जमरानी/काठगोदाम। राजनीतिक गलियारों में जमरानी की हलचल अक्सर छायी रहती है। भाजपा की इस सरकार में एक बार फिर जमरानी की चर्चा आम हो चली है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में नई सरकार के गठन के साथ ही परिसम्पत्तियों के मामले में सरकार शुरुआत में काफी सक्रिय नजर आई, लेकिन मामला अब ठंडा नजर आ रहा है। राज्य बनने के सत्रह साल बाद भी उत्तर प्रदेश के साथ परिसम्पत्तियों का मामला पूरी तरह नहीं निपट सका है। जिनमें सिंचाई नहरों के अलावा आवासीय कॉलोनियों परिवहन सेवाओं के मुद्दे हैं और उनमें जमरानी बाँध परियोजना भी एक है। इस परियोजना में 57 फीसदी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की रहनी है। लगभग 41 वर्षों से अधिक की लम्बी अवधि से खटाई में पड़ी जमरानी बाँध परियोजना का उद्धार आखिर कब होगा। यह अनिश्चित भविष्य की गहरी धुन्ध में है। समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक दलों का मुद्दा बना जमरानी बाँध के लिये अब लोगों का धैर्य टूटने लगा है। बूँद-बूँद पानी को तरसते लोग अब धीरे-धीरे बेहाल होने लगे हैं। राजनीतिक प्रपंचों में उलझा जमरानी का जाम कब खुलेगा, कहा नहीं जा सकता है।
ऊर्जा प्रदेश के नाम से स्थापित उत्तराखण्ड को गंगाओं का प्रदेश भी कहा जाता है। गंगाओं का उद्गम स्थल होने के बाद भी लोग अनेकों क्षेत्रों में प्यासे हैं तथा बूँद-बूँद पानी को मोहताज हैं। जल विद्युत परियोजनाओं की ओर से अभी भी पूरी उदासीनता बनी हुई है।
पेयजल समस्या के निदान के लिये सरकारी सोच की यह पहल स्वागत योग्य है। विदित हो कि, उत्तराखण्ड के जमरानी बाँध परियोजना का मामला भी ऐसा ही है जो 41 वर्ष से अधिक का लम्बा अरसा गुजर जाने के बावजूद भी बनना तो दूर उसके निर्माण की प्रारम्भिक प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो सकी, जबकि अब तक उस पर करोड़ों रुपयों की धनराशि बर्बाद की जा चुकी है। वक्त के बदलते परिवेश के चलते अब परियोजना की लागत में कई गुना बढ़ोत्तरी हो चुकी है।
यह परियोजना मंझोले आकार की विद्युत परियोजना है। इससे 15 मेगावाट विद्युत उत्पादन के साथ-साथ उत्तराखण्ड के तराई भावर सहित उत्तर प्रदेश के लाखों हेक्टेयर (लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर) भूमि के लिये सिंचाई का पानी उपलब्ध करने की योजना थी। इसके अलावा गेटवे ऑफ कुमाऊँ हल्द्वानी की पेयजल समस्या का निदान करना था। हल्द्वानी शहर के निकट भीमताल मार्ग में अमृतपुर से लगभग ग्यारह किलोमीटर उत्तर पूर्व में गौला नदी पर 145 मीटर रॉकफिल बाँध बनाये जाने का प्रावधान था। सिंचन क्षमता 222.10 घनमीटर व स्टोर सामर्थ्य 196.10 घन मीटर थी। इस परियोजना से जहाँ विद्युत उत्पादन प्रस्तावित था वहीं राज्य के 340.72 हेक्टेयर हिस्सा समेत पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के लिये भी सिंचाई जल व्यवस्था होनी थी।
इस परियोजना की स्वीकृति वर्ष 1974 में तत्कालीन केन्द्रीय विद्युत मंत्री के.एन. राव ने दी थी और योजना आयोग ने वर्ष 1975 में इस योजना हेतु 61.25 करोड़ की धनराशि भी स्वीकृत की थी। यह निर्माण दो चरणों में प्रस्तावित था। इसको अन्तिम रूप देने के लिये अमेरिकी वैज्ञानिक बेरी कुक ने इस स्थल का दौरा कर जाँच भी की। मानकों की प्रक्रिया पूरी होने के बाद वर्ष 1974 में इसे हरी झण्डी दी गई। 26 फरवरी 1976 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की अध्यक्षता में तत्कालीन केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री के.सी. पंत ने जमरानी में इस परियोजना का उद्घाटन किया था।
जमरानी बाँध निर्माण कार्य का उद्घाटन किये लगभग 41 वर्ष से अधिक का समय गुजर चुका है और परियोजना का प्रारम्भिक कार्य भी शुरू नहीं हो सका है। आरम्भ में 61.25 करोड़ की अनुमानित लागत वाली परियोजना में जो भी कार्य हुआ हो, वह केवल पैसे की बर्बादी रही है। जानकारों के अनुसार वर्ष 1993 तक छोटे-मोटे कार्य यहाँ होते रहे लेकिन बाद में यहाँ एक ईंट तक नहीं लगाई गई। बीते वर्षों में आई भयंकर बाढ़ में नदी के दोनों छोरों को आपस में जोड़ने वाला झूला पुल भी दम तोड़ चुका है और मार्ग भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त है। इस स्थान तक पहुँचना ही अपने आप में बहुत बड़ा जोखिम भरा कार्य है। मृदा परीक्षण व भूकम्पमापी प्रयोगशालाएँ कंटीली झाड़ियों के बीच में खण्डहरों में तब्दील होकर लाखों रुपयों की बर्बादी का बखान करते नजर आते हैं।
इस महत्त्वपूर्ण परियोजना के 41 वर्षों से अधिक समय तक लटके रहने से अब इसकी लागत में लगभग दस गुना से ज्यादा बढ़ोत्तरी हो चुकी है। बाँध निर्माण को लेकर राज्य बन जाने के बाद अनेक बार हलचलें भी शुरू हुई, फिर शान्त पड़ गई। इस कार्य में इतना विलम्ब क्यों हो रहा है, यह लोगों की समझ से परे है। जानकार लोग संसाधनों की कमी को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। यह योजना आगे बढ़ पायेगी या नहीं, यह तो समय ही बतायेगा, वर्षों पूर्व पानी के जिस अनुमान को लेकर इस बाँध की परियोजना की गई थी, अब उसकी अपेक्षा जल के स्तर में भी भारी गिरावट आई है। काठगोदाम से लगभग 16 किलोमीटर दूर भीमताल से आने वाली गौला नदी पर प्रस्तावित बाँध से उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश की कृषि भूमि पर सिंचाई व विद्युत उत्पादन का निर्धारित लक्ष्य वीरानी के साये में गुम है। लगभग 61.25 करोड़ की आंकी गई लागत आज नौ सौ करोड़ से ज्यादा बतलाई जाती है। बहरहाल परियोजना ठप्प है।
सरकारी व राजनीतिक बयानबाजियाँ समय-समय पर जरूरी होती हैं और परियोजना के पूरे होने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आते। राजनीतिक गलियारों में यह मुद्दा चुनावों के निकट अक्सर छाया रहता है। इस पर बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। बड़ी-बड़ी चर्चाएँ चलती हैं। यह सब होता चला आ रहा है पिछले 41 वर्षों के अधिक समय से। बहरहाल कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत की यूपी के सीएम के समक्ष इस मुद्दे को रखने से जनता में जमरानी के प्रति फिर आश जगी है, लेकिन ये आस पूरी होगी या नहीं यह समय बतायेगा।
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