जनहित के खिलाफ न जाए सरकार

जल, जंगल, ज़मीन, आजीविका, खाद्य सुरक्षा और न्याय जैसे कई मुद्दे हैं जिन्हें लेकर जनता को धरना प्रदर्शन करना पड़ता है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में भी वे अपने हक के लिये लड़ने को विवश हैं। इस बार जन्तर-मन्तर पर देश के कोने-कोने से आए मजदूर, किसान, महिलाएँ और युवा अपने हक के लिये मुखर होते दिखे।

मथुरा से पैदल चलकर आए हजारों श्रद्धालुओं ने जन्तर-मन्तर पर धरना-प्रदर्शन कर यमुना को प्रदुषण मुक्त बनाने की अपनी वर्षों पुरानी माँग को फिर से बुलन्द किया। प्रदर्शनकारी इस बार आश्वासन नहींं समाधान की माँग कर रहे थे। उनका कहना था कि सरकार अविलम्ब पर्यावरण संरक्षण एक्ट के तहत अध्यादेश पास करे, ताकि नदी में एक निश्चित मात्रा में स्वच्छ जल बहता रहे और नदी में गिरने वाले सीवर के लिये नदी के समानान्तर नाले का निर्माण किया जाए। उनका कहना था कि यदि दिल्ली के नालों के पानी को यमुना में गिरने से पूरी तरह से रोक दिया जाए तो नदी का प्रदूषण 70 फीसदी कम हो जाएगा।

यमुना मुक्तिकरण अभियान के संरक्षक पंकज बाबा कहते हैं कि दो साल पहले जब हम लोग यमुना को प्रदूषण मुक्त करने की माँग को लेकर आए थे तब हमारी माँगों के प्रति भाजपा ने खुलकर समर्थन जताया था। तब वे विपक्ष में थे लेकिन केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बाद वे लोग अब टाल-मटोल कर रहे हैं। सरकार यमुना के प्रदूषण को लेकर गम्भीर नहीं है।

यमुना की पवित्रता को लेकर 11 श्रद्धालु 15 मार्च से अनशन पर बैठे थे। अनशनकारी इस बार यमुना की धार वापस लाने के सार्थक पहल होने तक अपना अनशन जारी रखने वाले थे। कई सालों से उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है। 23 मार्च को इस अभियान के समर्थन में दिल्ली बन्द करने की घोषणा भी की गई थी। अभियान तेज होते देख सरकार की तरफ से यमुना आन्दोलन के नेतृत्वकर्ताओं पर दबाव बढ़ने लगा।

यमुना की अविरल धारा के लिये आन्दोलन करने वालों को आखिरकार केन्द्र सरकार की तरफ से कुछ सार्थक पहल की उम्मीद नजर आई। सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर आए केन्द्रीय संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मन्त्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि दो माह के भीतर यमुना में जल की एक निश्चित मात्रा को लेकर विधेयक लाया जाएगा। लेकिन अभियान में शामिल कई लोगों को सरकार के इस आश्वासन पर यकीन नहींं हुआ।

मंच से जब आन्दोलन स्थगित करने का ऐलान हुआ तो प्रदर्शनकारी उससे खुश नहींं थे। कुछ श्रद्धालुओं ने इसका विरोध भी किया। रविशंकर प्रसाद ने यमुना भक्तों को आश्वस्त करते हुए कहा कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी स्वयं यमुना की सफाई को लेकर गम्भीर हैं। जल्द ही पर्यावरण सुरक्षा कानून के तहत एक विधेयक लाकर यमुना में एक समान जल बने रहने की व्यवस्था की जाएगी।

पंकज बाबा ने आन्दोलन को स्थगित करते हुए कहा, ‘मैं स्वयं इस समझौते से निराश हूँ। हालांकि, हमारे तकनीकी सलाहकारों ने कहा कि केन्द्र की पेशकश ठीक है। ऐसे में भारी मन से आन्दोलन खत्म करना पड़ रहा है।’ एक महिला श्रद्धालु का कहना था कि उन्हें यमुना में शुद्ध जल के सिवा कुछ मंज़ूर नहींं है।

