जलवायु कारकों से भी प्रभावित होता है पक्षियों का गायन (bird songs influenced by astronomical and meteorological factors)


अध्‍ययनकर्ताओं के अनुसार ‘‘चाँदनी के प्रकाश का असर भी सुरीले पक्षियों के गायन पर पड़ता है। पूर्णिमा के दिन पक्षियों का गाना कम समय तक सुनाई देता है। जबकि अमावस्या को पक्षी ज्यादा कलरव करते पाए गए। रात की चाँदनी में मौसम ठंडा होने या हवाएँ तेज चलने के बाद सुबह पक्षियों के गीत गाने की दर बढ़ जाती है। पर्यावरणीय कारकों के कारण सुरीले पक्षियों के गायन पर पड़ने वाले प्रभाव का यही असर उनकी प्रजनन क्रिया पर भी पड़ता है।'

वास्को-द-गामा (गोवा) : अक्सर माना जाता है कि पक्षी अपने जीवन-साथी को लुभाने के लिये गाते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने पाया है कि पक्षियों के सुरीले गायन पर कई खगोलीय और मौसमीय कारकों का भी असर पड़ता है। हिमालय की तलहटी में विशेष रूप से पाए जाने वाले काला पिद्दा (सेक्सिकोला कैप्राटा) नामक उष्णकटिबंधीय सुरीले पक्षी पर हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जीव-विज्ञान और पर्यावरण-विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में ये रोचक तथ्‍य सामने आए हैं।

अध्‍ययनकर्ताओं ने पाया है कि ‘‘वातावरण, तापमान, नमी, हवा के बहाव की दिशा एवं गति और वर्षा जैसे जलवायु कारकों के साथ-साथ सूर्योदय का समय, दिन की अवधि और चंद्रमा की गतिविधियों का संबंध भी सुरीले पक्षियों के गायन से होता है।’’ नर पक्षियों के गायन शुरू करने के समय, गाने की अवधि एवं उसकी लम्बाई और एक मिनट में पक्षियों द्वारा निकाली जाने वाली विभिन्‍न ध्वनियों समेत पक्षियों के गायन व्यवहार से जुड़े विभिन्‍न तथ्‍यों का अध्‍ययन करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुँचे हैं।

सुरीले पक्षी काला पिद्दा पर वर्ष 2015 में जनवरी एवं फरवरी के महीनों में यह अध्‍ययन उस वक्‍त किया गया जब भारत में बसंतऋतु की शुरुआत होती है। नर काला पिद्दा पक्षी आमतौर पर जनवरी के अंत में ही गायन शुरू करते हैं और फरवरी के पहले हफ्ते से उनका गायन एक निश्चित अंतराल पर होने लगता है। अध्‍ययनकर्ताओं की टीम में नवजीवन दड़वाल और दिनेश भट्ट शामिल थे। यह अध्‍ययन शोध पत्रिका करंट साइंस के जुलाई अंक में प्रकाशित किया गया है।

सुरीले पक्षियों की अधिकांश प्रजातियों में केवल नर पक्षी ही गाते हैं और प्रत्येक प्रजाति का अपना विशिष्ट स्वर और गायन शैली होती है। अध्ययन क्षेत्र से कुल 12 नर पक्षियों को चुना गया था। उनमें से छह पक्षियों पर प्रतिदन सुबह नजर रखते हुए स्टॉप-वॉच की मदद से उनके गायन शुरू करने के समय को नोट किया जाता था और उनकी सुरीली ध्वनियों को रिकॉर्ड किया जाता था। पक्षियों की पहचान के लिये उनके प्रजनन के मौसम की शुरुआत में ही नर पक्षियों में प्लास्टिक के रंग-बिरंगे बैंड बाँध दिए गए थे।

पक्षियों के गायन के समय विभिन्न जलवायु कारकों के मापन के लिये मौसम स्टेशन से प्राप्त आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया था। अध्ययन में पाया गया है कि नर व मादा दोनों प्रकार के सुरीले पक्षियों के गायन पर जलवायु कारकों का असर होता है। सुरीले पक्षियों के गायन और उनकी प्रजनन प्रक्रिया में भी संबंध पाया गया है। अध्‍ययनकर्ताओं के अनुसार पक्षियों के प्रजनन की शुरुआत के मौसम का असर उनके गीत गाने पर भी पड़ता है।

अध्‍ययन में शामिल वैज्ञानिकों के अनुसार ‘‘तापमान, नमी और हवा की गति के कम या ज्यादा होने से पक्षियों के गायन की दर भी उसी अनुपात में कम या ज्यादा हो जाती है। गाने वाले पक्षियों में मौसम के पूर्वानुमान को भाँप लेने की एक अद्भुत क्षमता होती है। ध्यान से सुना जाए तो मौसम के बदलने से सुरीले पक्षियों के गीत गाने का अंदाज और गाने की अवधि बदल जाती है। सुबह के समय और गोधूली बेला में भी मौसम के खुशनुमा होने से पक्षियों का सुर विशेष मधुरता लिए होता है।’’

अध्‍ययनकर्ताओं के अनुसार ‘‘चाँदनी के प्रकाश का असर भी सुरीले पक्षियों के गायन पर पड़ता है। पूर्णिमा के दिन पक्षियों का गाना कम समय तक सुनाई देता है। जबकि अमावस्या को पक्षी ज्यादा कलरव करते पाए गए। रात की चाँदनी में मौसम ठंडा होने या हवाएँ तेज चलने के बाद सुबह पक्षियों के गीत गाने की दर बढ़ जाती है। पर्यावरणीय कारकों के कारण सुरीले पक्षियों के गायन पर पड़ने वाले प्रभाव का यही असर उनकी प्रजनन क्रिया पर भी पड़ता है।’’ इस शोध को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा वित्त-पोषित किया गया था।

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