सारांश
वर्तमान में जलवायु परिवर्तन का मानव जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रभाव परिलक्षित हो रहा है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जहां सत्तर प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आधारित है जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले तापक्रम में वृद्धि एवं असामान्य वर्षा से प्रभावित हो सकती है। जल संसाधन परियोजनाओं के सिंचन क्षेत्र जहां कृषक समुचित जल की उपलब्धता सुनिश्चित जानकर कृषि में अधिक व्यय करते है, जलवायु परिवर्तन का अधिक प्रभाव पड़ता है। प्रस्तुत अध्ययन छत्तीसगढ़ प्रदेश के तांदुला सिंचाई क्षेत्र में किया गया है। इस अध्ययन में CANESM के तीन परिदृश्यों (Scenarios) (RCP 2.6, 4.5 & 8.5) हेतु तापक्रम एवं वर्षामाप डाउनस्केलिंग किया गया है। डाउनस्केलिंग हेतु NCEP से प्राप्त छब्बीस प्रीडिक्टर के सेट से प्रतिशत न्यूननन ; Parentage reduction एवं K गुणा क्रास-सत्यापन ; K-fold cross validation तकनीक द्वारा दो या तीन विशिष्ठ प्रीडिक्टरों का चुनाव किया गया है, तथा इनके उपयोग से विभिन्न भविष्य कालों के लिए तापक्रमों एवं वर्षा की बहुभागी श्रृंखलाओं का गठन किया गया है।
डाउनसेलिंग से प्राप्त तापक्रमों एवं वर्षा की विभिन्न श्रृंखलाओं का CLIMWAT सॉफ्टवेयर द्वारा वाष्पन-उत्सर्जन की गणना पर तांदुला सिंचाई क्षेत्र की डिजाईन सिंचाई पेटर्न हेतु जल आवश्यकता की गणना की गई थी तथा उपरोक्त आवश्यकताओं का वर्तमान आधार अवधि ; (BP-1971.2015) से तुलनात्मक किया गयां प्रस्तुत अध्ययन के परिणाम से स्पष्ट है कि अधिकतम तापक्रम का मासिक औसत सभी माहों में बढ़ती प्रवृत्ति प्रदर्शिता करता है। जबकि मानसून के महीनों में न्यूनतम तापक्रम में वृद्धि होने की सम्भावना को प्रदर्शित करता है। तादुंला सिंचाई क्षेत्र में 82089 हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ के समय धान की सिंचाई हेतु जल की आपूर्ति की जाती है तथा वर्तमान में 51% दक्षता के साथ आधार काल में 473.7 X 106 घन मी. जल की आवश्यकात होती है। जल की यह मात्रा FP-1: 2020.35 में बढ़कर 479.0 X106,FP:2046.64 में 492.7 X 106 तथा FP—3: (2081.99) में घटकर 387.9 X 106 घन मी. होने का अनुमान है। प्रस्तुत अध्ययन से स्पष्ट है कि दूसरा भविष्य काल ;FP-2: (2046.64) जल के प्रबंधन दृष्टि से संकटपूर्ण रहेगा एवं इस हेतु उपयुक्त अनुकूलन उपायों की आवश्यकता रहेगी।
Abstract
India is an agrarian country where more than seventy percent of population depends largely on agriculture and agro related business. The projected scenarios of precipitation from climate models predict decrease in some region and increase in others, albeit with large uncertainty in most of the places. The Chhattisgarh state which is called rice bowl of India has number of water resources projects where climate change can change crop water requirement. The present study has been carried out in the command of Tandula reservoir using statistical downscaling of climatic parameters for computation of crop water requirement using RCP2.6, RCP4.5 and RCP8.5 scenarios of coupled model inter-comparison project 5 (CMIP5). For calibration and validation, twenty six NCEP rescaled climatic variables from 1971 to 2003 have been used with minimum and maximum temperature and rainfall for concurrent period. The percentage reduction and k-fold cross validation techniques have been used for selection of best suited climatic parameters for statistical downscaling and used to generate multiple ensembles of temperature and rainfall for three future assessment periods namely i.e. near century period as FP-1 (2020-35), mid century period as FP-2 (2046-64) and far century period as FP-3 (2081-99). The projected multiple series of climatic variables were further used to compute evapotranspiration using CLIMWAT and then crop water requirement in the command and compared with corresponding requirement during the base period (BP: 1971 to 2014). The results of analysis suggested that the mean monthly maximum temperature showed a rising trend in all the months, while significant increase of minimum temperature during winter and rainy season. The average crop water requirement for designed cropping pattern of 82089 ha of kharif paddy during base period under present overall efficiency of 51% during base period may be about 473.7 Mm3 will increase to 479.0 Mm3 during near century period (2020-35), 492.7 Mm3 during mid century period and reduce to 387.9 Mm3 during far century period (2018-99). The mid-century period may be the most critical among all and it is recommended to develop adaptation measures to combat climate change especially in mid-century period.