यमुना की पवित्रता को लेकर 11 श्रद्धालु 15 मार्च से अनशन पर बैठे थे। अनशनकारी इस बार यमुना की धार वापस लाने के सार्थक पहल होने तक अपना अनशन जारी रखने वाले थे। कई सालों से उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है। 23 मार्च को इस अभियान के समर्थन में दिल्ली बन्द करने की घोषणा भी की गई थी। अभियान तेज होते देख सरकार की तरफ से यमुना आन्दोलन के नेतृत्वकर्ताओं पर दबाव बढ़ने लगा। ऑल इण्डिया पीपुल्स फोरम (एआईपीएफ) ने जन्तर-मन्तर पर जन-संसद आयोजित कर भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन का विरोध किया। जन-संसद में किसान और आदिवासी आन्दोलनों से जुड़े नेता, मानवाधिकार कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी शामिल थे। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा कि किसानों की जमीन को उनकी मर्जी के बगैर कोई नहींं ले सकता, यह उनका लोकतान्त्रिक हक है।

भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा मोदी सरकार ने लोगों से अच्छे दिन का वादा किया था, पर अच्छे दिन सिर्फ कॉरपोरेट और अमीरों के लिये आए हैं। सामाजिक सुरक्षा के मुद्दे पर इस सरकार रुख बेहद संवेदनहीन रहा है। सरकार द्वारा पेश भूमि अर्जन अध्यादेश किसानों की जमीन हड़पने वाला अध्यादेश है। कृषि, भूमि, आजीविका और खाद्य सुरक्षा पर यह सरकार हमला कर रही है। हमें इसके खिलाफ कड़ा आन्दोलन चलाना होगा। भूमि अधिग्रहण विरोधी किसान आन्दोलनों से जुड़े कृषक मुक्ति संग्राम समिति के सदस्य राजू बोरा, पॉस्को प्रतिरोध संग्राम समिति के प्रकाश जेना, झारखण्ड में आदिवासी अधिकारों और जनान्दोलनों की चर्चित नेता और एआईपीएफ अभियान समिति की सदस्य दयामनी बरला, एआईपीएफ अभियान समिति के सदस्य तथा मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक व किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुनीलम ने ज़मीन पर किसानों-आदिवासियों के हक और सरकारी ज़मीन के वितरण के लिये पूरे देश में ज़ोरदार आन्दोलन संगठित करने का संकल्प दोहराया। विभिन्न ग्राम सभाओं ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश, आजीविका, और खाद्य सुरक्षा की अनदेखी करने वाले संशोधनों पर अविलम्ब रोक लगाने की माँग की। उन्होंने अपने प्रस्ताव को राष्ट्रपति को भी सौंपा।

प्रदर्शकारियों का कहना था कि जल, जंगल, जमीन, खनिज पर नियन्त्रण और उपयोग का निर्णय करने के ग्राम सभाओं के अधिकार को यह अध्यादेश गैर संवैधानिक तरीके से प्रभावित करता है। उन लोगों ने राष्ट्रपति एवं लोकसभा अध्यक्ष से भूमि अधिग्रहण अध्यादेश, 2014 को वापस लेने की माँग की है।

गोरखालैण्ड राज्य बनाने की माँग को लेकर एक बार फिर प्रदर्शनकारियों ने जन्तर-मन्तर पर धरना दिया। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का कहना है कि अलग गोरखालैंड राज्य बनाने की माँग वर्ष 1907 से ही की जा रही है। पश्चिम बंगाल से दार्जिलिंग, सिलीगुड़ी तराई एवं दोआब क्षेत्रों को लेकर अलग राज्य बनाया जाए। यह क्षेत्र सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से पश्चिम बंगाल के अन्य हिस्सों से अलग है। इस क्षेत्र के लोगों के साथ राजनीतिक भेद-भाव होता है। जिस कारण यह अति पिछड़ा हुआ है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भी 2014 में सिलीगुड़ी में दिये अपने भाषण में कहा था कि ‘गोरखा का सपना मेरा सपना है।’ ऐसे में इस क्षेत्र के लोग आस लगाए हैं कि प्रधानमन्त्री उनकी वर्षों पुरानी माँग को पूरी करेंगे।

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Post By: RuralWater
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