जलवायु परिवर्तन का मजबूत सामना


भारत ने 2030 तक नवीनीकरण ऊर्जा में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 40 फीसदी करने के लिये प्रतिबद्ध है। नवीनीकरण ऊर्जा में अभी भारत की हस्सेदारी करीब 13 फीसदी (36 गीगावाट) को देखते हुए भारत का टारगेट काफी महत्वाकांक्षी है। भारत का कहना है कि इसके महत्वाकांक्षी गोल के साथ सौर और पवन ऊर्जा 2015 में क्रमश: 4060 मेगावाट और 23.76 गीगावाट को बढ़ाकर 2022 तक 100 गीगावाट और 60 गीगावाट हो जाएगी और इसके बाद भी इसे बढ़ाया जाएगा। इसमें उल्लेखित है कि बायोमास की क्षमता को मौजूदा 4.4 गीगावाट से बढ़ाकर 2022 तक 10 गीगावाट करने की योजना है।

बार-बार सूखा पड़ने, अचानक झमाझम बारिश होने और बेमौसम बर्फ गिरने को सिर्फ मौसम की अनियमितता मानकर अनदेखी नहीं की जा सकती। हम जानते हैं कि ये सब जलवायु परिवर्तन का नतीजा है। आसान शब्दों में कहें तो जरूरत से ज्यादा औद्योगीकरण और गाड़ियों से उत्सर्जन के कारण वातावरण गर्म होता जा रहा है। तापमान बढ़ने के कारण सालाना मानसूनी बारिश के स्तर और अवधि में करीब 10 प्रतिशत की कमी आई है। भारत में कृषि के लिहाज से मानसून की काफी अहमियत है। हिमालय की हिमनदों के तेजी से पिघलने से नदियों की पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा पैदा हो गया है, जबकि ये नदियाँ खेती के लिये जीवन-रेखा का काम करती हैं। हिमनदों के पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे निचले इलाकों में बसे शहरों के लोगों के लिये जोखिम बढ़ गया है।

जलवायु परिवर्तन पर कोई रोक न होने और वैश्विक तापमान बढ़ने का असर मानसूनी बारिश पर पड़ेगा, जो भारत में खेती और पैदावार के लिये काफी अहम है। जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले 150 वर्षों में कई बार मानसूनी बारिश कम हुई है। इससे बारिश में 40 से 70 फीसदी तक की कमी आ सकती है। इससे बेमौसम भारी बारिश भी हो सकती है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, पैदावार खराब हो जाती है नतीजतन खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ जाते हैं। पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के जैकब स्कोयू और एंड्रस लीवरमैन का पूर्वानुमान है कि दुनियाभर की सरकारें अगर दृढ़ता से जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिये कदम नहीं उठाती हैं तो 2150 से 2200 के बीच हर पाँचवें वर्ष मानसून कमजोर रहेगा। भारत के पास कोयला और दूसरे जीवाश्म ईंधन का प्रचुर भंडार है लेकिन अभी तक हम इसकी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पाए हैं, जो पर्यावरण के लिये वरदान है क्योंकि यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान करेगा। पहले ही उत्सर्जन के मामले में भारत तीसरा नंबर है। 2012 में 2 गीगाटन के साथ कार्बन उत्सर्जन के मामले में भारत तीसरे नंबर पर है। 9.9 गीगाटन के साथ पहले नंबर पर चीन और 5.2 गीगाटन के साथ दूसरे नंबर पर अमेरिका है। प्रति व्यक्ति के लिहाज से देखें तो भारतीय चीनी नागरिकों के मुकाबले चार गुना और अमेरिकियों के मुकाबले 10 गुना कम उत्सर्जन करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि औद्योगिक विकास में भारत अभी भी पीछे चल रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के लिये कौन है सबसे ज्यादा जिम्मेदार


प्रति व्यक्ति औसत उत्सर्जन कम रहने के कारण पिछले दो दशक से वैश्विक जलवायु वार्ता में भारत का दबदबा कायम है। 1992 के रियो पृथ्वी सम्मेलन से ही भारत मजबूती के साथ एक समान लेकिन अलग-अलग जवाबदेही के लिये आवाज उठा रहा है। इसे 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल में उत्सर्जन से जुड़ी बाध्यकारी शर्तों पर सभी देशों को हस्ताक्षर करना था लेकिन विकासशील देशों ने तब तक उत्सर्जन से संबंधित बाध्यकारी शर्तें मानने से इनकार कर दिया जब तक पहले विकसित देश अपने उत्सर्जन में नाटकीय ढंग से कटौती नहीं करते। क्योटो के एक दशक बाद भी भारत बाध्यकारी शर्तों पर बातचीत करने को तैयार नहीं है। भारतीय उसी सूरत में बाध्यकारी शर्तों पर बातचीत करेंगे जब दूसरे देश अपने प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को भारत के बराबर ले आए लेकिन फिलहाल इसकी कोई सूरत नजर नहीं आ रही है। यह 2030-2040 तक ही मुमकिन होगा।

