जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से भारत विश्व का 13वां सबसे संवेदनशील देश है। यहाँ की 60 प्रतिशत कृषि वर्षा आधारित है और दुनिया के गरीबों में से 33 प्रतिशत यहाँ निवास करते हैं। इसके कारण जलवायु परिवर्तन देश के भोजन और पोषण सुरक्षा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालेगा। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरन्मेंट से प्रकाशित पुस्तक राइजिंग टू द कॉल में भारत के विभिन्न कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मानचित्रण किया गया है। यह जलवायु परिवर्तन के लिये खुद को ढालने की समुदायों के प्रयास का अनूठा दस्तावेज है। यहाँ इस किताब से लिये कुछ मानचित्र प्रस्तुत हैं जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रेखांकित करते हैं
मरुभूमि
थार रेगिस्तान, भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 10 प्रतिशत क्षेत्र में फैला है। यह दुनिया का सातवाँ सबसे बड़ा रेगिस्तान है। थार की गिनती दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले रेगिस्तानों में की जाती है। इस क्षेत्र में अब बाढ़ जैसी चरम घटनाएँ देखी जा रही हैं।
जनसंख्या |
कुल 5 करोड़ |
भू-उपयोग |
कुल बुआई क्षेत्र 45.7% |
आजीविका |
50% कृषि पर निर्भरता |
ग्रामीण |
70% |
शहरी |
30% |
वन क्षेत्र |
23.8% |
सेवा क्षेत्र पर निर्भरता |
22.7% |
राज्यवार अनुमान और प्रभाव
गुजरात
न्यूनतम तापमान में औसत कमी - 0.5 डिग्री C (1891-1996 के आँकड़ों पर आधारित)
प्रभाव और खतरे
1. राज्य में पानी की कमी हो जाएगी।
2. लूनी और कच्छ के पश्चिम के बहाव वाली नदियों और सौराष्ट्र के इलाके पानी की अभूतपूर्व कमी का सामना करेंगे।
3. माही और साबरमती नदियों के लिये सूखे का खतरा 2050 तक 5 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक
राजस्थान
तापमान में वृद्धि 2-2.5% (2021-50 तक)
चरम वर्षा की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि की संभावना; वर्ष 2071-2100 के दौरान एक दिन में अधिकतम वर्षा में 20 मिमी और पाँच दिन में अधिकतम वर्षा में 30 मिमी की वृद्धि होगी।
प्रभाव और खतरे
1. पश्चिमी राजस्थान को बेहद गम्भीर सूखे को झेलना पड़ेगा
2. कृषि के लिये पानी का हिस्सा 83 फीसदी से घटकर 70 फीसदी रह जाएगा
जलवायु परिवर्तन के रुझान
उच्चतम तापमान में बदलाव
(1961-90 की तुलना में 2021-50 में) वर्ष 2050 तक उच्चतम तापमान में 1.5-2 सेल्सियस तक वृद्धि का अनुमान
सूखा
राजस्थान और गुजरात के कच्छ क्षेत्र के कुछ हिस्सों में सूखे की सबसे अधिक सम्भावना है।
उच्चतम तापमान में बदलाव
(1961-90 की तुलना में 2071-98) सदी के अन्त तक राजस्थान में उच्चतम तापमान में 4-4.5 और गुजरात में 3-3.5 सेल्सियस तक वृद्धि का अनुमान।
गंगा का मैदान
गंगा का मैदान दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले और उत्पादक कृषि क्षेत्रों में से एक है। यह क्षेत्र 400-800 किलोमीटर चौड़ा, उत्तर में हिमालय के पूर्व-पश्चिम जोन के मध्य और दक्षिण में प्रायद्वीप के बीच फैला है। जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली बाढ़ और सूखा इस क्षेत्र में कृषि को काफी प्रभावित करेगा
