झारी भर नर्मदा

वर्षों पूर्व जुहू के समन्दर में
नहाया था पहली बार
तब नमकीन हथेलियों से
पल्लर पल्लर सहलाते हुए
पूछा था सागर ने कि-
मुझमें नहाने के पहले कहां
सेनहा कर आया हूं मैं

तब मैंने अपनी नर्मदा में
डुबकियां लगाकर बम्बई आने
काबताया था उसे
जिसे सुनते ही
रेत तक मेरा बदन पोंछता
ले आया जुहू का सागर प्यार से बाहर

और बोला-
पहली बार महसूस किया
मेरी खारी जुबान ने कि
कोई अनूठा स्वाद भी है पृथ्वी पर

जब लौटा वहां से तो
चौपाटी तक छोड़ने आया सागर
और लौटते हुए आग्रह करता गया
कि जब भी आओ यहां
झारी भर नर्मदा जरूर लेते आना मेरे लिए

मैं तो असीम होकर भी
सीमित हूं
वरना मैं ही चलता.......तक
मीठा जल पीने
और नहाने तुम्हारे साथ!!

कवि, आलोचक व लेखक।

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Post By: pankajbagwan
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