कच्छ में बना दिए पंजाब जैसे खेत

कच्छ का रण. जिन लोगों ने गुजरात में आकर कच्छ को नहीं देखा उन के दिल-ओ-दिमाग में इस क्षेत्र के बारे में रेगिस्तान जैसी धारणा होगी। यह सही भी है। भौगोलिक दृष्टि से देश के दूसरे बड़े इस जिले का अधिकांश भाग रेगिस्तानी है। इसी लिए कच्छ का रण (रेगिस्तान) कहते हैं। लेकिन हिंदू-मुस्लिम दोनों की श्रद्धा के केंद्र ‘हाजीपीर’ के नजदीक स्थित नरा गांव आइए। धारणा बदल जाएगी।

करीब चार दशक पहले 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के वक्त कच्छ के रण का क्षेत्र पूरी तरह वीरान था। सीमा से लगा क्षेत्र ऐसी दशा में न रहे इस लिए केंद्र सरकार ने पंजाब से कुछ सिख परिवारों को यहां लाकर बसा दिया। अपनी जड़ों से हटे इन परिवारों के हिस्से में आई इस क्षेत्र की बंजर सी जमीन। लेकिन इन परिवारों ने न शिकवा किया, न शिकायत। लगभग 6000 एकड़ जमीन सरदारों के 100-125 परिवारों ने हरी-भरी कर दी। बिल्कुल पंजाब के जैसी उपजाऊ बना दी।

बावजूद इसके कि यहां पानी की किल्लत है। आज यह समुदाय इस इलाके से हर साल करोड़ों रुपयों की अनाज की फसलें ले रहा है। करीब 125 एकड़ जमीन के मालिक राजू भाई सरदार कहते हैं, ‘हमारे बाप-दादा ने जो खून-पसीना बहाया और जो मेहनत की है उसका फल हम आज खा रहे है।’ यहां की जमीन पर कपास और एरंडी की खेती मुख्य रूप से की जाती है। राजूभाई बताते हैं, ‘इस साल करीब 25 करोड़ रुपए की खेती हुई है। लगभग 200 ट्रक कपास और 150 से 200 ट्रक एरंडी की बिक्री हो चुकी है।’

जमीन खेती लायक न होने और अकाल की वजह से पानी की कमी के कारण यहां के स्थानीय लोग पीढ़ियों पहले मुंबई जैसे बड़े शहरो में चले गए थे। ऐसी हालत में इस मरुभूमि को सरदारों ने अपना वतन माना। उन्होंने सिर्फ जमीन ही उपजाऊ नहीं बनाई बल्कि पर्यावरण को भी सहेजने की मशक्कत की। नरा में रण को आगे बढ़ने से रोका गया है। करीब 35 साल पहले शादी के बाद उत्तर प्रदेश की सीता कौर यहां आईं थीं।

वे बताती हैं, ‘मैं जब यहां आई थी, तब पीने के पानी के लिए दर-दर भटकना पड़ता था। ऐसे में खेती के लिए पानी की बात तो दूर की थी। तब मैंने अपने हाथों से जमीन में बहुत सारे बोर बनाए और पानी की व्यवस्था की। बाद में सरकार ने भी नजदीक की नदी में बांध बनवा दिया। इससे पानी की समस्या कम हुई। आज ज्यादातर किसान टपक सिंचाई से ही खेती करते हैं।’ यहां रहते हुए सिखों की पीढ़ियां बदल चुकी हैं, लेकिन हौसला वैसा ही है। कई युवा तो यहां तक दावा करते हैं कि सरकार उन्हें इससे भी ज्यादा बंजर जमीन दे दे, वे उसे भी हरा-भरा कर देंगे।

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