कोरल रीफ मछली की सैंकड़ों प्रजातियों के प्रजनन का केंद्र भी है। अगर कोरल रीफ खत्म हुआ को इन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा हो सकता है। कोरल रीफ के समाप्त होने पर पर्यटन को भी नुकसान पहुंचेगा। इसलिए कार्बन उर्त्सजन की मात्रा को कम करना निहायत जरूरी हो गया है। लेकिन कार्बन उर्त्सजन कम करने के जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे नाकाफी हैं।
हाल में गुजरात सरकार द्वारा कराई गई एक स्टडी में यह तथ्य उभर कर सामने आया कि कच्छ की खाड़ी में 250 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जो कोरल रीफ फैला हुआ है, वह राजस्व कमाने का एक बड़ा जरिया बन सकता है। इस क्षेत्र में मत्स्य पालन और पर्यटन से राज्य सरकार सालाना 79 लाख 50 हजार रुपये कमा सकती है। इस बात को ध्यान में रखकर गुजरात सरकार राज्य के 20 किलोमीटर तट में कृत्रिम कोरल रीफ लगाने की योजना बना रही है। इस तरह के प्रयासों को और आगे बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि कोरल रीफ के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
कोरल रीफ अनेक समुद्री जीवों का प्राकृतिक निवास स्थल है। इसे समुद्र का बरसाती जंगल (रेन फॉरेस्ट) कहा जाता है। यह सूक्ष्म समुद्री जीवों द्वारा छोड़े गए कैल्शियम कार्बोनेट से बनता है लेकिन चुनिंदा 25 अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के नेटवर्क द्वारा तैयार एक रिपोर्ट के मुताबिक आज दुनिया के 75 फीसदी कोरल रीफ का अस्तित्व वैश्विक और स्थानीय कारणों की वजह से खतरे में है। स्थानीय कारणों में प्रमुख है-अत्यधिक मात्रा में मछलियों का मारा जाना।
वैश्विक वजह है जलवायु परिवर्तन के कारण संसार के तापमान में बढ़ोतरी। स्टडी में आगाह किया गया है कि अगर इन दो तत्वों पर ध्यान नहीं दिया गया तो 2030 तक दुनिया के 90 फीसदी कोरल रीफ का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा और 2050 तक यह आंकड़ा 95 फीसदी तक पहुंच सकता है। सवाल है कि तब दुनिया के उन 50 करोड़ लोगों का क्या होगा जिनकी आजीविका समुद्री मछली और पर्यटन के सहारे चल रही है?
कोरल रीफ के महत्व को समझकर ही सौ से अधिक देशों में एक लाख 50 हजार किलोमीटर के तटीय क्षेत्रों में इसके संरक्षण के लिए विशेष उपाय किए गए हैं। कोरल रीफ के कारण समुद्र की लहरों से तट का कटाव कम होता है। आंधी से भी कम नुकसान होता है। जहां तक भारत का प्रश्न है, कच्छ की खाड़ी की जैव विविधता पर कार्य कर रहे वैज्ञानिकों ने बताया है कि यहां कोरल रीफ रंगहीन होता जा रहा है जो इसके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा संकट है। सवाल है कि कोरल रीफ के रंगहीन होने का क्या मतलब है? कोरल रीफ को अगली नाम के एक कीडे़ की वजह से एक खास रंग प्राप्त होता है लेकिन जब समुद्र के पानी का तापमान बढ़ जाता है तो यह कीड़ा वहां नहीं रह पाता है। ऐसी स्थिति में कोरल रीफ रंगहीन हो जाता है और इसके निर्माण की प्रक्रिया रुक जाती है। जो कोरल रीफ 60 से 70 फीसदी तक रंगहीन हो जाता है , उसके दोबारा क्रियाशील होने की गुंजाइश बनी रहती है लेकिन जो पूरी तरह से रंगहीन हो जाता है, वह नष्ट जाता है।
एक सर्वे के मुताबिक मन्नार की खाड़ी में 2003-2005 में कोरल रीफ 37 फीसदी था जो 2008 में बढ़कर 42 फीसदी हो गया लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र के सतह का तापमान बढ़ रहा है। इसके कारण अंडमान निकोबार द्वीप के पास कोरल रीफ व्यापक पैमाने पर रंगहीन होता जा रहा है। अगर दुनिया के बढ़ते तापमान को नियंत्रित नहीं किया गया तो आने वाले समय में समुद्री जैव विविधता पर व्यापक संकट उपस्थित हो सकता है। इसलिए कार्बन उत्सर्जन को कम करना आज सबसे बड़ी चुनौती बन कर सामने आया है। आज समुद्री तटों के पास जनसंख्या का दबाव लगातार बढ़ रहा है। इसका विपरीत असर मैरीन इको सिस्टम पर देखने को मिल रहा है। समुद्रों में जैविक और गैर जैविक प्रदूषण भी बढ़ा है। इससे भी कोरल रीफ के अस्तित्व पर खतरा बढ़ा है।
कोरल रीफ मछली की सैंकड़ों प्रजातियों के प्रजनन का केंद्र भी है। अगर कोरल रीफ खत्म हुआ को इन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा हो सकता है। कोरल रीफ के समाप्त होने पर पर्यटन को भी नुकसान पहुंचेगा। इसलिए कार्बन उर्त्सजन की मात्रा को कम करना निहायत जरूरी हो गया है। लेकिन कार्बन उर्त्सजन कम करने के जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे नाकाफी हैं। कोरल रीफ की रक्षा को लेकर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है।
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