एक बार फिर यमुना राजनीति की शिकार हो गई। आमरण अनशन की घोषणा करके दिल्ली आए यमुना तट के बाशिन्दे कोरा आश्वासन पाकर लौट गए। न दिल्ली की यमुना में नाले गिरने रुके और न ही हथिनीकुण्ड से पानी की मात्रा बढ़ी। अन्तर एक ही आया है। सरकार का चेहरा बदल गया है, करतूत नहीं।
यमुना आन्दोलन एक बार फिर मँझधार में फँसकर रह गया। नेतृत्व के अभाव और सरकार की चालाकी से यमुना पथ के बाशिन्दे सिर्फ आश्वासन लेकर वापस लौट गए। कमोबेश 2011 और 2013 की कहानी को ही दोहराया गया।
इस बार का आन्दोलन शुरू से ही हारी हुई लड़ाई लड़ रहा था। आन्दोलन के ज्यादातर नेता केन्द्रीय मन्त्रियों के साथ अपने मधुर सम्बन्धों में शहद डालने की कोशिश में जुटे थे। 15 मार्च को कोसीकलाँ से प्रारम्भ हुई यात्रा को यही नहीं पता था कि लड़ाई किससे है।
नेताओं ने योजना ही ऐसी बनाई कि यह 20 मार्च को, यानी जिस दिन संसद के बजट सत्र के पहले हिस्से का अन्तिम दिन था, यात्रा दिल्ली पहुँचे और सरकार पर कोई भी दबाव ना बनाया जा सके। हालांकि पिछली बार की तरह आन्दोलन के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से झगड़ा नहीं किया, यात्रा पूरी तरह मान मन्दिर के सर्वेसर्वा रमेश बाबा के नेतृत्व में काम कर रही थी। रमेश बाबा ब्रज क्षेत्र के बाहर नहीं निकलते हैं, इसलिये वे फोन पर निर्देश देते रहे।
यमुना मुक्ति अभियान की दो मुख्य माँगे थीं। पहली, दिल्ली की 22 किलोमीटर की यमुना के किनारे 22 किलोमीटर का ही नाला बनाया जाए, ताकि दिल्ली की गन्दगी यमुना में ना गिरे। दूसरी, यमुना को पर्यावरण सुरक्षा एक्ट के तहत नोटिफाइड किया जाए। दिल्ली व उसके आसपास के इलाकों से यमुना में रोज़ाना 240 करोड़ लीटर गन्दा पानी व कचरा फेंका जाता है। यह जानकारी खुद राज्य सरकार ने 2013 में सुप्रीम कोर्ट को दी थी।
ये दोनों ही माँगे मानने का आश्वासन 2013 में यूपीए सरकार में केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्री हरीश रावत ने लिखित में दिया था। हालांकि इस दिशा में मामूली-सा भी काम भी नहीं हुआ। इस बार प्रण था कि अविरल यमुना को लिये बिना ब्रज भूमि वापस नहीं लौटा जाएगा। सत्र चल रहा था, इसलिये सरकार ने नदी संरक्षण मन्त्री उमा भारती को यात्रा रोकने का कार्य सौंपा। उमा यात्रा के दिल्ली पहुँचने से पहले ही होडल में पदयात्रियों से मिलने पहुँची, लेकिन उन्हें कोई भी लिखित आश्वासन नहीं दे सकीं।
उमा ने कहा कि नदी राज्यों का विषय है। वे मुख्यमन्त्रियों की बैठक में इस मुद्दे को पूरी ताकत से उठाएँगी, लेकिन लिखित कुछ नहीं दे सकतीं। सवाल यह है कि जब उमा भारती के पास कोई अधिकार ही नहीं था तो वे वहाँ गई ही क्यों थीं? दरअसल इन सबके पीछे भाजपा की दूसरी ही राजनीति काम कर रही थी।
कुछ वरिष्ठ नेताओं ने उमा भारती को भेजा ही था असफल होने के लिये, ताकि उनकी किरकिरी कराई जा सके। अन्यथा क्या कारण है कि जो आश्वासन दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर संचार मन्त्री रविशंकर प्रसाद ने दे दिया, वह आश्वासन देने में उमा खुद को असमर्थ पा रहीं थीं। 21 मार्च को गृहमन्त्री राजनाथ सिंह के घर आन्दोलन के नेताओं की बैठक हुई।
नाला बनाने का वादा कितना कोरा है, इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस बाबत दिल्ली की केजरीवाल सरकार से कोई बात ही नहीं की गई। यानी भविष्य में यह घोषणा भी राजनीति का शिकार हो जाएगी। यमुना की सफाई और उसके पानी को नहाने योग्य बनाने के मकसद से बनाई जा रही इंटरसेप्टर सीवर लाइन का निर्माण कार्य पूरा होने में अभी और वक्त लगेगा। दरअसल दिल्ली के 50 फीसदी इलाके में सीवर लाइन का नेटवर्क नहीं है। इसके चलते अनधिकृत कॉलोनियों व गाँवों का सीवर नालों के जरिए यमुना में गिर रहा है। राजनाथ और रविशंकर प्रसाद ने लॉलीपाप पकड़ाते हुए पूरे आन्दोलन को दोबारा दो साल पहले की स्थिति में पहुँचा दिया। बैठक में शामिल पंकज बाबा, राधाकान्त शास्त्री, रवि मोंगा जैसे लोग ये भी नहीं पूछ सके कि जब पूरे देश को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर तुरन्त अध्यादेश जारी हो सकता है तो पिछली सरकार के लिये गए फैसलों को लागू करने के लिये समय क्यों चाहिए?
रमेश बाबा ने सरकार से कहा कि जब तक नोटिफिकेशन जारी नहीं होता तब तक हथिनीकुण्ड बैराज के दो गेट खोल दिए जाएँ, लेकिन सरकार ने उनकी यह माँग मानने सेे भी साफ इंकार कर दिया। बैठक में तय हुआ कि सरकार दोनों माँगों पर काम करेगी। नाला भी बनेगा और नोटिफिकेशन भी जारी होगा, जिसके लिये दो महिने की समय सीमा तय की गई।
नाला बनाने का वादा कितना कोरा है, इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस बाबत दिल्ली की केजरीवाल सरकार से कोई बात ही नहीं की गई। यानी भविष्य में यह घोषणा भी राजनीति का शिकार हो जाएगी। यमुना की सफाई और उसके पानी को नहाने योग्य बनाने के मकसद से बनाई जा रही इंटरसेप्टर सीवर लाइन का निर्माण कार्य पूरा होने में अभी और वक्त लगेगा। दरअसल दिल्ली के 50 फीसदी इलाके में सीवर लाइन का नेटवर्क नहीं है। इसके चलते अनधिकृत कॉलोनियों व गाँवों का सीवर नालों के जरिए यमुना में गिर रहा है।
बहरहाल आन्दोलन के नेता तो मानने के लिये ही आए थे, लेकिन आमरण अनशन पर बैठे सन्त जल प्रवाह से कम पर राजी नहीं हो रहे थे। रमेश बाबा का नाम लेकर उन्हें जबरदस्ती रविशंकर प्रसाद ने पानी पिलाया। ख़ुद को ठगा हुआ महसूस करते सन्त आँसू बहाकर चले गए। अविरल यमुना की चाह में कितने सन्तों की आँखों से अविरल धारा बहेगी, कह नहीं सकते। पर इतना तो मानना पड़ेगा कि सन्तों के बल पर राजनीति करने वाली भाजपा को भोले-भाले सन्तों को पटाना, या साफ कहें तो धोखा देना बखूबी आता है।
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