जलवायु परिवर्तन और अनुकूल कृषि(वार्षिक रिपोर्ट्स-2019-20) 

जलवायु परिवर्तन और अनुकूल कृषि,Pc-Krishi-jagat
जलवायु परिवर्तन और अनुकूल कृषि,Pc-Krishi-jagat

भारतीय कृषि के अति संवेदनशील जिला स्तरीय मानचित्र:- 

जलवायु परिवर्तन के संबंध में भारतीय कृषि के अति संवेदनशील जिला स्तरीय मानचित्रों को 5वीं मूल्यांकन रिपोर्ट (आईपीसीसी 2014 ) के साथ अद्यतन किया गया। 'रिप्रजेंटेटिव कंसंट्रेशन पाथवेज' (आरसीपी) के आधार पर ये मानचित्र जलवायु पूर्वानुमान में सहायता करते हैं। जलवायु परिवर्तन खतरे को 2020-49 की समयावधि के लिए आरपीसी 4.5 से संबंधित जलवायु परिवर्तन पूर्वानुमान का प्रयोग कर आंकलित किया गया। विभिन्न संकेतकों के आधार पर खतरे के तीन कारकों के विश्लेषण के परिणाम को नीचे दर्शाया गया है।

जलवायु अनुकूल एकीकृत जैविक कृषि प्रणाली मॉडल:- 

अर्द्धशुष्क क्षेत्रों के लिए जलवायु अनुकूल एकीकृत जैविक कृषि प्रणाली मॉडल को ऐसे लघु एवं सीमांत किसानों के लिए एक हेक्टर क्षेत्रफल में विकसित किया गया, जो विभिन्न प्रकार के अजैविक दबावों की समस्या से जूझ रहे थे। एक हेक्टर क्षेत्रफल में से 2500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल सब्जी फसलों के लिए 2500 वर्ग मीटर गन्ना आधारित फसल चक्र के लिए, 1000 वर्ग मीटर चारा फसलों के लिए. 1000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल अनाज एवं दलहनों के लिए. 2000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल बागवानी फसलों (अनार, चीकू, शरीफा, आम) 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में फैले तालाब के लिए. 500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल ड्रिप सिंचाई हेतु जल के भंडारण के लिए कुक्कुट ( वनराजा, कड़कनाथ एवं सजावटी नस्ल ). बकरी (उस्मानाबादी नस्ल ), गोपशु ( गिर) और कम्पोस्ट यूनिट के लिए चिन्हित किया गया है। फसलों में सिंचाई की सुविधा प्रदान करने के लिए जल भंडारण तालाब के नजदीक एक सौर चालित जल पंप (3केवी) स्थापित किया गया है। पशुधन के लिए आहार एवं चारा आवश्यकताओं तथा फसलों की पोषक तत्व आवश्यकता की पूर्ति हेतु 100% जैविक खेती करने के प्रयास किए जा रहे हैं। सभी परीक्षणात्मक भूखंडों की मेड़ पर आम नींबू ड्रॅगन फ्रूट और पपीते का रोपण किया गया है। बगीचों से प्रारंभिक वर्षों में राजस्व अर्जन करने के लिए काबुली चने के साथ

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, अति संवेदनशीलता और खतरे के आधार पर जिलों का वर्गीकरणअंतर फसलीकरण किया गया। इसी प्रकार से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए सहजन (ड्रमस्टिक) की अंतरफसल नेपियर घास के साथ उगाई गई स्थायी एवं दैनिक आय सुनिश्चित करने के लिए अनेक सब्जी फसलों, जैसे कि भिंडी, लोबिया, बंदगोभी, टमाटर, लौकी, कद्दू, प्याज, लहसुन, धनिया और शकरकंदी की खेती 2500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में की गई।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

पशुधन  

मोबाइल ऐप "कूबलर इस ऐप को गोपशु में ग्रीष्मकालीन तनाव प्रबंधन से संबंधित सूचना उपलब्ध करवाने के लिए विकसित किया गया है। यह ऐप किसानों, गोपशु स्वामियों, पशुचिकित्सा अधिकारियों पशु स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों, छात्रों उद्योग व्यावसायियों और अन्य हितधारकों के लिए ग्रीष्मकाल के दौरान गोपशु पालन और प्रबंध से संबंधित विधियों के लिए काफी उपयोगी है।

आंत्र मीथेन उत्सर्जन को कम करना 

आंत्र मीथेन उत्सर्जन पर सिल्क वर्म (बामविक्स मोरी) प्यूपा तेल के आहारीय सम्पूरक के प्रभाव का आकलन भेड़ पर किया गया। भेड़ को रोजाना तेल (मूल आहार का 2% ) या एक सप्ताह छोड़कर क्रमिक रूप से दिया गया। परिणामों में यह पाया गया कि रूमेन प्रोटोजोआ समष्टि में भारी गिरावट के कारण सिल्क वर्म प्यूपा तेल संपूरित पशु समूह में आंत्र मीथेन उत्सर्जन में काफी गिरावट ( 12-156) पाई गई।