प्रस्तावना
जलवायु परिवर्तन का मतलब पृथ्वी पर सैंकड़ों सालों से चले आ रहे मौसम में व्यापक परिवर्तन से है, जो मुख्यतः ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में होने वाली बेतहाशा वृद्धि के कारण हो रहा है। इसके परिणाम स्वरूप औद्योगिक क्रांति के उपरान्त पृथ्वी के औसत तापमान में 0.850C की वृद्धि हुई है जिससे विभिन्न प्रजातियों के विलुप्त होने तथा उनके आवास पर खतरा होने के कसाथ खाद्य, जल सुरक्षा एवं पर्यावरण के लिए प्रतिकूल साबित हो रहा है ; (IPCC 2012 – 2013)। पृथ्वी से प्रतिवर्ष 10 बिलियन मेट्रिक टन कार्बन वायुमंडल में छोड़ा जा रहा है जिसके कारण 2050 तक वैश्विक तापमान 0.5 से 2.50 C तथा 2100 तक यह अनुमानित वृद्धि से 5.80C तक हो सकती है। ; (IPCC 2014)। जलवायु परिवर्तन, जल संसाधनों के प्रबंधन में आवश्यक मांग आपूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है तथा इससे निपटने हेतु अनुकूलन उपायों का विकास आज वैज्ञानिकों एवं प्रबंधक वर्ग हेतु एक बड़ी चुनौती के रूप में प्रस्तुत है। जलवयु परिवर्तन के कारण एक तरफ तो बढ़ते तापमान से विभिन्न उपयोगों हेतु जल की आवश्यकता में बढ़ोत्तरी हो रही है ; (Rosenzweig et al, 2004) तो दूरी तरफ वर्षा की चरम घटनाओं ;( Exreme events )में बढ़ोत्तरी तथा मात्रा में कमी ; (Taber et al 2016) के कारण जल संसाधनों की विश्वसनीयता एवं प्रदर्शन प्रभावित हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को परिलक्षित करने हेतु होने वाले अध्ययनों में सबसे बड़ी आवश्यकता पृथ्वी पर भविष्य में होने वाली जलवायु का सटीक प्रक्षेपण ; (Projection) है। इन प्रक्षेपणों में सबसे बड़ी अनिश्चितता भविष्य की विकास एवं आर्थिक गतिविधियों का पता नहीं होना है। आज हम स्पष्ट रूप से नहीं कह सकते कि अगले 50 या 100 वर्षों में पृथ्वी पर विकास की क्या एवं आर्थिक स्थिति किस प्रकार की होगी। इन्हीं अनिश्चितताओं के प्रक्षेपण हेतु वैश्विक परिसंचरण मॉडल ;((Global Circulation model) एक उन्नत साधन है जो जलविज्ञानीय एवं अन्य अध्ययनों में उपयेाग में लाए जाते हैं Annandhi et al 2008)। वैश्विक परिसंचरण मॉडलों द्वारा विकास की विभिन्न दरों के अनुरूप होने वाले ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के आधार पर भविष्य के सैकड़ों वर्षों में होने वाली जलवायु का प्रक्षेपण ; (Projection) किया जाता है। ये मॉडल मुख्यतः पृथ्वी एवं इसके वातावरण में स्थल, जल एवं वायुमंडलीय भौतिक एवं रासायनिक अभिक्रिया का गणितीय प्रदर्शन होता है।
तालिका 1: गतिशील एवं सांख्यिकी डाउनस्केलिंग में अंतर
क्र.सं. |
गतिशील डाउनस्केलिंग |
सांख्यिकीय डाउनस्केलिंग |
1. |
गतिशील डाउनस्केलिंग भौतिकीय नियमों पर आधारित मॉडल है जो समय प्रमेदक ;(Time Slice) मोड पर कार्य करते है। |
