झारखंड में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) का लेखा-जोखा।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) को लेकर जितना हो-हल्ला, हिंसा इस राज्य में हुई, शायद और कहीं नहीं। पिछले तीन साल के दौरान बुंडू के तूरिया मुंडा की आत्महत्या, हजारीबाग के तापस सोरेन का आत्मदाह और सामाजिक कार्यकर्ता ललित मेहता की हत्या सहित दर्जन भर हिंसक घटनाएं हुईं। नरेगा के आर्किटेक्ट माने जा रहे अर्थशास्त्रि प्रों ज्वां द्रेज सदल-बल झारखंड में ही लगभग डेरा डाले रहे। इसके बावजूद नरेगा यहां घोर विफलता से जूझ रहा है। प्रो. द्रेज हताश भले न हों लेकिन स्वीकारते हैं कि नरेगा झारखंड में सबसे अधिक बदहाल है। द्रेज केंद्रिय नरेगा समिति के सदस्य भी हैं।
ऐसा नहीं कि इसकी पहल का स्वागत नहीं हुआ। ये हिंसक घटनाएं भी गवाह हैं कि वहां संघर्षपूर्ण प्रयास होते रहे। यह पहला प्रदेश है जहां नरेगा अधिनियम के तहत लापरवाह अधिकारियों पर जुर्माने की सजा बहाल हुई। लोक अदालत की तर्ज पर देश की पहली नरेगा-अदालत लातेहार जिले में आयोजित की गई। इसमें हाईकोर्ट के जस्टिस भी मौजूद रहे। लेकिन वहां भी स्थानीय प्रशासन का नकारात्मक रुख ही अखबारों की सुर्खियां बना।
हिन्दुस्तान से बातचीत में प्रो. द्रेज राज्य में ‘अफसर-नेता-बिचौलिया तिकड़ी के व्यापक भ्रष्टाचार को चिन्हित करने से नहीं हिचकते। लेकिन मुख्य कारण मानते हैं कुशासन को- ‘छह महीने में तीन-तीन नरेगा आयुक्त बदल दिए गए। कोई योजनाबद्ध पहल करे, तो कैसे? अभी भी जो आयुक्त हैं, उन पर तीन विभागों का भार है। नरेगा के बारे में सोचने तक की फुरसत नहीं।‘ अपनी बातें खत्म करते हुए ज्यां कहते हैं, ‘कुछ सुधार जरूर हुआ है। गांवों में जागरुकता आने लगी है। मजदूरी की रकम भी तय सरकारी मानदंड तक पहुंची है। लेकिन मजदूरों को काम तो मिले। इनके लिए जरूरी है राजनितिक सोच और इच्छाशक्ति जो अब तक नदारद रही है’।
प्रों द्रेज की सहयोगी रितिका खेरा कहती हैं, ‘हालिया चुनाव के नतीजे से राजनेताओं को सीख लेनी चाहिए। राजस्थान, मध्य प्रदेश, दक्षिण के राज्य, जहां-जहां नरेगा सफल रहा, यूपीए को जबरदस्त सफलता मिली जबकि झारखंड में मुंह की खानी पड़ी’।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) को लेकर जितना हो-हल्ला, हिंसा इस राज्य में हुई, शायद और कहीं नहीं। पिछले तीन साल के दौरान बुंडू के तूरिया मुंडा की आत्महत्या, हजारीबाग के तापस सोरेन का आत्मदाह और सामाजिक कार्यकर्ता ललित मेहता की हत्या सहित दर्जन भर हिंसक घटनाएं हुईं। नरेगा के आर्किटेक्ट माने जा रहे अर्थशास्त्रि प्रों ज्वां द्रेज सदल-बल झारखंड में ही लगभग डेरा डाले रहे। इसके बावजूद नरेगा यहां घोर विफलता से जूझ रहा है। प्रो. द्रेज हताश भले न हों लेकिन स्वीकारते हैं कि नरेगा झारखंड में सबसे अधिक बदहाल है। द्रेज केंद्रिय नरेगा समिति के सदस्य भी हैं।
ऐसा नहीं कि इसकी पहल का स्वागत नहीं हुआ। ये हिंसक घटनाएं भी गवाह हैं कि वहां संघर्षपूर्ण प्रयास होते रहे। यह पहला प्रदेश है जहां नरेगा अधिनियम के तहत लापरवाह अधिकारियों पर जुर्माने की सजा बहाल हुई। लोक अदालत की तर्ज पर देश की पहली नरेगा-अदालत लातेहार जिले में आयोजित की गई। इसमें हाईकोर्ट के जस्टिस भी मौजूद रहे। लेकिन वहां भी स्थानीय प्रशासन का नकारात्मक रुख ही अखबारों की सुर्खियां बना।
हिन्दुस्तान से बातचीत में प्रो. द्रेज राज्य में ‘अफसर-नेता-बिचौलिया तिकड़ी के व्यापक भ्रष्टाचार को चिन्हित करने से नहीं हिचकते। लेकिन मुख्य कारण मानते हैं कुशासन को- ‘छह महीने में तीन-तीन नरेगा आयुक्त बदल दिए गए। कोई योजनाबद्ध पहल करे, तो कैसे? अभी भी जो आयुक्त हैं, उन पर तीन विभागों का भार है। नरेगा के बारे में सोचने तक की फुरसत नहीं।‘ अपनी बातें खत्म करते हुए ज्यां कहते हैं, ‘कुछ सुधार जरूर हुआ है। गांवों में जागरुकता आने लगी है। मजदूरी की रकम भी तय सरकारी मानदंड तक पहुंची है। लेकिन मजदूरों को काम तो मिले। इनके लिए जरूरी है राजनितिक सोच और इच्छाशक्ति जो अब तक नदारद रही है’।
प्रों द्रेज की सहयोगी रितिका खेरा कहती हैं, ‘हालिया चुनाव के नतीजे से राजनेताओं को सीख लेनी चाहिए। राजस्थान, मध्य प्रदेश, दक्षिण के राज्य, जहां-जहां नरेगा सफल रहा, यूपीए को जबरदस्त सफलता मिली जबकि झारखंड में मुंह की खानी पड़ी’।
पूरे से अधिक निर्माणाधीन काम
रोजगार पानेवाले परिवारों की संख्या | 15.77 लाख |
सृजित मानवदिवसों की संख्या | 750 लाख |
अनुसूचित जाति के लिए | 135.5 लाख 18% |
अनुसूचित जनजातियों के लिए | 300 लाख 40% |
महिलाओं के लिए | 214 लाख 28.5% |
अन्य | 314.5 लाख 42% |
कुल आवंटन | 2350 करोड़ |
कुल खर्च | 1342 करोड़ |
चुनी गई कार्ययोजनाएं | 160302 करोड़ |
पूरे हुए काम | 65483 करोड़ |
निर्माणाधीन काम | 94819 करोड़ |
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