

कंपनी की स्थापना के बाद इसके डायरेक्टर्स ने कुछ अन्य संस्थानों से संपर्क किया। खासकर वे संस्थान जो शिक्षा के क्षेत्र में ही काम कर रहे हैं। इनमें कई स्कूल और कॉलेज थे। कुछ कॉरपोरेट संस्थान भी। इन सभी संस्थानों से पेपरट्री की टीम ने रद्दी कागज़ इकट्ठा करने का अभियान चलाया। इसके बाद उस रद्दी कागज़ से दोबारा कागज़ बनाया गया। पेन और पेंसिल बनाए गए। फिर उन्हीं संस्थानों को सप्लाई कर दिया, जहां से रद्दी जुटाई गई थी। वह भी रियायती दाम पर। पेपरट्री ने अभी अपने इस प्रोजेक्ट का शुरुआती चरण (पायलट प्रोजेक्ट) ही पूरा किया है। लेकिन नतीजे उत्साहजनक हैं। इसके ग्राहकों में मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मणिपाल स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग और डब्लूएलएस सॉल्यूशंस शामिल हो चुके हैं। अगले छह महीनों में 21 कॉरपोरेट घरानों को इस लिस्ट में शामिल करने लक्ष्य है।

देश के अलग-अलग हिस्सों में कंपनी की फ्रैंचाइजी भी दी जाएंगी। इस प्रस्ताव पर सहमति बन चुकी है। लेकिन यह काम अगले साल के अंत तक ही शुरू हो पाएगा, जब कंपनी कुछ मेच्योर हो चुकी होगी। भविष्य की योजनाओं में रंगीन कागज़, पेंसिलें और पेन बनाना भी शामिल है। यही नहीं कंपनी देश भर में स्कूल, कॉलेजों से संपर्क भी करेगी ताकि वे अपने यहां निकलने वाला रद्दी कागज़ उसके पास भिजवा सकें। इसके लिए बाक़ायदा अभियान चलाया जाएगा। रद्दी कागज़ के बदले शिक्षण संस्थानों को कंपनी से बने हुए कागज़, पेन और पेंसिल दिए जाएंगे। योजना के मुताबिक यह अभियान कर्नाटक, झारखंड, मध्य प्रदेश और पंजाब से शुरू हो सकता है।

एमयूटीबीटी ने कुछ समय पहले एक राष्ट्रीय स्तर का बिजनेस प्लान कंपीटिशन आयोजित किया था। इसमें पेपरट्री को तीसरा स्थान मिला। इनाम के तौर पर दो लाख रुपए नकद दिए गए। एक अन्य राष्ट्रीय स्तर के ही ग्रीन बिजनेस प्लान कंपीटिशन में कंपनी को पहला स्थान मिला। यह कंपनी दुनिया की उन 50 कंपनियों में भी शुमार हो चुकी है, जिन्हें शुरुआत में ही बड़े-बड़े इनाम मिल गए। पेपरट्री के बारे में सबसे खास बात ये है कि वे कचरे से क्रिएशन कर रहे हैं। जिस चीज को ज्यादातर लोग बेकार समझकर फेंक देते हैं, कंपनी उसे फिर काम का बना रही है। और कंपनी के उत्पाद पहुंच भी वहीं रहे हैं जहां से रद्दी निकली थी। इस तरह कंपनी दोहरा काम कर रही है। एक तो कचरे को कम कर रही है। दूसरा उसे फिर इस्तेमाल लायक बना रही है। ये दोनों ही तरीके इको सिस्टम (पारिस्थितिकी) में संतुलन बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी हैं।

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