सांख्यिकीय डाउनस्केलिंग में प्रिडिक्टर एवं जीसीएम प्राप्त प्रिडिक्टरों के मध्य सांख्यकीय संबंध स्थापित किया जाता है। |
2. |
ये मॉडल अत्यंत जटिल होते है। |
इस विधि में जटिलता नहीं होती है। |
3. |
इन मॉडलों को चलाने हेतु गहन कम्प्यूटरों की आवश्यकता होती है। |
इस विधि में गहन कम्प्यूटरों की आवश्यकता नहीं होती है। |
4. |
इन मॉडलों में आंकड़ों की आवश्यकता होती है। |
इस विधि की सफलता स्टेशन के आंकड़ों पर निर्भर है। |
5. |
व्यवस्थित पूर्वाग्रह ;(Bias) का प्रसार हो सकता है। |
इसकी संभावना नहीं है, पर विकसित संबंध आंकड़ों की गुणवत्ता पर आधारित होते है। |
वैश्विक परिसंचरण मॉडल जलवायु चर की श्रृंखला को ग्रीन हाउस गैसों की उपस्थिति के आधार पर भविष्य काल में अनुकरण करने में सबसे विश्वसनीय साधन माने जाते हैं ; (Ghosh & Majumdar 2008) चूंकि इन मॉडलों द्वारा पूरे विश्व की जलवायु की दीर्घावधि (100 अधिक वर्षों) के लिए गणना की जाती है, ये मॉडल बड़े पैमाने पर कई किलोमीटर के ग्रिड पर अपने प्रक्षेपण प्रदान करता है। परंतु इनके द्वारा क्षेत्रीय, बेसिन एवं बिंदु पैमाने पर होने वाली स्थलाकृति एवं भूमि उपयोग में होने वाले बदलाव जो की जलविज्ञानीय मॉडलों में उपयेाग में आते हैं, को प्रदर्शित करने की क्षमता नहीं होती है। इस समस्या को गतिशील ; (Physical) या सांख्यिकीय ; (Statistical) डाउनस्केलिंग तकनीको की सहायता से स्थानीय एवं बेसिन स्केल तक डाउनस्केल कर हल किया जाता है। ये तकनीक बड़े पैमाने पर जलवायु के आंकड़ों का संबंध स्थानीय पैमाने पर वायुमंडलीय परिस्थितियों के साथ स्थापित करते है ;( Tisseuil 2019)। गतिशील एवं सांख्यिकी डाउनस्कलिंग के अपने लाभ तथा हानि हैं ; (Tallimit & Harun 2013)। गतिशील एवं सांख्यिकी डाउनस्कलिंग के मध्य अंतर को तालिका 1 में प्रदर्शित किया गया है।
प्रस्तुत अध्ययन में सांख्यिकीय डाउनस्केलिंग जो कि साधारण, कम खर्चीली तथा कम कंप्यूटर संसाधनों उपयेाग द्वारा की जा सकती है ;( Lopes, 2009; Sharma et al 2011, Ethan et al, 2011) प्रयोग में लाई गई है। Wilby, 2002 द्वारा एक सॉफ्टवेयर स्टेटिस्टिकल डाउनस्केलिंग मॉडल ;( SDSM) का विकास किया गया था जो कि वैश्विक परिसंचरण मॉडलों द्वारा प्रदत्त आंकड़ों की सहायता से भविष्य में होने वाली जलवायु का प्रक्षेपण करने में सक्षम है। (Mahmood & Webal ;204) द्वारा एस डी एस एम सॉफ्टवेयर के उपयोग से भारत एवं पाकिस्तान सीमावर्ती क्षेत्र में चरम तापमान का प्रक्षेपण किया गया था। प्रक्षेपित आंकड़ों का पूर्वाग्रह संशुद्धि ;( Bias Correction) के उपरांत तीन भविष्य कालों अर्थात 2011-2041, 2041-2070 एवं 2070-2099 में झेलम बेसिन के लिए प्राप्त आठ तीव्रता ; (Intensity) तथा चार आवृति ; (Frequency) सूचकांको का आधार अवधि (1961-90) के साथ तुलनात्मक अध्ययन किया गया था। उपरोक्त अध्ययन से प्राप्त