गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए एक ऐसी योजना बनाने की जरूरत है, जिसके तहत पर्यावरणीय नियमों का कड़ाई से पालन हो और नगर निगम के गंदे पानी के नालों, औद्योगिक प्रदूषण, कचरे एवं नदी के आस-पास के इलाकों का बेहतर और कारगर प्रबंधन शामिल हो। गंगा किनारे बसे शहरों और उद्योगों से निकल रहे प्रदूषित जल और रासायनिक कचरे को जब तक गंगा में बहाने पर पूरी तरह रोक नहीं लग जाती, तब तक गंगा शुद्धि के नाम पर कितने भी रुपए फूंक दिए जाएं, जमीनी स्तर पर कुछ सुधार नहीं होगा।
हमारे देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की गंगा सफाई योजना और उसके तौर-तरीकों पर एक बार अपनी नाराजगी जाहिर की है। न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने राष्ट्रीय नदी गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के मामले की सुनवाई के दौरान सरकार के हलफनामे पर नाइत्तेफाकी जताते हुए कहा कि सरकार की योजना बहुत व्यापक है, इसमें लंबा समय लगेगा। इस तरह गंगा को स्वच्छ बनाने का उद्देश्य नहीं प्राप्त किया जा सकता।अदालत इस बात से खास तौर पर नाराज थी कि गंगा सफाई अभियान कार्य योजना के प्रति सरकार का अभी भी वही नौकरशाही वाला नजरिया बरकरार है।
बहरहाल इस मामले में अदालत ने सुनवाई 24 सितंबर तक के लिए स्थगित करते हुए सरकार से कहा है कि अगली सुनवाई पर वह उसे गंगा नदी की सफाई के लिए चरणबद्ध तरीके से किए जाने वाले संभावित कदमों का संपूर्ण विवरण दे। अदालत ने न सिर्फ गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए सरकारी कार्ययोजना की देरी पर चिंता जतलाई, बल्कि अपनी ओर से सरकार को कुछ सुझाव भी दिए। अदालत का कहना था कि सफाई परियोजना चरणबद्ध तरीके से हो।
बीते लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी बीजेपी के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में गंगा नदी को लेकर जिस तरह से लगातार भावनात्मक भाषण दिए, उससे यह उम्मीद बंधी थी कि वे जब सत्ता में आएंगे, तो गंगा का उद्धार जरूर होगा।
गंगा नदी की स्वच्छता उनकी प्राथमिकता में होगी। लेकिन अभी तक का उनका कार्यकाल यदि देखें तो इस मामले में उनकी सरकार का भी रवैया औरों की तरह ही है। हां, देखने-दिखाने को जरूर उनकी सरकार कुछ कवायद करती नजर आती है। केंद्रीय जल संसाधन और गंगा सफाई अभियान मंत्री उमा भारती की शुरुआती सक्रियता महज एक छलावा भर थी।
सच बात तो यह है कि देश के बड़े इलाके की जीवनधारा कही जाने वाली राष्ट्रीय नदी गंगा के सफाई अभियान पर राजग सरकार जरा सा भी संजीदा नहीं। यह हाल तब है, जब बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र में सर्वोच्चता से यह बात कही गई है कि गंगा की सफाई उसकी प्राथमिकता में रहेगी।
यह पहली बार नहीं है जब गंगा नदी मामले में शीर्ष अदालत का कड़ा रुख सामने आया हो और उसने सरकार को फटकार लगाई हो। अदालत बीते कई सालों से गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। गंगा सफाई अभियान को लेकर उसने कई बार सरकार और प्रशासन की तीखी आलोचना की, गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अनेकों बार दिशा-निर्देश जारी किए, लेकिन फिर भी सरकार के काम-काज में कोई ज्यादा बड़ा बदलाव नहीं आया।
करोड़ों-अरबों रुपए खर्च होने के बाद भी गंगा की हालत जरा सी भी नहीं सुधरी। भ्रष्टाचार, प्रशासनिक उदासीनता और धार्मिक कर्मकांड देश की सबसे बड़ी नदी को स्वच्छ बनाने की दिशा में लगातार रुकावट बने हुए हैं।
गंगा में जहरीला पानी गिराने वाले कारखानों के खिलाफ कठोर कदम नहीं उठाए जाने का ही नतीजा है कि आज जीवनदायिनी गंगा का पानी कहीं-कहीं इतना जहरीला हो गया है कि इस जहरीले पानी से न सिर्फ पशु-पक्षियों के लिए संकट पैदा हो गया है, बल्कि आस-पास के इलाकों का भूजल भी प्रदूषित होने से बड़े पैमाने पर लोग असाध्य बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
