दामोदर नदी के जलनमूने में ठोस पदार्थों का मान औसत से अधिक है। नदी निरन्तर छिछली होती जा रही है और इसके तल एवं किनारे का हिस्सा काला पड़ता जा रहा है। दामोदर नदी के जल में भारी धातु- लौह, मैगजीन, तांबा, लेड, निकेल आदि पाये जाते हैं। प्रदूषण का आलम यह है कि नदी के जल में घुलित आॅक्सीजन की मात्रा औसत से काफी कम है। इसके सवाल पर निरन्तर आन्दोलन होता आया है। 3 फरवरी 2015 को हुई बैठक में यह किया गया था कि दामोदर नदी जो गंगा की सहायक नदी है, उसे नमामि गंगे परियोजना में शामिल किया जाएगा। प्रकृति ने झारखण्ड राज्य को जल देने में कंजूसी की है। यह बात लोग कहते हैं, लेकिन यह हकीक़त से परे है। झारखण्ड का नाम इसलिये झारखण्ड है कि यह जंगल और पहाड़ की गोद में है। झारखण्ड में कुल 11 नदी बेसिन हैं- गुमानी, मयुराक्षी, अजय, शंख, दक्षिण कोयल, उत्तर कोयल, दामोदर, सुवर्णरेखा, खरकई अदि। बेसिन का मतलब है थाल।
भोजन की थाल की तरह नदियों के थाले भी सम्बद्ध नदियों के जलग्रहण क्षेत्र के आधार पर निर्धारित किये जाते हैं। प्रदेश के गाँव-समाज की आजीविका एवं अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार जंगल और खेती है। इस लिहाज से सतही जल और भूगर्भ के जल को बचाना जरूरी है। सिर्फ अपने लिये नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिये।
वर्तमान राज्य सरकार ने नदियों के अस्तित्व को कायम रखने के लिये पहल की है। शहरीकरण के विस्तार और जनसंख्या के कारण नदियाँ प्रदूषित हुई हैं। इसका असर यहाँ की स्वर्णरेखा नदी पर भी पड़ा है। यह छोटानागपुर के पठारी भूभाग नगड़ी से निकलती है। राँची ज़िले से प्रवाहित होती हुई स्वर्ण रेखा नदी सिंहभूम ज़िले में प्रवेश करती है तथा उड़ीसा राज्य में चली जाती है।
स्वर्ण रेखा के सुनहरी रेत में सोने की मात्रा पाई जाती है। किन्तु इसकी मात्रा अधिक न होने के कारण व्यवसायी उपयोग नहीं किया जाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण परिषद की रिर्पोट से स्वर्णरखा के प्रदूषण के स्तर का खुलासा हुआ है। आलम यह है कि ड्रेनेज तथा सिवेज का निकास इस नदी में हो रहा है। इसके प्रदूषण के सन्दर्भ में झारखण्ड उच्च न्यायालय को स्वत: संज्ञान लेना पड़ा।
उच्च न्यायालय ने राज्य को सरकार को निर्देश दिया है। इसके लिये राज्य सरकार ने 1319 करोड़ रुपये की लागत से योजना का प्रारूप तैयार किया है। झारखण्ड के मुख्यमंत्री रधुवर दास ने इस सन्दर्भ में केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य सरकार ने पहले भी इस योजना को स्वीकृत करने के लिये मंत्रालय से अनुरोध किया था, लेकिन मंत्रालय की ओर से कार्रवाई की सूचना अप्राप्त है।
मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह सम्पूर्ण सीवेज सिस्टम को विकसित कर बहुप्रतिक्षित माँग को पूरा करें। उन्होंने योजना की राशि केन्द्र के स्तर से या अन्तरराष्ट्रीय वित्त पोषण के माध्यम से उपलब्ध कराने का भी सुझाव दिया है।
झारखण्ड की दूसरी महत्त्वपूर्ण नदी है दामोदर। दामोदर नदी का पानी पीने लायक नहीं रह गया है। पीने की बात तो दूर पानी इतना काला और प्रदूषित है कि लोग नहाने से भी कतराते हैं। इस प्रदूषण के जिम्मेदार हैं यहाँ के कल-कारखाने और खदान।