परिणामों से स्पष्ट था कि झेलम बेसिन में तप्त दिनों ;(Hot Days) एवं तप्त रातों ;(Hot Night) में बढ़ोतरी होगी तथा शीत दिनों ;(Cold Days) एवं शीत रातों ;(Cold Night) में कमी होगी। इसी प्रकार बहुत से अन्य वैज्ञानिकों ने भ एसडीएसएम सॉफ्टवेयर के उपयोग से विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु प्रक्षेपण का कार्य किया गया है तथा इसे सभी क्षेत्रों में उपयोगी पाया है Wilby et al; 2014; Pervez & Henebry 2014; Mahmood & Babel 2014; Jaiswal & Tiwari 2015; Mahmood & Jia 2016 इत्यादि)।
अध्ययन क्षेत्र एवं उपयोगी आंकडें
प्रस्तुत अध्ययन छत्तीसगढ़ में स्थित तांदुला सिंचन के लिए किया गया है (चित्र-1)। छत्तीसगढ़ भारत में धान का कटोरा हेतु विख्यात है तथा तांदुला सिंचन क्षेत्र धान का महत्त्वपूर्ण उत्पादक क्षेत्र है जो कि गोदली एवं खरखरा जलाशय से भी जल प्राप्त करता है। यह सिंचन क्षेत्र छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सपीप स्थित है। सिंचन क्षेत्र में कुल 82095 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खरीफ काल में फसल हेतु तांदुला एवं अन्य जलाशयों से प्राप्त जल से सिंचाई की जाती है। जैसा कि देखा गया है कि पूरे क्षेत्र में एक साथ बुवाई नहीं होती है, अध्ययन क्षेत्र को दो समान भागों में विभक्त किया है तथा बुवाई एवं कटाई का चार्ट नीचे प्रदर्शित है।
फसल |
जून |
जुलाई |
अगस्त |
सितम्बर |
अक्टूबर |
नवंबर |
|||||||||||
डी1- |
डी1- |
डी-2 |
डी-3 |
डी-2 |
डी-3 |
डी-3 |
डी-1 |
डी-2 |
डी-3 |
डी-2 |
डी-3 |
डी-2 |
डी-3 |
डी-1 |
डी-2 |
डी-3 |
|
धान-1 41048 हे. |
बु |
क |
|||||||||||||||
धान-1 41048 हे. |
बु |
क |
बुःबुवाई, कः कटाई
प्रस्तुत अध्ययन हेतु रायपुर वेद्यशाला का 1971 से 2014 तक के दैनिक न्यूनतम एवं अधिकतम तापमान तथा बालोद वर्षा मापी केन्द्र के 1981 से 2014 तक के दैनिक वर्षा के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। मॉडल हेतु नेशनल सेंटर फॉर एनवायरमेंटल प्रिडिक्शन ;(NCEP) से प्राप्त 26 प्रिडिक्टर्स (1971-2003) तथा CANESM से प्राप्त 3 RCPs (RCP 2.6, RCP 4.5 एवंa RCP 8.5)परिदृश्यों के लिए 2001 से 2099 तक के प्रक्षेपित प्रिडिक्टर्स का उपयोग किया गया है।
कार्य प्रणाली
उपरोक्त अध्ययन हेतु प्रस्तुत फ्रेमवर्क में निम्न मॉडयूलों की सहायता से तांदुला सिंचाई क्षेत्र में तीन भविष्य कालों अर्थात निकट शताब्दी काल ;(EP-1: 2020.35) मध्य शताब्दी काल ; (EP-2: 2046.64) तथा दीर्घ शताब्दी काल ; (EP-3: 2081.99) हेतु सिंचाई आवश्यकता की गणना की गई है।
मॉडयूल-1: एस डी एस एम की सहायता से तापक्रम एवं वर्षा का प्रक्षेपण
मॉडयूल-2: ETo केलकुलेटर की सहायता से वाष्प-उत्सर्जन; (Evapotranspiration) की गणना
मॉडयूल-3: एक्सेल प्रोग्रामिंग की सहायता से कुल सिंचाई आवश्यकता का आकलन
