जनसँख्या बढ़ रही है लेकिन पानी नही 

जनसँख्या बढ़ रही है लेकिन पानी नही 
जनसँख्या बढ़ रही है लेकिन पानी नही 

यदि पृथ्वी पर पानी नहीं रहेगा तो क्या  होगा? इस प्रश्न का एक ही उत्तर नजर आता है- ‘सर्वनाश’।यह सिर्फ कल्पना  नहीं है, क्योंकि पिछले कुछ दशकों से  भूगर्भीय जल का जो  स्तर  है वो लगातार तेजी से गिरता जा रहा है, ग्लेशियर  सिकुड़ते जा रहे है,अगर पानी को बचाने के प्रति लोग गंभीर नहीं हुए तो एक दिन जरूर ऐसा आएगा जब  जल के साथ-साथ धरती से जीवन ही समाप्त हो जाएगा। यह कल्पना भयभीत करने वाली है। विज्ञान अभी तक पानी का कोई भी  विकल्प नहीं खोज पाया है। हो सकता शायद आने वाले वक्त में समूचे विश्व को  जल का कोई विकल्प मिल जाए। 

लेकिन अभी तो इस मामले में चिंता करने की जरूरत भी नही है । लोग मानते है कि विश्व मे दो तिहाई हिस्से में तो पानी है , तो पानी की कमी कैसे हो सकती है? ऐसे में लोगों को  यह जानना जरूरी है कि मानवीय जीवन जिस पानी के सहारे चलता है उसकी मात्रा पूरी पृथ्वी पर सिर्फ 05 से 10 प्रतिशत के आसपास है और उसी का  दोहन करके दुनिया वाले अपने बुरे समय  को निमंत्रण देने का काम कर रहे है 

नासा के वैज्ञानिक तमाम आंकड़ों के आधार पर यह अनुमान लगा चुके हैं, यदि समय रहते पानी का संरक्षण नही किया गया तो वो दिन दूर नही जब पृथ्वी बंजर हो जाएगी।क्या वाकई में ऐसा हो सकता है और इसका उत्तर है ऐसा जरूर हो सकता है।भविष्यवक्ता तो यहां तक कह चुके है अगर तीसरा विश्व युद्ध होता है तो उसका सबसे बड़ा कारण पानी ही होगा। यह भी एक तरह का  मजाक जैसा लगता है लेकिन ऐसा हो भी सकता है।

सवाल ये उठता है कि पानी की कमी आखिर किस वजह से हो रही है,इसके लिए जिम्मेदार कौन है,तो अनेक कारणों में से सबसे प्रमुख कारण बढ़ती जनसंख्या है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है वैसे-वैसे पानी की मांग में भी बढ़ोतरी होती जा रही है।जनसंख्या तो जरूर बढ़ रही है लेकिन जल कि स्थिति में कोई इजाफा नही हो रहा है। झील और तालाब सूखने के कगार पर पहुँच गए हैं,ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं, प्रदूषित हो रही नदियों का पानी पीने तो छोड़िए नहाने योग्य भी नहीं बची है और जलस्रोतों  का रखरखाव करना कोई चाहता नहीं है,इसलिये  भूगर्भ जल का स्तर घटता ही चला जा रहा है।

विश्व बैंक की रिपोर्ट में कुछ साल पहले यह  कहा गया था कि अगले दो दशकों के बाद भारत में पानी के लिए हाहाकार मच सकता है।पानी के स्रोतों में बढ़ोतरी नही हो रही है,लेकिन पानी पीने वालों की  तादाद बढ़ती जा रही है, मांग के अनुरूप आपूर्ति कम होती जाएगी यानी कि जल संकट बढ़ता जाएगा। जल के स्रोत अक्षय नहीं हैं,एक दिन उन्हें भी खत्म हो जाना है।

भारत में उपलब्ध कुल पानी का 85 प्रतिशत  भाग कृषि में,10 प्रतिशत औद्योगिक क्षेत्र में और मात्र 5 प्रतिशत घरेलू उपयोग में इस्तेमाल किया जाता है। गांवों और शहरों में बड़ी तादाद  में भूगर्भीय जल का दोहन किया जाता है। सिंचाई के लिए 70 प्रतिशत और घरेलू जल का 80 प्रतिशत पानी जमीन से लिया जा रहा है अब हालात यह हो गए है कि  उत्तर भारत में भूजल स्तर खतरनाक स्तर तक नीचे चला गया है।पिछले 10 वर्षों में हर साल एक फुट की दर से पानी कम हो रहा है।

पानी प्रकृति द्वारा मनुष्य को दी गई अनेक धरोहरों में से सबसे अनमोल धरोहर है। हमें हर समय जल की जरूरत पड़ती है। भारत में सभी को साफ और शुद्ध पानी मुहैया कराना  एक बड़ी चुनौती है। भारत में दुनिया की लगभग 17 प्रतिशत आबादी वास करती  है, जबकि विश्व जल स्रोतों की तुलना में यहां जल की उपलब्धता मात्र 4 प्रतिशत है।अब  तक 4 प्रतिशत जल 17 प्रतिशत आबादी की प्यास बुझा पाएगा, सोचने की बात है।

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Post By: Shivendra
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