हजारीबाग, बोकारो एवं धनबाद जिलों में इस नदी के दोनों किनारों पर बड़े कोलवाशरी हैं, जो प्रत्येक दिन हजारों घनलीटर कोयले का धोवन नदी में प्रवाहित करते हैं। इन कोलवाशरियों में गिद्दी, टंडवा, स्वांग, कथारा, दुगदा, बरोरा, मुनिडीह, लोदना, जामाडोबा, पाथरडीह, सुदामडीह एवं चासनाला शामिल हैं। इन जिलों में कोयला पकाने वाले बड़े-बड़े कोलभट्ठी हैं जो नदी को निरन्तर प्रदूषित करते रहते हैं।
चन्द्रपुरा ताप बिजलीघर में प्रतिदिन 12 हजार मिट्रिक टन कोयले की खपत होती है और उससे प्रतिदिन निकलने वाले राख को दामोदर में प्रवाहित किया जाता है। इसके अतिरिक्त बोकारो स्टील प्लांट का कचरा भी इसी नदी में गिरता है।
नजीजतन दामोदर नदी के जलनमूने में ठोस पदार्थों का मान औसत से अधिक है। नदी निरन्तर छिछली होती जा रही है और इसके तल एवं किनारे का हिस्सा काला पड़ता जा रहा है।
दामोदर नदी के जल में भारी धातु- लौह, मैगजीन, तांबा, लेड, निकेल आदि पाये जाते हैं। प्रदूषण का आलम यह है कि नदी के जल में घुलित आॅक्सीजन की मात्रा औसत से काफी कम है। इसके सवाल पर निरन्तर आन्दोलन होता आया है। 3 फरवरी 2015 को हुई बैठक में यह किया गया था कि दामोदर नदी जो गंगा की सहायक नदी है, उसे नमामि गंगे परियोजना में शामिल किया जाएगा।
पुन: 23 मार्च 2015 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आहुत बैठक में झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने यह कहा था कि इसे नमामि गंगे परियोजना में शामिल किया जाए। उनका मानना है कि जब तक गंगा के साथ-साथ सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त नहीं किया जाएगा तब तक यह अभियान सफलीभूत नहीं हो पाएगा।
उन्होंने इस सन्दर्भ में केन्द्रीय मंत्री उमा भारती को पत्र लिखकर कहा है कि जिस तरह यमुना नदी को नमामि गंगे कार्यक्रम में शामिल किया गया है। उसी तरह दामोदर नदी जो 300 किलोमीटर के दायरे में बहती है, उसे प्रदूषण मुक्त किया जाये। वहीं हरमू नदी को पुनर्जीवित करने के लिये भी मुहिम चल रही है।
भोजन की थाल की तरह नदियों के थाले भी सम्बद्ध नदियों के जलग्रहण क्षेत्र के आधार पर निर्धारित किये जाते हैं। प्रदेश के गाँव-समाज की आजीविका एवं अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार जंगल और खेती है। इस लिहाज से सतही जल और भूगर्भ के जल को बचाना जरूरी है। सिर्फ अपने लिये नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिये।
वर्तमान राज्य सरकार ने नदियों के अस्तित्व को कायम रखने के लिये पहल की है। शहरीकरण के विस्तार और जनसंख्या के कारण नदियाँ प्रदूषित हुई हैं। इसका असर यहाँ की स्वर्णरेखा नदी पर भी पड़ा है। यह छोटानागपुर के पठारी भूभाग नगड़ी से निकलती है। राँची ज़िले से प्रवाहित होती हुई स्वर्ण रेखा नदी सिंहभूम ज़िले में प्रवेश करती है तथा उड़ीसा राज्य में चली जाती है।
स्वर्ण रेखा के सुनहरी रेत में सोने की मात्रा पाई जाती है। किन्तु इसकी मात्रा अधिक न होने के कारण व्यवसायी उपयोग नहीं किया जाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण परिषद की रिर्पोट से स्वर्णरखा के प्रदूषण के स्तर का खुलासा हुआ है। आलम यह है कि ड्रेनेज तथा सिवेज का निकास इस नदी में हो रहा है। इसके प्रदूषण के सन्दर्भ में झारखण्ड उच्च न्यायालय को स्वत: संज्ञान लेना पड़ा।