मॉडयूल-1: एस डी एस एम की सहायता से तापक्रम एवं वर्षा का प्रक्षेपण
एस डी एस एम सांख्यिकी संबंधों द्वारा दैनिक आधार पर वर्तमान एवं भविष्य की जलवायु के परिदृश्यों को विकसित कर सकता है। वर्तमान में एसडीएसएम का 5.2 संस्करण उपलब्ध है। जिसमें निम्न सात प्रक्रियाओं द्वारा दैनिक आधार पर जलवायु को डाउनस्केल यिका जा सकता है। (चित्र-2)
- गुणवत्ता नियंत्रण एवं डेटा परिवर्तन ;( Quality Control and Data Conversion)
- मॉडल का अशांकन ;( Model Calibration)
- मौसम जनक ; (Weather Generator)
- आंकड़ों का विश्लेषण ;( Data Analysis)
- ग्राफ्किल विश्लेषण ;( Graphical Data Analysis Analysis)
- परिदृश्यों का परिकल्पन ;( Scenarious Generation)
सांख्यिकी डाउनस्केलिंग में उपयुक्त प्रिडिक्टरों का चयन एक महत्त्वपूर्ण कार्य है जिसमें वायुमंडलीय प्रक्रिया एवं क्षेत्र में जलवायु से संबंधित भौतिकीय क्रिया की उचित समझ अवश्यक है ; (Huang et al 2011)। विभिन्न अध्ययनकर्ताओं द्वारा उपयुक्त प्रिडिक्टरों के सेट के चयन हेतु कई विधियां सुझाई गई हैं।( Benestad et al, 2007; Shangwe et al, 2006; Tripathi et al, 2006 etc) तथा वर्तमान अध्ययन में प्रतिशत न्यूनन ; (Percentage reduction) (Mahmood & Babel, 2013; Jaiswal et at 2013) विधि का प्रयोग किया गया है जिसमें तापक्रम में अशर्त तथा वर्षामाप में सशर्त सहसंबंध गुणक स्थापित किया जाता है। प्रतिशत छटनी विधि में सर्वप्रथम प्रिडिक्टेड का एन सी ई पी से प्राप्त 26 प्रिडिक्टरों के साथ सहसंबंध गुणांक निकाला जाता है तथा जो प्रिडिक्टर सर्वोत्तम गुणांक का प्रदर्शन करता है, सुपर प्रिडिक्टर कहलाता है। इसके पश्चात सुपर प्रिडिक्टर के साथ बचे हुए सह प्रिडिक्टरों के मध्य पूर्ण एवं आंशिक सहसंबंध गुणांकों की गणना की जाती है तथा निम्न समीकरण द्वारा प्रतिशत न्यूनन ;(PR) का आकलन किया जाता है।
यहां Pr आंशिक सहसंबंध गुणांक एवं R पूर्ण सहसंबंध गुणांक है इस तरह जो प्रिडिक्टर PR की न्यूनतम मान प्रदर्शित करता है द्वितीय सुपर प्रिडिक्टर कहलाता है। अब, द्वितीय सुपर प्रिडिक्टर के साथ ऊपर वर्णित प्रक्रिया का उपयोग कर तृतीय, चतुर्थ आदि प्रिडिक्टर मालूम किया जा सकता है। सामान्यत जलवायु की परिवर्तनशीलता को प्रदर्शित करने हेतु एक से तीन प्रिडिक्टर पर्याप्त होते हैं ;( Chu et al 2010)।
प्रिडिक्टरों के सेट के चुनाव के पश्चात एस डी एस एम के द्वारा K. गुणा क्रास-सत्यापन (K-fold cross validation) द्वारा अशांकन ; (Calibratin) एवं सत्यापन ; (Validation) किया जाता है। इस तकनीक में पूरी आंकड़ों की श्रृंखला को K-1/K तथा 1/K भाग में विभक्त किया जाता है जिसमें प्रथम भाग अशांकन एवं दूसरा भाग सत्यापन के उपयोग में लाया जाता है। सफल अशांकन एवं सत्यापन के पश्चात अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम तथा वर्षमाप के मॉडलों द्वारा तीन भविष्य कालों हेतु विविध श्रृंखलाओं की संतति की गई थी, तथा उनका प्रयोग मॉडयूल-2 में किया गया था।
