बाबा बलबीर सिंह 160 किलोमीटर ‘काली वेईं’ को पुनः निर्मल कर सनातन परंपराओं की पूर्ण स्थापना करना चाहते हैं। वेईं को निर्मल कर, निर्मल कुटिया वाला यह सन्त विकृत होते सामाजिक मूल्यों को भी निर्मल देखना चाहता है।
यह 2002 की बात है। सुल्तानपुर लोधी (पंजाब) के नज़दीक कुछ लोग संडास की तरह सड़ते पानी में उतरे हुए थे। सूर्य उदय होने ही वाला था कि सड़ते नाले की तरह इस नदी की सफाई करते लोगों के पास धड़-धड़ जीपें आकर रुकी और नदी की सफाई करते लोगों पर हमला बोल दिया। हमलावरों का नेतृत्व शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के मेम्बर तथा एक्जेक्यूटिव मेम्बर जत्थेदार शिंगारा सिंह कर रहे थे। जत्थेदार के लोगों ने कार सेवा में जुटे सेवकों से सफाई वाले औजार छीनने शुरू कर दिए। आखिर जब सेवकों ने पूछा कि ‘यह माजरा’ क्या है? तो उन्होंने कहा कि ‘हम शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के मेंबर हैं।’ आप लोग जिस नदी को साफ कर रहे हो वह नदी ‘काली वेईं’ नदी है। इसमें सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी ने डुबकी लगाई थी और रूहानियत का उपदेश प्राप्त किया था, अब चूंकि यह नदी सिख धर्म से संबंधित है, इसलिए इसकी कार्य सेवा किसको सौंपनी है, इसका अधिकार सिर्फ शिरोमणी समिति के पास ही है।कार्य सेवा में जुटे सेवक भागकर उस निर्मल सन्त के पास आ गए, जिसने कुछ दिन पूर्व ही ऐतिहासिक गुरुद्वारा बेर साहिब (जहां नानक देव जी ने काली वेईं में डुबकी लगाई थी) में अरदास करके निरंतर सड़ती-मरती ‘काली वेईं’ को पुनर्जीवित करने का प्रण लिया था। निर्मल कुटिया सीचेवाल के सन्त बलबीर सिंह सीचेवाल, जिन्हें पहले अपने क्षेत्र में सड़कें, स्कूल, धर्मशालाएं, पेड़ लगाना तथा खेल मैदान जैसे कामों के कारण जाना जाता था। तब इन्हें वेलफेयर बाबा कहा जाता था। लेकिन अब बाबा बलबीर सिंह ‘जपुजी’ की साक्षी नदी को पूणर्जीवित करने का प्रण ले चुके थे। कार्य सेवकों पर हमला एक स्थानीय अकाली नेता के इशारे पर हुआ था। उसको बाबाजी की प्रसिद्धि के कारण अपनी कुर्सी चरमराती दिखी थी। यह बात भी पुलिस थाने जाकर समझ में आई थी।
दरअसल जालंधर स्थित देश भगत यादगारी हाल में ‘पर्यावरण संभाल’ नामक समारोह में बोलते हुए सन्त जी ने कहा था - ‘बुद्धिजीवी या विशेषज्ञ बिगड़ते पर्यावरण की स्थिति के बारे में कुछ भी कहें काम तो करने से ही होगा यानी पर्यावरण बचाने से ही बचेगा’। तभी उन्होंने एलान किया था कि मैं पंजाब को प्रदूषण मुक्त करने के लिए, बाबा नानक की नदी, जो गन्दे नाले में तब्दील हो चुकी थी, को पुनः जीवित करके मरूंगा।
