नई दिल्ली: वायु प्रदूषण की मार कार्यालयों के भीतर कार्यरत कर्मचारियों पर भी पड़ रही है। एक ताजा अध्ययन में कार्यालयों के भीतर वायु प्रदूषकों की उच्च सान्द्रता का पता लगाने के बाद भारतीय शोधकर्ताओं ने यह खुलासा किया है।
कार्यालयों में पाए गए वायु प्रदूषकों में सूक्ष्म कण यानी पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसी) प्रमुख रूप से शामिल हैं। बाहरी वातावरण की तुलना में कार्यालय के अन्दर पीएम-2.5 और पीएम-1 की अधिक मात्रा दर्ज की गई है। कार्यालयों में वायु प्रदूषकों का स्तर दोपहर की तुलना में सुबह और शाम को अपेक्षाकृत अधिक पाया गया है।
नई दिल्ली स्थित केन्द्रीय सड़क अनुसन्धान संस्थान (सीआरआरआई) के शोधकर्ताओं द्वारा किये गए इस अध्ययन में कार्यालय कक्ष, प्रयोगशाला और गलियारों में विभिन्न वायु प्रदूषकों की मात्रा का आकलन किया गया है। कार्यालयों के भीतर पीएम-10, पीएम-2.5 और पीएम-1 की अधिकतम सान्द्रता क्रमशः 88.2, 64.4 और 52.7 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज की गई हैं। गलियारे में भी इनकी अधिकतम सान्द्रता क्रमशः 254.3, 209.4 और 150 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर मापी गई है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, कार्यालयों में वायु प्रदूषकों के बढ़े हुए स्तर के लिये साफ-सफाई और निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल कण, धूम्रपान, वाहनों का प्रदूषण और कमरों का तापमान एवं आर्द्रता मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। दिल्ली के एनएच-2 पर स्थित सीआरआरआई बिल्डिंग कॉम्पलेक्स में किये गए इस अध्ययन में प्रयोगशाला में वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) की अधिकतम सान्द्रता 959.8 पीपीएम आंकी गई है। एनएच-2 भारी ट्रैफिक वाला क्षेत्र है, जहाँ वाहनों की आवाजाही निरन्तर होती रहती है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, कार्यालयों में आन्तरिक वायु प्रदूषकों के मिलने का एक प्रमुख कारण उनका वातानुकूलित होना है। एयरकंडीशनर के कारण खिड़कियां और दरवाजे लगभग पूरे समय बन्द रहते हैं। इससे वहाँ प्राकृतिक रूप से हवा की आवाजाही नहीं हो पाती। कार्यालय सड़क के किनारे स्थित होने से बाहरी धूल और वाहनों का धुआँ भी आन्तरिक वातावरण को प्रदूषित करता है।
सामान्य कमरों की अपेक्षा प्रयोगशाला के भीतर वीओसी की सान्द्रता बहुत अधिक पायी गई है। कार्यालयों में उपयोग होने वाले एयर एवं रूम फ्रेशनर, कीटनाशक, प्रयोगशाला के रसायन, डिटर्जेंट के अलावा प्रिंटर, फोटोकॉपी मशीन, स्कैनर, कम्प्यूटर एवं ऑफिस में प्रयुक्त लकड़ी के फर्नीचर और कमरों में सीलन के कारण आन्तरिक वातावरण में वाष्पशील कार्बनिक यौगिक बड़ी मात्रा में बनते हैं।
प्रमुख शोधकर्ता मनीषा गौर ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “आन्तरिक वायु प्रदूषण बाहरी वायु प्रदूषण के समान ही हानिकारक है। अभी इसे वैज्ञानिक अवधारणा के तौर पर परिभाषित नहीं किया जा सका है, पर पूरे विश्व में आन्तरिक वायु प्रदूषण पर शोध किये जा रहे हैं। इससे निपटने के लिये प्राथमिक स्तर पर आन्तरिक वायु गुणवत्ता को नियंत्रित करना आवश्यक है। प्रदूषकों के स्रोतों के प्रबन्धन और हवादार बिल्डिंगों के निर्माण से प्रदूषण के स्तर को कम करने में मदद मिल सकती है। कार्यस्थलों और घरों में एयर प्यूरीफायर और इनडोर पौधे लगाने से भी आन्तरिक हवा की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।”
पार्टिकुलेट मैटर से तात्पर्य वायु में छोड़े गए हानिकारक अति सूक्ष्म कणों से है। इन कणों का व्यास क्रमशः 10, 2.5 और 1 माइक्रोमीटर होता है। इसी आधार पर इन कणों को पीएम-10 पीएम-2.5 और पीएम-1 में विभाजित किया गया है। वीओसी ऐसे कार्बनिक रासायनिक यौगिक होते हैं जो बहुत जल्दी वाष्पित हो जाते हैं। कुछ वीओसी मानव स्वास्थ्य के लिये खतरनाक होते हैं और वातावरण को भी हानि पहुँचाते हैं।
आन्तरिक वायु प्रदूषण से खराब हो रही कार्यालयों की वायु गुणवत्ता का कर्मचारियों की उपस्थिति पर भी असर देखा जा सकता है। इस दिशा में और अधिक शोध तथा समाधान के लिये यह अध्ययन काफी सहायक साबित हो सकता है।
अध्ययनकर्ताओं की टीम में मनीषा गौर के अलावा अनुराधा शुक्ला और कीर्ति भण्डारी शामिल थीं। यह अध्ययन हाल में शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।
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