मॉडयूल-2: ETo केलकुलेटर की सहायता से वाष्पन-उत्सर्जन ; (Evapotranspiration) की गणना।
प्रस्तुत मॉडयूल में संदर्भ फसल ; (Reference crop) हेतु वाष्प-उत्सर्जन की गणना हेतु ETo केलकुलेटर का उपयोग किया गया है। जो पेनमेन मोइन्टिथ ; (Panmon-Montieth) समीकरण का उपयोग करता है। ET oकेलकुलेटर खाद्य और कृषि संघटन ;(FAO) के भूमि एवं जल प्रभाग द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर जलवायु के विभिन्न आंकड़े जैसे अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम, हवा की गति, सापेक्ष आर्द्रता, धूप के घंटे तथा वैकल्पिक रूप में केवल अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम द्वारा संदर्भ वाष्पीकरण की गणना करता है। ETo केलकुलेटर का स्क्रीनशॉट चित्र क्रं-3 प्रदर्शित किया गया है।
मॉडयूल 3: एक्सेल प्रोग्रामिंग की सहायता से कुल सिंचाई आवश्यकता का अध्ययन
किसी भी फसल की कुल आवश्यकता, उस फसल की सभी आवश्यकताओं जिनमें फसल द्वारा वाष्पन, खेत की तैयारी, नर्सरी एवं लीचिंग हेतु जल की मात्रा तथा जल के अनुप्रयोग तथा परिचालन में होने वाला नुकसान शामिल होता है। तांदुला सिंचाई क्षेत्र में वर्तमान समग्र दक्षता 51% ;75% परिचालन दक्षता तथा 68% अनुप्रयेाग दक्षता) का उपयोग करके तीनों भविष्य काल में डिजाइन फसल पैटर्न हेतु कुल आवश्यक सिंचाई जल आवश्यकता का आकलन किया गया है तथा इसका आधार काल (1971-2014) की सिंचाई आवश्यकता से तुलना की गई है।
परिणामों का विश्लेषण
सिंचाई क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से निपटने हेतु अनुकूलन उपायों के विकास हेतु जल की आवश्यकता का आकलन एक महत्त्वपूर्ण कदम है प्रस्तुत अध्ययन में तांदुला सिंचाई क्षेत्र में डिजाइन फसल पैटर्न हेतु तीन भविष्य कालों में RCP2.6, RCP 4.5 एवं RCP 8.5 परिदृश्यों की स्थिति में आवश्यक जल की मात्रा का आकलन किया गया है।
मॉडयूल से प्राप्त परिणाम
मॉडयूल-1 द्वारा सांख्यिकीय डाउनस्केलिंग में K.गुणा क्रास-सत्यापन तकनीक का उपयोग कर न्यूनतम तथा अधिकतम तापक्रम के अशर्त तथा वर्षामाप को सशर्त संबंधों द्वारा तीन भविष्य कालो हेतु श्रृंखलाओं की गणना की गई थी। प्रस्तुत अध्यन में 3 गुणा क्रास-सत्यापन में तकनीक जिसमें 1971 से 1990 तक का प्रयोग अशांकन 1991 से 2003 तक प्रयोग सत्यापन हेतु किया गया था। अशांकन हेतु प्रिडिक्टरों के विभिन्न संयोजनों एवं परिवर्तनों का परीक्षण किया गया तथा प्राप्त श्रृंखला का तापक्रमों में रेखिक अंतर तकनीक तथा वर्षामाप में स्केलिंग तकनीक का उपयोग कर डिवायस ;( Debais) किया गया था। अंशाकन द्वारा प्राप्त संबंधों का प्रयोग कर सत्यापन काल (1991-2003) की