डेयरी फार्मों से जीएचजी उत्सर्जन

डेयरी फार्मिग के विभिन्न चरणों पर उत्पन्न हरितगृह गैस (जीएचजी) उत्सर्जनों का आकलन कर्नाटक के चयनित डेयरी फार्मों से जीएचजी उत्सर्जनों के जीवनचक्र का मूल्यांकन कर किया गया। छोटे (2-3 गोपशु) मध्यम (4-6 गोपशु) और कई डेयरी (1) गोपशु से अधिक) फार्मों के संबंध में दूध उत्पादन से संबंधित कार्बन फुटप्रिंट का आकलन 1.03 1.01 और 1.27 कि. ग्रा. CO2-e/ ke FPCM (फैट प्रोटीन कक्टिड मिल्क) के रूप में किया गया। कर्नाटक के डेयरी फार्मों से हरितगृह गैस के जीवनचक्र मूल्यांकन के लिए एक ऐक्सल आधारित मॉडल विकसित किया गया।

भारत में प्रजातियार आज मीथेन उत्सर्जन
भारत में प्रजातियार आज मीथेन उत्सर्जन

वार्षिक आंत्र मीथेन उत्सर्जन:- 

पशुधन सघनता प्रति वर्ग कि. मी. इकाई को ध्यान में रखते हुए, भारत के सभी राज्यों के लिए वार्षिक आंत्र मीथेन उत्सर्जन की तुलना की गई। आकलन में यह पाया गया कि राष्ट्रीय स्तर पर पशुधन लगभग 2.62 मीट्रिक टन मीथेन प्रति वर्ग कि. मी. उत्सर्जित करते हैं। बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असोम, झारखंड और आंध्र प्रदेश में पशुधन समष्टि की सघनता (2204/km) के कारण आंत्र मीथेन राष्ट्रीय औसत से अधिक उत्सर्जित होता है। गोपशु को 4.92 Tg के वार्षिक उत्सर्जन के साथ देश में सबसे अधिक (कुल उत्सर्जन का 56%) आंत्र मीथेन उत्पादक पाया गया है, जबकि भैंस, भेड़ और बकरियों में यह क्रमश: 295 और 10% पाया गया।

ताप दबाव के दौरान miRNA ट्रांसक्रिप्ट्स:-

फ्रीजवाल गोपशु के पीबीएमसी (पेरिफेरल ब्लड मोनोन्यूक्लियर सेल्स) में कुल 420 miRNA की पहचान की गई और यह पाया गया कि इनमें से 65 ग्रीष्म की शीर्ष अवधि के दौरान भिन्नात्मक रूप से अभिव्यजित थे। रिपोर्टर ऐस्से में यह पाया गया कि bti-miR-2898 बोवाइन एचएसपीबी को दबावयुक्त बोवाइन पीबीएमसी कोशिका संबंधिंत मॉडल में लक्षित कर सकता है।

गोपशु ताप संघात प्रोटीन 90 में कार्यात्मक आईआरईएस:- 

गोपशु ताप संघात प्रोटीन जीन में एक प्यूटेटिव इंटरनल राइबोसोमल एंट्री साइट (आईआरईएस) की पहचान पहली बार की गई और इसे कार्यात्मक पाया गया। पहचान किए गए गोपशु ताप संघात प्रोटीन आईआरईएस का उपयोग एक समान रीडिंग फ्रेम से दो जीनों के समकालिक अनुलेखन हेतु एक कृत्रिम अभिव्यंजकता कैसेट विकसित करने के लिए किया गया।

साहीवाल में परिसंचारी miRNA:- 

इस अन्वेषण का उद्देश्य उष्णकटिबंधीय जलवायु से अनुकूलनशील साहीवाल (बोस इंडिकस ) गोपशु में तापीय दबाव के दौरान भिन्नात्मक अभिव्यजित miRNA की पहचान करना था। पशुओं की दबावयुक्त अनुक्रियाओं का लक्षणवर्णन प्रमुख ताप संघात प्रोटीन जीनों के विभिन्न शरीरक्रियात्मक एवं जैवरासायनिक प्राचलों तथा भिन्नात्मक अभिव्यंजकता प्रोफाइल का निर्धारण कर लिया गया। विश्लेषण में ग्रीष्मकाल एवं शीतकाल के दौरान भिन्नात्मक अभिव्यजित miRNA के एक सैट की पहचान की गई। पहचान किए गए अधिकतर miRNA ने ताप संघात प्रोटीन (एचएसपी) परिवार के ताप संघात अनुक्रियाशील जीनों, विशेष रूप से उसके सदस्यों को लक्षित किया गया। चयनित miRNA के विश्लेषण में यह पाया गया कि bta-mir-1248, bta-mir-2332, bta-mir-2478, और bta- mir-1839 काफी ज्यादा अभिव्यजित थे, जबकि bta-mir-16a, btalet-7b, bta-mir-142, और bta-mir-425 शीतकाल की तुलना में ग्रीष्मकाल के दौरान कम अभिव्यंजित थे। वर्तमान अध्ययन में साहीवाल में भिन्न पर्यावरणीय तापमानों पर भिन्नात्मक अभिव्यंजित miRNA का वर्णन किया गया है. जो तापीय विनियामक पद्धतियों पर miRNA को भूमिका को और अधिक जानने-समझने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।

