पंजाब का मालवा क्षेत्र राजनीतिक और भौगोलिक तौर पर सबसे महत्वपूर्ण है। राज्य के 117 विधानसभा क्षेत्रों में से 65 मालवा में हैं। सिर्फ एक मुख्यमंत्री दरबारा सिंह को छोड़कर पंजाब के सभी मुख्यमंत्री मालवा से रहे। पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह भी इसी क्षेत्र के थे। इतने महत्वपूर्ण नेताओं को मान सम्मान देने वाला यह क्षेत्र इन दिनों कैंसर की गिरफ्त में है, और इस बीमारी की रोकथाम के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं हो रहा है।
दरअसल, वर्ष 1993 के बाद ही वहां के कई गांवों से अजीब किस्म के रोगों के संकेत मिलने शुरू हो चुके थे। इलाके के दो गांव, झजर और ज्ञाना में तो प्रत्येक घर में एक रोगी था। वहां लोगों को कैंसर होने की आशंका थी। बहुत ज्यादा हो हल्ला मचने के बाद अंतत: पंजाब सरकार ने पीजीआई के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के नेतृत्व में एक सर्वेक्षण करवाने का फैसला किया। पीजीआई की टीम ने दो ब्लॉकों, तलवंडी साबो और चमकौर साहिब, का अध्ययन किया। इस टीम ने 1993 से 2003 तक कैंसर मरीजों का रिकॉर्ड जुटाने के लिए घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया। इसमें पाया गया कि तलवंडी साबो ब्लॉक में एक लाख जनसंख्या के पीछे 107 मरीज इस रोग की गिरफ्त में हैं, जबकि चमकौर साहिब में 71 मरीजों में कैंसर पाया गया। दोनों स्थानों पर महिलाओं को कैंसर होने की तादाद ज्यादा है।
कैंसर के कारक के रूप में टीम ने तलवंडी साबो में कॉटन की फसल पर कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल, शराब-तंबाकू के सेवन आदि को विशेष तौर पर इंगित किया। पेयजल में भी भारी धातुओं की मात्रा ज्यादा देखने को मिली। इन सबके बावजूद पीजीआई की टीम कैंसर का कोई ठोस कारण ढूंढने में सफल नहीं हुई। इतनी खौफनाक स्थिति के बावजूद राज्य में फिलहाल कैंसर के इलाज की बातें तो चल रही हैं, पर इसके कारण ढूंढकर उनको खत्म करने की ओर अभी तक कोई चर्चा नहीं हो पा रही है। इसके विपरीत सरकारी एजेंसियां कई सर्वेक्षणों की आशंकाओं को ही निर्मूल बताने पर अपना जोर लगा रही हैं।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना ने दावा किया कि कीटनाशकों का प्रयोग कैंसर की वजह नहीं हो सकता, क्योंकि इसका फसलों पर असर एक तय सीमा से ज्यादा नहीं होता है। हाल ही में राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने चंडीगढ़ लैबोरेटरी में पेयजल के 68 सैंपल जांच करवाने के बाद दावा किया कि इसमें भारी धातु तय सीमा से कम है। अब लोगों में इस बात का खौफ पैदा हो रहा है कि यदि इनमें से कोई भी बात कैंसर का कारण नहीं है, तो असली वजह क्या है? इसका पता लगाने की जिम्मेदारी किसकी है? इलाके के बुद्धिजीवी पूछ रहे हैं कि एक ठोस रणनीति के तहत जागरूकता मुहिम चलाने और जरूरत के अनुसार सुविधा प्रदान करने का प्रयास क्यों नहीं हो पाया?
लोकसभा चुनाव में बठिंडा सीट से पंजाब के दो बड़े राजनीतिक परिवारों के सदस्य मैदान में थे। पंजाब के मुख्यमंत्री की बहू व शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर तथा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रणइंदर सिंह। हरसिमरत भारी मतों से विजयी हुईं। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि एक के साथ तीन मुफ्त मिलेंगे, जिनमें मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री शामिल हैं। लेकिन इस बार इतने ताकतवर सांसद के रहते हुए भी मालवा की स्थिति कहीं पहले मुख्यमंत्रियों के वायदों की तरह ही तो नहीं रह जाएगी?
