आइसलैंड चारों ओर से समुद्र से घिरा हुआ है, जो आइसलैंड विश्वभर में अपनी प्राकृतिक सुंदरता, बर्फीली वादियों, समुद्र, झरने आदि के लिए विख्यात है। यहां की मनमोहक सुंदरता हर साल करोड़ों पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। हाडकंपाती ठंड और बर्फ के बीच गर्म पानी के स्त्रोतों का आनंद अकल्पनीय है। यहां समुद्र का ठंडा पानी सैंकड़ों मछलियों का निवास स्थल भी है और अपने भीतर अलौकिक समुद्री जीवन को समेटे हुए है। अकेले आइसलैंड में करोड़ों रुपयों का मत्स्य का कारोबार किया जाता है, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगातार समुद्र का तापमान बढ़ रहा है। जिससे मछलियां आइसलैंड से दूर जा रही हैं, जो बड़े स्तर पर मत्स्य कारोबार को प्रभावित कर रहा है।
आइसलैंड करीब साढ़े तीन लाख आबादी वाला एक यूरोपीय देश है, जो उत्तरी अटलांटिक में स्थित है। आइसलैंड के विकास में मत्स्य कारोबार का सबसे बड़ा योगदान है और यहां केपलिन प्रजाति की मछलियां बड़ी तादाद में पाई जाती हैं। वर्ष 2017 में आइसलैंड के सबसे बड़े इलाके लैंड्सबैंकइन से करीब एक हजार करोड़ रुपये की केपलिन प्रजाति की मछली बेची थी, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण आइसलैंड में समुद्र लगातार गर्म हो रहा है। बीते 20 सालों में यहां समुद्र का तापमान 1.8 से 3.6 डिग्री फैरनहाइट तक बढ़ गया है। जिससे बर्फ तेजी से पिघल रही है। मछलियों को अनुकूल तापमान नहीं मिल पा रहा है।
बढ़ते तापमान के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित केपलिन मछलियां हो रही हैं और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए उत्तर की ओर ठंडे पानी का रुख कर रही हैं। जिस कारण केपलिन आइसलैंड के तटों से लगभग विलुप्त ही हो गई हैं। इसलिए यहां केपलिन मछली को पकड़ने पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा भी मछलियों की कई अन्य प्रजातियां हैं, जो यहां से लगभग विलुप्त होने की कगार पर है। लेकिन अफसोस की बात है कि ग्लोबल वार्मिंग इस बढ़ते खतरे को कम करने के लिए धरातल पर अपेक्षाकृत कम काम होता दिख रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो पानी का तापमान बढ़ने से सभी मछलियां विलुप्त हो जाएंगी और समुद्री जीवन भी खतरें में पड़ जाएगा। इसका सीधा असर पृथ्वी के अस्तित्व पर पड़ेगा और खामियाजा इंसानों को भी भुगतान पड़ेगा, इसलिए हम सभी को अपने अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करने की जरूरत है।
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