विशेषज्ञों का सुझाव है कि कार्बन उत्सर्जन के मौजूदा स्तर के मुताबिक उत्सर्जन घटाने के सभी उपायों को लागू करने के बाद भी 2100 तक 4 डिग्री तापमान बढ़ने के आसार 40 फीसदी, 5 डिग्री तापमान बढ़ने के आसार 10 फीसदी रहेंगे। सबसे बेहतर हालात में तापमान 3.8 डिग्री बढ़ेगा। ये सभी विज्ञान द्वारा तय 2 फीसदी की स्वत: सीमा से ज्यादा है। इसे सभी देशों की सरकारों ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित जलवायु परिवर्तन बातचीत के तहत लक्ष्य के तौर पर स्वीकार किया है। इस मामले में भारत की दलील बिल्कुल साफ है। चीन और अमेरिका पहले ही विकास में काफी आगे निकल चुके हैं, जबकि भारत के कई इलाकों में विकास के लिये जरूरी मानी जाने वाली बिजली तक नहीं पहुँची है। ज्यादातर देशों ने 2039 तक उत्सर्जन में कमी लाने का अपना लक्ष्य तय किया है। संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के लिये प्रस्तुत इस अंडरटेकिंग को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान का इरादा आईएनडीसी कहा गया है। भारत पर्यावरण के नुकसान को नियंत्रित करने में बड़ी प्रगति कर रहा है। जलवायु परिवर्तन पर रोक के लिये भारत की प्रतिबद्धता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री पेरिस कन्वेंशन से पहले जलवायु परिवर्तन से संबंधित नारे पर फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ एक किताब लाँच कर रहे हैं। भारत ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) दलों के सम्मेलन (सीओपी 21) – को अपना आईएनडीसी 1 अक्टूबर को आधी रात को सौंपा है। यह सम्मेलन इस वर्ष पेरिस में होने वाला है। कुल 147 देशों ने समय-सीमा खत्म होने के अपना आईएनडीसी पहले ही यूएनएफसीसीसी को सौंप दिया है। ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में इन 147 देशों का योगदान 87 फीसदी है।

तालिका 1 : 2012 में देशों द्वारा उत्सर्जन

देश

सीओ2 उत्सर्जन*

प्रतिशत हिस्सा#

प्रति व्यक्ति सीओ2 उत्सर्जन**

दुनिया

34.5

100

4.9

चीन

9.86  

28.6  

7.1

अमेरिका

5.19  

15.1  

16.4

यूरोपीय संघ   

3.74  

10.9  

7.4

भारत

1.97  

5.7   

1.6

रूस

1.77  

5.1   

12.4

जापान

1.32  

3.8   

10.4

*अरब टन # वैश्विक उत्सर्जन में हिस्सा ** टन /व्यक्ति

 

वन, जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना है, ‘वैसे तो भारत इस समस्या का हिस्सा नहीं है, लेकिन यह निदान का हिस्सा बनना चाहता है।’ ऐतिहासिक तौर पर उत्सर्जन के लिये जिम्मेदार नहीं रहा है। भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 1.6 टन है और इस हिसाब से भारत 135वें नंबर पर है। इस पायदान पर विकसित देश बहुत कम हैं। लेकिन कुल 1.97 अरब टन कार्बन उत्सर्जन के साथ भारत चीन और अमेरिका के बाद तीसरे नंबर पर है।

