विश्व बांस दिवस (18 सितंबर) पर विशेष
‘हरा सोना’ के नाम से मशहूर बांस खेती सदैव फायदे का सौदा साबित हुई है। यह वह फसल है जो बंजर जमीन को भी उपजाऊ बना देती है। 18 सितंबर को विश्व बांस दिवस मनाया जाता है। इसे पृथ्वी पर सबसे टिकाउ मेटेरियल माना जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अन्य वनस्पितियों की तुलना में बांस में ऑक्सीजन की मात्रा 35 प्रतिशत अधिक है। बांस के माध्यम से टिकाऊ विकास एवं हरित भारत की परिकल्पना को भी साकार किया जा रहा है। यह संसार का एकमात्र पौधा है जो किसी भी वातावरण में तेजी से उन्नति करता है। अपने इसी गुण के कारण इसे उन्नति का प्रतीक और समृद्धि देने वाला पौधा माना जाता है। फेंगशुई में बांस के पौधे को दिव्य पौधा कहा जाता है। भारतीय समाज में भी बांस को शुभ माना गया है।
बांस कारीगर मेला 2019 में देशभर से दस हजार कारीगर जुटेंगें, जिन्हें प्रशिक्षण के साथ टिकाऊ विकास के बारे में बताया जायेगा। देशभर के निवेशकों को बांस आधारित उद्योग के बारे में बांस कारीगर मेला में बताया जायेगा। कारीगर मेला में आईकिया, टाईफेड, फैब इंडिया, ईसाफ सहित कई संगठन असम, त्रिपुरा, दिल्ली, मेघालय सहित कई राज्यों से जुटेंगें।
भारत के जिन राज्यों में बांस का सबसे अधिक उत्पादन होता है उनमें झारखंड भी प्रमुख है। आदिवासी बहुल यह राज्य वनों से घिरा हुआ है। इंडिया स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 23478 वर्ग किमी में वन फैला हुआ है। झारखंड सरकार की योजना है कि बांस के उत्पाद से आदिवासियों की जीवनशैली में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। इसके लिए राज्य सरकार कई योजनाओं पर काम कर रही है। एक तरफ जहां बांस का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है वहीं दूसरी ओर कारीगरों को हुनरमंद बनाकर स्वरोजगार के लिये प्रेरित किया जायेगा। तीन साल में बांस के पेड़ बढ़ते हैं, उसका विकास तेजी से होता है।
आज झारखंड में पैदा होने वाले बांस की मांग पूरे विश्व में बढ़ी है। इसी मांग को देखते हुए झारखंड सरकार की ओर से पहली बार बांस कारीगर मेला 2019 का दो दिवसीय आयोजन उपराजधानी दुमका में किया जा रहा है। झारखंड में 4470 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में बांस का उत्पादन होता हैं, यहां 2520 मिलियन टन बांस का उत्पादन होता है। पूरे देश का आधा बांस झारखंड में पाया जाता है, यहां के बंबुसा टुलडा, बंबुसा नूतनस और बंबुसा बालकोआ की मांग विश्व भर में है। बंबूक्राफ्ट राज्य का प्रमुख उद्योग बन चुका है। लगभग 500 प्रकार के उत्पाद बांस के बन रहे हैं, जो अन्य प्रदेशों में भेजे जा रहे हैं, जिस्से 50 लाख की आय प्रतिवर्ष सरकार को हो रही है। उद्योग विभाग के सचिव रवि कुमार बताते हैं कि झारखंड सरकार वर्ष 2022 तक ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों को गरीबी से मुक्त कर उनकी आय दोगुनी करने जा रही है। उन्होंने बताया कि वन आधारित उत्पादों के माध्यम से लोगों को रोजगार मुहैया कराने की दिशा में प्रयास किये जा रहे है। राष्ट्रीय बांस मिशन और झारखंड राज्य बांस मिशन के प्रयास से बांस के उत्पादन, लघु एवं कुटीर उद्यम एवं हस्तशिल्प को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है। किसानों के जीवन स्तर में हरित भारत, सतत एवं टिकाऊ विकास की संकल्पना के माध्यम से बांस आधारित उद्योग से रोजगार की दिशा में प्रयास सरकार की ओर से किये जा रहे हैं।