श्रृंखलाओं की गणना स्वतंत्र प्रिडिक्टरों के संग्रह से किया गया था। प्राप्त श्रृंखलाओं को मासिक आधार पर नाश-सटक्लिफ दक्षता ;( n’) तथा सहसंबंध गुणांक के आधार पर सर्वोत्तम योग्य मॉडल का चयन यिका गया। चित्र 4 (अ) एवं 4 (ब) में क्रमशः तापक्रम एवं वर्षामाप का अशांकन तथा सत्यापन काल में चित्रात्मक प्रदर्शन प्रस्तुत किया गया है। तापक्रमों तथा वर्षामाप के डाउनस्केलिंग मॉडलों हेतु चयनित प्रिडिक्टर, रूपान्तरण, प्रक्रमण तथा दक्षता को तालिका 2 में प्रदर्शित किया गया है।
तालिका क्र. 2 जलवायु प्राचलन एवं वर्षामाप के सांख्यकीय माॅडलिंग हेतु चयनित प्रिडिक्टर्स
क्र.सं. |
जलवायु प्राचल |
चयनित प्रिडिक्टर्स |
मॉडल का प्रकार/रुपान्तरण/प्रक्रमण |
अंशाकन |
सत्यापन |
||||
Cc |
Adj R2 |
n |
Cc |
Adj R2 |
Cc |
||||
1 |
न्यूनतम तापक्रम |
ncepp500gl, nceps850gl |
मासिक/कोई नही/आर्त |
0-96 |
0-91 |
91-3 |
0-96 |
0-92 |
0-96 |
2 |
अधिकतम तापक्रम |
ncepp5_zgl, ncepp500gl, ncepp8zhgl |
मासिक/कोई नही/आर्त |
0-73 |
0-73 |
98-5 |
0-84 |
0-70 |
99-8 |
3 |
बालोद में वर्षा |
ncepp5_ugl, ncepp8_ugl, ncepp850gl |
मासिक/कोई नही/आर्त |
0-69 |
0-55 |
85-9 |
0-66 |
0-66 |
75-3 |
विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि न्यूनतम तापक्रम हेतु दक्षता अशांकन में 98.5% तथा सत्यापन में 99.8% तथा अधिकतम तापक्रम के मामले में क्रमशः 91.3% तथा 91.5% तथा बालोद स्टेशन के वर्षामाप में क्रमशः 85.9 तथा 75.3% रही जो कि उत्तम मॉडलों को प्रदर्शित करता है।
उपरोक्त मॉडलों के उपयोग से तीन भविष्य कालो में RCP 2.6 RCP 4.5 एवं RCP 8.5 परिदृश्यों हेतु अनेक श्रृंखलाओं का आंकलन किया गया। आधार काल की औसत मासिक मात्रा तथा तीनों भविष्य कालों हेतु उनके फैलाव चित्र 5 (अ) तथा 5 (ब) में प्रदर्शित किया गया है। प्राप्त श्रृंखलाओं के विश्लेषण से स्पष्ट है कि भविष्य में न्यूनतम मासिक तापक्रम मार्च-अप्रैल तथा अक्टूबर से दिसंबर माह में बाढ़ जाएगा। इसी प्रकार अधिकतम मासिक तापक्रम केवल दिसंबर को छोड़कर अन्य माहों में बढ़ जाएगा। प्राप्त परिणामों से स्पष्ट है कि अधिकतम वार्षिक तापक्रम जो कि आधार काल के दौरान 32.70 C था निकट मध्य तथा दीघ्र शताब्दी कालों में क्रमशः से 34.3, 35.1 तथा 35.60C हो जाएगा। भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रीष्म काल में लू का सामना करना पड़ेगा। इसी प्रकार आधार काल में होने वाली वर्षा (936 मिमी) तीनों कालों में क्रमशः 943, 874 तथा 836 मिमी तक बदल हो जाएगी।
मॉडयूल-2 एवं 3 का परिणाम
