जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों और खतरों से निपटने में आधुनिक सिस्टम डायनेमिक मॉडल अहम भूमिका निभा सकता है। अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड स्थित जीबी पन्त हिमालयन पर्यावरण शोध संस्थान के अलावा बंगलुरु और कश्मीर विवि ने साझा प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है।
सिस्टम डायनेमिक मॉडल हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी हलचल पर पैनी निगाह ही नहीं रखेगा बल्कि पुराने व अद्यतन किए जाने वाले तमाम पर्यावरणीय आँकड़ों की गणना कर भविष्य की चुनौतियों और खतरों से आगाह भी करेगा। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह तकनीक वैज्ञानिक रूप से सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम है, जिससे वैज्ञानिकों और नीति नियन्ताओं को त्वरित एवं कारगर कदम उठाने का विकल्प मिलेगा। इस प्रोजेक्ट की शुरूआत उत्तराखण्ड व जम्मू कश्मीर से की जा रही है ताकि ताप वृद्धि की वैश्विक चुनौती से निपटने को ठोस नीति तैयार की जा सके।
जीबी पन्त हिमालयन पर्यावरण विकास एवं शोध संस्थान के वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक प्रो. किरीट कुमार ने बताया कि साल-दर-साल होने वाली ताप वृद्धि का ही नतीजा है कि हिमालय की तलहटी में उगने वाली वनस्पति एवं जड़ी बूटी मध्य हिमालय की ओर शिफ्ट हो रही हैं। जबकि मध्य हिमालय में उगने वाली वनस्पतियाँ उच्च हिमालयी क्षेत्र के अनुकूल होने लगी हैं।
इस स्थिति पर बारीक नजर रखे जाने की आवश्यकता है साथ ही कारकों व उपायों को भी चिन्हित किया जाना होगा। लिहाजा जीबी पन्त हिमालयन पर्यावरण विकास एवं शोध संस्थान कोसी कटारमल, अल्मोड़ा, काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च बंगलुरु के फोर्थ पैराडाइम इंस्टीट्यूट व कश्मीर विवि के वैज्ञानिक मिलकर इस प्रोजेक्ट के तहत शोध में जुट गए हैं।
प्रो. किरीट ने बताया कि पहले चरण में उत्तराखण्ड व जम्मू कश्मीर में पानी एवं कृषि पर शोध कर वर्षों पुराने तथा मौजूदा आँकड़े जुटाए जाएँगे ताकि पता लग सके कि जलवायु परिवर्तन व तापवृद्धि से इन राज्यों में नदियों, भूमिगत जल भण्डार, जल-स्रोतों, पोखरों के पानी और फसलों व वनस्पतियों पर कितना दुष्प्रभाव पड़ा है। डाटा के संकलन के बाद इसे कम्प्यूटर गणना आधारित सिस्टम डायनेमिक मॉडल में फीड किया जाएगा। इसका डिसीजन सपोर्ट सिस्टम पुराने व वर्तमान आँकड़ों का विश्लेषण कर सारगर्भित जानकारी प्रस्तुत करेगा। खत्म हो रहे भूगर्भीय जल-तल, सूखते रिचार्ज जोन, सहायक नदियों व स्रोतों के कारण दम तोड़ती नदियाँ, जलवायु परिवर्तन का मौसम व ऋतु चक्र पर सीधा प्रभाव, तापवृद्धि के तुलनात्मक और अद्यतन आँकड़े, इससे फसल व वनस्पतियों और उत्पादकता पर पड़ने वाले प्रभाव आदि पर विस्तृत रिपोर्ट देगा। इस रिपोर्ट के आधार पर हिमालयी राज्यों के लिये घातक जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग के मूल कारण व बचाव के तरीके सुझाए जाएँगे। डाटा के विश्लेषण के आधार पर आवश्यक उपाय भी तलाशे जा सकेंगे।
“यह मॉडल जलवायु परिवर्तन, इससे जुड़ी चुनौतियों और खतरों की सटीक जानकारी के साथ चुनौतियों का सामना करने के उपाय भी प्रस्तुत करेगा। यह हमारी निर्णय क्षमता को और बढ़ाएगा। किसी भी चुनौती से निपटने को हम जो नीति बना रहे हैं, उसका क्या परिणाम रहेगा या उसमें क्या सुधार करना है, हम सटीक निर्णय ले सकेंगे। तीन वर्ष के इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है। निश्चित ही सुखद परिणाम मिलेंगे।” -प्रोफेसर किरीट कुमार, वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक जीबी पन्त हिमालयन पर्यावरण विकास एवं शोध संस्थान, कोसी कटारमल, अल्मोड़ा।
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