जलवायु परिवर्तन का एक दुष्परिणाम, बाढ़ भी

बाढ़
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आज दुनिया भर में बाढ़ सुर्खिंयां बटोर रही है। यूरोप सहित दुनिया के कई हिस्से बाढ़ के संकट का सामना कर रहे हैं। इनमें वो जगहें भी शामिल हैं‚ जहां बाढ़ आने की कोई संभावना नहीं होती थी। भारत तो पहले से ही बाढ़ की चपेट में आता रहा है‚ लेकिन अब भारत के कई राज्य भीषण बाढ़ का सामना कर रहे हैं। भारत सरकार की पिछले साल आई रिपोर्ट ‘द इम्पैक्ट असेसमेंट ऑफ क्लाईमेट चेंज इन इंडिया' के मुताबिक दुनिया के अन्य देशों की तरह ही भारत में भी जलवायु परिवर्तन की वजह से अत्यधिक मौसम की घटनाएं बढ़ी हैं। पिछले साठ सालों में अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक वर्षा‚ दोनों में इजाफा दर्ज किया गया है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन को इसकी सबसे बड़ी वजह बताया गया है। हाल में आई आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि साइक्लोन‚ बाढ़‚ गर्मी और सूखे जैसी मौसमी समस्याएं इसी जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ी हैं‚ जिसकी जिम्मेवार इंसानी हरकतें हैं। आईपीसीसी ने चेताया है कि ऐसी घटनाएं भविष्य में और बढ़ेंगी। 

हालांकि बाढ़ तथा अत्यधिक (एक्सट्रीम-वेदर) मौसम की अन्य घटनाओं के पीछे नदी प्रबंधन समेत और भी कई वजहें काम करती हैं। भारत में तो बाढ़ जैसी समस्याओं का लंबा इतिहास रहा है। लेकिन एक जमाने में बाढ़ का पानी बहुत नियंत्रित तरीके से मानव बस्ती में प्रवेश करता था‚ जिससे कम से कम नुकसान होता था। लेकिन आज अत्याधिक बारिश‚ समुद्र में जल स्तर के बढ़ने जैसी चीजों की वजह से बाढ़ का पानी अनियंत्रित हो रहा है। इसी साल हिमाचल‚ मप्र‚ बिहार‚ महाराष्ट्र सहित कई राज्यों के लाखों लोगों ने बाढ़ के संकट का सामना किया है। महाराष्ट्र के कोंकण इलाके‚ जहां कभी बाढ़ की समस्या नहीं देखी गई‚ को भी इस साल बाढ़ के पानी ने काफी नुकसान पहुंचाया है। महाराष्ट्र में दो लाख हेक्टेयर से ज्यादा खेतों में खड़ी फसल तबाह हो गई है। 

यूरोपीय देशों में भी संकट

वैश्विक स्तर पर भी जर्मनी‚ तुर्की‚ ऑस्ट्रिया‚ चीन‚ रूस सहित कई देशों ने बाढ़ को झेला है। पिछले हफ्ते आई वर्ल्ड़-वेदर एट्रिब्यूशन की रिपोर्ट में बताया गया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से तीन से उन्नीस प्रतिशत तक यूरोपीय देशों में बाढ़ का संकट बढ़ गया है। ध्यान देने वाली बात है कि बाढ़ या अत्यधिक मौसम की ये घटनाएं तब हो रही हैं‚ जब हमारी धरती का तापमान प्री इंड्ट्रिरयल लेवल से सिर्फ एक डिग्री के भीतर है‚ अगर पेरिस समझौते में तय किया गया गोल 1.5 डिग्री से अधिक बढ़ता है‚ तो हम अंदाजा भी नहीं कर सकते कि जलवायु परिवर्तन के क्या परिणाम होंगे। 

बाढ़ का पानी न सिर्फ तात्कालिक रूप से लोगों के जीवन को प्रभावित करता है‚ बेघर करता है‚ खेत बर्बाद करता है‚ पेय जल दूषित करता है‚ बल्कि इसके कई दूरगामी प्रभाव भी हैं‚ और इसलिए इसका समाधान भी दूरगामी योजनाओं को बनाकर ही किया जा सकता है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि बाढ़ का पानी कम होते ही लोगों की जिंदगी सामान्य हो जाती है। लेकिन दिक्कत है कि बाढ़ की सारी बहसें सिर्फ और सिर्फ राहत की खबरों तक सिमट कर रह जाती हैं। 

ऐसा नहीं है कि बाढ़ की वजह से नदी के किनारे रहने वाली बस्तियों को ही नुकसान होता है। इसका असर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देश भर के लोगों को झेलना पड़ता है। ‘फ्यूचर वी ड़ॉन्ट वांट टू सी' की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक दुनिया के 570 तटीय शहरों में रहने वाले 800 मिलियन लोग समुद्र स्तर के 0.5 मीटर बढ़ने की वजह से बाढ़ का सामना करेंगे। 2.5 बिलियन लोगों‚ जो 1600 शहरों में रह रहे हैं‚ को मुख्य फसल के उत्पादन में बाढ़ जैसे जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप 10 प्रतिशत तक का नुकसान झेलना पड़ेगा। 

खेती को नुकसान

सीधी सी बात है कि बाढ़ की वजह से खेती को भी बहुत नुकसान झेलना पड़ रहा है‚ जिसका सीधा–सीधा असर कृषि उत्पादन और फूड सप्लाई चेन पर भी पड़ता है। जाहिर है कि इससे खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। चाहे गांव में रहने वाले लोग हों या शहरों में रहने वाले गरीब‚ सबकी पहुंच से भोजन थोड़ा और ज्यादा दूर चला जाता है। बिहार में कोसी जैसे इलाके हैं‚ जहां बाढ़ की समस्या से लोग रोजगार की तलाश में शहरों में पलायन कर रहे हैं‚ जहां उन्हें बहुत बेहतर जिंदगी नहीं मिल पाती। 

कई रिपोर्ट बताती हैं कि बाढ़ जैसी आपदाओं की वजह से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर होता है‚ लेकिन बाढ़ राहत के सिवा ऐसी समस्याओं का कोई हल नहीं खोजा जाता। दुनिया भर की सरकारों ने मिलकर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तत्काल कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो हमें बाढ़ के और भी भयंकर परिणाम देखने को मिलेंगे। 1900–2010 के बीच वैश्विक समुद्र का औसत स्तर 1.7 एमएम प्रति साल की दर से बढ़ा है। इसका असर हमें हर साल आने वाले साइक्लोन के रूप में भी देखने को मिल रहा है। कई रिपोर्ट आगाह कर चुकी हैं कि साइक्लोन जैसी आपदाएं और भी अधिक देखने को मिलेंगी। जहां एक तरफ केंद्र सरकार को जलवायु परिवर्तन के कारणों पर नियंत्रण करने की जरूरत है‚ वहीं राज्य सरकारों को बाढ़ जैसी अत्यधिक मौसम की घटनाओं से निपटने के लिए जमीनी स्तर पर तैयारी करने की जरूरत है‚ जिसमें तत्काल राहत से लेकर लोगों को सुरक्षित घर और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं को शामिल करने की जरूरत है‚ जिससे बाढ़ जैसी आपदा के वक्त हमारे लोगों को कम से कम नुकसान उठाना पड़े। 

  • लेखक एवं पर्यावरण कार्यकर्ता हैं और ग्रीनपीस से संबद्ध रहे हैं।
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