मॉडयूल-1 से प्राप्त भविष्य कालों हेतु आकलित न्यूनतम एवं अधिकतम तापक्रमों तथा वर्षामाप की तीन श्रृंखलाओं के उपयोग द्वारा संदर्भ फसल हेतु वाष्पन-उत्सर्जन की गणना की गई। वाष्पन-उत्सर्जन तथा वर्षामाप के उपयोग तथा नर्सरी, प्रत्यारोपण, लीचिंग, परिचालन तथा अनुप्रयोग छय के आधार पर जलाशयो से आवश्यक कुल सिंचाई मांग का आंकलन किया गया था। क्षेत्र में प्रचलन के अनुसार नर्सरी हेतु प्रथम दो दस-दिवसीय कालो हेतु प्रत्येक के लिए 100 मि.मी. एवं प्रत्यारोपण हेतु तीसरे दस-दिवसीय काल हेतु 150 मि.मी. मात्रा का उपयोग यिका जाता है। कुल सिंचाई मात्रा की गणना हेतु 75% परिचालन तथा 68% अनुप्रयोग दक्षता से प्रत्येक कालों की सभी श्रृंखलाओं हेतु कुल सिचाई मांग का आकलन किया गया था। चित्र-6 में आधार काल तथा तीनों भविष्य कालो में तीनों श्रृखलाओं द्वारा प्राप्त सिंचाई मांग का आंकलन प्रदर्शित किया गया है। प्राप्त विश्लेषण से पता चलता है कि तांदुला सिंचाई क्षेत्र में आधार काल में डिजाइन फसल पैटर्न हेतु कुल औसत सिंचाई मांग 437.7 X 106 घन मी. है जो कि निकट शताब्दी काल में 429 X 106 से 587.4 X 106 घन मी. हो जाएगा जिसमें RCP 8.5 परिदृश्य सर्वाधिक आवश्यकता प्रदर्शित करता है। मध्य शताब्दी काल में आवश्यक जल की मात्रा सर्वाधिक होगी जो कि दीर्घ शताब्दी काल में थोड़ा कम हो जाएगी पर आधार काल से अधिक हो रहेगी।
निष्कर्ष
जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव पड़ना आपेक्षित है जिसके लिए जल परियोजनाओं के भविष्य में होने वाली मांग-आपूर्ति का अध्ययन एवं इसके अनुसार अनुकूलन उपायों का निर्धारण आवश्यक है। प्रस्तुत अध्ययन में 3 विभिन्न मॉडलों की सहायता से तादुंला सिंचाई क्षेत्र में RCP2.6, RCP 4.5 एवं RCP.8.5 परिदृश्यों के अनुसार तीन भविष्य कालों अर्थात निकट शताब्दी ;(FP-1: 2020.35) मध्य शताब्दी काल ;(FP-2: 2046.64) तथा दीर्घ शताब्दी काल ;(FP-3: 2081.99) के लिए न्यूनतम और अधिकतम तापक्रम तथा बालोद वर्षामापी स्टेशन के लिए श्रृंखलाओं का गठन सांख्यिकीय डाउनस्केलिंग द्वारा किया है। तापक्रमों एवं वर्षामाप का उपयोग कर वर्तमान 51% दक्षता के लिए डिजाइन फसल पैटर्न के लिए आधार काल तथा तीनों भविष्य कालों के लिए सिंचाई जल उपयोग की गणना की गई है। अध्ययन से प्राप्त परिणाम से स्पष्ट है कि भविष्य में न्यूनतम तापमान में वृद्धि से सभी उपयोगों हेतु आवश्यक मात्रा में बढ़ोत्तरी होगी। तांदुला सिंचाई क्षेत्र में आवश्यक जल की मात्रा निकट शताब्दी काल मे लगभग आधार काल के समान, मध्य शताब्दी काल में सर्वाधिक तथा दीर्घ शताब्दी काल में निम्न रहेगी। मध्य शताब्दी काल में आवश्यकता अधिक होने के कारण अनुकूलन गतिविधियां जैसे दक्षता में वृद्धि, स्प्रिकलर तथा धान की कम पानी लेने वाली किस्मों का उपयोग आवश्यक है।
आभार
इस प्रपत्र के लेखक टंकण कार्य के लिए श्री अरूण कुमार आशुलिपिक मध्य भारत जलविज्ञान क्षेत्रीय केंद्र राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, भोपाल के आभारी है।
Reference
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