‘काली वेईं’ होशियार जिले के दसूहे नामक कस्बे के पास धनोया नामक गांव से निकलने वाली नदी हरिके पत्तन से होती हुई व्यास दरिया में मिल जाती है। इसकी लंबाई लगभग 160 किलोमीटर है। पहाड़ जैसे काम की शपथ ले चुके बाबाजी के सामने इतनी बड़ी नदी की सफाई की योजना (जो लगभग 200 करोड़ रुपए बैठती थी) का प्रश्न किसी विकराल बांध की तरह खड़ा था। पैसा कहां से आएगा? ऐसे कामों के लिए सरकार तो सरकार, सरकारी योजनाओं का कागज भी इन कामों के पास से नहीं गुजरता। सरकार ने तो पैसा देना ही क्या था। शिरोमणी समिति ने भी कह दिया कि हमारे पास फालतू काम के लिए पैसे नहीं हैं।
बाबाजी ने अपने क्षेत्र के तमाम बड़े लोगों को बुलाया। नदी को निर्मल करने की योजना बताई तथा इस पुण्य काम के लिए दान के साथ-साथ श्रम-दान भी मांगा। ज्यादातर लोगों को इतने बड़े लक्ष्य को प्राप्त करना असंभव लगा, लेकिन फिर भी लोगों ने आश्वासन के हाथ उठा दिए। बलबीर जी ने परमपिता के आगे अरदास की और उस सड़ती नदी में कूद गए। सन्त जी को गन्दे नालेनुमा नदी में कूदते देख सारी संगत भी नदी में कूद गई। चंद लोगों का संग देखते-देखते लोगों की संगत में बदल गया।
कार सेवा का पहला पड़ाव नदी के रास्ते की सफाई, छोटे-छोटे बांध बनाना, जलकुंभी हटाना तथा विकास के झण्डेनुमा प्रतीक पॉलिथिनों को हटाना तथा नदी के कब्जाए क्षेत्र को लोगों से विनतीपूर्वक खाली करवाना था। दूसरे पड़ाव में ‘वेईं’ को गहरा करना व नदी में गिरते शहरों के गन्दे पानी को बंद करवाना था। उसके बाद नदी के दोनों ओर घाटों का निर्माण करवाना था।
आज कार्य सेवा का पहला पड़ाव तो पूरा कर लिया गया है। लेकिन बाबा बलबीर जी को इस बात का दु:ख है कि वह शहरों से आने वाले गन्दे पानी को नदी में गिरने से अभी नहीं रोक पाए हैं। लेकिन उनका संघर्ष निरंतर जारी है। सन्त जी को इस बात का भी मलाल है कि करोड़ों की संख्या में होने के बावजूद सिख उसी नदी को भूल गए जो नदी कभी ‘जपुजी’ के अवतरण की साक्षी रही है।
सन्त बलबीर जी सीचेवाल गांव में ही पैदा हुए, वहीं उन्होंने कॉलेज तक की पढ़ाई पूरी की, इसलिए वे अपने क्षेत्र के ज्यादातर लोगों को निजी तौर पर जानते हैं। इसलिए उन्हें नदी क्षेत्र से कब्जे हटवाने के लिए ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी, बस प्रेम की एक मुस्कुराहट तथा विनम्रता के हाथ जोड़कर ही उन्होंने यह काम निपटा डाला। सन्त बलबीर सिंह जी बताते हैं कि हमारी कार्य सेवा रुकवाने के लिए स्वयं अकाली सरकार ने रोड़े अटकाए, एक महिला मंत्री ने उन पर अफीम, नशे बेचने तथा अन्य कुकर्मों तक के आरोप लगाए, लेकिन उन पर सदैव गुरु की कृपा रही और वे सब झंझटों से निर्मल हो निकलते रहे। उनका कहना है कि कैप्टन सरकार सहयोग नहीं दे रही तो रोड़े भी नहीं अटका रही।
बाबा बलबीर सिंह 160 किलोमीटर ‘काली वेईं’ को पुनः निर्मल कर सनातन परंपराओं की पूर्ण स्थापना करना चाहते हैं। वेईं को निर्मल कर, निर्मल कुटिया वाला यह सन्त विकृत होते सामाजिक मूल्यों को भी निर्मल देखना चाहता है।
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