जनसंख्या |
कुल 43.25 करोड़ |
भू-उपयोग |
कुल बुआई क्षेत्र 68% |
आजीविका |
53% कृषि पर निर्भरता |
ग्रामीण |
73% |
शहरी |
27% |
वन |
7.3% |
सेवा क्षेत्र पर निर्भरता |
25% |
पंजाब में गेहूँ की पैदावार में वर्ष 2021-50 तक 4.6-3.2% की गिरावट का अनुमान
जलवायु परिर्वतन के रुझान
बाढ़
उच्च तीव्रता वाली वर्षा की घटनाओं के बढ़ने का अनुमान है, विशेषकर गंगा बेसिन के पूर्वी भागों में। गंगा बेसिन के पश्चिमी भागों- हरियाणा और पंजाब के सूखे की चपेट में आने का खतरा।
स्रोत : रामा राव सीए एवं साथी, जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय कृषि के जोखिम पर एटलस, केंद्रीय बारानी कृषि अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद, 2013
राज्यवार अनुमान और प्रभाव
पंजाब
1. न्यूनतम तापमान में औसत वृद्धि - 1.9 डिग्री C-2.1 डिग्री C
2. उच्चतम तापमान में औसत वृद्धि - 1 डिग्री C-1.8 C डिग्री
3. वार्षिक वर्षा में वृद्धि 13-22%
प्रभाव और खतरे
1. निचले संतलुज बेसिन में सूखे के दिनों 23-46 दिनों तक की बढ़ोत्तरी
2. अचानक आने वाली बाढ़ में वृद्धि
3. दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में गम्भीर जल जमाव
हरियाणा
1. न्यूनतम तापमान में औसत वृद्धि - 2.1 डिग्री C
2. उच्चतम तापमान में औसत वृद्धि - 1.3 डिग्री C
3. वार्षिक वर्षा में वृद्धि (वर्ष 2100 तक) - 17%
प्रभाव और खतरे
1. पानी के वाष्पीकरण में वृद्धि
2. उच्च वर्षा के बावजूद भूजल पुनर्भरण में कुछ खास बदलाव नहीं
3. वर्ष 2100 तक कृषि जल पर दबाव में वृद्धि
पश्चिम बंगाल
1. तापमान में वृद्धि 1.8 डिग्री C-2.4 डिग्री C
2. मानसून में कोई खास बदलाव नहीं लेकिन सर्दियों की बारिश में कमी
प्रभाव और खतरे
1. चक्रवात की तीव्रता में वृद्धि
2. सागर के लहरों की ऊँचाई में 7.46 मीटर की वृद्धि हो सकती है
3. समुद्र का स्तर बढ़कर वैश्विक औसत से अधिक हो जाएगा।
4. सुंदरवन और दार्जलिंग की पहाड़ियों पर अधिक बारिश होगी
उत्तर प्रदेश और बिहार
1. तापमान में वृद्धि - 2 डिग्री C (2050 तक), 4 डिग्री C (2100 तक)
2. उच्च तीव्रता वाली वर्षा की घटनाओं में वृद्धि
प्रभाव और खतरे
1. तापमान में मात्र 1 सेल्सियस वृद्धि से उत्तर प्रदेश में गेहूँ की पैदावार घट सकती है
2. बिहार में चावल की पैदावार में गिरावट की आशंका
3. उत्तर प्रदेश और बिहार में सूखे में वृद्धि के आसार
बर्बादी के मुहाने पर
वर्ष 2050 तक, भारत के तापमान में 1-4 डिग्री सेल्सियस और वर्षा में 9-16 फीसदी तक की वृद्धि देखी जा सकती है। इससे देश के आधे से भी अधिक क्षेत्र में किसानों पर बेहद बुरा असर पड़ने की आशंका है। हालाँकि, इस तरह के प्रभाव की तीव्रता क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और इन बदलावों से निपटने की क्षमता के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है।
संवेदनशीलता
12 राज्य ऐसे हैं जिनके जिले जलवायु परिवर्तन के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं
संवेदनशीलता वह पैमाना है जो जलवायु सम्बन्धी प्रभावों जैसे कि जलवायु परिवर्तनशीलता और आवृत्ति के साथ ही चक्रवात और सूखे जैसी चरम घटनाओं के किसी क्षेत्र पर पड़ने वाले असर की भयावहता को बताता है। यह सम्बन्धित क्षेत्र के आबादी और पर्यावरण की स्थिति से निर्धारित होता है। उत्तर-पश्चिमी भारत के अधिकांश जिले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं जबकि देश के पूर्वी, उत्तर-पूर्वी, उत्तरी और पश्चिमी तट अपेक्षाकृत कम संवेदनशील हैं।
प्रभाव
21 राज्य जिनके जिले जलवायु परिवर्तन के खतरों से अत्यधिक प्रभावित हैं
जलवायु परिवर्तन के जोखिम (एक्सपोजर) को किसी क्षेत्र में मौसम के बदलावों की प्रकृति और प्रभाव के तौर पर परिभाषित किया जाता है। इसमें अधिकतम और न्यूनतम तापमान के साथ ही बरसात के दिनों जैसे संकेतों को शामिल किया जाता है। मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, तमिलनाडु, उत्तर-पूर्वी राज्यों और जम्मू-कश्मीर के जिलों में जलवायु परिवर्तन का उच्च या बहुत उच्च जोखिम देखा गया है। कम जोखिम वाले जिलों में आंध्र प्रदेश, उड़ीसा पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
अनुकूलन क्षमता
17 राज्य जिनके जिलों की जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ढलने की क्षमता कम
जलवायु परिवर्तन के हिसाब से खुद को ढालने की क्षमता को अनुकूलन क्षमता कहते हैं। यह क्षमता धन, प्रौद्योगिकी, शिक्षा, कौशल, बुनियादी सुविधाओं, संसाधनों के उपयोग और प्रबंधन क्षमताओं पर निर्भर करती है। पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों, राजस्थान, मध्य प्रदेश, प्रायद्वीपीय और पहाड़ी क्षेत्रों की अनुकूलन क्षमता बहुत कम पाई गई है जबकि पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु की अनुकूलन क्षमता अधिक है।
खतरा 60% ग्रामीण जिले
जलवायु परिवर्तन के लिहाज खतरे में
जलवायु परिवर्तन के खतरे का आकलन क्षेत्र की संवेदनशीलता, उस पर पड़ रहे प्रभाव और उसकी अनुकूलन क्षमता के आधार पर किया जाता है। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के जिले अधिक या अत्यधिक जोखिम को दर्शाते हैं, वहीं पश्चिमी क्षेत्र के तटीय जिले, उत्तरी आंध्र प्रदेश और उत्तर-पूर्वी राज्यों के जिलों को अपेक्षाकृत कम खतरा है
नोट : आंध्र प्रदेश राज्य को 2014 में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के रूप में पुनर्गठित किया गया था और तेलंगाना के खम्मम जिले का एक हिस्सा आंध्र प्रदेश में रखा गया था। यह बदलाव इन बिन्दुओं के लिये जिम्मेदार नहीं था:
*केवल वैसे राज्यों को शामिल किया गया जहाँ के जिलों में संवेदनशीलता और जोखिम बहुत ज्यादा या ज्यादा हो। # केवल वैसे राज्यों को शामिल किया गया जहाँ के जिलों की अनुकूलन क्षमता बहुत कम या कम हो। **ऐसे जिले जिनका स्तर बहुत उच्च, उच्च और मध्यम हो, उसे जोखिमपूर्ण माना गया। जलवायु अनुमान 2021-2050 की अवधि के लिये हैं।
विश्लेषण : किरण पांडेय और रजित सेनगुप्ता
स्रोत : क्लाइमेट साइंस में 25 मई 2016 को प्रकाशित ‘जलवायु परिवर्तन के लिये भारतीय कृषि की असुरक्षा की जिला स्तरीय मूल्यांकन रिपोर्ट’।
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