जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव पर चिंता

Climate change
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हो रहा है जलवायु परिवर्तनहमारी पृथ्वी का तापमान लगातार और तेजी से बढ़ रहा है, तापमान में वृद्धि अथवा जलवायु परिवर्तन से अभिप्राय है लम्बे में मौसम में देखे जाने वाले बदलाव।

इसकी कुछ वजह प्राकृतिक हैं और अधिकतर मानव के क्रिया-कलापों की वजह से हैं। धरती का तापमान बढ़ाने के लिये जिम्मेदार ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के लिये चीन और अमेरिका के बीच हुए समझौते को जहाँ ऐतिहासिक कहकर प्रचारित किया जा रहा है वहीं विशेषज्ञों ने इसे विनाशकारी बताया है।

ग्रीनहाउस का सर्वाधिक उत्सर्जन करने वाले दो देशों चीन और अमेरिका के बीच हाल में बीजिंग में हुए समझौते में अगले दो दशकों में उत्सर्जन को एक तिहाई तक कम करने की बात कही गयी है। अमेरिका वर्ष 2005 के तय स्तर पर वर्ष 2025 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 26 से 28 फीसदी की कटौती करेगा। चीन का उत्सर्जन वर्ष 2030 में चरम पर पहुँचेगा और इसके बाद वह इसमें कटौती करेगा।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस समझौते को ऐतिहासिक बताते हुए उम्मीद जताई कि इससे दूसरे देशों को भी प्रेरणा मिलेगी और अगले वर्ष एक मजबूत वैश्विक समझौता सम्पन्न हो सकेगा। जलवायु परिवर्तन पर अगले साल पेरिस में सम्मेलन होना है जिसका एजेंडा इस साल के अंत में लीमा में होने वाली बैठक में तय किया जाएगा।

लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता न तो ऐतिहासिक है और न ही महत्वाकांक्षी। बल्कि यह दुनिया के दो सबसे बड़े प्रदूषकों के हितों की ही पूर्ति करता है। कार्बन डाइऑक्साइड के कुल उत्सर्जन में चीन की भागीदारी 28 प्रतिशत और अमेरिका की 16.52 प्रतिशत है। दुनिया के कुल उत्सर्जन में भारत का हिस्सा 5.77 प्रतिशत है और वह इस सूची में चौथे स्थान पर है। पर्यावरण पर शोध करने वाली संस्था ‘सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई)’ का कहना है कि अमेरिका और चीन के बीच हुए समझौते से धरती का तापमान तीन डिग्री सेल्सियस तक बढ़ेगा और इसके विनाशकारी परिणाम सामने आएँगे। इस समझौते के मुताबिक अमेरिका 2025 में पाँच अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करेगा जो प्रति व्यक्ति के हिसाब से 14 टन होगा।

चीन का ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन स्तर वर्ष 2030 में 17 से 20 अरब टन के चरम स्तर पर होगा। यानी तब उसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 12 से 13 टन होगा। इसकी तुलना में भारत उस समय चार अरब टन ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन करेगा जो प्रति व्यक्ति के हिसाब से तीन टन बैठेगा। वर्ष 1990 के तय स्तर पर अमेरिका वर्ष 2025 में 15 से 17 प्रतिशत कटौती करेगा जबकि उस समय तक यूरोपीय संघ कम से कम 35 प्रतिशत की कटौती करेगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर धरती के तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की कमी के लक्ष्य को हासिल करना है तो अमेरिका को वर्ष 1990 के तय स्तर पर कम से कम 50 से 60 प्रतिशत की कटौती करनी पड़ेगी। सीएसई का कहना है कि यह समझौता जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के पैनल आईपीसीसी के धरती के तापमान को दो डिग्री सेल्सियस कम करने के लक्ष्य के अनुरूप नहीं है।

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि यह समझौता अमेरिका और चीन के हितों की पूर्ति करता है।

आईपीसीसी हाल में जारी रिपोर्ट में वर्ष 2050 तक उत्सर्जन के स्तर को 2010 के स्तर से कम बनाए रखने के लिये इसमें 40 से 70 प्रतिशत कटौती की जरूरत बतायी गयी है। लेकिन चीन और अमेरिका के बीच हुआ समझौता दुनिया को इस लक्ष्य तक नहीं पहुँचने देगा।

सीएसई के उप महानिदेशक और जलवायु परिवर्तन पर संस्था की टीम के प्रमुख चन्द्र भूषण ने कहा कि यह समझौता दूसरे देशों के लिये अच्छा पैमाना नहीं है। अगर भारत इन देशों के नक्शेकदम पर चले तो उसे वर्ष 2040 तक अपने उत्सर्जन स्तर में कोई कटौती करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2030 तक भारत में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन चार टन होगा जबकि अमेरिका और चीन में यह प्रति व्यक्ति 12 टन होगा।

भूषण ने कहा कि यह समझौता इस बात की झलक है कि अगले साल पेरिस में क्या होने वाला है। आम सहमति बनाने के नाम पर चीन और अमेरिका इस तरह का विनाशकारी समझौता दुनिया पर थोप रहे हैं।

यह समझौता भारत के लिये भी आँखे खोलने वाला है। अब यह भारत को तय करना है कि वह अमेरिका और चीन के नक्शेकदम पर चलना चाहता है या फिर अपने लिये अलग रास्ता बनाता है।

सीएसई के विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को विकासशील देशों के साथ मिलकर एक व्यापक योजना पेश करनी चाहिए जो न केवल बराबरी पर आधारित हो बल्कि जिससे दुनिया को जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों से बचाया जा सके।

भारत को सभी देशों के लिये बराबरी पर आधारित उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य निर्धारित करने के लिये काम करना चाहिए। इसी से अमेरिका और चीन को उत्सर्जन में कटौती के लिये मजबूर किया जा सकता है।

जलवायु परिवर्तन पर सात सूत्री एजेंडा


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत में सोलर, विंड एनर्जी जैसे स्रोतों से उत्पादन क्षमता 2022 तक 175 गीगावाट करने और कोयला जैसे परम्परागत साधनों से बिजली उत्पादन के लिये सब्सिडी कम करने की घोषणा की। साथ ही बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से यह सुनिश्चित करने को कहा कि हर साल ग्रीन क्लाइमेट फंड के लिये 100 अरब डॉलर जुटाए जाएँ। जी-20 समूह की बैठक में जलवायु परिवर्तन और विकास पर मोदी ने सात सूत्री एजेंडा पेश किया। इसमें कार्बन क्रेडिट की जगह ग्रीन क्रेडिट को लाने और 2030 तक शहरों का 30 फीसदी ट्रैफिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट में शिफ्ट करने जैसी बाते हैं।

उन्होंने जीवन शैली में बदलाव पर भी जोर दिया। ऐसा विकास हो जिसमें प्रकृति के साथ समन्वय हो। प्रधान मंत्री ने सोलर एनर्जी से समृद्ध देशों का गठबंधन बनाने का प्रस्ताव रखा। पेरिस में होने वाले जलवायु शिखर सम्मेलन में इसे औपचारिक रूप दिया जाना है। उन्होंने कहा कि भारत में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये तीन अरब डॉलर का राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष बनाया जाएगा। साथ ही कहा कि विकसित देशों को स्वच्छ ऊर्जा की वैश्विक ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिये वित्तीय साधन और तकनीकी उपलब्ध कराना सुनिश्चित करना चाहिए।

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