जलवायु परिवर्तन से बढ़ा संकट

धधकते जंगल।
धधकते जंगल।

13 जुलाई की सुबह सुपौल जिले में बीरपुर गाँव के चंदन राय को फोन पर एक सूचना मिली कि कोसी नदी का जलस्तर बढ़ रहा है, ऐसा लगता है कि बाढ़ आ रही है। इतना सुनते ही वह तुरन्त अपना बिस्तर छोड़ गाँव की ओर भागे। उन्होंने ग्रामीणों को नजदीक आ रही आपदा की जानकरी दी। धीरे-धीरे यह सूचना नदी के निचले स्तर तक बसे गाँवों में भी फैल गई। चंदन कहते हैं, ‘इस सूचना ने जीवनदाता का काम किया। खासतौर से निचले भू-भाग में रहने वाले लोगों को बाढ़ से बचने का मौका मिल गया। सूचना मिलते ही ग्रामीणों को और पशुओं को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया गया। नदी के निचले भाग पर बसे गाँव और रहने वाले लोग सबसे ज्यादा बाढ़ की चपेट में आते हैं।’
 
सुपौल और बिहार के दूसरे हिस्सों में बसे जिन लोगों तक यह सूचना नहीं पहुँची वें दुर्भाग्यशाली रहे। बाढ़ ने बिहार के 12 जिलों को चपेट में ले लिया था जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए। बाढ़ ने 72 लाख लोगों को प्रभावित किया। नेपाल में यह बाढ़ 64 लोगों की मृत्यु का कारण बन चुकी है और इसके चलते 16,000 परिवार विस्थापित हुए हैं। भारत और नेपाल दोनों की सीमावर्ती इलाकों में भारी बारिश के चलते यह स्थिति बनी है। नेपाल के सिमारा में 11-12 जुलाई को 311 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की गई जबकि जनकपुर में 245 मिलीमीटर वर्षा दर्ज हुई। यदि 11 से 17 जुलाई के बीच की बात करें तो नेपाल में औसत 221 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई। इसी समान अवधि में बिहार ने औसत 225 मिलीमीटर वर्षा हासिल की, जबकि 12 जुलाई को बिहार में सबसे ज्यादा 463,3 मिलीमीटर वर्षा हुई।

भारत और नेपाल सरकार के पास भी एक-दूसरे को बाढ़ सम्बन्धी सूचना देने के लिए व्यवस्था है, लेकिन इसमें सामान्य तौर पर 48 घंटे का समय लगता है, क्योंकि इसमें दोनों देशों के प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से यह सूचना आगे भेजी जाती है। नेपाल का जल एवं ऊर्जा आयोग सचिवालय, जलप्लावन एवं बाढ़ प्रबन्धन पर बनी नेपाल-भारत संयुक्त समिति और जल संसाधन पर बनी भारत-नेपाल संयुक्त समिति के माध्यम से यह सूचना एक-दूसरे को दी जाती है, लेकिन ऐसे समय में, जब बार-बार मौसम में अतिशय घटनाएँ बढ़ रही हैं और तेजी से बाढ़ आ रही हैं, यह व्यवस्था कारगर साबित नहीं हो रही है।