उच्च न्यायालय ने राज्य को सरकार को निर्देश दिया है। इसके लिये राज्य सरकार ने 1319 करोड़ रुपये की लागत से योजना का प्रारूप तैयार किया है। झारखण्ड के मुख्यमंत्री रधुवर दास ने इस सन्दर्भ में केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य सरकार ने पहले भी इस योजना को स्वीकृत करने के लिये मंत्रालय से अनुरोध किया था, लेकिन मंत्रालय की ओर से कार्रवाई की सूचना अप्राप्त है।
मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह सम्पूर्ण सीवेज सिस्टम को विकसित कर बहुप्रतिक्षित माँग को पूरा करें। उन्होंने योजना की राशि केन्द्र के स्तर से या अन्तरराष्ट्रीय वित्त पोषण के माध्यम से उपलब्ध कराने का भी सुझाव दिया है।
झारखण्ड की दूसरी महत्त्वपूर्ण नदी है दामोदर। दामोदर नदी का पानी पीने लायक नहीं रह गया है। पीने की बात तो दूर पानी इतना काला और प्रदूषित है कि लोग नहाने से भी कतराते हैं। इस प्रदूषण के जिम्मेदार हैं यहाँ के कल-कारखाने और खदान।
हजारीबाग, बोकारो एवं धनबाद जिलों में इस नदी के दोनों किनारों पर बड़े कोलवाशरी हैं, जो प्रत्येक दिन हजारों घनलीटर कोयले का धोवन नदी में प्रवाहित करते हैं। इन कोलवाशरियों में गिद्दी, टंडवा, स्वांग, कथारा, दुगदा, बरोरा, मुनिडीह, लोदना, जामाडोबा, पाथरडीह, सुदामडीह एवं चासनाला शामिल हैं। इन जिलों में कोयला पकाने वाले बड़े-बड़े कोलभट्ठी हैं जो नदी को निरन्तर प्रदूषित करते रहते हैं।
चन्द्रपुरा ताप बिजलीघर में प्रतिदिन 12 हजार मिट्रिक टन कोयले की खपत होती है और उससे प्रतिदिन निकलने वाले राख को दामोदर में प्रवाहित किया जाता है। इसके अतिरिक्त बोकारो स्टील प्लांट का कचरा भी इसी नदी में गिरता है।
नजीजतन दामोदर नदी के जलनमूने में ठोस पदार्थों का मान औसत से अधिक है। नदी निरन्तर छिछली होती जा रही है और इसके तल एवं किनारे का हिस्सा काला पड़ता जा रहा है।
दामोदर नदी के जल में भारी धातु- लौह, मैगजीन, तांबा, लेड, निकेल आदि पाये जाते हैं। प्रदूषण का आलम यह है कि नदी के जल में घुलित आॅक्सीजन की मात्रा औसत से काफी कम है। इसके सवाल पर निरन्तर आन्दोलन होता आया है। 3 फरवरी 2015 को हुई बैठक में यह किया गया था कि दामोदर नदी जो गंगा की सहायक नदी है, उसे नमामि गंगे परियोजना में शामिल किया जाएगा।
पुन: 23 मार्च 2015 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आहुत बैठक में झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने यह कहा था कि इसे नमामि गंगे परियोजना में शामिल किया जाए। उनका मानना है कि जब तक गंगा के साथ-साथ सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त नहीं किया जाएगा तब तक यह अभियान सफलीभूत नहीं हो पाएगा।
उन्होंने इस सन्दर्भ में केन्द्रीय मंत्री उमा भारती को पत्र लिखकर कहा है कि जिस तरह यमुना नदी को नमामि गंगे कार्यक्रम में शामिल किया गया है। उसी तरह दामोदर नदी जो 300 किलोमीटर के दायरे में बहती है, उसे प्रदूषण मुक्त किया जाये। वहीं हरमू नदी को पुनर्जीवित करने के लिये भी मुहिम चल रही है।
Path Alias
/articles/jhaarakhanada-maen-nadaiyaon-kae-sanrakasana-kai-mauhaima
Post By: RuralWater