कभी शीशे की तरह चमकता था हिंडन का पानी

पौराणिक ग्रंथों में हरनंदी के नाम से प्रचलित नदी अब हिंडन नाम से जानी जाती है। यह नदी दो नदियों के संगम से बनी है। यह नदी महाभारत कालीन लाक्षागृह से लेकर देश के स्वतंत्रता संग्राम तक का साक्ष्य रही है। देश की इस धरोहर के बारे में बता रहे हैं किरणपाल राणा :
 

हरनंदी से बन गई हिंडन नदी


मध्यकालीन कुछ ग्रंथों में जिस नदी को हरनंदी नाम से पुकारा गया उसका नाम समय के साथ बदलकर अब हिंडन नदी पड़ गया है। हिंडन नदी हजारों सालों से बह रही है। हिंडन नदी दो अलग नदियों के समागम से बनी है। मूलरूप से हिंडन नदी सहारनपुर के पास बेहट इलाके की कुछ छोटी पहाडि़यों के बीच से पानी के स्रोत के रुप में निकली है। मगर इसके अलावा इस नदी को गाजियाबाद तक के सफर में दो और सहायक नदियां मिली है। इनमें एक मुजफ्फरनगर के पास से होकर बहने वाली काली नदी और दूसरी नदी कृष्णा के नाम से जानी जाती है। कृष्णा नदी भी सहारनपुर के पास की एक पहाड़ी से ही निकलती है। यह नदी शामली और बागपत के एक बड़े हिस्से से होकर गुजरती है।

 

 

वारनावत के पास हुआ संगम


बागपत और मुजफ्फरनगर से बहते हुए आ रही कृष्णा और काली नदी का संगम वारनावत (वर्तमान में बरनावा) के पास होता है। बरनावा डिस्ट्रिक्ट बागपत में एक गांव का नाम है। महाभारतकालीन ग्रंथों मंे भी इसका का जिक्र है। वहीं से इस नदी का नाम हिंडन पड़ा।

 

 

लाक्षागृह की प्रत्यक्षदर्शी है हिंडन


महाभारत काल में जहां पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह बनाया गया था उसी जगह का नाम वारनावत है। कई ग्रंथों में उल्लेख है कि वारनावत में ही पांडवों को मारने के लिए कौरवों ने एक साजिश के तहत वहां लाक्षागृह बनाया था। मगर इस साजिश का पता पांडवों को समय से लग गया। ऐसे में वहां आकर रुके पांच भील लाक्षागृह में जल कर भस्म हो गए और पांडव बच निकले। ग्रंथों में जिक्र है कि सभी पांडवों ने लाक्षागृह से बचने के लिए एक सुरंग बनवाई थी। बाद में इसी सुरंग से पांडव पास के वन क्षेत्र में जा निकले।

 

 

आज भी हैं लाक्षागृह के अवशेष


महाभारत हुए हजारों साल गुजर गए। जहां लाक्षागृह बनाया गया था वहां अब कई मंजिल ऊंचा मिट्टी का टीला बना हुआ है। यहां अब संस्कृत विश्वविद्यालय संचालित होता है। मगर इस जगह आज भी महाभारत कालीन समय के अवशेष मिलते हैं। जिस सुरंग का इस्तेमाल कर पांडव यहां से गए थे वह सुरंग अब भी मौजूद है। मगर सुरंग में मिट्टी भर जाने के कारण अब उसका मुंह कुछ छोटा हो गया है।

 

 

 

 

हिंडन नदी ने देखी ही क्रांति की चिंगारी


देश की आजादी के लिए मेरठ से 1857 में चिंगारी सुलगी थी। जून महीने में 1857 में देश के क्रांतिकारियों और अंग्रेजी सेना के बीच हिंडन नदी पर ही युद्ध लड़ा गया। हिंडन नदी के तट पर हुई इस जंग में कई फिरंगी भी मारे गए। हिंडन नदी के शहीदों की याद में शहीद स्मारक भी बनाया गया है ।

 

 

 

 

- कभी पानी था अमृत -


हिंडन नदी हजारों साल से बह रही है। इस नदी ने सिटी को दो हिस्सों में बांटा हुआ है। दिल्ली की तरफ के हिस्से को टीएचए और गाजियाबाद मेन सिटी में अलग अलग किया हुआ है। कभी इस नदी पर सहारनपुर से लेकर गाजियाबाद तक कोई एक भी पुल नहीं था। मगर देश की आजादी के बाद इस नदी पर गाजियाबाद में पहला पुल वर्ष 1952 में बनाया गया था। कभी हिंडन नदी का पानी शीशे के समान चमकता था मगर अब हिंडन नदी के पानी में वह चमक कहां है। कई शहरों को गंदा पानी अपने आप में समेट कर हिंडन नदी अब अपनी यात्रा पूरी कर रही है। उपेक्षा की मार झेल रही हिंडन नदी का पानी अब पलूशन से काला पड़ रहा है। वह बात अलग है कि अब जिला प्रशासन कहता है कि हिंडन नदी को साफ किया जाएगा। इस में पड़ने वाले नालों को बंद किया जाएगा। ताकी हिंडन के पानी में फिर से वहीं पुरानी चमक पैदा हो सके।

 

 

 

 

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