करीब ढाई हजार किलोमीटर लंबी गंगा नदी देश के 29 बड़े शहरों, 23 छोटे शहरों और 48 कस्बों से होकर गुजरती है। गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए, ऐसा नहीं कि सरकारी पहल नहीं हुई। कोशिशें खूब हुईं, मगर उसका असर कहीं दिखलाई नहीं देता।
गंगा नदी में प्रदूषण की ओर सरकार का सबसे पहले ध्यान साल 1979 में गया। उस वक्त केंद्रीय जल प्रदूषण निवारक और नियंत्रण बोर्ड ने गंगा में प्रदूषण पर अपनी दो व्यापक रिपोर्टें पेश की थीं। इन्हीं रिपोर्टों के आधार पर अप्रैल, 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कैबिनेट ने गंगा एक्शन प्लॉन को मंजूरी दी। यह पूरी तरह से केंद्र सरकार की योजना थी।
राजीव गांधी ने गंगा को पांच साल के भीतर प्रदूषण मुक्त करने के वादे के साथ गंगा एक्शन प्लान को क्रियान्वित किया। इस प्लान के तहत उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के 25 शहरों में 261 परियोजनाएं शुरू की जानी थी।
बहरहाल इस मुहिम पर अब तक कोई 2 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो गए हैं, लेकिन इतना पैसा खर्च होने और 29 सालों की कोशिशों के बाद भी गंगा पहले से ज्यादा गंदी और प्रदूषित है। भारी धन राशि खर्च करने के बाद भी गंगा एक्शन प्लान पूरी तरह से नाकाम रहा है।
तमाम सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के बाद भी गंगा नदी क्यों स्वच्छ नहीं हो पा रही? इसकी वजह जानना ज्यादा मुश्किल नहीं। गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए पहली शर्त है कि नदी में मिलने वाली गंदगी को किसी भी तरह रोका जाए। जब तलक इस गंदगी को मिलने से रोका नहीं जाएगा, तब तक गंगा सफाई की सारी मुहिमें बेकार हैं।
कहने को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कल-करखानों से निकलने वाले अवशिष्ट के लिए कड़े कायदे-कानून बना रखे हैं। लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद आज भी गंगा में इनका प्रवाह रुक नहीं पा रहा है। गंगा की सफाई पर एक तरफ सरकारें करोड़ों रुपया खर्च करती हैं, लेकिन रिहाइशी कॉलोनियों और कारखानों से निकलने वाले गंदे पानी को इसमें मिलने से कैसे रोका जाए? इसके लिए कोई कदम नहीं उठातीं।
औद्योगिक इकाइयां जहां मुनाफे के चक्कर में कचरे के निस्तारण और परिशोधन के प्रति बिल्कुल भी संवेदनशील नहीं होतीं, वहीं विभिन्न राज्य सरकारें और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी कल-कारखानों की मनमानियों के प्रति अपनी आंखें मूंदें रहते हैं। न्यायपालिका के कठोर रुख के बाद भी राज्य सरकारें दोषी पूंजीपतियों और कल-कारखानेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं करतीं।
गंगा नदी की बर्बादी के लिए जितना इसे प्रदूषित करने वाले जिम्मेदार हैं, उससे कहीं ज्यादा वे लोग जिम्मेदार हैं, जिन्हें इसे प्रदूषण मुक्त करने की जिम्मेदारी दी गई थी। सच बात तो यह है कि उन्होंने कभी अपने काम को सही तरह से अंजाम नहीं दिया। जिसके चलते हालात और भी ज्यादा बिगड़ते चले गए।
खैर, अब भी केंद्र और जिम्मेदार राज्य सरकारें कागजों में फंड रिलीज करने के बजाए यदि जमीनी स्तर पर कुछ ठोस कदम उठाएं तो हालात बदल सकते हैं। इस मामले में सरकार वाकई संजीदा है तो उसे एक चरणबद्ध योजना बनाना चाहिए, वरना इसके बगैर गंगा नदी को साफ करना बेहद मुश्किल भरा काम होगा। जज्बाती बातें बहुत हुईं, अब कुछ काम हो।
गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए एक ऐसी योजना बनाने की जरूरत है, जिसके तहत पर्यावरणीय नियमों का कड़ाई से पालन हो और नगर निगम के गंदे पानी के नालों, औद्योगिक प्रदूषण, कचरे एवं नदी के आस-पास के इलाकों का बेहतर और कारगर प्रबंधन शामिल हो। गंगा किनारे बसे शहरों और उद्योगों से निकल रहे प्रदूषित जल और रासायनिक कचरे को जब तक गंगा में बहाने पर पूरी तरह रोक नहीं लग जाती, तब तक गंगा शुद्धि के नाम पर कितने भी रुपए फूंक दिए जाएं, जमीनी स्तर पर कुछ सुधार नहीं होगा।
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Post By: Shivendra