कोलकाता अब पहले से ज्यादा भीषण तूफानों और बाढ़ का सामना कर रहा है। 20वीं सदी के प्रथमार्ध की तुलना में वर्षा यहाँ ज्यादा होने लगी है। एक अध्ययन बताता है कि ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन अगर इसी तरह जारी रहा, तो 2070 तक समुद्रतटीय बाढ़ से मरने वाले दुनिया के सर्वाधिक लोग कोलकाता में होंगे।
मैं कोलकाता के भविष्य के बारे में जानना चाहती थी, जहाँ मैं पैदा हुई। इसलिये इस गर्मी में मैं भारत लौटी, ताकि अपनी आँखों से देख सकूँ कि जलवायु परिवर्तन कोलकाता को किस तरह प्रभावित कर रहा है। मेरे जीवन के शुरुआती सात साल इसी महानगर में बीते, जहाँ गंगा समुद्र में मिलती है। मेरी स्मृति का कोलकाता भाप और पसीने का, भात और मछली का, निस्तेज और आर्द्र शाम का शहर था। वह पानी का शहर था, जहाँ पानी इफरात में है।
लेकिन बढ़ते तापमान के दौर में इस महानगर को मैंने खतरे में पाया। कोलकाता अब पहले से भीषण तूफानों और बाढ़ का सामना कर रहा है। इसके गर्म दिन अब और अधिक गर्म तथा पसीने से तरबतर करने वाले हो गए हैं। मध्य जून में, जब मैं यहाँ थी, तापमान 45 डिग्री सेल्सियस था। जिस गड़ियाहाट बाजार में कभी मैं अपनी माँ को एक के बाद एक साड़ी छांटते देखा करती थी, वहाँ मैंने एक साड़ी विक्रेता को निरन्तर रूमाल से अपने ललाट का पसीना पोछते पाया। सबसे अधिक चिन्ता की बात यह है कि 1.4 करोड़ की आबादी का यह महानगर प्रकृति की चुनौतियों से लड़ने के लिये तैयार ही नहीं है। ‘इस महानगर के लिये खतरा बढ़ता ही जा रहा है, लेकिन उससे निपटने की तैयारी प्रागैतिहासिक जमाने के स्तर की है। साफ है कि हम विनाश का इंतजार कर रहे हैं’, पर्यावरण पर लिखने वाले कोलकाता के एक पत्रकार जयंत बसु कहते हैं।
कोलकाता के पास प्राकृतिक सुरक्षा कवच हैः उसके पश्चिम में गंगा है, पूर्व में पानी से भरे इलाके हैं-दोनों ही दिशाओं का पानी उस दलदली भू-क्षेत्र में गिरता है, जिसे सुन्दरवन कहते हैं। कोलकाता के तालाबों और झीलों में वर्षाजल के संचय की व्यवस्था है। यहाँ की नरम मिट्टी में, जिससे कोलकाता के शिल्पकार देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते हैं, भूमिगत जल को थामे रखने की क्षमता है।
लेकिन आज अनेक तालाबों और नहरों को कूड़े से पाट दिया गया है या उन्हें पाटकर उन पर निर्माण कार्य कर लिये गए हैं। जिस निचले इलाके में कभी पानी भरा रहता था, वह अब बहुमंजिली इमारतों से अटा पड़ा उपनगर है, जिसे न्यू कोलकाता कहते हैं। भूमिगत जल के अंधाधुध दोहन से निचले इलाके के धंस जाने का खतरा बढ़ रहा है।
‘हम उदारतापूर्वक तमाम प्राकृतिक संपदाओं को नष्ट करते जा रहे हैं’, बसु कहते हैं। और सुन्दरवन की क्या स्थिति है? वहाँ के लोग कोलकाता का रुख कर रहे हैं। बंगाल की खाड़ी में जलस्तर वैश्विक औसत की तुलना में तेज गति से ऊपर उठ रहा है। सुन्दरवन में लोगों के धान के खेतों में खारा पानी भर रहा है, उनके घर गिर रहे हैं। इसलिये वे अपनी गृहस्थी समेटकर कोलकाता जा रहे हैं और महानगर के गरीबों की भीड़ में मिल जा रहे हैं। कोलकाता में वे बाँस और टीन से बनी झुग्गियों में रहते हैं, जहाँ सामने का नाला मानसून में उफनने लगता है और लोगों को गन्दा पानी पार कर अपनी झुग्गियों तक पहुँचना पड़ता है।
आदिगंगा, जो गंगा की सहायक नदी थी, आज महानगर की भूलभुलैया में खो गई और गाद से भर गई है। मैं आदिगंगा के किनारे की बस्ती में गई। वहाँ ईंट और टीन से बने घर तप रहे थे। इसलिये महिलाएँ संकरी गली में बैठकर अपने बच्चों के बालों में कंघी कर रही थीं या सरकारी नलों में जूठे बर्तन धो रही थीं। मैंने उन महिलाओं से बरसात के बारे में पूछा। वे कहने लगीं, हर बरसात में गलियों में पानी भर जाता है, और उनके घरों में भी घुस जाता है। तब सरकारी नल का पानी भी प्रदूषित हो जाता है। कोलकाता में डेंगू का पहले नाम भी नहीं सुना गया था, लेकिन आज यह यहाँ की आम बीमारी है।
बाढ़ तो कोलकाता की जैसे पहचान ही है। जाधवपुर विश्वविद्यालय में प्राध्यापक सुमन हाजरा बताते हैं कि सामान्य वर्षा होने पर भी उनके पसंदीदा मूवी थियेटर में पानी भर जाता है। हाजरा याद करते हैं कि एक बार फिल्म के बीच में ही उन्हें अपने पैर ऊपर उठाने पड़े थे, क्योंकि सीट के नीचे बारिश का पानी भर गया था। नालियों की हालाँकि सफाई होती रहती है, लेकिन वर्षा में महानगर के निचले इलाके जलमग्न हो जाते हैं और यातायात बाधित होता है। कोलकाता में बाढ़ का खतरा इसलिये भी बढ़ गया है, क्योंकि अब यहाँ पहले की तुलना में बहुत अधिक वर्षा होती है। हाजरा के एक छात्र अमित घोष ने अपने अध्ययन में पाया है कि 20वीं शताब्दी के प्रथमार्ध की तुलना में 1955 से 2015 के बीच वर्षा बहुत अधिक हुई है।
यह उस महानगर के लिये विनाशकारी है, जहाँ की एक तिहाई-आबादी झुग्गी बस्तियों में या खुले आकाश के नीचे रहती है। अॉर्गेनाइजेशन फॉर को-अॉपरेशन एंड डेवलपमेंट के मुताबिक, अगर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा, तो 2070 तक कोलकाता में समुद्रतटीय बाढ़ से मरने वाले लोग दुनिया में सर्वाधिक होंगे। रविवार की एक सुबह जयंत बसु मुझे 30,000 एकड़ में फैले विशाल जलीय भूमि की ओर ले गए, जहाँ बारिश का पानी जमा होता है। बसु को वहाँ भी बड़े-बड़े भवन बने दिखे, जो पहले नहीं थे। वह कहते हैं, ‘यह नवनिर्मित आबादी वस्तुतः प्राकृतिक प्रकोप में ध्वस्त हो जाने का इंतजार कर रही है।’
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