इस बीच आईईए ने कुछ नीतिगत उपाय पेश किए हैं। अगर इन्हें अपनाया जाता है तो वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री तक लाया जा सकता है और इस पर कोई शुद्ध आर्थिक लागत भी नहीं लगेगी। इन कोशिशों में उत्कृष्ट ऊर्जा का बेहतर ढंग से इस्तेमाल, सीमित निर्माण, बिजली बनाने के काम पर निम्न श्रेणी के कोयले का इस्तेमाल, अपस्ट्रीम तेल और गैस उत्पादन से निकलने वाले मीथेन गैस को घटाना और जीवाश्म ईंधन के उपभोग पर दी जाने वाली सब्सिडी चरणबद्ध तरीके से खत्म करना शामिल है। आईईए की रिपोर्ट में कहा गया है, पेरिस में होने वाली बैठक में दलों के महत्त्वपूर्ण सम्मेलन का वक्त काफी अहम है। इस दौरान अन्तरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन पर बातचीत होगी और आवश्यक राष्ट्रीय पॉलिसी लागू होगी। इस दौरान एक अन्तरराष्ट्रीय समझौता भी होने की उम्मीद है। रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि भारत ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल करके और ज्यादा बेहतर बिजली संयंत्र लगाकर 27.90 करोड़ टन तक उत्सर्जन घटा सकता है।

भारत का आईएनडीसी लक्ष्य


भारत ने 2022 तक 175 गीगावाट्स नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता लगाने के आधार पर अपना आईएनडीसी तय किया है। भारत का मकसद अजीवाश्मीय बिजली क्षमता मौजूदा 30 फीसदी से बढ़ाकर 2030 तक 40 फीसदी (अन्तरराष्ट्रीय सहयोग से) करने का लक्ष्य है। देश ने अपनी उत्सर्जन तीव्रता को भी प्रति यूनिट जीडीपी 33 से 35 फीसदी घटाकर 2030 तक 2005 के लेवल से नीचे लाना और अतिरिक्त पेड़ लगाकर 2.5 से 3 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड के लिये कार्बन सिंक या अवशोषण पैदा करना लक्ष्य बनाया है। भारत की योजना जलवायु परिवर्तन के असर को लचीला बनाने के प्रयासों को प्राथमिकता देना और लक्ष्य को हासिल करने के लिये पर्याप्त वित्तीय मदद का संकेत देना है। भारत लगातार उत्सर्जन मानकों में सुधार के द्वारा अपने ऑटो के उत्सर्जन को कम करने पर काम कर रहा है। नतीजतन, भारत की उत्सर्जन तीव्रता (जीडीपी की प्रति इकाई कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन) 1990 और 2005 के बीच लगभग 18 प्रतिशत की गिरावट आई है। भारत ने पहले ही 2020 तक उत्सर्जन को 2005 के लेवल से 20 से 25 फीसदी कमी लाने का टारगेट रखा है। नई आईएनडीसी टारगेट के तहत भारत 2030तक 2005 से 33-35 प्रतिशत कमी लाने के लिये प्रतिबद्ध है।

अपने नवीनीकरण ऊर्जा और गैर जीवाश्म ईंधन के लक्ष्य को हासिल करने और ऊर्जा की क्षमता का बेहतर इस्तेमाल करने के लिये भारत को अपनी तीव्रता कम करने के लक्ष्य को आसानी से बढ़ाने लायक होना चाहिए। भारत के आईएनडीसी के तहत वन्य इलाका बढ़ाने की अहमियत समझी गई। 2.5 से 3 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड के लिये अतिरिक्त सिंक तैयार करने के लिये जरूरी है 2008-2013 के मुकाबले अगले 15 वर्ष में कम से कम 14 फीसदी औसतन सालाना कार्बन उत्सर्जन घटाना होगा। भारत ने एक संतुलित जलवायु योजना रखी है जो नवीनीकरण ऊर्जा के लक्ष्य से अलग है। इनके जरिए भारत अहम परिवर्तन करने वाला है। आक्रामक विकास एजेंडा के साथ इन कार्यवाहियों का भी प्रस्ताव रखा गया है।

कोई बाध्यता नहीं होने के बावजूद भारत स्वैच्छिक तौर पर उत्सर्जन तीव्रता में कटौती करके 2020 तक इसे जीडीपी के 20-25 फीसदी तक घटाकर 2005 के लेवल से नीचे लाना चाहता है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये सरकार ने कई तरह के उपाय किए हैं। नतीजतन, 2005-2010 के बीच उत्सर्जन तीव्रता भारत की जीडीपी का 12 फीसदी तक कम हो गया है। आगे भारत की योजना आईएनडीसी के तहत 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता को 33 से 35 फीसदी तक घटाकर 2005 के लेवल से नीचे लाना है।