दोनों देशों में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के कारण यह स्थिति पैदा हुई। जब वर्षा शुरू हुई तो 7 जुलाई तक बिहार के 38 जिलों में से कुल 27 जिलों में 40 फीसदी कम वर्षा रिकॉर्ड की गई थी। इनमें से सात उत्तरी बिहार के जिले थे। अब यह सभी जिले बाढ़ झेल रहे हैं। परिस्थितियाँ 14 जुलाई को खराब हुईं जब नेपाल ने पानी निकालने के लिए कोसी बैराज के 56 फाटकों को खोलने का निर्णय लिया। इसके चलते राज्य के निचले भू-भाग में बाढ़ का संकट आया। यह पहली बार नहीं है। ऐसा करीब हर साल होता है। लुथरेन वल्र्ड रिलीफ (एलडब्ल्यूआर) फाउंडेशन के नारायण गयावली ने कहा कि नेपाल में आने वाली हर बाढ़ भारत में भी बाढ़ का कारण बनती है। 2008, 2011, 2013, 2015, 2017 और 2019 वे वर्ष हैं, जब नेपाल और भारत दोनों देशों में भीषण बाढ़ दर्ज की गई है। कोसी, नारायणी, कर्णाली, राप्ती, महाकाली वे नदियाँ हैं जो नेपाल के बाद भारत में बेहती हैं। जब नेपाल के अपस्ट्रीम यानी ऊपरी हिस्से में भारी वर्षा होती है तो तराई के मैदानी भागों और डाउनसट्रीम यानी निचले भू-भागों में बाढ़ की स्थिति बन जाती है। जनवरी, 2017 के जर्नल क्लाइमेट में प्रकाशित एक शोधपत्र के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन ने बाढ़ की विभीषिका को बढ़ाया है। यदि दीर्घ अवधि (1981-2010) तक नेपाल में वर्षा की प्रवृत्ति पर गौर करें तो ऊँची जमीनों के विपरीत अत्यधिक वर्षा के कारण निचले भू-भाग यानी तराई क्षेत्र ज्यादा जलमग्न हुए हैं। यह सामान्य मानसून वर्षा प्रवृत्ति के विपरीत है जो मैदानी इलाकों की तुलना में पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक तीव्र है। निचले क्षेत्रों में अधिक अचानक बारिश ऊपरी बाढ़ से आने वाली नियमित बाढ़ को बढ़ा सकती है, जिससे बाढ़ की तीव्रता बढ़ सकती है और नए क्षेत्रों में भी पहुँच सकती है। इस अध्ययन में एक और अहम बिन्दु की ओर इशारा किया गया है कि देश में सूखा का दायरा बढ़ा है और बारिश का दायरा घटा है। इसका मतलब है कि लम्बे समय तक बारिश रुकी रहती है और बेहद कम समय में तीव्र बारिश होती है। यह इस बार के मानसून में भी देखा गया है। पूरे देश में पहले सूखे जैसा माहौल रहा फिर अचानक तीव्र वर्षा हुई।
 
नवम्बर 2017 में नॉर्वे के बर्गन विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि अतिशयत वर्षा वाली घटनाएँ देश के पश्चिमी हिस्से में ज्यादा घटित हो रही हैं, जहाँ अभी भारी वर्षा होने वाली है। इस तरह की वर्षा प्रवृत्ति का बदलना खासतौर से नेपाल के लिए काफी नुकसानदेह साबित होता, जहाँ पहाड़ों के कारण बाढ़ भू-स्खलन आदि समस्याएँ प्रबल हो रही हैं। वहीं, नेचर जर्नल में कहा गया है कि वैश्विक तापमान के कारण यह स्थितियाँ और खराब हो रही हैं। मसलन, मंद गति से होने वाली बारिश जिसे फसलें सोख लेती हैं, ऐसी सामान्य बारिश न होकर तूफानी बारिश की प्रवृत्ति बढ़ रही है। नेपाल और बिहार में बाढ़ भी इसी का नतीजा है।
राय के पास बाढ़ की अग्रिम सूचना न तो नेपाल से आई और न ही भारत सरकार की तरफ से। यह सूचना भगवानी चैधरी की ओर से आई, जो ट्रांसबाउंड्री सिटीजन फोरम के संयोजक हैं। यह फोरम टांसबाउंड्री फ्लड रिसाइलेंस प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसे लुथेरन वल्र्ड फाउंडेशन (एलडब्ल्यूआर) द्वारा चलाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के तहत नेपाल में एक नेटवर्क स्थापित किया गया है, जो भारत में 2013 में कोसी और नारायणी नदी के बेसिन पर लगाया गया था। इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य बाढ़ और आपदा के बारे में पूर्व चेतावनी जारी करना है। राय बताते हैं कि हम इस प्रोजेक्ट के माध्यम से नेपाल के ऊपरी हिस्से में बसे समुदायों के साथ सम्पर्क में रहते हैं। हम लोग अकसर मिलते रहते हैं और बाढ़ से होने वाले नुकसान से बचाव के तरीके और पूर्व चेतावनी सिस्टम को कैसे मजबूत बनाया जाए, इस बारे में विचार-विमर्श करते हैं। हम एक-दूसरे को व्यक्तिगत तौर पर जानने लगे हैं। चंदन राय खुद भी टीबीसीएफ सदस्य हैं। नेपाल के ऊपरी हिस्से में रहने वाले लोग हमें लगातार जल स्तर के बारे में अपडेट देते हैं और जैसे ही उन्हें बाढ़ की आशंका लगती है, वे हमें तुरन्त सृजित करते हैं। अब हमें बाढ़ से दो से तीन घंटे पहले चेतावनी सूचना मिल जाती है, जो अपने परिवार, समुदाय, पशुओं और सामान बचाने के लिए काफी समय है। आज के समय में नेपाल की कई बड़ी नदियों कांकी, कोसी, कमला, नारायण, करनाई आदि पर रियल टाइम अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया जा चुका है और सामूहिक एसएमएस और सामुदायिक आपदा प्रबन्धन समितियों के माध्यम से बाढ़ से पहले सूचना जारी कर दी जाती है, जिससे जान-माल को बचाने में काफी मदद मिलती है।
 
