ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण प्रभावित हो रही है एशियाई वर्षा

ज्वालामुखी विस्फोट की बढ़ती घटनाओं का मौसम पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। पहले तो इसका प्रकोप पश्चिमी देशों में ज्यादा था, पर इन गतिविधियों की चपेट में अब एशियाई बारिश भी आ चुकी है। यह बात कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए शोध में सामने आई है। शोधकर्ताओं ने बताया कि ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बहुत-से हानिकारक कण निकलते हैं, जो बहुत तेज गति से जाकर सौर ऊर्जा को ब्लॉक कर देते हैं। इसके कारण आसपास का वातावरण काफी ठंडा हो जाता है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि डायनासोर के खात्मे में भी ज्वालामुखी विस्फोट का बहुत बड़ा हाथ रहा है। उन्होंने बताया कि इंडोनेशिया में 1815 ई. में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बहुत सारी फसलें बर्बाद हो गई थीं। इसके बाद ज्वालामुखी विस्फोट की घटनाएं लगातार बढ़ती गईं और अब इसका असर एशिया की बारिश पर भी देखने को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि इसके कारण एशिया का मानसून बुरी तरह प्रभावित हुआ है और इसके कारण फसलों की पैदावार भी कम हुई है। कृषि पर आधारित पूरी पृथ्वी की आधी जनसंख्या एशिया में ही रहती है और मानसून के प्रभावित होने से इनका जीवन भी प्रभावित हुआ है।

कई वर्षों के डाटा से पता चलता है कि प्रत्येक साल एशियाई देश सूखते जा रहे हैं। इसका सबसे अधिक असर मध्य एशिया तथा चीन के दक्षिणी हिस्से पर पड़ा है। इसके अलावा कंबोडिया, थाइलैंड और म्यंमार में भी ज्वालामुखी के कारण मानसून बुरी तरह प्रभावित हुआ है। प्रमुख शोधकर्ता केविन अनचुकैटिस ने बताया कि बड़े ज्वालामुखी विस्फोट के बाद सल्फर बाहर निकलता है, जो कि वायुमंडल में जाकर सल्फेट में बदल जाता है। इसके कारण सूर्य की विकिरणें ठीक तरह से पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाती हैं, जिसके फलस्वरूप पृथ्वी की सतह ठंडी रहती है।

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