(लेखक अमर उजाला से जुड़े हैं)
दरअसल, वर्ष 1993 के बाद ही वहां के कई गांवों से अजीब किस्म के रोगों के संकेत मिलने शुरू हो चुके थे। इलाके के दो गांव, झजर और ज्ञाना में तो प्रत्येक घर में एक रोगी था। वहां लोगों को कैंसर होने की आशंका थी। बहुत ज्यादा हो हल्ला मचने के बाद अंतत: पंजाब सरकार ने पीजीआई के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के नेतृत्व में एक सर्वेक्षण करवाने का फैसला किया। पीजीआई की टीम ने दो ब्लॉकों, तलवंडी साबो और चमकौर साहिब, का अध्ययन किया। इस टीम ने 1993 से 2003 तक कैंसर मरीजों का रिकॉर्ड जुटाने के लिए घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया। इसमें पाया गया कि तलवंडी साबो ब्लॉक में एक लाख जनसंख्या के पीछे 107 मरीज इस रोग की गिरफ्त में हैं, जबकि चमकौर साहिब में 71 मरीजों में कैंसर पाया गया। दोनों स्थानों पर महिलाओं को कैंसर होने की तादाद ज्यादा है।
कैंसर के कारक के रूप में टीम ने तलवंडी साबो में कॉटन की फसल पर कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल, शराब-तंबाकू के सेवन आदि को विशेष तौर पर इंगित किया। पेयजल में भी भारी धातुओं की मात्रा ज्यादा देखने को मिली। इन सबके बावजूद पीजीआई की टीम कैंसर का कोई ठोस कारण ढूंढने में सफल नहीं हुई। इतनी खौफनाक स्थिति के बावजूद राज्य में फिलहाल कैंसर के इलाज की बातें तो चल रही हैं, पर इसके कारण ढूंढकर उनको खत्म करने की ओर अभी तक कोई चर्चा नहीं हो पा रही है। इसके विपरीत सरकारी एजेंसियां कई सर्वेक्षणों की आशंकाओं को ही निर्मूल बताने पर अपना जोर लगा रही हैं।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना ने दावा किया कि कीटनाशकों का प्रयोग कैंसर की वजह नहीं हो सकता, क्योंकि इसका फसलों पर असर एक तय सीमा से ज्यादा नहीं होता है। हाल ही में राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने चंडीगढ़ लैबोरेटरी में पेयजल के 68 सैंपल जांच करवाने के बाद दावा किया कि इसमें भारी धातु तय सीमा से कम है। अब लोगों में इस बात का खौफ पैदा हो रहा है कि यदि इनमें से कोई भी बात कैंसर का कारण नहीं है, तो असली वजह क्या है? इसका पता लगाने की जिम्मेदारी किसकी है? इलाके के बुद्धिजीवी पूछ रहे हैं कि एक ठोस रणनीति के तहत जागरूकता मुहिम चलाने और जरूरत के अनुसार सुविधा प्रदान करने का प्रयास क्यों नहीं हो पाया?
लोकसभा चुनाव में बठिंडा सीट से पंजाब के दो बड़े राजनीतिक परिवारों के सदस्य मैदान में थे। पंजाब के मुख्यमंत्री की बहू व शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर तथा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रणइंदर सिंह। हरसिमरत भारी मतों से विजयी हुईं। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि एक के साथ तीन मुफ्त मिलेंगे, जिनमें मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री शामिल हैं। लेकिन इस बार इतने ताकतवर सांसद के रहते हुए भी मालवा की स्थिति कहीं पहले मुख्यमंत्रियों के वायदों की तरह ही तो नहीं रह जाएगी?
(लेखक अमर उजाला से जुड़े हैं)
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