दबावयुक्त गोपशु miRNA पर डाटाबेस:-  

तापीय दबाव के दौरान गोपशु में भिन्नात्मक अभिव्यंजित miRNA की सूची पर एक समग्र डाटाबेस विकसित किया गया।

ताप दबाव के दौरान शरीरक्रियात्मक अनुक्रियाओं का विनियमन:- 

फाइब्रोब्लास्ट कोशिकाओं में ताप संघात (41°C) ( कंट्रोल 37°C) की जांच की गई और आरएनए को अलग करने के लिए कोशिकाओं को प्रसंस्करित किया गया। उसके उपरांत सीडीएनए लाइब्रेरी के संश्लेषण तथा विश्लेषण के लिए उन्हें पुनः प्रसंस्कारित किया गया। कोशिकाओं से परिष्कृत उच्च गुणवत्ता आरएनए का विश्लेषण पूर्ण ट्रांसक्रिप्टोम तथा माइक्रो RNA विशिष्ट अनुक्रमण अध्ययन के साथ किया गया ताकि फाइब्रोब्लास्ट कोशिका में मौजूद सभी माइक्रो आरएनए / ट्रांसक्रिप्ट्स की पहचान की जा सके। कुल मिलाकर, 24.997 ट्रांसक्रिप्ट्स को सुस स्क्रोफा जीनोम में प्रतिचित्रित किया गया, जिसमें से 651 जीन भिन्नात्मक अभिव्यंजित थे। इसके अलावा, 255 और 396 भिन्नात्मक अभिव्यजित जीन (डीईजी) भी पाए गए, जो क्रमशः अप-रेग्युलेटेड और डाउन रेग्युलेटेड थे। डीईजी की कार्यात्मक व्याख्या की गई जिसके लिए इन जीनों से संबद्ध कार्यों और समृद्ध पाथवेज की सूचना सृजित करने हेतु ऑनलाइन प्रोग्राम्स (Pantherdh and 'g' Profiler) का उपयोग किया गया है

कुक्कुट:- 

लेयर की विष्ठा, ब्रॉयलर लिटर, हैचरी एवं बूचड़खाना अपशिष्टों तथा मृतक पक्षियों में से केवल ब्रॉयलर लिटर में मोथेन पदार्थ पाया गया। अन्य अपशिष्ट कम्पोस्टिंग के लिए उपयुक्त थे। कुक्कुट विष्ठा की वायुजीवी कम्पोस्टिंग में कार्बनयुक्त सामग्रियों जैसे कि पादप की पत्तियां धान की भूसी और बुरादा में 30:1 सी:एन अनुपात पर तथा 50-55% नमी पर समान मीथेन दक्षता पायी गयी। ग्रीष्मकाल के दौरान कृषि वानिकी अपशिष्ट का प्रयोग कर कुक्कुट विष्ठा की कम्पोस्टिंग में कंट्रोल ग्रुप को तुलना में, उपचार किए गए सभी कुक्कुट समूहों में उच्च बिन तापमान पाया गया। कंट्रोल ग्रुप में शामिल कुक्कुट की कम्पोस्टिंग में उच्च pH पाया गया। कंट्रोल ग्रुप के कुक्कुट की कम्पोस्टिंग में उच्च टीबीसी एवं ई कोलाई पाया गया, जबकि उपचार में शामिल कुक्कुट समूहों में यह काफी कम मात्रा में पाया गया। कंट्रोल की तुलना में उपचार में शामिल कुक्कुट समूहों की कम्पोस्टिंग से उच्च अंकुरण प्रतिशत पाया गया। उपचार में शामिल कुक्कुट समूहों की कम्पोस्टिंग में सी:एन अनुपात 30:1 पर और जल तत्व 50-55% पर कायम रहा। कुक्कुट बायोगैस के लौहकरण और अम्लीयकरण (0.1M) में 4.0 पीपीएम से भी कम H2S और NH3 स्तर पाया गया और सीएआरआई, इज्जतनगर में विकसित डायलूशन एसिडिफिकेशन कार्बोनाइजेशन (डीएसी) तकनीक में 16% से कम पाया गया, परंतु CH, स्तर बढ़कर लगभग 79% पाया गया।

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Post By: Shivendra
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