राज्य में मोहली परिवारों की संख्या लाखों में है जो परंपरागत रूप से बांस के उत्पादन टोकरी, सूप, डलिया सहित कई सामग्री वर्षों से परंपरागत रूप से बना रहे हैं और अपनी आजिविका चला रहे है। मोहली परिवारों को बंबूक्राफ्ट की ओर से प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बांस कारीगर मेला 2019 में देशभर से दस हजार कारीगर जुटेंगें, जिन्हें प्रशिक्षण के साथ टिकाऊ विकास के बारे में बताया जायेगा। देशभर के निवेशकों को बांस आधारित उद्योग के बारे में बांस कारीगर मेला में बताया जायेगा। कारीगर मेला में आईकिया, टाईफेड, फैब इंडिया, ईसाफ सहित कई संगठन असम, त्रिपुरा, दिल्ली, मेघालय सहित कई राज्यों से जुटेंगें। झारखंड में कारीगर मेला का आयोजन मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड, उद्योग विभाग, झारखंड राज्य बंबू मिशन, झारक्राफॅट और जेएसएलपीएस मिलकर कर रहा है। झारखंड में इससे पहले मोमेंटम झारखंड का भी आयोजन किया जा चुका है।
राज्य के प्रत्येक जिला में बांस बहुतायात में पाया जाता है, जिससे रोजगार की संभावना बढ़ी है। राज्य में बांस के क्षेत्र में संभावना है। कृषि से लेकर उर्जा के वैकल्पिक स्त्रोत की संभावना बनी है। मल्टीनेशनल कंपनी सामग्री खरीदने को तैयार हैं जिस कारण बांस आधारित सामानों के उत्पादन के विपणन की समस्या नहीं है। बांस से बने उत्पादों जैसे सोफा सेट, टेबल, बैग और दैनिक उपयोग की कलात्मक सामग्रियों की मांगें हाल के दिनों में काफी बढ़ी हैं, जिससे इनका विश्व व्यापार भी बढ़ा है। गैर सरकारी संस्था ईसाफ के अजीत सेन बताते हैं कि राज्य के सभी जिलों में बांस का उत्पादन होता आ रहा है। संताल परगना में सर्वाधिक बांस का उत्पादन होता है। इसके अतिरिक्त गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड, दुमका, जामताड़ा, जमशेदपुर, हजारीबाग, खुटी, गुमला, रांची रामगढ़ जिला में बहुतायात में बांस उपलब्ध है। वे बताते हैं कि मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड द्वारा कारीगरों के क्लस्टरबनाकर उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है। एक क्लस्टर में लगभग दो सौ कारीगर होते हैं। राज्य में लगभग हजार क्लस्टर बन चुके हैं। कारीगरों के लिये प्रोड्यूसर ग्रुप भी बना है। कारीगरों को दक्ष करने के उद्देश्य से उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाता है। खास बात यह है कि झारखंड में बांस से बने उत्पादों की मांग यूरोप और मिडिल ईस्ट में होने लगी है।
बांस उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए कारीगरों को आधुनिक तरीके सिखाये जा रहे हैं ताकि उन्हें अधिक से अधिक रोजगार मिल सके। बांस के कारीगर संतोष मोहली, काशीनाथ मोहली, जोसेफ मोहली, बबिता कुमारी, मार्शिला हेम्ब्रम बताती हैं कि वे प्रति माह दस हजार रूपये इस रोजगार से कमा लेती हैं। झारखंड में गरीबों की आय बढ़ाने की दिशा में सरकार प्रयासरत है। कारीगरों को प्रशिक्षित कर कई नये प्रकार के उत्पाद बनने लगे हैं। सहायक उद्योग निदेशक सुधीर कुमार सिंह बताते हैं कि बांस कारीगर मेला 2019 के आयोजन के बाद इस क्षेत्र में राज्य का नाम और बढ़ेगा। उन्होंने बताया कि इस मेला में बिजनेस डेलिगेशन की टीम भी आ रही हैं, जिससे कारीगरों को लाभ मिलेगा। नेशनल बंबू मिशन बांस की खेती के लिये पीपी मोड और मनरेगा अंर्तगत बांस के प्लांटस लगायेगा। रोजगार मिलने से झारखंड के आदिवासी अब रोजगार के लिये बंगाल पलायन नहीं करेंगें। बांस से उन्हें घर में ही रोजगार उपलब्ध हो सकेगा। बंबू कुटीर उद्योग के माध्यम से उनके जीवन में बदलाव आने की संभावना है। झारखंड वन प्रदेश है जहां प्रकृति ने उन्हें बहुत कुछ दिया हैं। बांस से रोजगार की अपार संभावना बनती जा रही है।
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