प्रधानमंत्री का राष्ट्रीय एक्शन प्लान


तालिका 2 : 2009 में कार्बन स्पेस (1850 के बेस ईयर से)

अमेरिका

29 प्रतिशत

अन्य विकसित देश

45 प्रतिशत

चीन

10 प्रतिशत

अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाएं

9 प्रतिशत

भारत

3 प्रतिशत

 

भारत ने 2030 तक नवीनीकरण ऊर्जा में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 40 फीसदी करने के लिये प्रतिबद्ध है। नवीनीकरण ऊर्जा में अभी भारत की हस्सेदारी करीब 13 फीसदी (36 गीगावाट) को देखते हुए भारत का टारगेट काफी महत्वाकांक्षी है। भारत का कहना है कि इसके महत्वाकांक्षी गोल के साथ सौर और पवन ऊर्जा 2015 में क्रमश: 4060 मेगावाट और 23.76 गीगावाट को बढ़ाकर 2022 तक 100 गीगावाट और 60 गीगावाट हो जाएगी और इसके बाद भी इसे बढ़ाया जाएगा। इसमें उल्लेखित है कि बायोमास की क्षमता को मौजूदा 4.4 गीगावाट से बढ़ाकर 2022 तक 10 गीगावाट करने की योजना है। छोटे और लघु पनबिजली योजनाओं को प्रोत्साहित करने के लिये विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। दूर-दराज के गाँवों तक बिजली पहुँचाने के लिये नए और बेहतर डिजाइन वाली पानी मिलों को शुरू किया जाएगा और इन्हें बढ़ावा दिया जाएगा। परमाणु ऊर्जा को मौजूदा 5780 मेगावाट की क्षमता से बढ़ा कर 2032 तक 63 मेगावाट करने की योजना है। ताकि ईंधन की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। दक्षता मानकों को बढ़ाकर और पुराने कम क्षमता वाले थर्मल स्टेशनों को ऊर्जा क्षमता में सुधार के लिये अनिवार्य लक्ष्य देकर स्वच्छ कोयले को बढ़ावा दिया जाएगा। भारत इस बात पर भी राजी है कि वह अपने समूचे भौगोलिक क्षेत्र का वन्य इलाका जो 2013 में 24 फीसदी था उसे लंबी अवधि में बढ़ाकर 33 फीसदी करेगा और इसमें यह भी कहा गया है कि 2030 तक भारत का वन्य भूभाग 2.5 से 3 अरब टन तक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर लेगा जो इसे बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड सोखने लायक बना रहा है। हमने क्षमता निर्माण, घरेलू ढाँचा और अन्तरराष्ट्रीय वास्तुकला तैयार करने का फैसला किया है ताकि भारत में आधुनिक जलवायु तकनीक का तेजी से विस्तार हो सके और ऐसी भावी तकनीकों के लिये संयुक्त सहयोग से अनुसंधान और विकास हो सके।

उठाए गए कदम


ट्यूबलाइट्स के लिये बीईई रेटिंग पेश की गई है ताकि लोगों को यह पता चल सके कि वे कितनी बिजली खपत कर रहे हैं और वे कम बिजली खपत करने वाले उपकरण खरीदें। सभी चारपहिया गाड़ियों के लिये 2010 से भारत IV उत्सर्जन नियम पेश किया गया है। पवन ऊर्जा के लिहाज से भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है और सरकार पवन चक्की लगाने वाली कंपनियों को छूट देती है। भारत ने नई और नवीनीकरण ऊर्जा के लिये एक मंत्रालय बनाया है, जो भारत में ऊर्जा के नए स्रोतों के लिये फंड मुहैया कराती है। मसलन, राजस्थान के भुज में एशिया का सबसे बड़ा सौर तालाब या सोलर पौंड बनाया गया है। इसके साथ ही केरल में एक प्रयोगात्मक महासागर थर्मल ऊर्जा रुपांतरण (OTEC) यूनिट लगाई जा रही है। भारत ने एक राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति की घोषणा की है, जिसके जरिए जैव ईंधन का विकास गैर कृषि भूमि पर विकसित किया जाएगा ताकि कृषि योग्य भूमि का कोई नुकसान न हो।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विभिन्न राष्ट्रीय समाचारपत्रों में लगभग तीन दशक का अनुभव है। इनमें द टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान आदि प्रमुख हैं। संप्रति दैनिक भास्कर में राजनीतिक मामलों के संपादक हैं। ईमेल-shard.editor@gmail.com

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