कबायली लोकाचार का संगम तांदी


लाहौल-स्पीति जिले को पहाड़ों, नदियों, झीलों व हिमप्रपातों के लिये जाना जाता है। आकाश छूते पर्वत शिखर, मीलों लम्बे ग्लेशियर, उनसे निकलने वाले सैकड़ों नदी नाले और समतल स्थानों पर अनेक झीलें। लम्बी-चौड़ी वीरान चरागाह और दूर-दूर बिखरे छोटे-छोटे गांव और उन गांवों का कठिन जनजीवन। प्रकृति की इस अद्भुत लीला के बीच लोगों का अपने इष्ट के प्रति अटूट विश्वास व भक्ति। एक रहस्यमय-सा भूक्षेत्र है लाहौल-स्पीति।

इसी लाहौल-स्पीति जिले का एक उपमंडल है लाहौल। इसी उपमंडल का मुख्यालय केलंग है जो जिला मुख्यालय भी है। जब हम मनाली से केलंग की ओर जाते हैं तो मुख्यालय पहुंचने से कुछ पहले एक जगह आती है तांदी। तांदी केलंग से आठ किलोमीटर पहले पड़ती है। तांदी एक ऐसा बिंदु है जो लाहौल-स्पीति को तीन भागों में बांटता है। उत्तर की ओर केलंग दारचा लेह मार्ग जिसे ‘गाहर’ घाटी कहते हैं, तांदी ठोलंग उदयपुर मार्ग की घाटी ‘पट्टनघाटी’ कहलाती है और तांदी खोकसर कुंजम मार्ग क्षेत्र ‘तोद घाटी’ कहलाती है। तांदी वास्तव में चंद्रा और भागा नामक दो नदियों का संगम स्थल है। दोनों मिलकर चिनाब का रूप धारण करती हैं जो आगे चलकर उदयपुर से होती हुई चम्बा की ओर अपना रुख करती है।

चंद्रा नदी बारालाचा ला दर्रे के दक्षिण उत्तर की ओर एक विशाल हिमखंड से फूटती है जो शीघ्र ही एक बड़ी नदी का रूप धारण करती है। चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पर्वत शिखर व गहरी घाटियां बड़ा ही लुभावना दृश्य उपस्थित करते हैं। दर्रे के साथ ही चंद्रताल नामक लगभग एक किलोमीटर लम्बी व लगभग आधा किलोमीटर चौड़ी झील है। नदी 112 किलोमीटर की लम्बी दूरी तय कर आखिर तांदी में भागा नदी के साथ आ मिलती है। इस मार्ग पर अनेक ग्लेशियर व नदी-नाले पड़ते हैं। बड़ा शिघरी नामक लगभग 11 किलोमीटर लम्बा ग्लेशियर इसी के रास्ते में पड़ता है। समुद्री नामक एक अन्य ग्लेशियर भी चंद्रा के दाईं ओर है। सॢदयों में कई बार ग्लेशियर के नदी में आ गिरने के कारण बहुत बड़ी झील बन जाती है। सिस्सू ग्लेशियर और सोनापानी नामक ग्लेशियर भी इसी के तट को छूते हैं। खोकसर के उस पार हरी-भरी चरागाहें हैं जबकि चंद्रा का बायां किनारा एकदम ढलानदार व नंगा है। यद्यपि चंद्रा घाटी शुष्क और ऊसर सी दिखती है। फिर भी सिस्सू और गौधला से आगे नदी के दोनों ओर हरे-भरे खेत दिखेंगे। गोंधला से यहां के पहाड़ चंद्रा नदी के तट 3050 मीटर से सीधे 6090 मीटर की ऊंचाई लिये हैं। चंद्रा नदी की ढलान इसके स्रोत से तांदी तक 12.5 मीटर प्रति किलोमीटर मापी गई है।

भागा भी बारालाचाला (लाहौल की बोली में ‘ला’ का अर्थ पहाड़ होता है) स्थित सूरजताल नामक स्थान से निकलती है जिसकी ऊंचाई 16000 फीट है। अपने उद्ïगम स्थल से निकल कर अनेक छोटे-बड़े हिमखंडों व नदी-नालों को अपने में समेटती हुई भागा उत्तर-पश्चिम की ओर बहती हुई फिर दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़ती है। यह क्षेत्र दारचा गांव तक बिल्कुल बंजर है। दारचा मोचे नाला व जांस्कर चू के निकट स्थित है। तांदी तक भागा नदी की कुल लम्बाई 65 किलोमीटर है। नदी के तट चट्टानी व ढलानदार हैं। तांदी में चंद्रा व भागा का संगम होता है और यह चिनाब बनकर चम्बा की ओर मुड़ती है।

तांदी संगम का लाहौल वासियों के लिये उतना ही महत्व है जितना हिन्दुओं के लिये प्रयागराज। तांदी के संबंध में इस क्षेत्र में अनेक अनुश्रुतियां व किंवदंतियां जुड़ी हैं। तांदी गांव की स्थापना राजा राणा रामचंद्र ने की। तब उसका नाम चांदी रखा गया। सम्भव है चांदी ही कालांतर में तांदी कहलाया है। कहते हैं कि टुंडी राक्षस का राज्य कुल्लू से लाहौल तक था। लेकिन उसका वध जहां हुआ वह स्थान तांदी ही था। टुंडी के कारण यह स्थान तांदी कहलाया। इस क्षेत्र में प्रचलित एक दंतकथा के अनुसार चंद्रा चंद्रदेवता की बेटी थी जबकि भागा सूर्य देवता का बेटा था। दोनों में अगाध प्यार था। दोनों बारालाचा पर्वत शिखर के दो ओर (एक स्पीति की ओर दूसरे ने लाहौल की ओर) से चलकर तांदी संगम पर मिले और परिणय सूत्र में बंध गए। चंद्राभागा संगम के साथ लाहौल स्पीति का इतिहास और यहां की सभ्यता बारीकी से गुंथी हुई है। संगम को लोग बहुत पवित्र मानते हैं। अंतिम संस्कार के बाद फूलों (अस्थि अवशेष) को हरिद्वार ले जाने से पूर्व संगम पर भी बहाते हैं। घाटी के देवी-देवता चंद्राभागा को श्रद्धा सुमन अर्पण करने के लिये संगम स्थल पर अवश्य आते हैं।

संगम वास्तव में लाहौल-स्पीति के जनजीवन का भी संगम है। यहां घाटी तीन भागों में बंट जाती है। चंद्राभागा संगम के चारों ओर छोटे-छोटे गांव आबाद हैं— तांदी, ठोलंग, कारगा, सुमनम और गोशाल। गोशाल इस क्षेत्र का सबसे बड़ा गांव है तो वहीं ठोलंग की विशेषता यह है कि गांव छोटा होते हुए भी यहां सर्वाधिक उच्चाधिकारी हैं।
 
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