यदि भारत में भी इस तरह का सिस्टम विकसित किया जाए तो इसी तरह की सूचना भारत में भी जारी की जा सकती है। आपदा के दौरान अफवाहों पर काबू पाने में सही सूचनाएँ बहुत कारगर रहती हैं। राय बताते हैं कि कुछ साल पहले एक अफवाह उड़ी कि नेपाल में हिमालय में एक झील फट गई है और बाढ़ का खतरा बन गया है, इससे लोगों में भय फैल गया। मैंने ऊपरी इलाकों में रह रहे अपने सदस्यों से बात की तो पता चला कि नेपाल में ऐसा कुछ नहीं हुआ है। मैंने स्थानीय लोगों को यह जानकारी दी, लेकिन उन्होंने इस पर विश्वास नहीं किया और ज्यादातर परिवार सुरक्षित जंगलों में चले गए, हालांकि हम शान्त रहे। अगली सुबह, लोगों को पता चला कि उन्हें मूर्ख बनाया गया है और रात भर उन्हें बेवजह परेशान रहना पड़ा। ऐसे समय में विश्वसनीय सूचनाएँ अफवाहों को मात दे सकती हैं। अब यह आलम है कि स्थानीय लोग मुझे फोन करके हर सूचना की पुष्टि करने की कोशिश करते हैं। राय की इस बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि टीबीसीएफ के गठन के बाद किस तरह का बदलाव आया है।
 
भारत और नेपाल सरकार के पास भी एक-दूसरे को बाढ़ सम्बन्धी सूचना देने के लिए व्यवस्था है, लेकिन इसमें सामान्य तौर पर 48 घंटे का समय लगता है, क्योंकि इसमें दोनों देशों के प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से यह सूचना आगे भेजी जाती है। नेपाल का जल एवं ऊर्जा आयोग सचिवालय, जलप्लावन एवं बाढ़ प्रबन्धन पर बनी नेपाल-भारत संयुक्त समिति और जल संसाधन पर बनी भारत-नेपाल संयुक्त समिति के माध्यम से यह सूचना एक-दूसरे को दी जाती है, लेकिन ऐसे समय में, जब बार-बार मौसम में अतिशय घटनाएँ बढ़ रही हैं और तेजी से बाढ़ आ रही हैं, यह व्यवस्था कारगर साबित नहीं हो रही है। ऐसे ही हालात पिछले साल अरुणाचल प्रदेश में दिखे थे, जब चीन में हुई भारी बारिश के कारण प्रदेश में बाढ़ आ गई थी।
 
वर्तमान वर्ष में असम में बाढ़ के कारण 64 लोगों की मौत हो गई और 18 जिलों के लगभग 44 लाख लोग प्रभावित हो गए। बेशक यह चीन में आई बाढ़ के कारण नहीं हुआ, लेकिन ऐसे जोखिम की वजह से हुआ, जो दो देशों भारत और चीन के बीच प्रभावी बाढ़ प्रबन्धन नीति न होने के कारण पैदा हुई। प्रभावी बाढ़ प्रबन्धन नीति इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के रिसर्च ग्रुप के लीडर गिरीराज अमरनाथ ने कहा कि डोकलाम को लेकर हुए राजनीतिक विवादों के कारण दोनों देशों ने आपस में एक-दूसरे को सूचनाएँ नहीं दी, जबकि ऊपरी इलाकों में जल स्तर बढ़ने के कारण भू-स्खलन की घटनाएँ काफी बढ़ गई थीं। वर्तमान में चीन की ओर से ब्रह्मपुत्र नदी पर बने तीन हाइड्रोलोजिकल स्टेशन नुगेशा, यांगकुन, नूक्सिया से आंकड़े भारत को मिल रहे हैं जो बाढ़ प्रबन्धन में काफी मदद कर सकते हैं। यदि इसी तरह सूचनाओं का आदान-प्रदान समय पर होता है तो बाढ़ से होने वाले नुकसान पर कुछ हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।

(साथ में नेपाल के काठमांडू से राजेश घिमिरे)

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