हैदराबाद की केएसके महानदी कंपनी को पावर प्लांट लगाने के लिए बेचे गए 133 एकड़ के रोगदा बांध के अस्तित्व को जिला प्रशासन ने नकारा है। प्रशासन ने बांध को जमीन का टुकड़ा बताकर पावर कंपनी को वर्ष 2008 में बेच दिया था, जबकि इस विषय पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में फरवरी 2010 में बैठक हुई थी। यह सारी बातें तब उभरकर सामने आने लगी है, जब विपक्ष के दबाव पर राज्य सरकार द्वारा गठित विधायकों की जांच समिति ने मामले की पड़ताल शुरू की है। छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले के नरियरा क्षेत्र में हैदराबाद की केएसके महानदी पावर कंपनी 3600 मेगावाट का पावर प्लांट स्थापित कर रही है।
वर्ष 2008 में इसी पावर कम्पनी को राज्य सरकार ने ग्राम रोगदा में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने 48 साल पूर्व 133 एकड़ जमीन पर बनाए गए बांध को अनुपयोगी बताकर सात करोड़ रूपए में बेच दिया था। यह मामला उजागर होने पर विपक्ष ने विधानसभा के बजट सत्र में रोगदा बांध को मुद्दा बनाकर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। लगातार बढ़ते दबाव को देखते हुए सरकार ने मामले की जांच विधायकों के संयुक्त दल से कराने की घोषणा की।
संसदीय कार्य मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे ने मंत्रणा के बाद विधानसभा उपाध्यक्ष नारायण चंदेल के सभापतित्व में पांच सदस्यीय समिति बनाई गई, जिसमें भाजपा के देवजी पटेल, दीपक पटेल तथा कांग्रेस के धर्मजीत सिंह व मोहम्मद अकबर सदस्य को सदस्य के रूप में शामिल किया गया हैं। बांध मामले की जांच के लिए समिति के अध्यक्ष के साथ सभी सदस्य गत 17 अप्रैल को ग्राम रोगदा गांव पहुंचे, जहां उन्होंने बांध स्थल का घंटों तक निरीक्षण किया। विधानसभा जांच दल के निरीक्षण के बाद इस मामले में अब कई नए पेंच सामने आने लगे हैं। प्रारंभिक तौर पर यह बातें सामने आ रही हैं कि मौके पर बांध ही नहीं मिला है। पावर कंपनी ने प्रशासन से वर्ष 2008 में बांध के आबंटन के बाद उस जगह को पूरी तरह से पाट दिया है। दस्तावेजों की जांच के दौरान विधानसभा जांच दल ने यह भी पाया है कि जिला प्रशासन ने बांध के अस्तित्व को नहीं माना है। लिहाजा उस स्थान को जमीन का टुकड़ा बताकर उद्योग समूह को आबंटित कर दिया।
विधानसभा जांच दल ने निरीक्षण के दौरान जिले के अपर कलेक्टर अशोक तिवारी से पूछताछ की तो यह यह भी बात सामने आई कि बांध के हस्तांतरण पर निर्णय लेने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 22 फरवरी 2010 को बैठक आयोजित की गई थी, जबकि जिला प्रशासन ने बैठक से 2 वर्ष पूर्व यानी 2008 में रोगदा बांध को केएसके महानदी पावर कंपनी को बिजली घर बनाने के लिए हस्तांतरित कर दिया था। ऐसे में सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि बैठक से पहले बांध को किस आधार पर हस्तांतरित किया गया। जांच समिति द्वारा इस मामले की रिपोर्ट आगामी अगस्त तक विधानसभा सदन के पटल पर पेश किया जाना है। नतीजतन विधानसभा जांच समिति की अगली बैठक में राजस्व, उद्योग तथा जल संसाधन विभाग के अफसरों को तलब कर बांध से जुड़े सभी दस्तावेजों के जांच किए जाने की खबर सामने आ रही है। फिलहाल नियम-कायदों के विपरित पावर कंपनी को बांध हस्तांतरित किए जाने को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं।
संपर्क : 09770545499, 07489176298
वर्ष 2008 में इसी पावर कम्पनी को राज्य सरकार ने ग्राम रोगदा में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने 48 साल पूर्व 133 एकड़ जमीन पर बनाए गए बांध को अनुपयोगी बताकर सात करोड़ रूपए में बेच दिया था। यह मामला उजागर होने पर विपक्ष ने विधानसभा के बजट सत्र में रोगदा बांध को मुद्दा बनाकर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। लगातार बढ़ते दबाव को देखते हुए सरकार ने मामले की जांच विधायकों के संयुक्त दल से कराने की घोषणा की।
संसदीय कार्य मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे ने मंत्रणा के बाद विधानसभा उपाध्यक्ष नारायण चंदेल के सभापतित्व में पांच सदस्यीय समिति बनाई गई, जिसमें भाजपा के देवजी पटेल, दीपक पटेल तथा कांग्रेस के धर्मजीत सिंह व मोहम्मद अकबर सदस्य को सदस्य के रूप में शामिल किया गया हैं। बांध मामले की जांच के लिए समिति के अध्यक्ष के साथ सभी सदस्य गत 17 अप्रैल को ग्राम रोगदा गांव पहुंचे, जहां उन्होंने बांध स्थल का घंटों तक निरीक्षण किया। विधानसभा जांच दल के निरीक्षण के बाद इस मामले में अब कई नए पेंच सामने आने लगे हैं। प्रारंभिक तौर पर यह बातें सामने आ रही हैं कि मौके पर बांध ही नहीं मिला है। पावर कंपनी ने प्रशासन से वर्ष 2008 में बांध के आबंटन के बाद उस जगह को पूरी तरह से पाट दिया है। दस्तावेजों की जांच के दौरान विधानसभा जांच दल ने यह भी पाया है कि जिला प्रशासन ने बांध के अस्तित्व को नहीं माना है। लिहाजा उस स्थान को जमीन का टुकड़ा बताकर उद्योग समूह को आबंटित कर दिया।
विधानसभा जांच दल ने निरीक्षण के दौरान जिले के अपर कलेक्टर अशोक तिवारी से पूछताछ की तो यह यह भी बात सामने आई कि बांध के हस्तांतरण पर निर्णय लेने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 22 फरवरी 2010 को बैठक आयोजित की गई थी, जबकि जिला प्रशासन ने बैठक से 2 वर्ष पूर्व यानी 2008 में रोगदा बांध को केएसके महानदी पावर कंपनी को बिजली घर बनाने के लिए हस्तांतरित कर दिया था। ऐसे में सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि बैठक से पहले बांध को किस आधार पर हस्तांतरित किया गया। जांच समिति द्वारा इस मामले की रिपोर्ट आगामी अगस्त तक विधानसभा सदन के पटल पर पेश किया जाना है। नतीजतन विधानसभा जांच समिति की अगली बैठक में राजस्व, उद्योग तथा जल संसाधन विभाग के अफसरों को तलब कर बांध से जुड़े सभी दस्तावेजों के जांच किए जाने की खबर सामने आ रही है। फिलहाल नियम-कायदों के विपरित पावर कंपनी को बांध हस्तांतरित किए जाने को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं।
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